Puraanic contexts of words like Sukesha, Sukha, Sugreeva, Sutapaa, Sudarshana etc. are given here.
Vedic view of Sukha by Dr. Tomar
सुकेश देवीभागवत १२.६.१५३(सुकेशी : गायत्री सहस्रनामों में से एक), वराह १०, वामन ११+ (सुकेशि का ऋषियों से नरक, धर्म, सदाचार सम्बन्धी संवाद, सूर्य द्वारा सुकेशि का पतन), १५(सुकेशि के नगर का उत्थान, सूर्य द्वारा पातन), २२, ६८, स्कन्द ४.२.५३.१०६(काशी में सुकेशेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.२०९.५८, वा.रामायण ७.४.३२(विद्युत्केश व सालकटङ्कटा - पुत्र, देववती - पति, माल्यवान् आदि के पिता ), लक्ष्मीनारायण १.५३२.१४(सुकेशी - मित्रकेशी , २.२७, sukesha
सुक्षेत्र द्र. मन्वन्तर
सुख गरुड ३.१६.६३(वायु के सर्वदा सुखी व कलि के सर्वदा दुःखी होने का कथन), ब्रह्माण्ड १.२.१९.१५(नारद पर्वत के सुखोदय वर्ष का उल्लेख), २.३.७.२३३(महासुख : वाली के सामन्त प्रधान वानरों में से एक), भविष्य ३.२.१३(सुखभाविनि : धर्मध्वज वैश्य - पुत्री, चोर के शल्यारोपण काल में चोर पर आसक्ति, दुर्गा प्रसाद से चोर को जीवित करना), भागवत ११.१९.४१, मत्स्य १०१.७३(सुख व्रत), मार्कण्डेय ५०.२८(सिद्धि - पुत्र), वराह ११६.२८(संसार में अध्यात्म द्वारा सुख उत्पन्न करने वाले कर्मों का वर्णन, सुख - दुःख का कारण, सुख रूप कर्म, दुःख रूपी कर्म), विष्णु २४४सुखोदय, स्कन्द ५.१.४३.५७, महाभारत वन ३१३.६९, ३१३.७३, शान्ति २५१.१२(त्याग का उपनिषत् सुख व सुख का स्वर्ग होने का उल्लेख), ३१९.१८(सुख त्याग हेतु तप, योग का निर्देश), लक्ष्मीनारायण २.२४६.७८, ३.३०.४७(सुख के तीन साधनों धर्म, क्षमा, तितिक्षा का उल्लेख ), ३.१६८.८९, कथासरित् ७.९.७३सुखधन, द्र. महासुख sukha
Vedic view of Sukham by Dr. Tomar
सुखखानि भविष्य ३.३.९.४२(ब्राह्मी - पुत्र, पार्षद - अंश, जन्म काल का कथन), ३.३.१५.९(देवी द्वारा सुखखानि की परीक्षा, वीर होने का वर), ३.३.२०.३२(वरुण का अंश, लहर - कन्या मदनमञ्जरी से विवाह), ३.३.३१.६६ (सुखखानि द्वारा कितव दैत्य का वध ) sukhakhaani
सुखद वराह ३६.६, ११६,
सुखा ब्रह्माण्ड ३.४.१(सुखा देवगण के अन्तर्गत २० देवों के नाम), भविष्य १.३१सुखावहा, वराह ७९(सुखा नदी), वायु १००.१८(सुखा देवगण के अन्तर्गत २० देवों के नाम ), लक्ष्मीनारायण ३.१९०.१४(सुखादेवी sukhaa
सुखावती वराह ७९.२२, विष्णु २.८.९, कथासरित् ८.३.२४,
सुगण कथासरित् ८.४.८७,
सुगति मत्स्य १०१.५६(सुगति व्रत), स्कन्द ५.२.६०.२,
