सङ्गम-सत्यलोक

Puraanic contexts of words like Sangama/confluence, Sangeeta / music, Sati, Satva, Satya/truth, Satyatapaa, Satyabhaamaa etc. are given here.

Vedic view of Satya(by Dr. Tomar)

Vedic view of Satya Naaraayan story

Esoteric aspect of Satya Naaraayana story

सङ्गम गर्ग ६.१३(गोमती - सिन्धु सङ्गम की महिमा, राजमार्गपति वैश्य का उद्धार), नारद १.६(गङ्गा - यमुना सङ्गम), पद्म २.१९(रेवा - कपिला सङ्गम),२.९२(रेवा - कुब्जा सङ्गम), ३.१६(कावेरी - नर्मदा सङ्गम), ३.१८(इक्षु - सङ्गम), ३.१८(आयोनि), ३.२१(एरण्डी - नर्मदा सङ्गम), ३.२४(सरस्वती - सागर सङ्गम),३.२५(कोटि - सरस्वती सङ्गम), ३.२६(कौशिकी - दृषद्वती सङ्गम), ३.२७(सरस्वती - अरुणा सङ्गम), ३.३९(शोण - ज्योतिरथ्या, शोण - नर्मदा सङ्गम), ३.३९(वेणा,वरदा सङ्गम), ३.३९(कृष्णा - वेणा, त्रिवेणी सङ्गम), ६.१३८(बकुला सङ्गम), ६.१४०(साभ्रमती - हिरण्या सङ्गम), ६.१४५(साभ्रमती - हस्तिमती सङ्गम),६.१४५(हस्तीमती - साभ्रमती सङ्गम, कौण्डिन्य द्वारा हस्तिमती की शुष्कता का शाप), ६.१७०(साभ्रमती सङ्गम), ६.१७३(साभ्रमती - समुद्र सङ्गम), ७.५+(गङ्गासागर सङ्गम), ब्रह्म २.१८(गणिका - गौतमी सङ्गम), २.२६(पुण्यासिक्ता - गङ्गा सङ्गम), २.३०(कद्रू- सुपर्णा सङ्गम), २.३१(सरस्वती - गङ्गा सङ्गम),२.३२(पञ्चकन्या - गङ्गा सङ्गम), २.३६(अमृता - गङ्गा सङ्गम), २.३७(वृद्धा - गङ्गा सङ्गम), २.५१(विदर्भा - रेवती सङ्गम), २.६२(यक्षिणी - गङ्गा सङ्गम),२.६५(वाणी - गङ्गा सङ्गम), २.७१(कपिला - गङ्गा सङ्गम), २.७४(परुष्णी - गङ्गा सङ्गम), २.७७(अप्सरोयुग - गङ्गा सङ्गम), २.८९(वञ्जरा - गङ्गा सङ्गम),२.१०४(गङ्गा - सागर सङ्गम), मत्स्य १८९(नर्मदा - कावेरी सङ्गम), वराह १४९, १५०, १७४(त्रिवेणी : महानाम ब्राह्मण व पांच प्रेतों के संवाद की कथा), २१५(वाग्मती - वणिवती सङ्गम), स्कन्द १.२.३+ (महीसागर सङ्गम), १.२.५८(महीसागर सङ्गम), २.१.३४(वेणा - सुवर्णमुखरी सङ्गम), २.१.३५(सुवर्णमुखी - कल्पा सङ्गम),२.८.६(सरयू - घर्घरा सङ्गम), ४.२.५९(पञ्चनदियों का सङ्गम), ४.२.८३(असि गङ्गा सङ्गम), ४.२.९७.१६(खङ्गमेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य),५.१.५६(क्षाता सङ्गम), ५.१.६३(कन्थडेश्वर खगर्ता सङ्गम), ५.२.६९(खङ्गमेश्वर का माहात्म्य, मत्स्य व श्येन का खङ्गमेश्वर लिङ्ग पर कल्याण, सुबाहु राजाद्वारा शिरोव्यथा के कारण का कथन), ५.३.२३(कपिला - विशल्या सङ्गम), ५.३.२४(करा - नर्मदा सङ्गम), ५.३.२५(नीलगङ्गा सङ्गम), ५.३.२९(कावेरी सङ्गम),५.३.१०३(एरण्डी सङ्गम), ५.३.१५८(खङ्गमेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, पुण्यतोया - नर्मदा सङ्गम), ५.३.२२०.१७,५.३.२३०(तीर्थ व सङ्गम में भेद), ५.३.२३१.७,७.१.१८३(त्रिसङ्गम का माहात्म्य, सरस्वती - हिरण्या - समुद्र सङ्गम), ७.१.२०४(सरस्वती - सागर सङ्गम), ७.१.२४९(खङ्गमेश्वर का माहात्म्य, उद्दालक द्वारासरस्वती - पिङ्गा सङ्गम पर तप), ७.१.३२८(खङ्गमेश्वर का माहात्म्य, ऋषियों का सङ्गम में स्नान), लक्ष्मीनारायण २.१२७.२८(सात्त्विक, राजसिक व तामस सङ्गमोंका कथन ), कथासरित् ९.५.९१, ९.६.२०४, sangama/ samgama

