सनत्सुजात-सप्तर्षि

Puraanic contexts of words like Sanandana, Sanaatana, Santaana, Sandhi, Sandhyaa, Samnyaasa / Sanyaasa, Saptami, Saptarshi etc. are given here.

सनत्सुजात लक्ष्मीनारायण २.९८.५, २.१००.२,

सनद्वाज ब्रह्माण्ड २.३५.११९

सनन्दन कूर्म २.११.१२७(सनन्दन द्वारा पुलह ऋषि को ज्ञान दान), गणेश २.२३.२(काशीराज के यहां सनन्दन का आगमन, राज भोजन बिना जाना), नारद १.४२+ (सनन्दन द्वारा नारद को उपदेश का आरम्भ, सृष्टि का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त २.५१.४३(सुयज्ञ नृप हेतु कृतघ्नता दोष का निरूपण), भागवत १०.८७.१२(ब्रह्मसत्र में सनन्दन के वक्ता बनने का उल्लेख, सनन्दन द्वारा प्रलय के अन्त में श्रुतियों द्वारा विष्णु को जगाने का वर्णन), शिव ३.४.२२(सनन्दन की प्रभु संज्ञा ), लक्ष्मीनारायण १.३०५.८(ब्रह्मा द्वारा सनन्दन - पत्नी हेतु ललिता की सृष्टि, सनन्दन द्वारा अस्वीकृति ), द्र. सनकादि sanandana

सनाज्जात ब्रह्म २.२२(धृतव्रत व मही - पुत्र, गालव - शिष्य, माता से रति भोग से कुष्ठ प्राप्ति ) sanaajjaata

सनातन नारद १.९२.६(सनातन द्वारा पुराणों की विषयवस्तु व व्रतों का वर्णन), ब्रह्मवैवर्त्त २.५१.४५(सनातन द्वारा सुयज्ञ नृप से कृतघ्नता दोष का निरूपण), वामन ९०.४१(शिव लोक में विष्णु का सनातन नाम), स्कन्द ४.२.७२.६३(सनातनी देवी द्वारा आयु की रक्षा), ६.१८०.३४(ब्रह्मा के यज्ञ में उन्नेता), ७.४.१७.२२(द्वारका के दक्षिण द्वार के रक्षकों में से एक), लक्ष्मीनारायण १.५१०.१६(सनातन वंश के सर्पों की उत्पत्ति का वृत्तान्त ), ३.२०.२(सनातन नामक २३वें वत्सर में जीवनारायण का प्राकट्य व भक्तिमार्ग का प्रचार), sanaatana/ sanatana

सनारु स्कन्द ४.२.९४(उपजङ्घनि - पिता, अमृतेश्वर लिङ्ग के प्रभाव से पुत्र का पुनर्जीवन),

सन्त भागवत ११.२६.३२, वायु ५९.१९(सन्त की निरुक्ति), लक्ष्मीनारायण १.५३.३५(सन्त शब्द की निरुक्ति : सत्य ब्रह्म से सायुज्य ), ३.१९.३०सन्तयोगिनी,३.८२.१७, santa

सन्तति हरिवंश १.२३.२५(असित देवल - पुत्री, ब्रह्मदत्त - पत्नी, ब्रह्मदत्त से संवाद ), द्र. दक्ष कन्याएं, वंश क्रतु, santati

सन्तप्तक गरुड २.१२(सन्तप्तक ब्राह्मण द्वारा तप, पांच प्रेतों पर्युषित आदि के दर्शन की कथा )

सन्तान देवीभागवत १२.१०, ब्रह्माण्ड ३.४.३२.२४, मत्स्य १३, २७७.७, विष्णुधर्मोत्तर ३.२५९(सन्तान की प्रशंसा), स्कन्द ५.३.१९८.७१, हरिवंश २.८६.४५(सन्तानपुष्पों की मन्दराचल पर उत्पत्ति, नारद द्वारा अन्धकासुर को प्रलोभन), महाभारत अनुशासन ४८.१०(वर्णसंकर रूप में उत्पन्न हुई विभिन्न प्रकार की सन्तानों की संज्ञाएं),वा.रामायण ७.११०(राम के परमधाम गमन पर जन समूह को सन्तानक लोक की प्राप्ति ), लक्ष्मीनारायण ४.१०१.११५, santaana/ santana