सुगन्ध गणेश १.५८.१३(सुगन्धा : कृतवीर्य - पत्नी), पद्म ३.२८.५(सौगन्धिक वन का संक्षिप्त माहात्म्य : पाप से मुक्ति), ३३२, वामन ९०.१२(मलय पर्वत पर विष्णु का सौगन्धि नाम से वास ), स्कन्द २.२.३८.११६, sugandha
सुग्रीव अग्नि ९३.१५(वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक), १०५, कूर्म २.४, देवीभागवत ५.२३, ५.२४(शुम्भ - दूत, कालिका/कौशिकी देवी से वार्तालाप), पद्म १.३८(पुष्पक विमान पर आरूढ होकर राम व भरत का किष्किन्धा, लंका आदि में गमन, सुग्रीव व विभीषण आदि से मिलन), ५.१०७.३३(आठ शिर वाले भयानक दैत्य द्वारा वालि व सुग्रीव का भक्षण, वीरभद्र द्वारा राक्षस का वध करके भस्म से दोनों का संजीवन), ६.२४३(सुग्रीव द्वारा राम हेतु पूर्ण कलश का ग्रहण), ब्रह्माण्ड २.३.७.२१५(ऋक्षराज द्वारा भानु के अंश से सुग्रीव व इन्द्र के अंश से वालि पुत्रों को प्राप्त करने का कथन), भविष्य ३.३.१०.४५(पपीहक व हरिणी - पुत्र, कराल रूप में अवतरण), मत्स्य ४६.५(कृत व श्रुतदेवी - पुत्र), २५३.२६(वास्तुमण्डल के देवताओं में से एक), मार्कण्डेय ८५(दुर्गासप्तशती ५.१०२)(शुम्भ व निशुम्भ का दूत), वामन ५५(शुम्भ का विन्ध्यवासिनी देवी को दूत), वायु ३९.३९(गरुड - पुत्र, विकङ्क पर्वत पर वास), विष्णुधर्मोत्तर १.२२३(वाली – सुग्रीव आख्यान), शिव ५.४७.३२(शुम्भासुर के दूत सुग्रीव दानव द्वारा कौशिकी देवी को शुम्भासुर का संदेश देना), स्कन्द २.८.८.७५(पूर्व में सुग्रीव द्वारा स्थापित तथा पश्चिम में हनुमान व विभीषण दवारा स्थापित तीर्थों का संक्षिप्त माहात्म्य), ३.१.४२.३३(रामसेतु पर सुग्रीव तीर्थ का माहात्म्य), ३.१.४४.१९(सुग्रीव के विरूपाक्ष से युद्ध का उल्लेख), ३.१.४९.४०(सुग्रीव द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ३.१.५१.२४(सुग्रीव का प्राची दिशा में स्मरण, अन्य दिशाओं में नल, मैन्द, द्विविद आदि का), ५.१.३(विष्णु के रक्त नर का रूप), वा.रामायण १.१७.१०(सूर्य का अंश), ४.२६(सुग्रीव के राज्याभिषेक का वर्णन), ६.१७.१८(सुग्रीव द्वारा विभीषण - शरणागति विषयक विचार व्यक्त करना), ६.२४.१८(वानर सेना व्यूह में सुग्रीव की जघन प्रदेश में स्थिति), ६.२८.२८(सारण द्वारा रावण को सुग्रीव का परिचय), ६.३७.३२(लङ्का के मध्य में सुग्रीव का विरूपाक्ष से युद्ध), ६.४०(सुग्रीव का रावण से मल्ल युद्ध), ६.४३.१०(सुग्रीव का रावण - सेनानी प्रघस से युद्ध), ६.६७(युद्ध में कुम्भकर्ण द्वारा सुग्रीव का अपहरण व मुक्ति), ६.९६(सुग्रीव द्वारा रावण - सेनापति विरूपाक्ष का वध), ६.९७(सुग्रीव द्वारा महोदर का वध), ७.३४(राम द्वारा सुग्रीव को विदाई ), लक्ष्मीनारायण १.१६६, द्र. वंश ताम्रा, वास्तुमण्डल sugreeva/ sugriva
