समृद्धि-सरस्वती
Puraanic contexts of words like Sampati / Sampaatee, Sara / pond, Saramaa, Sarayuu, Sarasvati / Sarasvatee etc. are given here.
समृद्धि नारद १.६६.९४(नरकजित् विष्णु की शक्ति समृद्धि का उल्लेख ) samriddhi
सम्पत्करी ब्रह्मवैवर्त्त ३.२२.१०(सम्पत्प्रदा लक्ष्मी से स्कन्ध की रक्षा की प्रार्थना), ब्रह्माण्ड ३.४.१६.७(ललिता - सहचरी सम्पत्करी देवी द्वारा भण्डासुर से युद्ध हेतुप्रस्थान), ३.४.२२.६४(सम्पत्करी द्वारा दुर्मद का वध), ३.४.२६.३८(सम्पदेशी द्वारा चक्रराज रथ के पश्चिम भाग की रक्षा), ३.४.२८.३८(सम्पदीशा का भण्डासुर - सेनानी पुरुष से युद्ध ) sampatkaree/ sampatkari
सम्पत्ति देवीभागवत ९.१.१०३(ईशान - पत्नी), ब्रह्मवैवर्त्त २१, ३.४.६५(सम्पत्ति वृद्धि हेतु वाद्य दान का निर्देश), योगवासिष्ठ ६.२.१५५(भावी सम्पत्ति), लक्ष्मीनारायण ४.२६.५५९(ब्रह्मप्रियेश कृष्ण आदि की शरण से सम्पत्ति से मुक्ति का उल्लेख) sampatti
सम्पद मत्स्य १०१.२०(सम्पद व्रत),
सम्पर्क लक्ष्मीनारायण २.२३७.४१(सम्पर्क राजा व उसकी सेना का महामारी रोग से पीडित होना, दत्तात्रेय की आराधना से रोग से मुक्ति) samparka
सम्पाती गणेश २.९७.२९(सर्पों द्वारा जटायु व सम्पाति का बन्धन, गरुड द्वारा मुक्ति), २.१००.३३(गुणेश द्वारा सम्पाति व जटायु को सर्पों के बन्धन से मुक्त कराना),पद्म ५.११७.२१२(रूपक राक्षस - पुत्र), ब्रह्म २.९६(गरुड - पुत्र?, सूर्य के समीप जाने से पक्षों का दग्ध होना, गङ्गा में स्नान से ताप से मुक्ति), मत्स्य ६.३५(अरुण - पुत्र),वायु ६९.२१९, ६९.३१७, वा.रामायण ४.५८(सम्पाती का हनुमान आदि वानरों से मिलन, जटायु की मृत्यु का समाचार प्राप्त होना, सम्पाती के पक्ष दग्ध होने की कथा, सीताव रावण का पता बताना), ४.६२+ (सम्पाती द्वारा निशाकर मुनि के दर्शन व सांत्वना प्राप्ति, वानरों के दर्शन से पक्ष युक्त होना), ६.३७.७(विभीषण - मन्त्री, लङ्का कीरक्षा व्यवस्था का दर्शन), ६.४३.७(रावण - सेनानी प्रजङ्घ से युद्ध), ७.५.४५(माली व वसुदा - पुत्र, विभीषण - मन्त्री ) sampaatee/ sampati
सम्प्रज्ञात लक्ष्मीनारायण ३.१३.१+ (प्रज्ञात नामक वत्सर में पृथिवी पर ब्रह्मचर्य की पराकाष्ठा का वर्णन, सती सुदर्शनी द्वारा ब्रह्मचर्य में विघ्नकारकों को शाप से स्त्रीबनाना, श्रीहरि द्वारा स्त्रीपुं नारायण अवतार लेकर पुरुषों को स्त्रीत्व से मुक्त करना), ३.१४.४३(अप्रज्ञात वत्सर में मानवों को माकरासुर के त्रास से त्राण देने के लिए श्रीहरिके जलनारायण रूप में प्राकट्य का वर्णन ) sampragyaata/ samprajnaata
सम्बन्धी पद्म १.१५, ब्रह्मवैवर्त्त १.१०.१३९(श्वसुर, श्याला आदि संज्ञाओं का निरूपण), भविष्य २.१.६.२१(देवरूप ), भागवत ६.७, विष्णुधर्मोत्तर २.३७.५०, लक्ष्मीनारायण २.२४६.३१, sambandhee/ sambandhi
सम्भर लक्ष्मीनारायण ३.२१७
सम्भल गर्ग ९.७, लक्ष्मीनारायण ३.२२०.१,
सम्भाव्य द्र. मन्वन्तर
सम्भूति अग्नि २०(मरीचि व सम्भूति से पौर्णमास पुत्र के जन्म का उल्लेख), गरुड १५, ब्रह्माण्ड १.२.९.५५(दक्ष व प्रसूति - कन्या, मरीचि - पत्नी), भागवत८.५.९(वैराज - पत्नी, अजित अवतार की माता), मत्स्य १२, विष्णु १.१०.६, शिव ७.१.१७.२२(दक्ष - कन्या, मरीचि - पत्नी, पौर्णमास आदि की माता ), द्र. दक्ष कन्याएं,मन्वन्तर, वंश मरीचि sambhooti/ sambhuuti/ sambhuti
