सिद्धाधिप-सुकेतुमान्

Puraanic contexts of words like Siddhi / success, Sineevaali, Sindhu, Seetaa / Sita, Sukanyaa, Sukarmaa etc. are given here.

Veda study on Seetaa / Sita

Puraanic view of Sindhu

Vedic view of Sindhu(by Dr. Tomar)

सिद्धाधिप स्कन्द ६.३०(सिद्धाधिप हंस को लिङ्ग अर्चना से पुत्र की प्राप्ति),

सिद्धाम्बिका स्कन्द १.२.६४(सिद्धाम्बिका द्वारा सिद्धसेन को बोध), १.२.६५(सिद्धाम्बिका की अवज्ञा से भीम को अङ्ग वैकल्यता, स्तुति से शान्ति, एकानंशा का रूप ) siddhaambikaa/ siddhambikaa

सिद्धाश्रम गर्ग ६.१६(सिद्धाश्रम की महिमा : कृष्ण वियोग से पीडित राधा द्वारा स्नान, कृष्ण से मिलन), पद्म ६.३०, वराह १४५, वा.रामायण १.२९(विष्णु के तप का स्थान, राम व विश्वामित्र का आगमन ) siddhaashrama/ siddhashrama

सिद्धार्थ कथासरित् ८.१.१२६, ८.२.३७७


सिद्धि गणेश २.६३.१५(देवान्तक असुर की सेना से युद्ध में गणेश द्वारा अणिमा आदि अष्ट सिद्धियों का आह्वान, सिद्धियों द्वारा व्यूह निर्माण, आठ दैत्यों से युद्ध), २.६४.२९(देवान्तक से युद्ध में अष्ट सिद्धियों के विशिष्ट कार्य), २.६९.६(अष्ट सिद्धियों का देवान्तक असुर से युद्ध, सिद्धियों द्वारा देवान्तक की शक्ति अस्त्र को रोकना - ततोऽष्टसिद्धयः शोघ्रमुड्डीय बलवत्तरम् । दध्रुस्तां सहसा शक्तिमानिन्युस्तां विनायकम् ॥), २.८५.२८(सिद्धिदायक गणेश से आग्नेय दिशा की तथा बुद्धीश से प्राची दिशा की रक्षा की प्रार्थना - प्राच्यां रक्षतु बुद्धीश आग्नेय्यां सिद्धिदायकः ।।), २.१०३.१०(सिद्धि व बुद्धि द्वारा कमलासुर के रक्त बीज रूपी रक्त पान का कथन), २.१०९.१०(गणेश के सिद्धि - बुद्धि से विवाह का वृत्तान्त - ज्ञातं धात्रा सिद्धिबुद्धी तस्मै दातुमभीप्सता ।), गरुड १.२१.३(वामदेव शिव की १३ कलाओं में प्रथम - सिद्धिर्ऋद्धिर्धृतिर्लक्ष्मीर्मेधा कान्तिः स्वधा स्थितिः। ॐ हीं वामदेवायैव कलास्तस्य त्रयोदश ।।), गर्ग ५.१५.२६(कृष्ण – राधा की कपिल – सिद्धि से उपमा - कृष्णस्तु साक्षात्कपिलो महाप्रभुः सिद्धिस्त्वमेवासि च सिद्धसेविता ।), देवीभागवत ४.२२.४० (सिद्धि का कुन्ती रूप में अवतरण - कुन्तिः सिद्धिर्धृतिर्माद्री मतिर्गान्धारराजजा ॥ ), १२.६.१५१(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.९१.८२(सद्योजात शिव की प्रथम कला - सद्योजातं प्रपद्यामि सिद्धिः स्यात्प्रथमा कला ।।), ब्रह्म २.५२.९९(सिद्धेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, बृहस्पति द्वारा इन्द्र के राज्य की स्थिरता के लिए शिव की स्तुति - राज्यस्य स्थिरभावाय देवेन्द्रस्य महात्मनः। सिद्धेश्वरस्तत्र देवो लिङ्गं तु त्रिदशार्चितम्।।), ब्रह्मवैवर्त्त ४.७८.३३( २२ सिद्धियों के नाम), ब्रह्माण्ड १.१.५.