सङ्गमर्मर लक्ष्मीनारायण २.१८३.९१

सङ्गरयादस्क लक्ष्मीनारायण ३.२२२

संङ्गाल स्कन्द ७.१.३००+ (सङ्गालेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, त्रिनेत्र मत्स्यों वाली गङ्गा का आह्वान),

सङ्गीत नारद १.५०(सङ्गीत शिक्षा), ब्रह्माण्ड २.३.६१.२९(स्वर, ग्राम आदि का वर्णन), भविष्य २.२.२१.५१(राग), वराह १३९(मन्दिर में सङ्गीत का माहात्म्य), वायु८६.३६(स्वर, ग्राम, मूर्च्छा आदि का वर्णन), विष्णुधर्मोत्तर ३.१८(सङ्गीत के लक्षण, ग्राम, स्वर आदि), हरिवंश २.८९.६७(कृष्ण व यादवों के समक्ष सङ्गीत ), लक्ष्मीनारायण ३.१४५ sangeeta/ samgeeta/ sangita

भारतीय सङ्गीत-शास्त्र का दर्शनपरक अनुशीलन(विमला मुसलगाँवकर) पुस्तक का सार संक्षेप

संगीत के स्वर

संगीत में श्रुतियां

विभिन्न रागों का आध्यात्मिक अभिप्राय

वीणा के संदर्भ

सङ्ग्रह शिव ७.२.११.४६

सङ्ग्राम अग्नि २३६, २७४(सोम व बृहस्पति का सङ्ग्राम), २७६(द्वादश सङ्ग्राम), गर्ग ७.३३.३६(सङ्ग्रामजित् : कृष्ण व भद्रा - पुत्र, भूतसन्तापन असुर का वध ), शिव५.२१.२०, sangraama/ sangrama

सङ्ग्रामदत्त कथासरित् ७.४.१०१, १२.८.८५, १७.५.१११, १८.२.२७६,

सचिव द्र. कुमारसचिव

सच्चिदानन्द शिव ६.१६.२५(सच्चिदानन्द शब्द की निरुक्ति, सच्चिदानन्द से सृष्टि का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.१७०, सामरहस्योपनिषद २९०:३(जीव संघ त्रिविध: सत् - संसारात्मक, चित् - ज्ञानी, आनन्द - रसानन्द रूप ‹ माया के तीन रूप - सत्, चित् , आनन्द) sachchidaananda

