सत्यवती-सनत्कुमार
Puraanic contexts of words like Satyavatee /Satyavati, Satyavrata, Satyaa, Satraajit, Sadyojaata, Sanaka, Sanakaadi, Sanatkumaara etc. are given here.
Comments on Satyavatiसत्यवती
सत्यवत् पद्म ५.३२
सत्यवती देवीभागवत १.२०, २.१+ (उपरिचर वसु के वीर्य से मत्स्य से सत्यवती की उत्पत्ति, पराशर से समागम, व्यास का जन्म आदि), पद्म १.९(अच्छोदा का अवतार, वर्णन), ५.६७.३८(सुबाहु - पत्नी), ब्रह्म १.८(सत्यवती का ऋचीक से विवाह, चरु व्यत्यय का प्रसंग, जमदग्नि की उत्पत्ति), ब्रह्माण्ड २.३.१०, २.३.६६.४५(गाधि - कन्या, ऋचीक - भार्या, चरु विपर्यास का प्रसंग), भागवत ९.१५(सत्यवती का ऋचीक से विवाह, कौशिकी नदी बनना), मत्स्य १४(उपरिचर वसु की कन्या, शन्तनु - भार्या, अच्छोदा का अवतार), वायु ७२.६५, ९०, विष्णुधर्मोत्तर १.३३(और्व - भार्या, चरु विपर्यास से पुत्रों के गुणों में विपर्यय का आख्यान), स्कन्द ४.२.९७.११३(सत्यवतीश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य), हरिवंश १.१८, १.२७(गाधि - कन्या, ऋचीक - पत्नी, चरु विपर्यास का प्रसंग), वा.रामायण ०.३(सुमति राजा की पत्नी, पूर्व जन्म में निषाद - कन्या काली, रामायण श्रवण से वैभव प्राप्ति), १.३४(गाधि - पुत्री, ऋचीक - पत्नी, कौशिकी नदी बनना ) satyavatee/ satyavati
सत्यवाक् गर्ग ७.१४.१५(द्रविड देश के स्वामी सत्यवाक् द्वारा प्रद्युम्न का सत्कार),
सत्यवान् देवीभागवत ९.२७, पद्म ५.३२(सत्यवान् राजा का शत्रुघ्न से मिलन), ५.६७.३८(वीरभूषा - पति), मत्स्य २०८+ (सावित्री - पति, यम के बन्धन से मुक्ति आदि की कथा ), स्कन्द ७.१.१६६, लक्ष्मीनारायण १.३६६ satyavaan
सत्यविक्रम स्कन्द ५.२.५४(शत्रुओं द्वारा राज्य हरण पर सत्यविक्रम राजा का वसिष्ठ के परामर्श से महाकालवन में जाना, सखा द्वारा माया के दर्शन कराना, कंटकेश्वर लिङ्ग की पूजा से निष्कंटक राज्य की प्राप्ति ) satyavikrama
सत्यव्रत देवीभागवत ३.१०(उतथ्य द्वारा सत्य कथन के कारण सत्यव्रत नाम की प्राप्ति), ७.१०+ (अरुण - पुत्र, दुराचारी, त्रिशङ्कु नाम की प्राप्ति, राज्य से निष्कासन व पुन: राज्य की प्राप्ति, सशरीर स्वर्ग जाने का उद्योग), ७.१३.४६(विश्वामित्र के परिवार को भोजन देने हेतु सत्यव्रत द्वारा वसिष्ठ की गौ का वध, शाप से त्रिशङ्कु नाम की प्राप्ति), ब्रह्म १.५(त्रय्यारुण - पुत्र, दुष्टता, विश्वामित्र की पत्नी की रक्षा से गालव नाम की प्राप्ति, त्रिशङ्कु नाम प्राप्ति, विश्वामित्र की कृपा से मनुष्य रूप में स्वर्गारोहण), ब्रह्माण्ड २.३.६३.८३(सत्यव्रत द्वारा गालव नाम प्राप्ति की कथा, त्रिशङ्कु नाम प्राप्ति व स्वर्ग गमन की कथा), भागवत ८.१, ८.२४(राजा, जन्मान्तर में श्राद्धदेव, मत्स्यावतार की कथा), मत्स्य १२,वायु ८८.८१(त्रय्यारुण - पुत्र, पिता द्वारा राज्य से निष्कासन, सत्यव्रत द्वारा विश्वामित्र के परिवार की रक्षा से गालव नाम की प्राप्ति की कथा, त्रिशङ्कु नाम प्राप्ति की कथा), विष्णुधर्मोत्तर २.३६+, स्कन्द १.२.४५(नन्दभद्र वैश्य द्वारा सत्यव्रत नास्तिक के मत का खण्डन), हरिवंश १.१२+ (त्रय्यारुण - पुत्र, चरित्र, त्रिशङ्कु नाम की प्राप्ति ), लक्ष्मीनारायण १.४३१, ३.९४, ३.९४.८०, कथासरित् ५.२.३३, ५.३.१, १२.६.२५७, satyavrata