सम्भोग गरुड १.१८०(सम्भोग सुख वर्धक ओषधि योग), विष्णु ३.११.११४ (सम्भोग हेतु काल व नियम ), द्र. सुरत sambhoga
सम्भ|म मत्स्य १८०.९९(हरिकेश गण को शिव द्वारा प्रदत्त २ गणों में से एक )
सम्मति द्र. भूगोल
सम्मार्जन नारद १.५१.२७
सम्राट् ब्रह्माण्ड १.२.१६.१७(इस लोक की सम्राट् संज्ञा), लक्ष्मीनारायण ३.४५.३०, द्र. वंश भरत
सयुग्वान् स्कन्द ३.१.२६(शकट के कारण रैक्व मुनि का उपनाम),
सर गरुड १.८१.२२(भाव शुद्धि रूपी आध्यात्मिक सरोवर), पद्म १.२७, ब्रह्माण्ड २.१८(बिन्दु सर), वराह ७८(सरोवर तटों पर पर्वतों की स्थिति), १२६(मानस सर),१४०(ब्रह्म सर), १४०(अग्नि सरोवर), १५०(ब्रह्म सर), १५०(राम सर), १५०(शक्र सर), १५१(अग्नि सरोवर), १५१(पञ्च सर), वामन २२(सन्निहित सरोवर काविस्तार, पृथूदक सरोवर का विस्तार), ४५(सन्निहित सरोवर), विष्णुधर्मोत्तर ३.२९६(सरोवर निर्माण प्रशंसा), शिव ७.२.३२.७८(सरोवर का वह्नि व वह्नि का सरोवरबनना), स्कन्द १.२.५२(अहल्या सर : गौतम व अहल्या के तप का स्थान), १.२.५३(नारदीय सरोवर का माहात्म्य), १.२.५६, २.२.३१(इन्द्रद्युम्न सरोवर में स्नानकी विधि), १.२.६६(कृष्ण द्वारा भीम को लङ्का के निकट सरोवर से मृत्तिका लाने का आदेश, भीम का दर्प भङ्ग), २.१.१०(अस्थि सरोवर), ३.१.९, ३.१.११(सीतासरोवर में इन्द्र की ब्रह्महत्या से मुक्ति), ३.१.१८राम सर, ३.१.३७(विष्णु द्वारा मुद्गल के लिए क्षीर सरोवर का निर्माण), ३.२.१५(देवखात सरोवर का माहात्म्य),३.२.१९, ४.२.५२(काशी में ब्रह्मा द्वारा अश्वमेध करनेv के पश्चात् रुद्र सरोवर का दशाश्वमेध नाम), ५.१.२२, ७.४.१२(मय नामक सरोवर का माहात्म्य, गोपियोंद्वारा कृष्ण के दर्शन), ७.४.१४(महादेvव सरोवर, गौरी सरोवर, वरुण सरोवर, यक्षाधिप सरोवर का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण १.५६, २.३८.६९, २.१२६, २.२००,२.२७२.५७, कथासरित् ५.२.२४३, द्र. मानसरोवर, वाक्सर sara
सरक वामन ३६(सरक तीर्थ में शरभ रूपी शिव द्वारा नृसिंह के दर्प का हरण )
सरघा भागवत ५.१५(बिन्दुमान् - पत्नी, मधु - माता ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.९५, saraghaa
सरदन भविष्य ३.३.१७, ३.३.२६.९४(परिमल - पुत्र रणजित् द्वारा सरदन का वध), ३.३.३१.८३(पृथ्वीराज - पुत्र, मदनावती से विवाह),
सरभ पद्म ६.१८९(सरभ - भेरुण्ड : नरसिंह राजा का सेनापति, मृत्यु पर अश्व बनना, गीता के १५वें अध्याय के श्रवण से मुक्ति ), वामन ६९, sarabha
सरमा देवीभागवत ८.२०.११(शक्रदूती सरमा की वाक् से पणि असुरों के सदैव भयभीत होने का उल्लेख), पद्म १.३८.९६(विभीषण-भार्या सरमा का राम के दर्शन हेतु आगमन, राम द्वारा भरत को सरमा का परिचय देना), ब्रह्म २.६१(देवशुनी सरमा की गोरक्षा में नियुक्ति पर दैत्यों द्वारा गायों का हरण, इन्द्र द्वारा सरमा का ताडन व शापन, सरमा का मानुष लोक में शुनी बनना, सरमा - पुत्रों द्वारा गङ्गा में स्नान से माता की मुक्ति कराना), ब्रह्माण्ड २.३.७.४४१(सरमा वंश का कथन), वराह १६(गायोंकी रक्षा में नियत देवशुनी द्वारा असुरों से दुग्धपान करके इन्द्र से मिथ्या कथन, इन्द्र द्वारा सरमा पर पदाघात आदि), वायु ६९.३१३(सरमा के अपत्यगण व श्याम, शबल आदि का कथन), वा.रामायण ६.३३(राम का सिर काटने की माया का सरमा द्वारा सीता के समक्ष रहस्योद्घाटन), ७.१२.२४(शैलूष गन्धर्व - कन्या, विभीषण – पत्नी, सरमा नाम धारण के हेतु का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.३६५(देवशुनी सरमा द्वारा असुरों से दुग्ध को अस्वीकार करना, असुरों द्वारा श्वा बनकर सरमा का पीछा, सरमा द्वारा पातिव्रत्य से भस्म करना), २.३२.३७(सरमा द्वारा मानुष गर्भों के भक्षण का उल्लेख), saramaa