सुग्रीवी मत्स्य ६.३३(कश्यप - कन्या, धर्म - भार्या, अज, अश्व आदि की माता),
सुघटक स्कन्द २.२.१६(विश्वकर्मा - पुत्र, देवशिल्पी, नृसिंह - मूर्ति व देवालय निर्माण),
सुघोष नारद १.११.१५९(सुघोष विप्र द्वारा भद्रमति से पांच हाथ भूमि दान में प्राप्त करने पर सुकृत लोक गमन), स्कन्द २.१.२०(सुघोष विप्र द्वारा भद्रमति को भूमि दान ) sughosha
सुचक्राक्ष वामन ५७.८९(चक्र तीर्थ द्वारा कार्तिकेय को प्रदत्त गण), ५८.७८(बाणासुर द्वारा सुचक्राक्ष का बन्धन ) suchakraaksha/ suchakraksha
सुचन्द्र गर्ग १.८(नृग - पुत्र, हरि का अंश, कलावती - पति, वृषभानु रूप में अवतरण), ब्रह्मवैवर्त्त ३.३६(सुचन्द्र का परशुराम से युद्ध), ३.३८(परशुराम द्वारा सुचन्द्र का वध), ४.१४.४५(रम्भा - पिता), ४.१७, ब्रह्माण्ड २.३.३९(कार्तवीर्य सेनानी, परशुराम से युद्ध, आग्नेयास्त्र से मृत्यु की कथा, भद्रकाली का गण बनना ), स्कन्द ३.१.१५, लक्ष्मीनारायण १.४६७, ३.७८, suchandra
सुचरित स्कन्द ३.१.२९.१०(अन्ध सुचरित विप्र द्वारा शिव की स्तुति, सर्व तीर्थ में स्नान से जरा से मुक्ति),
सुचित्ति विष्णुधर्मोत्तर १.१७८(तीसरे मन्वन्तर में इन्द्र),
सुच्छाया द्र. वंश ध्रुव
सुजाता ब्रह्माण्ड १.२.३३.१९(ब्रह्मवादिनी अप्सराओं में से एक )
सुजिह्वा भविष्य १.१३९.३३
सुत स्कन्द ५.१.४३.५७, महाभारत शान्ति २१३.१०(सुत की कृमि संज्ञा)
सुतनु मत्स्य ४६.२१(वसुदेव - भार्या सुतनु के पुत्रों के नाम), स्कन्द १.२.५.५०(नारद द्वारा दानपात्र परीक्षा के संदर्भ में कलाप ग्राम वासी सुतनु ब्राह्मण से प्रश्न करना ) sutanu
सुतपा कूर्म १.१३.१३(वसिष्ठ व ऊर्जा - पुत्र), गर्ग १.११, ७.४२, नारद १.८३.३४(सुतपा ऋषि द्वारा राधा की आराधना), ७.४२.२५(सुतपा द्वारा स्नेह से मोक्ष प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्म १.१२१.३७(सुतपा द्वारा जनार्दन की भक्ति, तप, माया दर्शन की इच्छा, नारद द्वारा मायादर्शन का वृत्तान्त), ब्रह्मवैवर्त्त १.११(सुतपा द्वारा अश्विनौ को शाप), २.५०+ (, २.५३.१८(विरूप - पुत्र, सुयज्ञ व सुतपा का संवाद, विष्णु के स्वरूप का वर्णन), २.५४(सुतपा द्वारा गोलोक का वर्णन, विश्व का वर्णन, कालमान, चतुर्दश मनु, सप्त चिरञ्जीवी, प्रलय वर्णन, लोकों की स्थिति, विप्र पादोदक का माहात्म्य, राधा मन्त्र), ब्रह्माण्ड १.२.११.४१(वसिष्ठ व ऊर्जा - पुत्र), २.३.५.९२(मरुतों में से एक), ३.४.१.१५(विंशति संख्या वाले देवगण), मत्स्य ४८.२३, ४८.५८(सुतपा का विरोचन से साम्य), मार्कण्डेय ७४.२७(मृग का पिता), वायु १००.१४(सुतपा देवगण के २० देवों के नाम), शिव ७.१.१७.३४, हरिवंश १.३१.३२, लक्ष्मीनारायण १.४४२+ (राजा सुयज्ञ द्वारा उपेक्षा पर सुतपा ऋषि द्वारा शाप, सुतपा द्वारा राजा को पत्नीव्रत धर्म का उपदेश ), द्र. मन्वन्तर, वंश वसिष्ठ, sutapaa