सन्तापन लक्ष्मीनारायण २.७५.२, २.७६, द्र. भूतसन्तापन

सन्तारण लक्ष्मीनारायण २.११८.२

सन्तोष नारद २.२८.७०, पद्म १.१९, १.५३, भागवत ११.१७.१६, मार्कण्डेय ५०.२६(तुष्टि - पुत्र), विष्णु १.७.१९, १.७.२८, योगवासिष्ठ २.११.५९(मोक्ष के द्वार के ४द्वारपालों में से एक), २.१५(सन्तोष का निरूपण), लक्ष्मीनारायण १.३८२.२०(विष्णु के सन्तोष व लक्ष्मी के तुष्टि होने का उल्लेख), २.२८३.५४(सन्तुष्टा द्वाराबालकृष्ण को चन्द्र व स्रज देने का उल्लेख ), ३.१२२.१०५, santosha

सन्धान कथासरित् ७.९.१०८

सन्धि अग्नि २४०(राजा हेतु सन्धि के १६ भेदों का वर्णन), गरुड २.३०.५३/२.४०.५३(मृतक की सन्धियों में तिलकल्क देने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.२८.३७(पर्वसन्धियों में अन्वाधान क्रिया करनेv का कथन), मत्स्य १४४.५१(कृतयुग के अन्त में युगों के सन्धिकाल में वेदों व प्रजा की दुर्दशा तथा प्रमति द्विज अवतार का वर्णन),स्कन्द ५.३.२८.१६, महाभारत वन ३१३.७५, शान्ति १६८.५(सन्धि करनेv के योग्य व अयोग्य पुरुषों के लक्षण ), द्र. जरासन्ध, जलसन्ध, ध्रुवसन्धि, यवसन्ध,सत्यसन्ध sandhi

सन्ध्य पद्म १.४०.८३(सुरभि व ब्रह्मा - पुत्र, एकादश रुद्रों में से एक),

सन्ध्या अग्नि ७२.२४(सन्ध्या कर्म की विधि, ४ सन्ध्याओं का स्वरूप), १९९, २१५(सन्ध्या विधि, गायत्री मन्त्र अक्षर न्यास), कूर्म १.७.४७(ब्रह्म के त्यक्त तनु से सन्ध्याकी उत्पत्ति), गरुड १.३६(सन्ध्या विधि), १.२०५.६२(सन्ध्या कर्म का महत्त्व), १.२०९(सन्ध्या कर्म की विधि), देवीभागवत ५.८.६५(सन्ध्या के तेज से देवी के भ्रुवों कीउत्पत्ति), ११.८, ११.१६.२(सन्ध्या कर्म के प्रकार, विधि व माहात्म्य), ११.१९(मध्याह्न काल सन्ध्या की विधि), ११.१९(सायंकाल सन्ध्या की विधि), नारद१.२७.४३(सन्ध्या विधि व स्वरूप), १.६६.७०(त्रिकाल सन्ध्या में देवी का स्वरूप), १.६६.९७(वृष विष्णु की शक्ति सन्ध्या? का उल्लेख), पद्म ६.११५,६.१३३(कुब्जाम्रक क्षेत्र में त्रिसन्ध्य तीर्थ), ब्रह्माण्ड १.२.८.१५(ब्रह्मा द्वारा त्यक्त तनु का रूप), २.२१, ३.४.३२.९(महासन्ध्या : महाकाल की ३ शक्तियों में सेएक), भागवत २.१.३४(सन्ध्या के विराट् पुरुष का वस्त्र होने का उल्लेख),३.२०.२९(सन्ध्या की ब्रह्मा के शरीर से उत्पत्ति), मत्स्य १४४.४९(सन्धिकाल में युगों की पाद मात्र स्थिति का उल्लेख ; सन्ध्या काल पाद मात्र होने का उल्लेख), वराह १२०, १२९, वामन ५१(रागिणी का शाप से सन्ध्या में रूपान्तरण), वायु ९१, ५०.१६१(सन्ध्यासमय पर लोकालोक पर्वत पर सूर्य की स्थिति, महिमा), विष्णु २.८.४८(उषा रूपी रात्रि व व्युष्टि रूपी दिन के मध्य सन्ध्या की स्थिति का कथन), शिव २.२.१(ब्रह्मा कापुत्री सन्ध्या के रूप पर मोहित होना), २.२.५+ (सन्ध्या का तप, शिव से वर प्राप्ति, मेधातिथि क्षेत्र में गमन, सूर्य लोक में गमन, अरुन्धती नाम की प्राप्ति), स्कन्द४.१.२९.१६६(गङ्गा सहस्रनामों में से एक), ४.१.३५.११०(त्रिसन्ध्या विधि व माहात्म्य), ४.२.५४.७(, ४.२.६१.१७३(त्रिसन्ध्येश्वर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य),४.२.७९.९३(शिव की तीन सन्ध्याओं के स्थान), ५.३.१९८.७५, ६.१०९(त्रिसन्ध्या तीर्थ में त्र्यम्बक लिङ्ग), ६.१३१.१२(, महाभारत शान्ति ३४७.५१(हयग्रीव कीनासिका के रूप में सन्ध्या का उल्लेख ), वा.रामायण ७.४, लक्ष्मीनारायण १.१७९, १.१९८, १.३१४, कथासरित् १४.४.४०, द्र. त्रिसन्ध्या, भूगोल sandhyaa