६१(मनुष्यों में ब्रह्मा के सिद्धि इत्यादि द्वारा स्थित होने का उल्लेख - स्थावरेषु विपर्यासस्तिर्यग्योनिषु शक्तितः ॥ सिद्धात्मानो मनुष्यास्तु पुष्टिर्देवेषु कृत्स्नशः ।), ३.४.१९.३(अणिमादि १० सिद्धियां), ३.४.३६.५०(अणिमादि सिद्धियां), भागवत ६.१८.२ (सिद्धिर्भगस्य भार्याङ्ग महिमानं विभुं प्रभुम्। आशिषं च वरारोहां कन्यां प्रासूत सुव्रताम्।।), ११.१५ (८+ १० सिद्धियों के नाम व लक्षण), लिङ्ग १.८८.९ (८ सिद्धियों वाले ऐश्वर्य का विवेचन), २.२७.१०१(अणिमा, लघिमा आदि व्यूह), वायु १३, शिव २.४.२०(गणेश के सिद्धि व बुद्धि से विवाह, सिद्धि से क्षेम व बुद्धि से लाभ पुत्र की प्राप्ति का कथन - सिद्धेर्गणेशपत्न्यास्तु क्षेमनामा सुतोऽभवत् ।। बुद्धेर्लाभाभिधः पुत्रो ह्यासीत्परभशोभनः ।। ।।), ७.२.३८.९(विघ्नों के शान्त होने पर सिद्धिसूचक उपसर्गों का प्राकट्य - शान्तेष्वेतेषु विघ्नेषु योगासक्तस्य योगिनः ॥ उपसर्गाः प्रवर्तंते दिव्यास्ते सिद्धिसूचकाः ॥), स्कन्द ४.२.७९.१०५(सिद्धेश्वरी पीठ का संक्षिप्त माहात्म्य - तत्र सिद्धेश्वरीपीठे चंद्रेश्वर समीपतः ।। तत्र संनिधिकर्तॄणां सिद्धिः षण्मासतो भवेत् ।।), ५.२.११(सिद्धि प्राप्ति हेतु सिद्धेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, विभिन्न सिद्धियों का कथन), ५.२.५९.५३(अश्वशिरा राजा का जैगीषव्य व कपिल सिद्धद्वय से वार्तालाप), ५.२.७४.५६ (राजस्थलेश्वर के दर्शन से सिद्धियों की प्राप्ति का कथन - अणिमादिगुणाः सर्वे गुटिकासिद्धिरंजनम्॥ खड्गं च पादुकां चैव जलवासं रसायनम्॥), ५.३.१६६(पुत्र आदि प्राप्ति हेतु सिद्धेश्वरी देवी का माहात्म्य), ७.१.१४(सिद्धेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, वालखिल्य आदि ऋषियों द्वारा सिद्धि प्राप्ति), ७.१.५२(कामः क्रोधो भय लोभो रागो मत्सर एव च ॥ ईर्ष्या दंभस्तथाऽऽलस्यं निद्रा मोहस्त्वहंकृतिः ॥ एतानि विघ्नरूपाणि सिद्धेर्विघ्नकराणि तु ॥), लक्ष्मीनारायण १.१०८.२ (विश्वरूप की कन्याओं सिद्धि व बुद्धि द्वारा स्कन्द का वरण न करके गणेश का वरण करने का कथन), १.२९९(विश्वकर्मा की पुत्रीद्वय सिद्धि व बुद्धि के गृहकार्यों का विभाजन, अधिकमास सप्तमी व्रत से गणेश की पतिरूप में प्राप्ति) , १.३८५.४५ (सिद्धि का कार्य – ओष्ठप्ररंजक देना, बुद्धि द्वारा गण्डबिन्दु देना - सिद्धिस्त्वस्यै ददौ गन्धसारं चोष्ठप्ररंजनम् । ब्रुद्धिर्ददौ तु भार्गव्यै गण्डबिन्दु मनोहरम् ।।), २.१७६.६०(ज्योतिष में सिद्धि योग - मंगले शुक्रके त्रयोदशी शनौ चतुर्दशी ।।५९।।गुरौ पञ्चदशी चेत् स्यात् सिद्धियोगः शुभावहः । ), कथासरित् २.५.९१(सिद्धिकरी द्वारा धनप्राप्ति की कथा - अस्ति सिद्धिकरी नाम शिष्या मे बुद्धिशालिनी। तत्प्रसादेन संप्राप्तमसंख्यं हि धनं मया ।।), द्र. दक्ष कन्याएं siddhi