सज्जन योगवासिष्ठ ६.२.९८(सज्जन समागम),

सञ्चाला लक्ष्मीनारायण २.२१८.८७, २.२१९

सञ्जय गर्ग ७.२०.३३(कौरव - सेनानी, प्रद्युम्न - सेनानी सुनन्दन से युद्ध), देवीभागवत ६.२६.१२(कैकेयी - पति, दमयन्ती - पिता, पुत्री के नारद से विवाह का प्रसङ्ग), भविष्य ४.१३(सञ्जय द्वारा स्वर्णष्ठीवी पुत्र प्राप्ति की कथा, पुत्री का विवाह नारद से करने पर पर्वत द्वारा शाप), वायु २३.१७१(१६वें द्वापर में व्यास ), शिव ३.४.२६(षष्ठ द्वापर में लोकाक्षि शिव के शिष्यों में से एक), लक्ष्मीनारायण ३.२१६.१,

सञ्जय- १) गवल्गण नामक सूत के पुत्र, जो मुनियों के समान ज्ञानी और धर्मात्मा थे । ये धृतराष्ट्र के मन्त्री थे (महाभारत आदि० ६३ । ९७) । सञ्जय द्वारा महाभारत के गूढ श्लोकों के अर्थ जानना शंकास्पद होना(आदि० १.११७)। धृतराष्ट्र के द्वारा इनको अपनी विजय- विषयक निराशा का अनुभव सुनाना ( आदि० १ । १५०- २१८) । इनके द्वारा धृतराष्ट्र को आश्वासन ( आदि० १ । २२२-२५१ ) । ये युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में गये ये । इन्हें राजाओं की सेवा और सत्कार के कार्य में नियुक्त किया गया था ( सभा० ३५ । ६) । इनका धृतराष्ट्र को फटकारना ( सभा० ८१ । ५- १८) । इनका धृतराष्ट्र के आदेश से विदुरको बुलाने के लिये काम्यकवन में जाना और विदुर से संदेश कहना ( वन० ६ । ५- १७) । इनके द्वारा संताप करते हुए धृतराष्ट्र की बातों का समर्थन ( वन० ४९ । १- १३) । इनका धूतराष्ट्र से दुर्योधन के वध के लिये श्रीकृष्णादि के द्वारा काम्यकवन में की हुई प्रतिज्ञा का वर्णन करना ( वन- ५१ । १५- ४४) । धृतराष्ट्र के भेजने से युधिष्ठिर के पास जाकर उनका कुशल पूछना ( उद्योग० २३ । १-५) । युधिष्ठिर के प्रश्नों का उत्तर देना ( उद्योग० २४ अध्याय) । पाण्डवों की सभा र्मे धृतराष्ट्र का संदेश सुनाना ( उद्योग० २५ अध्याय) । युधिष्ठिर को युद्ध में दोष की सम्भावना दिखाकर शान्त रहने के लिये कहना ( उद्योग० २७ अध्याय) । युधिष्ठिर के पास से हस्तिनापुर लौटकर धृतराष्ट्र से उनका कुशलसमाचार कहना और धृतराष्ट्र के कार्यों की निन्दा करना ( उद्योग० ३२ । ११-३०) । कौरव-सभा में आगमन ( उद्योग० ४७ । १४) । कौरव सभा में अर्जुन का संदेश सुनाना ( उद्योग० ४८ अध्याय) । धृतराष्ट्र से युधिष्ठिर के प्रधान सहायकों का वर्णन करना ( उद्योग० ५० अध्याय) । धृतराष्ट्र को उनके दोष बताते हुए दुर्योधन पर शासन करने की सलाह देना ( उद्योग० ५४ अध्याय) । दुर्योधन से पाण्डवों के रथ और अश्वों का वर्णन करना ( उद्योग० ५६ । ७-१७) । पाण्डवों की युद्ध के लिये तैयारी का वर्णन ( उद्योग० ५७ । २-२५) । धृष्टद्युम्न की शक्ति एवं संदेश का कथन ( उद्योग० ५७ । ४७-६२) । धृतराष्ट्रके पूछने पर अन्तःपुर में कहे हुए श्रीकृष्ण और अर्जुन के संदेश सुनाना ( उद्योग० ५९ अध्याय) । धृतराष्ट्र को अर्जुन का संदेश सुनाना ( उद्योग० ६६ । ३-१५) । धृतराष्ट्र से श्रोकृष्ण की महिमा का वर्णन करना ( उद्योग० अध्याय ६८ से ७० तक) । धृतराष्ट्र से कर्ण और श्रीकृष्ण के वार्तालाप का वृत्तान्त बताना ( उद्योग० १४३ अध्याय) । धृतराष्ट्र को कुरुक्षेत्र में सेना का पडाव पडने के बाद का समाचार सुनाना आरम्भ करना ( उद्योग० १५९ । ८) । व्यासजी की कृपा से इन्हें