सरयू नारद २.४०.३८(सरयू का विष्णु के वाम चरण से प्राकट्य, गङ्गा - भगिनी, वेणी राज्य तीर्थ में गङ्गा से मिलन - वेणीराज्यं ततस्तीर्थं सरयूर्यत्र गंगया ।। सुपुण्यया महापुण्या स्वसा स्वस्रेव संगता ।।), ब्रह्माण्ड १.२.१८.१५(सरयू का मानसरोवर से उद्भव, तटवर्ती वनों का वर्णन - तस्मात्प्रभवते पुण्या सरयूर्लोकविश्रुता ।।
तस्यास्तीरे वनं दिव्यं वैभ्राजं नाम विश्रुतम् ।। ), २.३.५१.६५(असमञ्जस द्वारा बालकों के सरयू में क्षेपण का प्रसंग - बालांश्च यूनः स्थविरान्योषितश्च सदा खलः ॥ हत्वाहत्वा प्रचिक्षेप सरय्वामतिनिर्दयः ।), वामन ५७.७८(सरयू द्वारा स्कन्द को गण प्रदान), ९०.२७(सरयू में विष्णु का अनुत्तम नाम - कालिञ्जरे नीलकण्ठं सरय्वां शंभुमुत्तमम्(सरय्वामप्यनुत्तमम्)।), वायु ४७.१५(सरयू की त्रैककुद अञ्जन पर्वत से उत्पत्ति - तस्य पादे सरः पुण्यं मानसं सिद्धसेवितम् ।। तस्मात् प्रभवते पुण्या सरयूर्लोकभावनी।), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.४४(सरयू का सारस वाहन - सारसेनापि सरयूः शिशुमारेण गोमती ।।), स्कन्द २.८.१.४५(सरयू का विष्णु चरण से उद्भव - दक्षिणाच्चरणांगुष्ठान्निःसृता जाह्नवी हरेः । वामांगुष्ठान्मुनिवराः सरयूर्निर्गता शुभा ।। ), २.८.६.१०६(सरयू-घर्घरा संगम का माहात्म्य - सरयूघर्घरायोगे वैष्णवस्थो नरः सदा ।।), २.८.१०.२६(सरयू का माहात्म्य), ६.१००.१७(लक्ष्मण द्वारा सरयू तट पर प्राण त्याग - ततोऽसौ सरयूं गत्वाऽवगाह्याथ च तज्जलम् ॥ शुचिर्भूत्वा निविष्टोथ तत्तीरे विजने शुभे ॥), वा.रामायण १.२४.९(सरयू की मानसरोवर से उत्पत्ति, गङ्गा से मिलन), ७.११०(सरयू में स्नान द्वारा राम का परम धाम गमन, जनसमूह को सन्तानक लोक की प्राप्ति - अध्यर्धयोजनं गत्वा नदीं पश्चान्मुखाश्रिताम् । सरयूं पुण्यसलिलां ददर्श रघुनन्दनः ।। ), लक्ष्मीनारायण १.१२३.१७(वैकुण्ठ लोक में सरयू नदी का वर्णन, निरुक्ति - हरिस्तामानन्दसरैर्युनक्त्यपि निजात्मनि । ततः सा सरयूरूपा सरिज्जाता विकुण्ठके ।।), ३.९.४७(मया तथाऽस्त्विति प्रोक्ता त्वं तदा वैश्यपुत्रिका । सरयूकासतीनाम्न्याः स्त्रियाः पुत्री शुभानना ।।) sarayoo/sarayuu/ sarayu
Comments on Sarayu
सरल लक्ष्मीनारायण ४.८७.१२(वक्र व सरल की परिभाषा )
सरस्वती अग्नि ९१.१४(सरस्वती के बीज मन्त्र आं ह्रीं का उल्लेख), ३०२.१(सरस्वती विद्या मन्त्र), ३१९(वागीश्वरी पूजा स्वरूप व मन्त्र), गरुड १.७.८( सरस्वती पूजा मन्त्र, कवच), १.१०.६(सरस्वती अर्चना मन्त्र), १.३६.१२(सरस्वती के संध्यात्रय में कृष्ण संध्या होने का उल्लेख), १.५२.६(सरस्वती के तरंगिणी से संगम का माहात्म्य), १.८१.५(सप्त सारस्वत के परम पुण्य होने का उल्लेख), १.८३.१३(संध्या में सरस्वती की अर्चना सायंकाल करने का निर्देश), १.२१७.८(अपराह्न सरस्वती का स्वरूप), ३.६.२५(सरस्वती द्वारा हरि-स्तुति), ३.१२.५०(सरस्वती का अंशावतरण न होने का उल्लेख, सरस्वती की ज्ञान से तुलना), ३.