सिनीवाली अग्नि २७४.४(सिनीवाली का पति कर्दम को त्याग सोम के पास जाना), गरुड १.५.१२(स्मृति व अङ्गिरस की ४ कन्याओं में से एक), देवीभागवत ८.१२.२४(शाल्मलि द्वीप की नदी), ब्रह्माण्ड १.२.११.१७(स्मृति व अङ्गिरस - पुत्री), भागवत ४.१.३४, मत्स्य २३.२४(सिनीवाली द्वारा पति कर्दम को त्याग चन्द्रमा की सेवा में जाने का उल्लेख), १४१.४९(सिनीवाली अमावास्या की परिभाषा : सिनीवाली प्रमाण शेष चन्द्रमा का सूर्य में लय होना), लक्ष्मीनारायण ३.१३६.३७(कर्दम - पत्नी सिनीवाली द्वारा लक्ष्मी व्रत के चीर्णन से देवहूति बन कर कपिल को पुत्र रूप में प्राप्त करने का उल्लेख ), द्र. वंश अङ्गिरा sineevaalee/ sinivali

सिन्दूर गणेश २.१२७.१८(ब्रह्मा की जृम्भा से सिन्दूर की उत्पत्ति व ब्रह्मा से वरों व शाप की प्राप्ति का वर्णन), २.१२७.३४(सिन्दूर दैत्य की देह में सुरभि होने का कथन), २.१३७.१४(सिन्दूर द्वारा गजानन के विराट् रूप के दर्शन, गजानन द्वारा मर्दन से मृत्यु), गरुड २.३०.५७/२.४०.५७(मृतक के नेत्रकोणों में सिन्दूर देने का उल्लेख ) sindoora/sindura /sinduura