दिव्यदृष्टि की प्राप्ति ( भीष्म० २ । १०) । धृतराष्ट्र के पूछने पर भूमि के गुणों का वर्णन करना (भीष्म० ४ । १० से भीष्म० ५५ । १२ तक) । सुदर्शन द्वीप का वर्णन करना ( भीष्म० ५ । १३) । धृतराष्ट्र से भीष्मजी की मृत्यु का समाचार सुनाना ( भीष्म० १३ अध्याय) । ( यहाँ से सौप्तिकपर्व के ९ वे अध्याय तक संजय ने धृतराष्ट्र से युद्ध का समाचार सुनाया है ।) धृतराष्ट्र को उपालम्भ देना ( द्रोण० ८६ अध्याय) । धृतराष्ट्र से कर्ण द्वारा अर्जुन के ऊपर शक्ति न छोडे जाने का कारण बताना ( द्रोण० १०२ अध्याय) । कौरवपक्ष के मारे गये प्रमुख वीरौ का परिचय देना ( कर्ण० अध्याय) । पाण्डवपक्ष के मारे गये प्रमुख वीरों का परिचय देना ( कर्ण० अध्याय) । कौरवपक्ष के जीवित योद्धाओं का वर्णन ( कर्ण० अध्याय) । सात्यकि द्वारा जीते-जी इनका बंदी बनाया जाना ( शल्य० २५ । ५७-५८) । व्यासजी के अनुग्रह से सात्यकि की कैद से छुटकारा पाना ( शल्य० २९ । ३९(२०)) । इनकी दिव्यदृष्टि का चला जाना (सौप्तिक० ९ । ६२) । धृतराष्ट्र को सान्त्वना देना ( स्त्री. १ । २३- ४३) । धृतराष्ट्र से स्वजनों का मृतक कर्म करने को कहना ( स्त्री० ९ । ५-७) । युधिष्ठिर द्वारा इन्हें कृताकृत कार्यों की जांच तथा आयव्यय के निरीक्षण का कार्य सौपा जाना ( शान्ति० ४१ । ११) । धृतराष्ट्र और गान्धारी के साथ इनका वनगमन ( आश्रमः १५ । ८) । यात्रा के प्रथम दिन गङ्गातट पर धृतराष्ट्र के लिये शय्या बिछाना ( आश्रम० १८ । १९) । वनवासी महर्षियों से पाण्डवों तथा उनकी पत्नियों का परिचय देना ( आश्रम० २५ अध्याय) । ये वन में छठे समय अर्थात् दो दिन उपवास करके तीसरे दिन आहार ग्रहण करते थे ( आश्रम० ३७ । १३) । ये सदा धृतराष्ट्र के पीछे चलते और ऊँची - नीची भूमि में उन्हें सहारा देकर ले चलते थे (आश्रम० ३७ । १६-१७) । वन में दावानल प्रज्वलित हो जाने पर धृतराष्ट्र ने सञ्जय को दूर भाग जाने के लिये कहा । सञ्जय ने इस तरह दावानल में जलकर होनेवाली मृत्यु को राजा के लिये अनिष्ट बतायी किंतु उससे बचाने का कोई उपाय न देखकर अपना कर्तव्य पूछा । राजा ने कहा कि गृहत्यागियों के लिये यह मृत्यु अनिष्टकारक नहीं, उत्तम है, तुम भाग जाओ । तब सञ्जय ने राजा की परिक्रमा की और उन्हें ध्यान लगाने के लिये कहा । राजा धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती तीर्नो दग्ध हो गये, किंतु ये दावा- नल से मुक्त हो गये । फिर गङ्गातट पर तपस्वी जनों को राजा के दग्ध होने का समाचार बताकर ये हिमालय को चले गये ( आश्रम० ३७ । १९-३४) । ( २) सौवीर देश का एक राजकुमार, जो हाथ में ध्वज लेकर जयद्रथके पीछे चलता था ( वन० २६५ । १०) । द्रौपदीहरण के समय अर्जुन द्वारा इसका वध(वन० २७१ । २७) । ( ३) सौवीर देश का एक राजकुमार, जिसकी माता विदुला थी ।एक दिन रणभूमि से भागकर आने पर माता ने इसे कडी फटकार दी और युद्ध के लिये प्रोत्साहन दिया ( उद्योग० अध्याय १३३ से १३६ । १२ तक) । माता के उपदेश से युद्ध के लिये उद्यत हो उसकी आज्ञा का यथावत् रूप से पालन किया ( उद्योग० १३६ । १३ -१६) । सञ्जयन्ती-दक्षिण भारत की एक नगरी, जिसे सहदेव ने दक्षिणदिग्विजय के समय दूतों द्वारा संदेश देकर ही अपने अधिकार में करके वहाँ से कर वसूल किया था ( सभा० ३१ । ७०) ।