१६.८२(सरस्वती के ३ रूप – चतुर्मुख की सावित्री भार्या, कृत में प्रद्युम्न से उत्पत्ति, वाणी - ब्रह्माणी ), गर्ग ६.१३.५(प्रभास तीर्थ के अन्तर्गत पश्चिम - वाहिनी सरस्वती की महिमा), देवीभागवत ३.६.३२(ब्रह्मा द्वारा सृष्टि हेतु महासरस्वती की प्राप्ति), ८.१२.२४ (शाल्मलि द्वीप की नदी), ९.१.३०(सरस्वती की महिमा), ९.४.१०(सरस्वती की महिमा, पूजा विधि, कवच, स्तोत्र), १२.६.१५०(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.६६.८९(सङ्कर्षण की शक्ति सरस्वती का उल्लेख), १.६६.११०(चण्डेश की शक्ति सरस्वती का उल्लेख), १.६६.१२५(विघ्नहर्ता की शक्ति सरस्वती का उल्लेख), १.८३.९२(सरस्वती की राधा से उत्पत्ति, स्वरूप व मन्त्र विधान), १.८४.७९(शुम्भ - निशुम्भ हन्त्री महासरस्वती मन्त्र विधान), पद्म १.१४.१९०(उदङ्मुखी गंगा व प्राची सरस्वती के पवित्र होने का उल्लेख), १.१८.११८(पुष्कर में प्राची सरस्वती का माहात्म्य, पांच धाराओं में विभक्ति, बडवानल का वहन), १.१८.१५०(उत्तर तट पर शरीर त्याग व प्राची तट पर जाप्यपरायण होने का निर्देश), १.१८.१८६(सरस्वती का उत्तंक के आश्रम पद में प्लक्ष वृक्ष के नीचे से उद्भूत होने का कथन), १.१८.२१८(पुष्कर में प्राची सरस्वती के ६ पर्यायवाची नाम मति, स्मृति, शुभा, प्रज्ञा, मेधा, बुद्धि, दयापरा), १.१८.२५२(सरस्वती द्वारा नन्दा नाम प्राप्ति का कारण, व्याघ्र - नन्दा गौ के संवाद की कथा), १.१९.२०(ज्येष्ठ पुष्कर में सरस्वती के प्रवेश का कथन), १.२६, १.३२(पुष्कर में सरस्वती की महिमा), १.३२.११२(ज्येष्ठ – मध्यम पुष्कर से मध्य पश्चान्मुखी सरस्वती व उदङ्मुखी गंगा का संगम होने का उल्लेख, प्राची रूप में स्थित होना), १.४९.१२(पूर्वाह्ण में रक्तवर्णा, मध्याह्न में शुक्लवर्णा व सायं कृष्णा सरस्वती के ध्यान का निर्देश), ३.१३.६(सरस्वती के कुरुक्षेत्र में पवित्र होने का उल्लेख, गंगा के कनखल में), ३.१३.७(सारस्वत तोय द्वारा तीन दिन में पवित्र करने का उल्लेख), ३.२४.१०(सरस्वती – सागर संगम का माहात्म्य – गो सहस्र फल की प्राप्ति), ३.२५.१७( विनशन तीर्थ, चमसोद्भेद तीर्थ, नागोद्भेद तीर्थ, शिवोद्भेद तीर्थ, शशयान तीर्थ का माहात्म्य), ३.२५.३२(सरस्वती सङ्गम का माहात्म्य), ३.२७.३५(पृथूदक तीर्थ का माहात्म्य), ३.२७.४१(सरस्वती – अरुणा संगम का माहात्म्य), ३.२७.९२( कुरुक्षेत्र में सरस्वती के उत्तर व दक्षिण में वास का महत्त्व), ३.२८.७(सौगंधिक वन में सरस्वती का प्लक्षा देवी नाम, वल्मीक से निःसृत जल में अभिषेक का महत्त्व), ३.३२.२(रुद्रावर्त तीर्थ में गंगा – सरस्वती संगम का माहात्म्य), ३.३८.६९( ऋषभ द्वीप में सरस्वती का माहात्म्य), ५.१०४.५६( सरस्वती देवी का स्वरूप), ६.३०.६४( सरस्वती तट पर सिद्धाश्रम में कपिल द्विज द्वारा दीप्त दीपक की रक्षा के संदर्भ में मार्जार – मूषक की कथा), ६.३२.१८(तीन अतिदानों में गावः, पृथिवी व सरस्वती का कथन), ६.३४.२५(प्राची सरस्वती तट पर त्रिस्पृशा व्रत के माहात्म्य का कथन), ६.४९.११(सरस्वती तट पर भद्रावती में धनपाल वैश्य के ५ पुत्रों की कथा), ब्रह्म २.३१(पुरूरवा से रमण करने पर ब्रह्मा द्वारा सरस्वती को नदी होने का शाप), २.३१.११(सरस्वती - गङ्गा सङ्गम), २.३५(सोम पर गन्धर्वों का अधिकार हो जाने पर देवों द्वारा सरस्वती के मूल्य पर सोम का क्रयण), २.