सिन्धु गणेश २.७३.६३(सिन्धु के जन्म की कथा : माता द्वारा सविता के तेज को धारण करना, तेज से तप्त होने पर सिन्धु तीर पर गर्भ को त्यागना), २.७४.४०(सिन्धु द्वारा तप करके सूर्य से अवध्यत्व वर व अमृत पात्र की प्राप्ति - यस्यांगुष्ठनखाग्रे स्युर्ब्रह्मांडानां हि कोटयः।। स त्वां हनिष्यति विभुरन्यस्मादभयं तव ।), २.७७.५(सिन्धु द्वारा सनक - सनन्दन के पृष्ठ देश पर आघात - पृष्ठभागेऽहनच्चैव सनकं च सनन्दनम्), २.७७.११(सिन्धु द्वारा विष्णु से युद्ध, विष्णु से वर रूप में गण्डकी नगर में बसने की याचना - गण्डकीनगरे मे त्वं परिवारयुतो हरे। सार्वकालं वस विभो नान्यं याचे वरं परम् ।), २.१११.१(गणेश द्वारा सिन्धु के पास नन्दी दूत भेजना), २.११५(सिन्धु का गणेश व उसकी सेना से युद्ध), २.१२३.३०(गुणेश द्वारा परशु से सिन्धु का वध), गर्ग ६.१३.२९(गोमती - सिन्धु संगम में मांस गिरने से दुष्ट वैश्य की मुक्ति), ६.१५.२२(सिन्धुदेश के पापी राजा दीर्घबाहु की गोपीचन्दन के कारण नरक से मुक्ति की कथा), नारद १.५६.७४३(सिन्धु देश के कूर्म के पुच्छ मण्डल होने का उल्लेख), पद्म ३.२४.३(दक्षिण सिन्धु में स्नान से अग्निष्टोम फल प्राप्ति का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.१८.४१(प्रतीची गङ्गा का नाम, सिन्धु के तटवर्ती जनपदों के नाम - सीता चक्षुश्च सिन्धुश्च प्रतीचीं दिशमास्थिताः ।), भविष्य ३.२.११.११(सिन्धु द्वारा राजा हेतु दिव्य कन्या प्रस्तुत करना), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५.५०(सिन्धु नदी का गज वाहन - शशकेनापि लौहित्या नदी सिन्धुर्गजेन च ।।), १.२१५.४६(सिन्धु का व्याघ्र वाहन - सिन्धुर्व्याघ्रेण मत्स्येन वितस्ता च तथा ययौ ।।), ३.१२१.३(सिन्धुकूल में वराह की पूजा का निर्देश - सिन्धुकूले वराहं च शालिग्रामे त्रिविक्रमम् ।), शिव १.१२.२१(सिन्धु नदी का संक्षिप्त माहात्म्य), स्कन्द २.२.३०.६२(ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को सिन्धु स्नान की विधि व माहात्म्य), २.२.३०.१४७(सिन्धु स्नान का महत्त्व), ३.३.४.३३(सारमेय के द्वितीय जन्म में सैन्धव नृप बनने का उल्लेख), योगवासिष्ठ ६.२.१५६(सिन्धुसम्बोधन नामक अध्याय), वा.रामायण ७.१००.१०(सिन्धु के दोनों पार्श्वों पर गन्धर्व नगर होने तथा भरत द्वारा उन्हें जीतने का उद्योग), ७.१०१.११(भरत-पुत्र तक्ष के तक्षशिला का तथा पुष्कल के पुष्कलावती का राजा बनने का कथन), लक्ष्मीनारायण ४.८०.१८(राजा नागविक्रम के यज्ञ में सिन्धुज विप्रों के पाठक बनने का उल्लेख - सिन्धुजाः पाठकाश्चासन् सभासदास्तु पूर्वजाः ।। ), कथासरित् १८.३.४(सिन्धु देश के राजा गोपाल का उल्लेख), sindhu

Puraanic view of Sindhu

Vedic view of Sindhu(by Dr. Tomar)

सिन्धुगुप्त भविष्य ३.२.४

सिन्धुद्वीप अग्नि २१५.४१(आपोहिष्ठ इति ऋचाओं(ऋ. १०.९) के ऋषि का नाम), मत्स्य १२.४५(अम्बरीष- पुत्र, अयुतायु – पिता), वराह २८(पूर्व जन्म में नमुचि, सिन्धुद्वीप के वीर्य से वेत्रासुर का जन्म आदि), ९५(सिन्धुद्वीप के वीर्य से महिषासुर का जन्म), विष्णुधर्मोत्तर ३.१२१.३(सिन्धुकूल में वराह की पूजा का निर्देश), स्कन्द ३.१.३४३१(सिन्धुद्वीप ऋषि द्वारा शृगाल व वानर को मुक्ति हेतु धनुष्कोटि तीर्थ में स्नान का परामर्श ), महाभारत शल्य ३९.३७ (सिन्धुद्वीप द्वारा पृथूदक तीर्थ में तप करके ब्राह्मणत्व की प्राप्ति का उल्लेख - सिन्धुद्वीपश्च राजर्षिर्देवापिश्च महातपाः। ब्राह्मण्यं लब्धवान्यत्र विश्वामित्रस्तथा मुनिः।), अनुशासन ४.४ ( जह्नु – पुत्र, बलाकाश्व – पिता - सिन्धुद्वीपाच्च राजर्षिर्बलाकाश्वो महाबलः।।), sindhudweepa/ sindhudwipa