सत्यसन्ध स्कन्द ६.१२६(सत्यसन्धेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, कर्णोत्पला - पिता सत्यसन्ध का ब्रह्मलोक गमन, पुन: आगमन पर तप, लिङ्ग स्थापना, कन्या का काम से विवाह ), लक्ष्मीनारायण १.५०० satyasandha
सत्यसेन स्कन्द ६.१४१
सत्या गर्ग ६.८.१७(नग्नजित् - पुत्री, स्वयंवर में सात वृषभों का निग्रह करने पर कृष्ण का वरण), देवीभागवत ९.४३(नग्नजित् - पुत्री, कृष्ण - पत्नी, स्वाहा का रूप), नारद १.६६.९२(खड्गी विष्णु की शक्ति सत्या का उल्लेख), १.६६.१२९(लम्बोदर की शक्ति सत्या का उल्लेख), पद्म ६.२४९, ब्रह्मवैवर्त्त ४.६, भागवत १०.५८.३२(नग्नजित् - कन्या, कृष्ण द्वारा सात वृषभों को बांधकर सत्या से विवाह), १०.८३.१३(सत्या द्वारा द्रौपदी से कृष्ण के पाणिग्रहण के प्रकार का वर्णन), मत्स्य ४७.१९(कृष्ण - भार्या, पुत्रों के नाम ), वायु ९८.१११, हरिवंश २.८१.४२, लक्ष्मीनारायण ४.१०१.९१ satyaa
सत्र पद्म ३.२५, ६.१९८(शौनक का सत्र), ब्रह्म २.४६, विष्णुधर्मोत्तर १.१५५(पुरूरवा द्वारा सत्र के रूप), स्कन्द २.४.२६.२३(वैष्णव सत्र), ३.२.२३(ब्रह्म की अग्रता में हो रहे सत्र के ऋत्विजों के नाम), ५.३.१४९.६, ५.३.१५०.४४, लक्ष्मीनारायण १.३८०.७३(सत्रायण : वेदसूरि ब्राह्मण - पिता, वेदिसूरि का वृत्तान्त ), ३.३७.१०५, ३.१०६.५६सत्राशय, ३.१०६.७९, satra
सत्राजित् देवीभागवत ०.२.७९(नौ दिवसीय भागवतकथासमाप्ति के पश्चात् कृष्ण का स्यमन्तकमणि के साथ द्वारका आगमन), पद्म ६.८९.२२(पूर्व जन्म में गुणवती - पिता देवशर्मा- पिता ते देवशर्माभूत्सत्राजिदधिपो ह्ययम् ।। यश्चंद्रशर्मा सोऽक्रूरस्त्वं सा गुणवती शुभे।), ब्रह्म १.१४.११( निघ्न – पुत्र सत्राजित् द्वारा सूर्य से स्यमन्तक मणि की प्राप्ति, प्रसेन की मणि में आसक्ति, जाम्बवान् की कथा), ब्रह्माण्ड २.७१?, भविष्य १.११६(विमलवती - पति सत्राजित् राजा के पूर्व जन्म का वृत्तान्त), वायु ९५, ९६.२०/ २.३४.२०(निघ्न - पुत्र, शक्रजित् नाम, सूर्य से स्यमन्तक मणि प्राप्ति की कथा), विष्णु ४.१३(स्यमन्तक मणि की कथा), स्कन्द २.४.१३.१८(पूर्व जन्म में देवशर्मा - पिता ते देवशर्माऽभूत्सत्राजिदभिधो ह्ययम् । यश्चंद्रनामाऽसोऽक्रूरस्त्वं सा गुणवती शुभा ।।), ७.४.१७.२६(द्वारका के पश्चिम दिशा के रक्षकों में से एक - पश्चिमायां दिशि तथा पुष्पदन्तो विनायकः॥ उद्धवार्कश्च वै सूर्यः शिवः सत्राजितेश्वरः ॥), हरिवंश १.३८.१३(निघ्न - पुत्र, भ्राता प्रसेन द्वारा समुद्र से व सत्राजित द्वारा सूर्य से स्यमन्तक मणि प्राप्ति की कथा - प्रसेनो द्वारवत्यां तु निवसन्त्यां महामणिम्।। दिव्यं स्यमन्तकं नाम समुद्रादुपलब्धवान् । ), १.३९, satraajit/ satrajit
