सप्तविंशति-समुन्नत

Puraanic contexts of words like Saptashati, Sabhaa / Sabha, Samaadhi, Samidhaa, Samudra / ocean, Samudramanthana etc. are given here.

Esoteric aspect of Samudra Manthana/Churning of ocean

सप्तविंशतिका स्कन्द ६.८६(सप्तविंशतिका का माहात्म्य : चन्द्रमा की २७ नक्षत्र पत्नियों द्वारा चन्द्र प्रीत्यर्थ चण्डी पूजा ) saptavimshatikaa

सप्तशती ब्रह्मवैवर्त्त २.५८+ (सुरथ राजा व समाधि वैश्य की कथा), भविष्य ३.२.३३.५(दुर्गा सप्तशती के आदि, मध्यम व उत्तम चरित्रों का माहात्म्य, व्याधकर्मा काउद्धार), ३.२.३४(मध्यम चरित्र का माहात्म्य, मगधराज का कल्याण), ३.२.३५(उत्तर चरित्र, पतञ्जलि द्वारा कात्यायन की शास्त्रार्थ में पराजय की कथा),३.३.१४.४(दुर्गा सप्तशती पाठ की महिमा, आह्लाद आदि की कथा ), शिव ५.४५+ saptashatee/ saptashati

सप्तसामुद्रिक वराह १२६(सप्तसामुद्रिक तीर्थ का वर्णन )

सप्तसारस्वत कूर्म २.३५.४४(सप्तसारस्वत तीर्थ का माहात्म्य, मङ्कणक का तप, भस्म उत्पत्ति से उत्पन्न गर्व का शिव द्वारा खण्डन), पद्म ३.२७ वामन५७.९२(स्कन्द को सप्तसारस्वत गण प्रदान ) saptasaarasvata/ saptasarasvata

सप्तस्रोत पद्म ६.१३७

सप्ताश्वतिलक भविष्य १.१८७.२८

सभा अग्नि ६५.१(देवसभा स्थापना विधि), २२०(राज्य सभा), पद्म १.४५(हिरण्यकशिपु की सभा का वर्णन), मत्स्य १६१(हिरण्यकशिपु की सभा का वर्णन), भविष्य४.६९.३६, मार्कण्डेय ५४(ब्रह्मा की सभा), वराह ७५(ब्रह्मा की सभा का वर्णन), १९७.११(यम सभा), वायु ३४.७२(ब्रह्मा, अग्नि, निर्ऋति आदि की सभाओं की मेरु केपरित: स्थिति), ४१(कैलास पर्वत पर कुबेर की विपुला नामक सभा), स्कन्द ३.२.१(ब्रह्मा की सभा का वर्णन), ५.२.८४.१९(सभाजित् : परीक्षित् राजा का उपनाम?),५.३.१९८.७५, ७.१.३(कैलास पर शिव की सभा का वर्णन), हरिवंश २.५८(वायु द्वारा द्वारका में स्थापित सुधर्मा सभा), २.६३.२३(द्वारका में यादवों की सभा केदाशाjर्ही नाम का उल्लेख), ३.४१(हिरण्यकशिपु की सभा का वर्णन), ३.६६(ब्रह्मा की सभा), योगवासिष्ठ ५.३(दशरथ की सभा ) sabhaa

सभ्य गरुड १.२०५.६६(कुमार के सत्य/सभ्य? अग्नि का रूप होने का उल्लेख), देवीभागवत ३.१२.५० (यज्ञ में सभ्य अग्नि के उदान व आवसथ्य के समान वायु सेतादात्म्य होने का उल्लेख), वायु १११.५२/२.४९.६१(सभ्यपद तीर्थ में श्राद्ध का फल : ज्योतिष्टोम फल की प्राप्ति), लक्ष्मीनारायण ३.३२.१२(शंस्य अग्नि - पुत्र ) sabhya

सम देवीभागवत ३.१९.३६(वाराही से विषम मार्ग में रक्षा की प्रार्थना), नारद १.५०.४४, महाभारत कर्ण ४५.३५(शिबि निवासियों की विषम विशेषता का उल्लेख), भीष्म५.३(५ महाभूतों के सम होने तथा विषमीभाव को प्राप्त होने पर परस्पर संयोग करनेv का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर १.२३७.८(वामन से विषमों में रक्षा की प्रार्थना),sama

समङ्ग वराह १४६

समन्तपञ्चक वामन २२(समन्तपञ्चक क्षेत्र का विस्तार), स्कन्द ५.३.२१८.३८, महाभारत शल्य ५३.२४, samantapanchaka