Comments on Sandhyaa

सन्ध्यावली नारद २.८, २.१०.५०(रुक्माङ्गद - पत्नी सन्ध्यावली की महिमा), २.१६, पद्म २.२२, लक्ष्मीनारायण १.१५५.४(बलि - पत्नी, पति की रक्षा हेतु महालक्ष्मी की आराधना ), १.२९०, sandhyaavalee/ sandhyavali

सन्नति ब्रह्माण्ड १.२.९.५६(दक्ष व प्रसूति - कन्या, क्रतु - पत्नी), १.२.११.३६(क्रतु - पत्नी, वालखिल्य - माता), पद्म १.१०.७१(ब्रह्मदत्त - पत्नी, सुदेव - पुत्री), मत्स्य२०.२६(देवल - पुत्री, ब्रह्मदत्त - भार्या, पूर्व काल में कपिला), शिव ७.१.१७.२८(दक्ष - कन्या, क्रतु - पत्नी, वालखिल्य गण की माता ), हरिवंश १.२३.२५, १.२४, महाभारतशान्ति २२८.८३, sannati

सन्नादन वा.रामायण ६.२७.१८(वानर, राम - सेनानी, सारण द्वारा रावण को सन्नादन का परिचय),

सन्निधान वामन ९०.२(सन्निधान तीर्थ में विष्णु के कूर्म नाम से निवास का उल्लेख),

सन्निवेश भागवत ६.६,

सन्निहित्या पद्म ३.२७.८०(सन्निहित्या तीर्थ का माहात्म्य), स्कन्द ७.१.८५(सन्निहित्या सर का माहात्म्य, ग्रहण काल में कृष्ण की समाधि से उत्पत्ति),sannihityaa

संन्यास अग्नि १६१(संन्यासी का धर्म), कूर्म २.२८(संन्यासी के प्रकार व संन्यासी का धर्म), गणेश २.१४१.१(क्रिया योग व संन्यास में श्रेष्ठता का प्रश्न : वरेण्य वगजानन का संवाद), नारद १.२७.९१(संन्यास के नियम), १.४३.१२३(संन्यासी के धर्म का निरूपण), ब्रह्मवैवर्त्त ४.८३.८२(कृष्ण - प्रोक्त संन्यास धर्म), भागवत११.१६.२६, ११.१७.१४, ११.१८.१२(संन्यासी का धर्म), ११.१९.३८, लिङ्ग १.२९(क्रम संन्यास विधि), शिव ६.१३(संन्यास विधान), स्कन्द ४.१.४१(संन्यास केनियम), हरिवंश ३.१०८(हंस व डिम्भक द्वारा संन्यास की निन्दा, जनार्दन द्वारा मण्डन ), महाभारत शान्ति १८, १९२, २४४+, २७८, आश्वमेधिक ४६, samnyaasa/sannyaasa/sanyasa

सप्त लक्ष्मीनारायण १.५३९.७३(सप्त गजों की अशुभता का उल्लेख ), कथासरित् १२.२७.९२, sapta

