शायर - शिव कुमार बटालवी
माये! नी माये!
मैं इक शिकरा* यार बनाया
उसके सर पे कलगी
उसके पैरीं झांजर
वो चोग चुगेंदा आया
एक उसके रूप की धूप तिखेरी
दूजा महकों का तिरहाया
तीजा उसका रंग गुलाबी
किसे गोरी माँ का जाया
इश्क़े का एक पलंघ नवारी
हमने चांदनी में विछाया
तन की चादर हो गयी मैली
उस पैर जा पलंघे पाया
दुखन मेरे नैनों के कोए
विच हढ़ (बाढ़ ) आंसूओं का आया
सारी रात गई विच सोचां
उस यह क्या ज़ुल्म कमाया
सुबह सवेरे ले नी वटणा
असीं मल मल उस नुहाया
देही में से निकलें चिणगें
मेरा हाथ गया कुमलाया
चूरी कुटां और वो खाता नाहीं
मैंने दिल का मास खुआया
एक उडारी ऐसी मरी
वो मुड़ वतनीं न आया।
* Hawk