६५(ब्रह्मा व विष्णु की श्रेष्ठता की स्पर्द्धा में वाणी का ब्रह्मा के पञ्चम मुख से अनृत कथन, शाप से नदी बनना, गङ्गा से सङ्गम से मुक्ति), २.९३.४०(शाकल्य द्विज व परशु दैत्य की कथा, सरस्वती – प्रदत्त वाक् द्वारा परशु दैत्य द्वारा जनार्द्दन की स्तुति, वांछित फल प्राप्ति, सारस्वत तीर्थ का माहात्म्य), ब्रह्मवैवर्त्त १.३.५४(सरस्वती की उत्पत्ति), २.१.३१(पांच प्रकृतिदेवियों में तृतीय सरस्वती के गुण), २.६(सरस्वती की गङ्गा व लक्ष्मी से कलह), २.६.४(सरस्वती जल के ज्ञान रूप होने का उल्लेख), २.७.१०९ (सरस्वती के तप के विशिष्ट स्थान गन्धमादन का उल्लेख), २.१३.१३(माघ मास में सरस्वती पूजा का उल्लेख), ३.७.१०२(सरस्वती द्वारा श्रीकृष्ण – तेज की संक्षिप्त स्तुति), ४.६.१४४(सरस्वती का शैब्या रूप में अंशावतरण), ४.४५.१२(शिव विवाह में सरस्वती द्वारा हास्य), ४.१०९.१९(कृष्ण व रुक्मिणी विवाह में सरस्वती द्वारा हास्य), भविष्य १.५७.६(सरस्वती हेतु त्रिमधुर बलि का उल्लेख), १.५७.१६(सरस्वती हेतु नवनीत बलि का उल्लेख), ३.१.६.६(काश्यप द्वारा काश्मीर में सरस्वती को प्रसन्न करके वर प्राप्त करने की कथा), ३.४.१०.६१( सरस्वती के दर्शन से ब्रह्मा द्वारा चतुर्वर्ण की सृष्टि का कथन), ४.३५(सरस्वती व्रत), भागवत १.७.२( सरस्वती के पश्चिम तट पर शम्यापरास आश्रम में व्यास द्वारा भागवत की रचना), १.१६.३६+(परीक्षित द्वारा सरस्वती तट पर वृष का ताडन करने वाले कलि का निग्रह), २.९.४४(नारद दवारा सरस्वती तट पर भागवत का उपदेश), ३.१.२१(विदुर द्वारा सरस्वती तीरस्थ त्रित, उशना, मनु, पृथु, अग्नि, असित, वायु, सुदास, गौ, गुह, श्राद्धदेव ११ तीर्थों का सेवन), ३.२१.३९(सरस्वती से भरे बिन्दुसरोवन के नाम का कारण – अश्रुबिन्दुओं से उत्पत्ति), ३.२३.२५(देवहूति द्वारा सरस्वती सर में स्नान पर सरोवन में १ हजार कन्याओं का दर्शन), ३.२४.९( कर्दम आश्रम के सरस्वती से परिश्रित होने का उल्लेख), ४.१६.२४(सरस्वती के प्रादुर्भाव स्थल पर पृथु द्वारा अश्वमेध करने का उल्लेख, पुरन्दर द्वारा अश्व का हरण), ४.१९.१(ब्रह्मावर्त में मनु के क्षेत्र में प्राची सरस्वती क्षेत्र में पृथु द्वारा १०० हयमेधों की दीक्षा का उल्लेख), ५.१९.१८( भारत की नदियों में से एक), ५.२०.१०( शाल्मलि द्वीप की ७ नदियों में से एक), ६.८.४०(चित्ररथ गंधर्व द्वारा ब्राह्मण की अस्थियों को प्राची सरस्वती में प्रवाहित करने का उल्लेख), ८.८.१६(सरस्वती द्वारा लक्ष्मी को हार देने का उल्लेख), ८.१३.१७(देवगुह्य - पत्नी, सार्वभौम अवतार की माता), ८.१८.१६(सरस्वती द्वारा वामन को अक्षमाला देने का उल्लेख), ९.१४.३३(पुरूरवा द्वारा कुरुक्षेत्र में सरस्वती में उर्वशी व ५ सखियों से वार्तालाप), ९.१६.२३( सरस्वती में अवभृथ स्नान के पश्चात् परशुराम का मेघरहित सूर्य के समान प्रकाशित होने का उल्लेख), १०.२.१९(ज्ञानखल की सरस्वती के प्रकाशित न होने की कारागार में बद्ध देवकी से उपमा), १०.३४.२(सरस्वती तट पर अम्बिका वन में अजगर द्वारा नन्द का निगरण, कृष्ण द्वारा उद्धार, अजगर का सुदर्शन विद्याधर बनना), १०.७८.१८(बलराम द्वारा सरस्वती तटस्थ तीर्थों पृथूदक, बिन्दुसर, त्रितकूप, सुदर्शन, विशाल, ब्रह्मतीर्थ, चक्रतीर्थ, प्राची सरस्वती के दर्शन का उल्लेख), १०.८९.