सुतल गर्ग ५.१७.३५, वामन ९०.३६(सुतल में विष्णु का कूर्म अचल नाम),
सुतार पद्म ६.१२८+ (सुतारा : चन्द्रकान्त गन्धर्व की पुत्री सुतारा का अग्निप मुनि के शाप से पिशाची बनना, माघ स्नान से मुक्ति, परस्पर विवाह), ब्रह्माण्ड ३.४.१.९०(सुतार देवगण के १० देवों के नाम), लिङ्ग १.२४.१७(द्वितीय द्वापर में मुनि ), शिव ३.४, लक्ष्मीनारायण ३.२१४.१, ३.२२०.२सुतारसिंह sutaara/ sutara
सुतीक्ष्ण शिव ४.२०.१५(सुतीक्ष्ण द्वारा कर्कटी के माता-पिता को भस्म करने का उल्लेख), स्कन्द ३.१.१८.५(अगस्त्य - शिष्य सुतीक्ष्ण द्वारा राम कुण्ड पर तप, राम की स्तुति, सिद्धियों की प्राप्ति), ३.१.२२.१०५(सुतीक्ष्ण द्वारा दुष्पण्य पिशाच की मुक्ति हेतु उद्योग), ३.१.४९.६३(सुतीक्ष्ण द्वारा रामेश्वर की स्तुति), योगवासिष्ठ १.१.४(सुतीक्ष्ण द्वारा अगस्त्य से कर्म या ज्ञान से मोक्ष प्राप्ति उपाय की पृच्छा), वा.रामायण ३.७(सुतीक्ष्ण मुनि की राम से भेंट), ३.११.३६(सुतीक्ष्ण द्वारा राम को अगस्त्य आश्रम का पता बताना ) suteekshna/ sutikshna
सुत्रामा द्र. मन्वन्तर
सुदक्ष पद्म ६.२०२.४(सुदक्षणा : दिलीप - भार्या), ब्रह्माण्ड १.२.१३.९४(अजित देवगण में से एक ), भविष्य ३.२.१८, sudaksha
सुदक्षिण पद्म ६.२०२, भागवत १०.६६(काशिराज - पुत्र सुदक्षिण द्वारा पितृ वध के प्रतिकार हेतु कृष्ण पर अग्नि रूप कृत्या का प्रयोग), शिव ३.४२, ४.१९, ४.२०(कामरूप के राजा सुदक्षिण को भीम दैत्य से त्रास, शिव द्वारा मुक्ति ), महाभारत उद्योग १६०.१२२ sudakshina
सुदत्ता हरिवंश २.१०३.११(कृष्ण - भार्या सुदत्ता के पुत्रों के नाम),
सुदर्शन अग्नि २५.१४(सुदर्शन चक्र पूजा हेतु बीज मन्त्र), ६३.२(सुदर्शन पूजा मन्त्र), २७०, ३०६.६(सुदर्शन चक्र मन्त्र न्यास), गरुड १.३३(सुदर्शन चक्र पूजा विधि व स्तोत्र), ३.२८.३१(चक्राभिमानी काम का रूप), गर्ग ४.२३(अष्टावक्र के शाप से सुदर्शन विद्याधर के अजगर बनने की कथा), ६.२१, देवीभागवत ३.१४+ (ध्रुवसन्धि व मनोरमा - पुत्र, शत्रुजित् अनुज द्वारा राज्य से च्युति, भरद्वाज द्वारा आश्रम में शरण, शशिकला से विवाह, राज्य प्राप्ति), ४.११, नारद १.७६, पद्म ३.३, ४.१७, ६.१००, ६.१२०.६८(सुदर्शन से सम्बन्धित शालग्राम शिला के लक्षणों का कथन), ६.२२४, ६.२४२.९६(सुदर्शन का शत्रुघ्न रूप में अवतरण), ब्रह्म १.९८, २.८६, ब्रह्मवैवर्त्त ४.१६(गन्धवाह - पुत्र, कमल हरण से प्रलम्ब रूप में जन्म), ४.