समन्यु ब्रह्म २.३८(समा - पति समन्यु यक्ष द्वारा इल से वैर के कारण इल का उमा वन में प्रवेश कराने का आयोजन ) samanyu

समय वायु ३१.७, लक्ष्मीनारायण १.३२३.५१(धर्म व क्रिया के ३ पुत्रों में से एक),

समर कथासरित् ९.२.१७०, ९.२.३९८, ९.४.२२३, ९.४.२२४, ९.४.२२५, १२.७.४९, १२.७.२६७,

समष्टि शिव ७.२.५.१३

समाधि अग्नि ३७६(समाधि योग का वर्णन), देवीभागवत ५.३२(समाधि वैश्य द्वारा कष्ट से मुक्ति हेतु सुमेधा ऋषि से परामर्श), ब्रह्मवैवर्त्त २.६२(समाधि वैश्य - सुरथ - मेधा ऋषि का आख्यान), मार्कण्डेय ८१, विष्णुधर्मोत्तर ३.२८४(समाधि का वर्णन), शिव ५.२८, स्कन्द १.१.२२, ३.१.२५(वत्सनाभ ऋषि की समाधि में महिष द्वारा वृष्टि से रक्षा), ४.१.४१.१२६(समाधि की परिभाषा : जीवात्मा व परमात्मा का मिलन आदि), ७.१.१०५.४९(१७वें कल्प का नाम), योगवासिष्ठ ५६२, ५८४, ६१२५, ६.१.१०३(चूडाला द्वारा राजा शिखिध्वज को निर्विकल्प समाधि से जगाने का यत्न ; सत्त्वशेष जाननेv की विधि ), लक्ष्मीनारायण २.११९.२, ३.१२.१, ३.१५५.८९, द्र.सिद्धसमाधि samaadhi/ samadhi

समान अग्नि ८५.१४(प्रतिष्ठा कला के २ प्राणों में से एक), २१४.१०(समान वायु के शरीर में कार्य का कथन), देवीभागवत ३.१२.५० (यज्ञ में सभ्य अग्नि के उदान वआवसथ्य के समान वायु से तादात्म्य होने का उल्लेख), नारद १.४२.८०(समान वायु के ह्रदय में स्थित होने का उल्लेख), १.४२.१०१(जन्तु के समान द्वारा पृष्ठ से स्वगति प्राप्त करनेv का उल्लेख), महाभारत शान्ति ३२८.३२, लक्ष्मीनारायण २.१२७.२(समान पर्वत पर स्थित भूकम्प से पीडित प्रेतों का द्विकल सरोवर पर कृष्ण के समीपआगमन ) samaana/ samana

समित् लक्ष्मीनारायण १.३११समित्पीयूष, ३.१६१.९६(बल असुर की देह का समिद् रूप होना तथा होम से रत्नों की उत्पत्ति ) samit

समिधा गरुड १.१०१(ग्रह शान्ति हेतु समिधाओं की काष्ठ के प्रकार), नारद १.६८.३७, १.७१.७८(नृसिंह होम में समिधाओं के होम फल), ब्रह्माण्ड२.३.११.१०९(समिधा हेतु वर्ज्य व अवर्ज्य काष्ठ), मत्स्य ९३(नव ग्रहों के लिए समिधा विशेष), शिव ७.२.३२.५४(शान्ति, पौष्टिक आदि कार्यों में समिधा के ७ प्रकार),स्कन्द १.२.४२.१७७(७ आध्यात्मिक व आधिभौतिक प्रकार की समिधाओं के नाम), ४.२.८७.६३( दक्ष यज्ञ में समित् व कुशों का कल्पवृक्ष द्वारा भरण), महाभारतआश्वमेधिक २०.२०, २७.१३(पांच इन्द्रियों के समिधा होने का उल्लेख), सौप्तिक ७.५३, लक्ष्मीनारायण २.१५२.६७, ३.१६१.८४(देवों को वरदान रूप में वल असुर कायज्ञ की समित् बनना, समित् का अग्नि में होम होने पर रत्नों में परिणत होना ) samidhaa

समीरण लक्ष्मीनारायण २.११६

समुज्ज्वल पद्म २.८९(कुञ्जल - पुत्र, पिता से दृष्ट आश्चर्य का वर्णन, कृष्ण हंसों के स्नान से श्वेत होने की कथा ) samujjvala