१(सरस्वती तट पर ऋषियों के सत्र में भृगु द्वारा त्रिदेवों में श्रेष्ठता की परीक्षा), मत्स्य ३.३२(ब्रह्मा - पुत्री, सावित्री के शतरूपा, सरस्वती आदि उपनामों का उल्लेख), ४.८(विरिंचि के साथ सरस्वती व भारती के साथ प्रजापति की स्थिति का उल्लेख) , ७.३( दिति द्वारा स्यमन्तपञ्चक में सरस्वती तट पर आराधना) , ५३.६८(संकीर्ण /उपपुराणों में सरस्वती व पितरों का माहात्म्य होने का उल्लेख) , ६६.३( सारस्वत व्रत से सरस्वती की तुष्टि का कथन, व्रत विधि), ६६.९( सरस्वती के लक्ष्मी, मेधा आदि ८ तनुओं के नाम), १२१.६५(हेमकूट पृष्ठ पर सर्पसरोवर से ज्योतिष्मती व/ सरस्वती के निर्गम का कथन) , १३३.२४( शिव रथ में वेणुसंज्ञक स्थान पर कृत नदियों में से एक), १७१.३३(ब्रह्मा द्वारा निर्मित लक्ष्मी आदि ५ देवियों में से एक) , २२९.३( सरस्वती तट पर अत्रि व गर्ग मुनियों का अद्भुतों / उत्पातों के सम्बन्ध में वार्तालाप) , २४६.५७(वामन के विराट रूप में सरस्वती का जिह्वा स्थानिक होने का उल्लेख) , २६०.४४(ब्रहमा के वाम पार्श्व में सावित्री व दक्षिण पार्श्व में सरस्वती की प्रतिष्ठा का निर्देश), २९०.१४(संकीर्ण कल्पों / पुराणों में सरस्वती व पितरों की व्युष्टि का उल्लेख) , मार्कण्डेय २३.४९(सरस्वती द्वारा अश्वतर व कम्बल नागों को वरदान), ६९.२६ (सारस्वती इष्टि से रानी नन्दा के मूकत्व का निरसन), वराह ८५(हिमालय पाद से निःसृत नदियों में से एक), ९१(सरस्वती के पर्यायवाची नाम), वामन २२.१३(सरस्वती की प्लक्ष से उत्पत्ति, नाम), ३२+(मार्कण्डेय द्वारा सरस्वती की स्तुति, कुरुक्षेत्र में प्रवाह), ३७(ब्रह्मा के यज्ञ में सरस्वती का आह्वान, कुरुक्षेत्र में विभिन्न ऋषियों द्वारा सरस्वती का विभिन्न नामों से आह्वान), ४०(सरस्वती द्वारा वसिष्ठ के अपवहन का प्रसंग), ४२(सरस्वती के चार दिशाओं में प्रवाह रूपों का कथन), ५३.१२(गजारूढा सरस्वती, कच्छपारूढा यमुना आदि), ६२.४५(सप्त सारस्वत तीर्थ में सरस्वती का ७ नामों से निवास, मङ्कणक प्रसंग), ७२.७५(७ सरस्वतियों से ७ मरुतों का जन्म), वायु १.२३.३४(ब्रह्मा के ध्यान से महानादा सरस्वती की उत्पत्ति का उल्लेख), २३.८६/१.२३.८१(ब्रह्मा द्वारा चतुष्पदा सरस्वती के दर्शन से सब पशुओं के चतुष्पाद, चतुस्तन होने का कथन), २८.९( पूर्णमास व सरस्वती के २ पुत्रों विरज व पर्वस के नाम व गुण), ६५.९१/२.४.९१(सरस्वती व दधीचि से सारस्वत पुत्र के जन्म का उल्लेख), ९९.१२५/२.३७.१२५(रन्तिनार व सरस्वती से उत्पन्न पुत्रों के नाम), १०४.७७/२.४२.७७(देह में न्यास के संदर्भ में मध्य में सरस्वती तीर्थ की स्थिति का उल्लेख), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.४५(सरस्वती का मयूर वाहन, अन्य नदियों के वाहन), ३.६४(सरस्वती की मूर्ति का रूप), ३.१६४(सरस्वती व्रत), शिव १.१२.९(षष्टिमुखा सरस्वती का संक्षिप्त माहात्म्य), १.१२.१७(सरस्वती का संक्षिप्त माहात्म्य), २.५.२६.३४(सरस्वती का सुरा नाम से तमोगुणी देवी के रूप में उल्लेख?), ५.४८.५०(शुंभ – निशुंभ का वध करने वाली शक्ति की सरस्वती संज्ञा), स्कन्द २.१.८.६(सरस्वती द्वारा श्रीनिवास को चंवर डुलाने का उल्लेख), २.३.६.३६(बदरी क्षेत्र में स्थित सरस्वती की प्रशंसा), २.४.४.८५(नन्दा गौ का व्याघ्र को उपदेश के पश्चात् सरस्वती बनना?), ३.१.४०.