सिन्धुराज २.२.३०.१४७(सिन्धु स्नान का महत्त्व, सिन्धु की सिन्धुराज संज्ञा), योगवासिष्ठ ३.३१.१२(सिन्धुराज का राजा पद्म से युद्ध), ३.४७, ३.४८(सिन्धुराज का विदूरथ राजा से युद्ध ) sindhuraaja/ sindhuraja

सिन्धुवार वामन १७.६(सिन्धुवार की गणपति से उत्पत्ति - गणाधिपस्य कुम्भस्थो राजते सिन्धुवारकः॥)

सिन्धुसेन ब्रह्म २.९(सिन्धुसेन राक्षस द्वारा यज्ञ को रसातल में लाना, वराह द्वारा सिन्धुसेन का वध),

सीता कूर्म २.३४.११२(रावण द्वारा हरण पर सीता द्वारा आवसथ्य अग्नि की स्तुति), गरुड १.१४२(माण्डव्य ऋषि के शूली आरोपण की कथा में कौशिक ब्राह्मण की पत्नी का सीता बनना), २.१०.३३(सीता द्वारा पितरों के दर्शन का वृत्तान्त), ३.२६.९३(सीताराम शिला का माहात्म्य), देवीभागवत ७.३०(चित्रकूट पीठ में विराजमान देवी का नाम), ९.१६, नारद १.७१, २.६५.५५(सीतावन में केश प्रक्षेपण का माहात्म्य), पद्म १.३३, ५.५५(राम द्वारा सीता त्याग के कारण का कथन), ५.५७(वाल्मीकि आश्रम के पक्षियों के मुख से भावी राम कथा श्रवण, सीता द्वारा पक्षियों का बन्धन होने पर राम से वियोग का शाप), ५.६७(वाल्मीकि आश्रम से राम के अश्वमेध यज्ञ में आगमन), ६.२४३(सीता के विभिन्न रूप), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२७.१७३(सीता द्वारा पति प्राप्ति के लिए पठित गौरी स्तोत्र), ब्रह्माण्ड १.२.१८.४१(प्रतीची गङ्गा का नाम, तटवर्ती देशों के नाम), मत्स्य १२२.७१(कुश द्वीप की नदियों में से एक, अन्य नाम निशा), वराह ८१.१(सीता पर्वत पर महेन्द्र का क्रीडा स्थान व पारिजात वन की स्थिति), वामन ७५.७६(सीता नदी द्वारा स्कन्द को गण प्रदान), वायु ४२.१७(सीता नामक गङ्गा का अवतरण), विष्णुधर्मोत्तर १.२१५(नन्दी, अज वाहन, जीव जीवक वाहन), १.२२१(सीता की भूमि में प्रविष्टि), शिव २.३.२, स्कन्द २.८.६(सीता कुण्ड का माहात्म्य), २.८.८.७०(सीता द्वारा कामधेनु के दुग्ध से सीताकुण्ड का निर्माण), ३.१.११.१(सीता सर का माहात्म्य : इन्द्र की ब्रह्महत्या से मुक्ति, सीता द्वारा निर्माण का विवरण), ३.१.२२(सीता की शुद्धि करने वाले अग्नि तीर्थ का माहात्म्य), ३.१.४५.३(सीता द्वारा स्थापित सिकता लिङ्ग का महत्त्व), ३.१.४९.२१(सीता द्वारा रामेश्वर की स्तुति), ३.२.३५.२४(यज्ञ के अन्त में राम द्वारा सीता के आग्रह पर सीतापुर की स्थापना आदि), ५.३.१९८.७७, महाभारत द्रोण १०५.१९(शल्य के ध्वज में सौवर्णी सीता का चिह्न होने का कथन), वा.रामायण २.११८(अनसूया से स्व जन्म व विवाह प्रसंग का कथन, राम वनवास प्रसंग), ५.२०+ (हनुमान द्वारा रावण के भवन में सीता की खोज, अशोक वाटिका में सीता के दर्शन, रावण का सीता को प्रलोभन, सीता द्वारा रावण की निन्दा आदि), ५.२८+ (अशोक वाटिका में सीता का विलाप), ६.४८(सीता के शरीर के लक्षण), ६.८१(इन्द्रजित् द्वारा मायामयी सीता का वध), ६.११६(रावण वध के पश्चात् राम द्वारा अनासक्ति पर सीता की अग्नि परीक्षा), ७.४५+ (प्रजा अपवाद के कारण राम द्वारा सीता का त्याग), ७.९५+ (सीता द्वारा शुद्धि का प्रमाण देना, शपथ ग्रहण, रसातल में प्रवेश), लक्ष्मीनारायण १.१७९, १.३३४, १.३७६, १.४८०, २.२६२.७०(सीता का सिता नाम से उल्लेख ), कथासरित् ९.१७२, द्र. भूगोल seetaa/sita