सप्तगोदावर वामन ६३.७८, ९०.२३(सप्तगोदावर तीर्थ में विष्णु का हाटकेश्वर नाम),

सप्तजन वा.रामायण ४.१३.१८(राम द्वारा वाली वध से पूर्व सप्तजन आश्रम का दर्शन),

सप्तधारा पद्म ६.१४३

सप्तमी अग्नि १४२.१(माघ शुक्ल सप्तमी व्रत : सूर्य पूजा), १८२(मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, पुत्रीया सप्तमी व्रत), गरुड १.१३०(सप्तमी व्रत, सूर्य पूजा), नारद१.११६(सप्तमी सम्बन्धी व्रत : सूर्य पूजा, गङ्गा व्रत, कमल व्रत, निम्ब सप्तमी व्रत, शर्करा सप्तमी, अव्यङ्ग व्रत, शाक सप्तमी, शुभ सप्तमी, मित्र व्रत आदि), पद्म१.२१.२६१(शर्करा सप्तमी, कमल सप्तमी, मन्दार सप्तमी, शुभ सप्तमी), १.२१(कमल सप्तमी), १.२१(मन्दार सप्तमी), १.२१(शुभ सप्तमी), १.२२(रस कल्याणिनीसप्तमी), १.२२(पापनाशिनी सप्तमी), १.२२(गौरी तृतीया सप्तमी), १.२२(सारस्वत सप्तमी), १.७७(अर्क सप्तमी), ५.३६(वैशाख शुक्ल सप्तमी को राम काअभिषेक), ५.८५.४९(वैशाख शुक्ल सप्तमी, जह्नु द्वारा गङ्गा पान), ब्रह्म १.२७(विजया सप्तमी, आदित्य व्रत), भविष्य १.४७(शाक सप्तमी के संदर्भ में संज्ञा - छाया - सूर्य आख्यान), १.५०(रथ सप्तमी), १.८०+, १.१९४+, मत्स्य ५५(आदित्य शयन व्रत विधि), ६८(सप्तमी स्नपन व्रत, मृतवत्सा स्त्री का अभिषेक), ७४(कल्याण सप्तमीव्रत, अष्टदल कमल पर सूर्य की पूजा), ७५(माघ शुक्ल सप्तमी, विशोक सप्तमी व्रत, सूर्य पूजा), ७६(मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, फल सप्तमी व्रत, फलदान, सूर्य पूजा),७७(वैशाख शुक्ल सप्तमी, शर्करा सप्तमी व्रत), ७८(वसन्त शुक्ल सप्तमी, कमल सप्तमी व्रत), ७९(माघ शुक्ल सप्तमी, मन्दार सप्तमी व्रत, अष्ट दल कमल पर सूर्य पूजा),८०(आश्विन् शुक्ल सप्तमी, शुभ सप्तमी व्रत), वराह २६(सूर्य व १२ आदित्यों की उत्पत्ति की कथा), विष्णुधर्मोत्तर ३.१६९(सप्तमी पूजा, व्रत), ३.२२१.५५(सप्तमी कोपूजनीय देवी के नाम व फल), स्कन्द १.२.४३.४६(माघ शुक्ल सप्तमी को कामरूप कुण्ड में स्नान का माहात्म्य), ४.१.४६.५०(मार्गशीर्ष सप्तमी को काशी में १२आदित्यों की पूजा), ५.३.२६.११२, ५.३.५१.५, ५.३.१२५.३३, ६.१६२(पुरश्चरण सप्तमी, रोहिताश्व - मार्कण्डेय संवाद), ७.१.११(मार्गशीर्ष सप्तमी, सूर्य का राज्ञी,द्यौ/संज्ञा से मिलन), ७.१.२३६(माघ शुक्ल सप्तमी को दुर्वासादित्य की पूजा), ७.४.१४(माघ शुक्ल सप्तमी को ब्रह्म कुण्ड में स्नान ), हरिवंश २.८१.१, लक्ष्मीनारायण १.२७२, १.३१४, २.१८८, २.२२८, २.२९८, ३.१०३.५, saptamee/ saptami