१(गायत्री – सरस्वती तीर्थ का माहात्म्य, सरस्वती का सावित्री से तादात्म्य ), ३.२.२५(मार्कण्डेय द्वारा सरस्वती को धर्मारण्य में लाना), ४.१.७.६४(सरस्वती रजोरूप, तमोरूपा कलिंदजा, सत्वरूपा गंगा), ४.२.८९.४५(दक्ष यज्ञ में सरस्वती की नासिका का छेदन), ४.२.९२.६(सरस्वती के अथर्ववेद की मूर्ति का रूप होने का उल्लेख, गंगा ऋग्वेद, यमुना यजु, नर्मदा साम), ५.२.७१.६८(शिप्रा का प्राची सरस्वती से तादात्म्य), ५.३.९.४५(गंगा के वैष्णवी, रेवा के रौद्री व सरस्वती के ब्राह्मी मूर्ति होने का उल्लेख), ५.३.२१.५(गंगा के कनखल में, सरस्वती के कुरुक्षेत्र में व नर्मदा के सर्वत्र पुण्या होने का उल्लेख), ५.३.२१.६(सारस्वत जल द्वारा तीन दिन में, यमुना तोय द्वारा सप्ताह में, गंगा तोय द्वारा सद्यः व नर्मदा द्वारा दर्शन से ही पवित्र करने का उल्लेख), ५.३.१८०.५१(दशाश्वमेध तीर्थ में आश्विन् शुक्ल दशमी को ब्रह्मचारिणी सरस्वती में स्नान का महत्त्व), ५.३.१९८.८१(सरस्वती में देवी के वेदमाता नाम से वास का उल्लेख), ५.३.१९८.८९(ब्रह्मास्य में देवी के सरस्वती नाम से वास का उल्लेख), ५.३.२३१.१६(चार सारस्वत तीर्थ होने का उल्लेख), ६.४६(सरस्वती तीर्थ का माहात्म्य, अम्बुवीचि मूक के मूकत्व की समाप्ति, सरस्वती स्तुति), ६.१७२(वसिष्ठ को बहाकर लाने की विश्वामित्र की आज्ञा का उल्लंघन करने पर सरस्वती को शाप की प्राप्ति, रक्त वर्ण जल होना, वसिष्ठ द्वारा शाप का निवारण), ७.१.३२.५२(सुरभि गौ के मुख की अपवित्रता के आक्षेप पर सुरभि द्वारा सरस्वती को दग्ध होने का शाप), ७.१.३३.५४(ऋषियों के आह्वान पर सरस्वती का पञ्चधा विभक्त होना), ७.१.३४(सरस्वती द्वारा बडवानल को समुद्र के प्रति वहन करना, बडवानल से वर प्राप्ति, बडवानल व समुद्र की स्तुति), ७.१.३५(और्व द्वारा उत्पन्न बडवानल को पिप्पलाद आश्रम से लेकर समुद्र के प्रति गमन, यात्रा का वृत्तान्त), ७.१.३५.६५ (न्यङ्कु नदी की शिव द्वारा सरस्वती की सखी के रूप में उत्पत्ति ), ७.१.४१(वडवानल वहन प्रसंग में सरस्वती द्वारा भैरवेश्वर लिङ्ग की स्थापना), ७.१.१५३(ब्रह्मा के यज्ञ में दक्षिणा धन हेतु सरस्वती का काञ्चनवाहिनी होना), ७.१.१८५(वडवा विग्रह में पादुकासन संस्था सरस्वती की गौरी रूप में स्थिति, देवमाता नाम), ७.१.२०२.५८(प्रभास क्षेत्र में पञ्चस्रोता सरस्वती, माहात्म्य), ७.१.२०४(सरस्वती सङ्गम का माहात्म्य), ७.१.२७०(प्राची सरस्वती का माहात्म्य – मङ्कण के हाथ से शाकरस चूने की कथा), ७.१.२७३.६(प्राची सरस्वती का माहात्म्य – कृष्ण वृष का श्वेत बनना), ७.१.३३८, ७.३.१(सरस्वती द्वारा गर्त में फंसी नन्दिनी धेनु को बाहर निकालना), ७.३.२१(सरस्वती की पिण्डोदक ब्राह्मण पर कृपा), योगवासिष्ठ ३.१६+ (सरस्वती द्वारा पद्मराज - पत्नी लीला को सूक्ष्म शरीरों में प्रवेश का उपदेश), लक्ष्मीनारायण १.२३.३७(वाग्देवी सरस्वती को उत्पन्न करने का कारण ), १.२०७.५९(सारस्वत तीर्थ का माहात्म्य), १.३३२(गङ्गा व सरस्वती द्वारा परस्पर शाप से सरित् बनना), १.३८५.५६(सरस्वती का कार्य- पादों में अलक्तक लगाना), १.४४१.९४, १.४७८, १.५०७.८(विश्वामित्र के शाप से सरस्वती के रक्तजला होने तथा वसिष्ठ द्वारा प्लक्ष वृक्ष के मूल से शुद्ध जल वाली सरस्वती के नि:सारण का वृत्तान्त), १.५३७, २.१४२.२९, २.२९७.८६, ३.६२.