संतोष आनंद
हिंदी फ़िल्म “प्रेम रोग” से
निकल के उनके दिल से -
हम सरे-महफ़िल में जा बैठे
हमारी मुश्किल यह है
कि बड़ी मुश्किल में जा बैठे
जो मिलते रहते हैं
वो दिल में समा जाते हैं
जो मिल के नहीं मिलते
वो याद, बहुत याद आते हैं
ये प्यार था या कुछ और था
न तुझे पता न मुझे पता
ये निगाहों का ही कुसूर था
न तेरी खता न मेरी खता
तेरे सुख की सेज सजी रहे
मेरी उम्र भी तुझे जा लगे
मैं दुआएँ देने में चूर था
सारी ख़ुशीआं तुझपे वार के
चला मैं तो सभ कुछ हार के
यही इश्क़ का दस्तूर था
न तो अपना तुझको बना सके
न ही दूर तुझसे जा सके
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