२५, ब्रह्माण्ड २.३.४०.६६, भविष्य १.१४८, ३.१.२, ३.४.७(सुदर्शन चक्र का निम्बार्क रूप में अवतरण), ३.४.१५.६१(सुदर्शन का भरत रूप में अवतरण), भागवत ६.८, १०.३४(सुदर्शन विद्याधर द्वारा शाप से अजगर योनि की प्राप्ति, नन्द का बन्धन, कृष्ण द्वारा मुक्ति), १०.८९(सुदर्शन चक्र द्वारा पश्चिम दिशा में अनन्त की खोज में कृष्ण व अर्जुन का मार्गदर्शन), ११.१६.२९, मत्स्य ११४.७५(महाजम्बू वृक्ष का नाम), लिङ्ग १.२९(सुदर्शन विप्र द्वारा अतिथि सेवा हेतु भार्या का समर्पण), १.९८.१७०(विष्णु नेत्र का चक्र बनना, शिव द्वारा विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान), वराह ८८.३(क्रौञ्च द्वीप के वर्षों में से एक, अपर नाम पावक), वामन ४(वीरभद्र द्वारा सुदर्शन चक्र का ग्रहण), ८२(विष्णु द्वारा शिव से सुदर्शन चक्र की प्राप्ति, सुदर्शन का स्वरूप, सुदर्शन द्वारा शिव देह का खण्डन, श्रीदामा का वध), ९३(सुदर्शन चक्र का पाताल में प्रवेश, बलि द्वारा स्तुति), वायु ४६.२४(इलावृत वर्ष में सुदर्शन नामक जम्बू वृक्ष की महिमा), विष्णु १.१९.१९(सुदर्शन चक्र द्वारा शम्बर असुर की मायाओं को नष्ट करके प्रह्लाद की रक्षा), १.२२.७१(सात्त्विक अहंकार रूपी मन का प्रतीक), शिव २.५.२४.२६(जलन्धर वध हेतु शिव द्वारा पदाङ्गुष्ठ से सुदर्शन चक्र की रचना का कथन), ४.१३(दधीचि - पुत्र व दुकूला - पति सुदर्शन द्वारा दुष्कर्म से जडत्व प्राप्ति, चण्डी पूजा से मुक्ति), ४.३४(दैत्य वध हेतु शिव द्वारा विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान), स्कन्द २.२.१९.२१, २.२.२७.६३(ब्रह्मा द्वारा सुदर्शन चक्र की स्तुति, इन्द्रद्युम्न द्वारा व्यूह चतुष्ट~य प्रतिष्ठा का प्रसंग), २.२.२८.४५(सुदर्शन चक्र : अथर्ववेद का स्वरूप), ३.१.३, ३.१.४(सुदर्शन द्वारा दुर्दम की मुक्ति, दुर्दम द्वारा स्तुति), ३.१.८(सुदर्शन विद्याधर द्वारा कान्तिमती से बलात्कार, गालव से शाप की प्राप्ति), ३.१.१६(स्वनय राज - पुरोधा सुदर्शन द्वारा दीर्घतमा को आमन्त्रित करना), ३.१.२३,४.१.२०.७६(सुदर्शन चक्र द्वारा ध्रुव की भूतालि से रक्षा), ७.१.१४८.१०(सुनन्दा - पति, पूर्व जन्म में चोर, शिवरात्रि में अपराध से कपाल छेदन), हरिवंश १.४८, २.८५, महाभारत सौप्तिक १२, वा.रामायण ४.४०, ६.६९, लक्ष्मीनारायण १.११४, १.४११.५०(विष्णु द्वारा राजा अम्बरीष को सुदर्शन चक्र प्रदान करना, सुदर्शन चक्र द्वारा अम्बरीष की अतिवृष्टि, तम आदि से रक्षा का वृत्तान्त), १.४३५, १.५३२.१५(मिश्रकेशी व दुर्जय - पुत्र ), ३.१३, ३.१३०, कथासरित् ८.७.५५, ९.२.३०९, sudarshana