३०(ब्रह्मा - पुत्री सरस्वती द्वारा स्वभगिनी शारदा के मूकत्व के निरसन का कथन ), ४.४५.३४, ४.१०१.८४, कथासरित् १.४.११, १.५.१८, ९.१.२०५, वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(सावित्री मेधारूप, गायत्री ज्ञानरूपा, सरस्वती प्रज्ञारूपा), महाभारत आदि १६.१९(गंगा की ७ धाराओं में से एक, प्लक्ष मूल से प्रकट होना), ९५.२६(राजा मतिनार द्वारा सरस्वती तट पर यज्ञ, सरस्वती द्वारा मतिनार का पतिरूप में वरण, तंसु पुत्र को जन्म देना), सभा ७.१९(ये इन्द्र की सभा में विराजमान होती हैं), ९.१९(वरुण की सभा में रहकर उनकी उपासना), वन ५.२(पाण्डवों द्वारा वनयात्रा के समय सरस्वती को पार करना, काम्यक वन में प्रवेश), १२.१४(कृष्ण द्वारा सरस्वती तट पर किए गए यज्ञानुष्ठान की चर्चा), ३६.४१(सरस्वती तट पर काम्यकवन होना), ८२.१२५(सरस्वती सङ्गम का माहात्म्य), ८३.१५१(सरस्वती – अरुणा संगम का माहात्म्य), ८४.८६(तीर्थस्वरूपा सरस्वती में पितरों का तर्पण करने पर सारस्वत लोकों की प्राप्ति), ९०.३(तीर्थों की पंक्ति से सुशोभित सरस्वती का पुण्यदायिनी होना), १००.१३(दधीचि का आश्रम सरस्वती के उस पार होना), १२९.२०(लोमश द्वारा सरस्वती के माहात्म्य का वर्णन), १३०.३(निषादों के भय से सरस्वती का विनशन तीर्थ में लुप्त होकर चमसोद्भेद में पुनः प्रकट होना), १८५(तार्क्ष्य मुनि को उनके प्रश्न के अनुसार गोदान, अग्निहोत्र आदि विविध विषयों का उपदेश), २२२.२२(अग्नि की उत्पत्ति की स्थानभूता नदियों में सरस्वती की गणना), उद्योग ११७.१४( मनु – पत्नी), भीष्म ६.४८(गंगा की सात धाराओं में से एक), ९.१४(भारतवासियों द्वारा पान किए जाने वाले जल को प्रदान करने वाली नदियों में से एक), कर्ण २६.९(त्रिपुरनाश के समय शिव के रथ में गंगा व सरस्वती का तूणी होने का उल्लेख), ३४.३४(त्रिपुरदाह के समय शिव के रथ में परिरथ्या/ आगे बढने का मार्ग होने का उल्लेख), शल्य ३५ - ५४(सरस्वती तटवर्ती तीर्थों की महिमा का विशेष वर्णन), ३५.७७(सरस्वती – सागर सङ्गम का माहात्म्य, चन्द्रमा को खोयी कान्ति की पुनः प्राप्ति), ३७.५५(सरस्वती के प्रतीचीमुखी होने का कारण), ४२.२९( ब्रह्मसर से प्रकट होना, सरस्वती द्वारा वसिष्ठ का बहाया जाना), ४२.३८( विश्वामित्र से शोणित रूप जल होने के शाप की प्राप्ति), ४३.१६(ऋषियों के प्रयत्न से शाप से मुक्ति, सरस्वती – अरुणा संगम का माहात्म्य), ५१.१३( महर्षि दधीचि के वीर्य को धारण करके पुत्र पैदा होने पर उन्हें सौंपना), ५१.१७( महर्षि दधीचि से वरदान की प्राप्ति), ५४.३८(बलराम द्वारा सरस्वती की प्रशंसा), शान्ति १२१.२४ (दण्डस्वरूपा सरस्वती के ब्रह्मा की कन्या होने का उल्लेख), ३१८.१४(महर्षि याज्ञवल्क्य के चिन्तन करने पर स्वर और व्यञ्जन वर्णों से विभूषित वाग्देवी सरस्वती का ओंकार को आगे करके उनके सामने प्रकट होना, याज्ञवल्क्य – मिथिलाधिपति संवाद), ३४७.५०(हयग्रीव की भ्रुवों/श्रोणी के रूप में गङ्गा - सरस्वती का उल्लेख), अनुशासन ८५.३१(मण्डूकों को बहुविध सरस्वती उच्चारण का वरदान), मौसल ८.७१(अर्जुन द्वारा सात्यकि – पुत्र को सरस्वती के तटवर्ती प्रदेश का अधिकारी बनाना), स्वर्गारोहण ५.२५(कृष्ण की १६ हजार पत्नियों द्वारा सरस्वती नदी में कूदकर अपने प्राण देना), द्र. महासरस्वती, सप्तसारस्वत, सारस्वत sarasvatee/ sarasvati