समुद्र गरुड २२२, नारद २.५८.२(समुद्र स्नान की विधि, समुद्र की क्षारता का कारण, समुद्र की प्राण से तुलना - प्राणस्त्वं सर्वभूतानां विश्वस्मिन्सरितां पते । तीर्थराज नमस्तेऽस्तु त्राहि मामच्युतप्रिय ।।), पद्म १.४०.१४२(अव्यक्तानन्द सलिल वाले समुद्र का वर्णन - अव्यक्तानंदसलिलं व्यक्ताहंकारफेनिलम्॥ महाभूतकरौघौघं ग्रहनक्षत्रबुद्बुदम्), ३.९.२(घृत, दधिमण्डोद, सुरोद, दुग्ध सागरों का कथन - घृततोयः समुद्रोथ दधिमंडोदकोपरः। सुरोदसागरश्चैव तथान्यो दुग्धसागरः), ब्रह्म २.१०२(समुद्र द्वारा गङ्गा को स्व में विलीन होने का आमन्त्रण - सा चेयं गौतमी गङ्गा सप्तधा सागरं गता।।) , ब्रह्मवैवर्त्त २.११.५१(कृष्ण द्वारा विरजा में वीर्याधान से ७ समुद्रों की उत्पत्ति का कथन), ४.३(सप्त समुद्र : विरजा के सात पुत्रों का शाप से समुद्र बनना), ब्रह्माण्ड २.३.५७.२६(राम द्वारा समुद्र पर शस्त्रसंधान), भविष्य १.२२.४१(समुद्र द्वारा सामुद्रिक शास्त्र का पुनर्निर्माण), भागवत ३.२६.६०(नद्यस्ततः समभवन् उदरं निरभिद्यत ॥ क्षुत्पिपासे ततः स्यातां समुद्रस्त्वेतयोरभूत् ।), ३.२६.६८(क्षुत्तृड्भ्यां उदरं सिन्धुः नोदतिष्ठत् तदा विराट् ।), ११.७.३३(सिन्धु - दत्तात्रेय के २४ गुरुओं में एक - ... कपोतोऽजगरः सिन्धुः पतङ्गो मधुकृद्गजः....), ११.८.६(समृद्धकामो हीनो वा नारायणपरो मुनिः । नोत्सर्पेत न शुष्येत सरिद्‌भिरिव सागरः ॥), मत्स्य १५४.४४७, वराह ६७.५(सप्तधा विभक्त होकर एकीभूत होने वाले पुरुष का समुद्र नाम - यः पुमान् सप्तधा जात एको भूत्वा नरेश्वर । स समुद्रस्तु विज्ञेयः सप्तधैको व्यवस्थितः ।। ), वराह ६७.२(पावक के ७ समुद्रों में विभाजित होने का कथन), वामन ५७.६८(समुद्र द्वारा स्कन्द को २ गण प्रदान करना), वायु ४९.१२४(समुद्र शब्द की निरुक्ति - अपाञ्चैव समुद्रेकात् समुद्रा इति संज्ञिताः ।।), ४९.१२६ (चन्द्रमा के अनुसार समुद्र के जल में ह्रास-वृद्धि का कथन) , विष्णुधर्मोत्तर १.६.३(जम्बू आदि द्वीपों के परितः सप्त समुद्रों का विस्तार), १.२१४.४(लवण समुद्र के स्वरूप का कथन), ३.११९.२ (पोत यात्रा आरम्भ में मत्स्य की पूजा - समुद्रपोतयात्रायां मत्स्यं संपूजयेद्विभुम् । वराहं वा महाभाग नद्युत्तारे तथैव च ।। ), ३.१६०( सप्तसमुद्र व्रत), स्कन्द ३.१.५१.१५(सेतुमूल में समुद्र पूजा विधि), ५.१.१४(जम्बू, शाक, कुश व शाल्मलि द्वीपों में क्षार, क्षीर, दधि व इक्षु समुद्रों की स्थिति, राजस्थल के समीप चार समुद्रों का एकत्र होना, स्नान माहात्म्य, सुद्युम्न व सुदर्शना को पुत्र प्राप्ति की कथा), ५.१.३४.७१ (छागश्चैवाग्निना दत्तः कुक्कुटं सरितां पतिः ।।), ६.३४ - ६.३५(प्रशोषिणी विद्या के अभ्यास से अगस्त्य द्वारा समुद्र का शोषण), ६.१४२.२०(३० समुद्रों की विद्यमानता का उल्लेख - सरितां पतयस्त्रिंशच्छंकवः सप्तसप्ततिः ॥), ६.२५२.२१(चातुर्मास में समुद्रों की वेतस वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), ७.१.२९(समुद्र स्नान विधि, समुद्र द्वारा ब्राह्मणों के कोप से देवों की रक्षा, ब्राह्मणों को मांस मिश्रित भोजन देने से शाप की प्राप्ति), ७.१.३४६(अगस्त्य द्वारा समुद्र का शोषण, भगीरथ द्वारा आहूत गङ्गा से पुन: पूरण), हरिवंश १.१४.२९(समुद्र का सगर - पुत्र बनना), २.११३(कृष्ण के रथ के मार्ग के लिए समुद्र द्वारा स्व जल का स्तम्भन), महाभारत उद्योग १५३.२७(हस्तिनापुर की चन्द्रोदय काल के समुद्र से उपमा का कथन), १६१.३९(कौरव सेना के वीरों की सागर के प्राणियों से उपमा), भीष्म ७८.३२(कौरव-पाण्डव सेना की शोणित जल वाले समुद्र से उपमा), द्रोण ११४.१३(धृतराष्ट्र द्वारा स्वसेना की समुद्र से तुलना), ११९.३(सात्यकि द्वारा द्रोणाचार्य की सेना की महासागर से तुलना), १२०.८(सात्यकि द्वारा जलसंध रूपी महार्णव को तरने का कथन), सौप्तिक १०.१७( द्रोणाचार्य की महार्णव से उपमा), शान्ति ११३.६(सरिताओँ व सागर के संवाद में वेतस द्रुम की प्रशंसा), वा.रामायण ३.३१.४८, ६.२१(लङ्का पर आक्रमण हेतु मार्ग न देने पर राम का समुद्र पर कोप, समुद्र द्वारा राम को उपाय का कथन), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८३(समुद्रों का वैतस वृक्षों के रूप में अवतरण ), कथासरित् १०.४.१६६(समुद्र द्वारा टिट्टिभ – अण्डों के हरण की कथा), १८.२.२७७, द्र. शरीर, सप्तसमुद्र samudra