सप्तर्षि अग्नि २०.९(सप्तर्षियों की पत्नियां व पुत्र), पद्म १.७.८३(मन्वन्तरों के सप्तर्षि आदिकों के नाम), १.२९, ३.२६.६८(ब्रह्मानुस्वर स्थान पर सप्तर्षिकुण्ड का उल्लेख), ब्रह्म २.१०२+ (गौतमी गङ्गा का सात सप्तर्षियों के नामों से विभक्त होकर समुद्र से सङ्गम करना), २.१०३.३(सप्तर्षियों द्वारा गङ्गा के सप्तधा विभाजन का कथन), ब्रह्मवैवर्त्त ४.१८.७७(सप्तर्षि - पत्नियों के रूप पर अग्नि का मोहित होना), ब्रह्माण्ड १.५.७४(ब्रह्मा के विभिन्न अङ्गों से मरीच्यादि ऋषियों की उत्पत्ति), २.३.५.८०(षष्ठ मरुत गण की सप्तर्षि मण्डल में स्थिति का उल्लेख), १.२.९.२२(सप्तर्षियों की प्राणवायुओं आदि से सृष्टि), १.२.९.५५(सप्तर्षियों की पत्नियां बनी दक्ष - कन्याओं के नाम), ३.१.१(सप्तर्षियों की उत्पत्ति), भागवत ८.५, ९.१६.२४(जमदग्नि के संज्ञान रूप में पुन: जीवित होने पर सप्तर्षि मण्डल में सातवां ऋषि बनने का कथन), मत्स्य १५४.३९७(इन्द्र के दूत के रूप में सप्तर्षियों की शिव से भेंट, पार्वती से विवाह की प्रेरणा देना, हिमालय को शिव - पार्वती के विवाह की प्रेरणा), २७३.३९(सप्तर्षि मण्डल से ऊपर दिव्य काल का आरंभ, अदिव्य काल की नक्षत्र – सप्तर्षिगण योग से गणना), मार्कण्डेय ५२.१९(मरीच्यादि ऋषियों की पत्नियों व पुत्रों के नाम), वराह ७१.३६(दण्डक वन में गंगा के अवतारण पर सप्तर्षियों द्वारा गौतम को साधुवाद, ऋषियों के शाप को सीमित करना), ८१, १५१, वायु ९.१००/१.९.९४(ब्रह्मा के चक्षु आदि से मरीचि आदि ऋषियों की सृष्टि), २८.३६(वसिष्ठ व ऊर्जा के ७पुत्रों की सप्तर्षि संज्ञा), ६५.३१(ब्रह्मा द्वारा स्व शुक्र की आहुति से सप्तर्षियों की उत्पत्ति), ६५.४३/२.४.४३(ब्रह्मा द्वारा शुक्र की आहुति से मरीच्यादि सप्तर्षियों की उत्पत्ति का वृत्तान्त), ९९.४२३/२.३७.४१७(पारिक्षित काल में सप्तर्षियों के मघा नक्षत्र में होने का कथन), १००/२.३८(विभिन्न मन्वन्तरों में सप्तर्षियों के नाम), विष्णु ३.१(मन्वन्तरानुसार सप्तर्षि), विष्णुधर्मोत्तर १.१७६+(मन्वन्तरों के सप्तर्षियों के नाम), ३.१६५(मरीच्यादि सप्तर्षि व्रत), शिव २.३.३३(शिव विवाह के संदर्भ में सप्तर्षियों द्वारा हिमवान् व मेना को सांत्वना), शिव २.३.२५.१३(शिव के अनुरोध पर सप्तर्षियों द्वारा पार्वती के प्रेम की परीक्षा), २.३.३२(शिव-पार्वती विवाहकार्य की सिद्धि हेतु सप्तर्षियों का हिमालय गृह गमन), स्कन्द १.१.२३(सप्तर्षियों द्वारा शिव विवाह में मध्यस्थता, हिमालय से संवाद), २.७.१९.१९(सप्तर्षियों की तत्त्वाभिमानी देवों व अग्नि के बीच स्थिति), ४.१.१८(सप्तर्षियों के लोक का वर्णन), ४.१.१९.८४(सप्तर्षियों का स्वरूप, मरीच्यादि सप्तर्षियों द्वारा विष्णु की महिमा का कथन, ध्रुव को मन्त्र दीक्षा), ५.३.१४२.५४( ), ५.३.१९४.४६(नारायणविवाहयज्ञ के ब्रह्मा), ६.३२(सप्तर्षि लिङ्ग का माहात्म्य, दुर्भिक्ष में मृत कुमार के भक्षण की चेष्टा, राजा वृषादर्भि के आने पर भक्षण न करना, हेमपूर्ण उदुम्बर प्राप्ति व प्रतिक्रिया, तप करके लिङ्ग स्थापना), ६.१२४(सप्तर्षियों द्वारा लोहजङ्घ विप्र - दस्यु को वन में दीक्षा, दस्यु का वाल्मीकि में रूपान्तरण), ६.२५२.२५(चातुर्मास में सप्तर्षियों की महाताल वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), ७.१.१९.६४(भृगु, अङ्गिरा आदि ८ ऋषियों का नामोल्लेख), लक्ष्मीनारायण १.१८४, १.१८६, १.२०६.९०(सप्तर्षियों द्वारा मार्कण्डेय को चिरजीवी बनाना ), १.३१४, १.३४२, १.३७४, १.४४१.८७, १.४६९, १.४७९, १.४८१, द्र. मन्वन्तर saptarshi

References on Saptarshi