सत्वत विष्णु ४.१३.१(अंशु - पुत्र, वंश वर्णन),
सत्व - रज - तम द्र. सत्त्व - रज - तम
सत्सङ्ग भागवत ११.१२(सत्संग की महिमा), योगवासिष्ठ २.१६(मोक्ष के द्वार के ४ द्वारपालों में से एक, निरूपण ) satsanga
सदाचार देवीभागवत ११.१+ (सदाचार का वर्णन), नारद १.२४, १.२७, पद्म १.४९, ब्रह्म १.११३(आह्निक, तर्पण, सूतक आदि), भविष्य ४.२०५(सदाचार धर्म का निरूपण), मार्कण्डेय ३४(मदालसा द्वारा अलर्क को सदाचार का अनुशासन), विष्णु ३.११+ (सदाचार का वर्णन , सगर - और्व संवाद), शिव १.१३, स्कन्द १.२.४१, १.२.४५, ३.२.५+, ४.१.३५, ४.१.३८.४२(सदाचार का वर्णन), योगवासिष्ठ २.१६, २.२०, ४.३२, लक्ष्मीनारायण १.२८(विभिन्न गुणों की परिभाषा ), ३.४१+, ३.५३, sadaachaara/ sadachara
सदानन्द भविष्य ३.२.२६
सदाशिव गरुड ३.१८.१४(सदाशिव की सदा अशिव रूप में व्याख्या), नारद १.६६.१३०(सदाशिव की शक्ति कामदा का उल्लेख), १.८४.८३(सदाशिव ऋषि द्वारा वाक्/सरस्वती की आराधना), वामन ९०.१२ (विन्ध्यपाद में विष्णु का सदाशिव नाम से वास), स्कन्द ७.१.१०.३(आकाश गुण वाले तीर्थों में सदाशिव तीर्थ की स्थिति का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण ३.१२२.१०७ (सदाशिव द्वारा पुत्री व्रत से जया पुत्री प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१७०.१२, sadaashiva/ sadashiva
सद्य नारद १.६६.१०९(सद्य की शक्ति ज्वालामुखी का उल्लेख), लिङ्ग १.२४.१७(द्वितीय द्वापर में व्यास), स्कन्द ७.१.१०५.४७(नवम कल्प का नाम),
सद्योजात अग्नि ३०४.२५(सद्योजात शिव का स्वरूप : चतुर्बाहु मुख पीत), गरुड १.२१.२(सद्योजात की ८ कलाओं के नाम), नारद १.९१.८२(सद्योजात शिव की ८ कलाओं का कथन), लिङ्ग १.११(सद्योजात शिव का महत्त्व), २.१४.१०(मनस्तत्त्वात्मक शिव), २.१४.१५(घ्राणेन्द्रियात्मक), २.१४.२० (उपस्थेन्द्रिय रूप), २.१४.२५(गन्ध तन्मात्रात्मक, भूमि का रूप), वायु २१.३७/१.२१.३४( षड्ज स्वर का सद्योजात से तादात्म्य), २२.१४( ब्रह्मा तथा श्वेतवर्ण ऋषियों द्वारा सद्योजात शिव की अर्चना), २३.६६/ १.२३.६०(श्वेतकल्प में सद्योजात के प्राकट्य का कथन), शिव ६.३.२७(सद्योजात शिव की ८ कलाओं की अकार में स्थिति, वामदेव की उकार में इत्यादि), ६.६.७३(सद्योजात शिव की ८ कलाओं का नेत्रों में न्यास), ६.१२.१८(शिव का पाद), ६.१४.४४(सद्योजात शिव में मन, नासा, उपस्थ, गन्ध व भूमि की स्थिति, ब्रह्मा का रूप), ६.१६.६०(सद्योजात शिव से निवृत्ति कला की उत्पत्ति), ७.२.३.१५(सद्योजात शिव की मूर्ति में घ्राण आदि तन्मात्राओं की स्थिति का कथन), स्कन्द ३.३.१२.११(सद्योजात से प्रतीची दिशा की रक्षा की प्रार्थना ), लक्ष्मीनारायण ४.४५.२२, sadyojaata/ sadyojata
सद्विद्यायन लक्ष्मीनारायण ३.१७३
सधन भविष्य ३.४.१८.५०(मांस विक्रेता, इडस्पति नामक अश्विनीकुमार का अंश, पूर्व जन्म का वृत्तान्त ) sadhana
