ब्लैक लाइव मैटर

एलन कुर्डी एक तीन साल का बच्चा था जो २०१५ मे अपने देश सीरिया से यूरोपियन देश अबैध तरीके से जा रहा था. वह अपने देश की हिंसा से त्रस्त होकर एक प्रवासी की तरह यूरोप मे रहना चाहता था. वह गोरा नही था, पर उसे अपने काले लोगो के देश से ज्यादा गोरे लोगो क देश सुरक्षित लगा.


२०२० की मई में अमेरिका में जार्ज फ्लायड की पुलिस द्वारा गैर कानूनी रूप से हत्या के पश्चात, नस्ल भेद के विरोध मे ब्लैक लाइव मैटर आन्दोलन चलाया जा रहा है.


अमेरिका और यूरोप मे काले रंग के लोग अफ्रीकी मूल के वे लोग है जो दास व्यापार के दौरान अफ्रीका से लाकर युरोप मे बेचे गये थे.  उनसे गुलामो की तरह काम लिया जाता था. उनके अधिकार शून्य थे. उन्हे उनकी क्षमताओ से नही बल्कि उनके रंग से पहचान दी जाती थी. द्वतीय विश्व युद्ध तक अमेरिका मे उनके अधिकार शून्य थे. इसके बाद मार्टिन लूथर किंग जूनियर के द्वारा चालाये गये अन्दोलन के फलस्वरूप काले लोगो को सामाजिक और आर्थिक अधिकार दिये गये.


जार्ज फ्लायड की मौत दुखद है और उसके हत्यारो को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिये. लेकिन ब्लैक लाइव मैटर आन्दोलनकारियो के द्वारा जो हिंसा और आतंक मचाया जा रहा है वह भी तो स्वीकार नही है. इतिहास मे क्या हुआ, उसके लिये कोई एक ब्यक्ति दोषी नही है. यदि वस्कोडिगामा और दास ब्यापारी नस्लवादी थे तो हम कैसे भूल सकते है कि दास ब्यापारियो को दास उपलब्ध कराने वाले, काले लोगो के मुल देश के उस काल के राजा भी तो कम दोषी नही थे. यदि न्याय चाहिये तो हिसाब केवल गोरो से नही बल्कि उन देशो से भी माँगना चाहिये जिन्होने अपने लोगो को दास ब्यापारियो को बेचा.


लंदन मे महात्मा गाँधी की प्रतिमा के साथ तोड़फोड़ और उन्हे नस्लभेदी कहना शायद आन्दोलनकारियों के ज्ञान की शून्यता को दर्शाता है. पूरी दुनियाँ को शान्ति और अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले गाँधी, जिसने दक्षिण अफ्रीका में काले लोगो के अधिकारो के लिये अभूतपूर्व संघर्ष किया, उसके साथ इस तरह का ब्यवहार यह दर्शाता है कि आन्दोलनकारियो को जार्ज फ्लायड के साथ न्याय होने की नही अपितु अपनी छुद्र राजनैतिक उद्देश्य की पूर्ति होने की ज्यादा चिन्ता है.