Veda study on Seetaa / Sita

सीमन्त भविष्य २.१.१७.१०(सीमन्त कर्म में अग्नि का पिङ्गल नाम )

सीमन्तिनी नारद २.२७.९९(सपत्ना के संदर्भ में सीमन्तिनी का उल्लेख), शिव ३.२६, स्कन्द ३.१.२२? (सीता की अग्नि शुद्धि), ३.३.८(चित्रवर्मा नृप की कन्या व चित्राङ्गद - पत्नी सीमन्तिनी द्वारा मैत्रेय से सौभाग्य वर्धन उपाय की पृच्छा, सोमवार व्रत से वैधव्य से रक्षा), ३.३.९(सोमवार व्रत प्रभाव से स्त्री वेश धारी सामवान् विप्र का स्त्री बनना ), लक्ष्मीनारायण १.४४८, १.४४९, seemantinee/ seemantini

सीमा अग्नि २५७.१(सीमा विवाद निर्णय का विवेचन), स्कन्द ४.२.६१.७५(सीमा विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), योगवासिष्ठ ६.२.१७४.२०(सत् - असत् भाव आदि से परे की स्थिति सीमान्त होने का उल्लेख ) seemaa

सीर ब्रह्म १.७९.२०(विप्रों के मन्त्रयज्ञ शील होने, कृषकों के सीरयज्ञशील होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.५७.४७असीरक,

सीरध्वज वायु ८९.१६(ह्रस्वरोमा - पुत्र, भूमि कर्षण से सीता की प्राप्ति), स्कन्द २.२.३०(बलराम का अपर नाम, स्तुति ) seeradhwaja/ siradhwaja

सीरभद्र भविष्य ४.३(वैश्य, नारद व विष्णु का आगमन, कृषि कार्य में दोष ), ४.८२, seerabhadra/ sirabhadra

सीसा गरुड २.४०.३३(प्रेत प्रतिमा के सीसक द्रव्य का उल्लेख), वा.रामायण १.३७.२०(सीसा धातु की गङ्गा द्वारा धारित गर्भ के मल से उत्पत्ति), seesaa

सुकन्या देवीभागवत २.८, ७.२, ७.३+ (सुकन्या के च्यवन से विवाह की कथा), पद्म ५.१४(सुकन्या द्वारा च्यवन ऋषि की आंखों का भंजन), ५.१५(सुकन्या का च्यवन के साथ विमान में विहार), भविष्य १.१९, भागवत ९.३(सुकन्या के च्यवन से विवाह की कथा), मत्स्य १२, स्कन्द ७.१.२८०+ (शर्याति - पुत्री सुकन्या द्वारा च्यवन के तप में विघ्न, विवाह, अश्विनौ से संवाद), ७.१.२८४(सीता सर का माहात्म्य, अश्विनौ का सर में स्नान करके च्यवन का रूप धारण, च्यवन द्वारा स्नान से यौवन प्राप्ति ), लक्ष्मीनारायण १.३९०, sukanyaa