सनक अग्नि ३८२.१०(सनक के मत में परम पद – कामत्याग कर विज्ञान प्राप्ति), कूर्म २.११.१२९(सनक द्वारा पराशर को ज्ञान दान), गणेश २.२३.२(सनक का काशीराज के यहां आगमन, राज भोजन को अस्वीकार करना), २.२४.२७(सनक व सनन्दन द्वारा काशी में गृह - गृह में गणेश के विभिन्न रूपों में दर्शन), २.५४.३९(सनक व सनन्दन द्वारा काशी के अन्दर व बाहर सर्वत्र गणेश के दर्शन करना), २.७७.५(सिन्धु द्वारा सनक - सनन्दन के पृष्ठ देश पर आघात), गर्ग ५.१५.२४(स्मृति के कौमार सर्गियों की शक्ति होने का उल्लेख), नारद १.३(सनक द्वारा नारद को उपदेश के आरम्भ में महाविष्णु से सृष्टिक्रम का वर्णन, पाप नाश हेतु उपायों का वर्णन, विभिन्न तिथि व्रतों का वर्णन), भविष्य ४.१४२(सनक द्वारा राजा संवरण को उत्पात शान्ति हेतु कोटि होम विधि का वर्णन), स्कन्द ५.३.१९४.५५(श्री व विष्णु के विवाह यज्ञ में सनक के ब्रह्मा बनने का उल्लेख ), ७.४.१७.३४, sanaka
सनकादि कूर्म २.११.१२६(सनत्कुमार आदि से ज्ञान प्राप्त करने वालों के नाम), गर्ग ५.१५.२४(स्मृति के कौमार सर्गियों की शक्ति होने का उल्लेख), १०.६१.२३(कलियुग में सनक का निम्बार्काचार्य के रूप में जन्म), नारद १.४७.२६(सनकादि के ब्रह्मभावना से युक्त होने का कथन), १.६०, पद्म ६.१९४, ब्रह्मवैवर्त्त १.८.१२(धाता के मुख से सनकादि के प्राकट्य का उल्लेख), १.२०.१७(सनकादि में चतुर्थ द्वारा बालक नारद को कृष्ण मन्त्र प्रदान का कथन), १.२२.२९(सनकादि के नामों की निरुक्तियां- प्रथम दो आनन्दवाचक, तृतीय सनातन भक्तियुक्त, चतुर्थ सनत्कुमार नित्य), ४.९६.३०(सनकादि के स्मरण का फल – तीर्थस्नान आदि), भागवत २.७.५(सन द्वारा विविध लोक सृष्टि हेतु तप करने पर चतुःसन होने का कथन), ३.१५(सनकादि द्वारा जय - विजय को शाप की कथा), ७.१.३५(सनकादि द्वारा विष्णु – पार्षदों को आसुरी योनि में जाने का शाप), ११.१३.१७( सनकादि द्वारा पिता ब्रह्मा से चित्त को गुणों से पृथक् करने सम्बन्धी प्रश्न), मत्स्य २३.२१(चन्द्रमा के राजसूय यज्ञ में सदस्य), विष्णु १.४.३०(पृथिवी के उद्धार पर सनकादि द्वारा यज्ञवराह की स्तुति), शिव २.३.२(सनकादि द्वारा मेना आदि पितृकन्याओं को शाप व शाप निवारण), ३.४.२०(पंचम द्वापर में कंक शिव के चार पुत्रों के रूप में सनकादि का उल्लेख, सनन्दन की प्रभु व सनत्कुमार की विभु संज्ञा), ६.१२.३९(मानुष श्राद्ध में देवता रूप), स्कन्द १.३.१(सनकादि द्वारा ब्रह्मा से तैजस शिवलिङ्ग के माहात्म्य की पृच्छा), ४.२.९७.१०१(सनकादि के लिङ्गों के संक्षिप्त माहात्म्य – राजसूयफल, योगसिद्धि, ज्ञान), लक्ष्मीनारायण १.१८(सनकादि के चरित्र की महिमा), १.३०५.३(ब्रह्मा द्वारा सनकादि को जया, ललिता, पारवती व प्रभा कन्याओं को पत्नी रूप में देने का प्रस्ताव, सनकादि द्वारा अस्वीकृति ), २.१२४.१२(शिबि के यज्ञ में सनकादि के होतृगण होने का उल्लेख), sanakaadi