Comments on Samudra


समुद्रदत्त कथासरित् २.५.१६९, ५.२.३९, १२.१०.५०,


समुद्रमन्थन अग्नि ३(विष्णु के कूर्म व मोहिनी अवतारों की कथा), पद्म १.४, १.२३, १.११९, ४.८+ (इन्द्र द्वारा दुर्वासा द्वारा प्रदत्त माला का अपमान, दुर्वासा द्वारा इन्द्र को पतन का शाप, देवों द्वारा प्रतिष्ठा हेतु समुद्र मन्थन, रत्नों की उत्पत्ति), ६.५, ६.२३१+ (समुद्र मन्थन का कारण), ब्रह्म २.३६ (अमृतपान के कारण राहु की अमर देह को नष्ट करने का उपाय), ब्रह्माण्ड ३.४.९.५०(विश्वरूप के वध के कारण श्रीहीन हुए इन्द्र के कारण समुद्रमन्थन का उद्योग), भविष्य ४.११८.३२, भागवत ८.५, ८.६, मत्स्य २४९, वराह ३५, विष्णु १.९, विष्णुधर्मोत्तर १.४०, १.४२(समुद्र मन्थन के संदर्भ में राहु के शिर छेदन का आख्यान), शिव ३.१६(सुधापान से देवों का मदाक्रान्त होना, शिव का यक्षेश अवतार), स्कन्द १.१.९, १.१.११(समुद्र मन्थन से रत्नों की उत्पत्ति), ५.१.४४, ५.२.१४, ६.२१०, हरिवंश ३.३०.२७(समुद्रमन्थन से उत्पन्न रत्नों के नाम), वा.रामायण १.४५(समुद्र मन्थन की कथा, रत्नों की उत्पत्ति), लक्ष्मीनारायण १.९०, १.९१, १.१५५, ३.३६.३०(अब्धि मथन वत्सर में मधुभक्ष दैत्य के उपद्रव का वृत्तान्त ) samudramanthana

Esoteric aspect of Samudra Manthana/Churning of ocean

समुद्रवर्मा कथासरित् ९.२.३६५,

समुद्रशूर कथासरित् ९.४.९९,

समुद्रसेन कथासरित् ६.३.१०१

समुन्नत वा.रामायण ६.५८.२१(रावण - सेनानी, प्रहस्त - सचिव, दुर्मुख वानर द्वारा वध ) samunnata