सुकर्ण स्कन्द ३.१.५.१३५(सुकर्णी विद्याधरी का शापवश नाग - पुत्री ललिता बनने व शाप मोचन का वृत्तान्त), ३.१.८.४०(सुकर्ण विद्याधर द्वारा कान्तिमती से बलात्कार, गालव द्वारा सुकर्ण को शाप, अशोकदत्त मनुष्य बनना, मुक्ति ) sukarna

सुकर्मा पद्म २.६१(सुकर्मा द्वारा कुण्डल ब्राह्मण को पितृभक्ति का उपदेश), २.६४+ (सुकर्मा द्वारा पिप्पल से पितृतीर्थ वर्णन के प्रसंग में पूरु द्वारा ययाति से जरा ग्रहण के प्रसंग का कथन), ६.१७६(सुकर्मा द्वारा अतिथि से गीता के द्वितीय अध्याय के माहात्म्य का श्रवण), ब्रह्माण्ड २.३५.३२?, ३.४.१.८९(सुकर्मा नामक देवगण के अन्तर्गत १० नाम), वामन ५७.७२(धाता द्वारा कुमार को प्रदत्त गण), वायु १००.९३(सुकर्मा देवगण के देवों के नाम ), द्र. मन्वन्तर sukarmaa

सुकल भविष्य ३.२.१२(सुकल गन्धर्व द्वारा हरिस्वामी की पत्नी रूपलावण्यिका का हरण), ३.३.३१.८४(सुकल गन्धर्व द्वारा कैकय नृप की कन्या मदनावती को पीडा ) sukala

सुकला पद्म २.४१(कृकल वैश्य की पतिव्रता पत्नी सुकला का इन्द्र से संवाद ), २५३, भविष्य ३.३.३१, sukalaa

सुकाली ब्रह्माण्ड २.३.१०.९६(सुकाल नामक पितरों का वृत्तान्त, सुकाल पितरों की कन्या नर्मदा का कथन), वायु ७३.४६(पितर, वसिष्ठ - पुत्र, शूद्रों द्वारा पूजित, नर्मदा कन्या), शिव २.२.३.५७(वसिष्ठ से सुकाली पितरों की उत्पत्ति का कथन), हरिवंश १.१८.५७(सुकाल : पितरों का गण, वंश वर्णन ) sukaalee/ sukali

सुकुमार नारद १.५०.४४, द्र. भूगोल

सुकृति गर्ग ७.४८.२५(लीलावती पुरी में राजा, सुन्दरी - पिता), मत्स्य १२२.३३(सुकृता : शाकद्वीप की ७ गङ्गाओं में से एक, अपर नाम गभस्ती), स्कन्द २.४.७.५२(विदर्भ का राजा, दीप दान, गृध्र व मार्जार की कथा ), द्र. भूगोल, मन्वन्तर, sukriti

सुकृष मार्कण्डेय २

सुकेतु पद्म ५.२५(सुबाहु राजा का भ्राता, क्रौञ्च व्यूह के मुख में स्थिति, शत्रुघ्न - सेनानी लक्ष्मीनिधि द्वारा वध), ५.२६, ६.२०.४०(सगर के अवशिष्ट ४ पुत्रों में से एक), शिव ५.३८.५४(, स्कन्द ४.२.६५.६(सुकेतु मुनि द्वारा स्थापित आदित्य का संक्षिप्त माहात्म्य ), वा.रामायण १.२५, suketu

सुकेतुमान् पद्म ६.४०, ६.४१(चम्पा - पति राजा सुकेतुमान् द्वारा पुत्रदा एकादशी व्रत से पुत्र प्राप्ति), मत्स्य ८(पश्चिम दिशा के दिक्पाल),