सनत्कुमार अग्नि १८, कूर्म १.१७.१(सनत्कुमार द्वारा विरोचन को ज्ञान दान), २.११.१२६(सनत्कुमार द्वारा संवर्त्त को ज्ञान दान), गरुड ३.२८.३३(कामावतार), देवीभागवत ४.२२.३९(सनत्कुमार का प्रद्युम्न के रूप में जन्म), नारद १.६०.३९+ (सनत्कुमार द्वारा शुकदेव को विषयों से निवृत्ति का उपदेश), १.६३+ (सनत्कुमार द्वारा नारद के प्रश्नों का उत्तर देना आरम्भ करना, तन्त्र, दीक्षा व विभिन्न देवी-देवताओं के मन्त्रों की साधना का वर्णन), पद्म ४.२५, ६.३१, ६.१९३, ब्रह्मवैवर्त्त २.५१.३(सुयज्ञ नृप द्वारा अतिथि के तिरस्कार पर सनत्कुमार की प्रतिक्रिया), ३.७.३४(सनत्कुमार पुरोहित द्वारा पार्वती से शिव को दक्षिणा में मांगने का वृत्तान्त), ३.७.८९(सनत्कुमार द्वारा शिव को दिगम्बर करके घुमाने के हठ पर कृष्ण के तेज का प्रकट होकर पार्वती - पुत्र रूप में परिणत होना), ४.३७(नैवेद्य भक्षण से सनत्कुमार का पुलकित होना), ४.८७(सनत्कुमार का कृष्ण से संवाद), ४.९४(सनत्कुमार द्वारा राधा को सांत्वना), ४.१२३(सनत्कुमार द्वारा दक्षिणा काल के बारे में वसुदेव को प्रबोध), ४.१२८(सृंजय नृप की कन्या पर मोहित नारद को सनत्कुमार द्वारा प्रबोध), ब्रह्माण्ड १.१.५.७९(२ ऊर्ध्वरेता ऋषियों में से एक, नाम निरुक्ति – यथोत्पन्न तथा), २.३.१०.८७(सनत्कुमार द्वारा योगोत्पत्ति कन्या शुक्राचार्य को पत्नी रूप में देने का उल्लेख), भागवत ४.२२(सनत्कुमार द्वारा पृथु को उपदेश), ६.८.१७(सनत्कुमार से कामदेव से रक्षा की प्रार्थना), मत्स्य ४.२७(सनत्कुमार की ब्रह्मा से उत्पत्ति), १४१.७८(प्रेतों के गमनागमन के ज्ञाता), वराह ७(सनत्कुमार का रैभ्य से संवाद, धन्य उपाधि देना, श्राद्ध की महिमा का कथन), १३४, २१३, वामन ६०(अहिंसा व धर्म - पुत्र, योग - विज्ञान के सम्बन्ध में ब्रह्मा का उपदेश), वायु २४.८३(सनत्कुमार का ऋभु से तादात्म्य?), विष्णु ३.१४.१२, शिव ३.४.२२(सनत्कुमार की विभु संज्ञा), ५.५(सनत्कुमार द्वारा व्यास को महापातकों का वर्णन), ५.२९.१८(ब्रह्मा के क्रोध से रुद्रों व सनत्कुमार के प्रकट होने का कथन), ५.४०.३८(मार्कण्डेय को पितरों के आदिसर्ग का वर्णन), ७.२.४१.१९(सनत्कुमार व ऋषियों के समक्ष नन्दी का प्राकट्य, शैव धर्म का उपदेश), स्कन्द ३.३.१६(सनत्कुमार द्वारा शिव से त्रिपुण्ड्र धारण विधि की जिज्ञासा), ५.१.१, ५.३.१९४.५४(नारायण विवाह यज्ञ में सनत्कुमार आदि के सदस्य बनने का उल्लेख), ७.१.२३.९४(सनत्कुमार आदि का चन्द्रमा के यज्ञ में सदस्य होने का उल्लेख), ७.४.१७.१३(द्वारका के पूर्व द्वार के रक्षकों में से एक), हरिवंश १.१.४४(सनत्कुमार द्वारा स्वतेज का संक्षेप करके निवास करने का उल्लेख), १.३.४३(सनत्कुमार का स्कन्द से एक्य), १.१७(सनत्कुमार द्वारा मार्कण्डेय को पितर सर्ग विषयक उपदेश), २.१०४.२(प्रद्युम्न का रूप), महाभारत शान्ति ३३९.३७(संकर्षण के जीव, प्रद्युम्न के मन व सनत्कुमार होने का कथन), स्वर्ग ५.१३(प्रद्युम्न के सनत्कुमार में लीन होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ १.१.५९(सनत्कुमार द्वारा विष्णु की उपेक्षा पर विष्णु से शाप प्राप्ति ), लक्ष्मीनारायण १.१७९, १.२०२, १.५२७, १.५३१, २.८८, २.२७०.८७, ३.१०२.९६, ४.१०५, ४.१०६, sanatkumaara/ sanatkumara