सञ्जययानपर्व-उद्योगपर्व का एक अवान्तर पर्व ( अध्याय २० से ३२ तक) ।

sanjaya


सञ्जीवक कथासरित् १०.४.१३

सत्, रज, तम अग्नि ३८१.३६

सती देवीभागवत ७.३०, पद्म १.५, ब्रह्म १.३२, २.३९, ब्रह्मवैवर्त्त ४.४२.८१(दक्ष यज्ञ में सती द्वारा देह त्याग), ४.४३, ४.८४.१६(सती के कर्तव्यों का कथन), भविष्य३.३.३१.३०(४ युगों में सती की स्थिति), भागवत ४.३(सती द्वारा दक्ष यज्ञ में जाने का आग्रह), ४.४(दक्ष यज्ञ में सती का अग्नि में प्रवेश, दक्ष से शिव माहात्म्य काकथन), ६.६.१९(अङ्गिरा की २ भार्याओं में से एक, अथर्वाङ्गिरस वेद - माता), मत्स्य १३(तीर्थों में सती के १०८ नाम), ६०(दक्ष द्वारा सौभाग्य अंश के पान से सती कीउत्पत्ति, ललिता उपनाम, आराधना विधि), ६४, वामन ४(दक्ष यज्ञ में सती द्वारा प्राणों का त्याग), वायु ३०.३८, शिव २.२.१(ब्रह्मा द्वारा रुद्र के मोहार्थ दक्ष से सती कोउत्पन्न करना), २.२.११+ (सती जन्म के पीछे कारण), २.२.१८(सती का शिव से विवाह), २.२.२३(सती के भक्तिभाव व मोक्ष का कथन), २.२.२४+ (सती द्वाराराम की परीक्षा, सीता रूप धारण, शिव द्वारा सती का त्याग), ३.३(सती की शिव से उत्पत्ति, दक्ष - पुत्री), ७.१.१८(दक्ष से सती का जन्म), ७.१.१९(सती द्वारा देह त्याग),स्कन्द १.१.३(दक्ष के यज्ञ में सती का भस्म होना), ४.२.९३.२८(सतीश्वर लिङ्ग का माहात्म्य : सती द्वारा शिव की पति रूप में प्राप्ति हेतु स्थापना), ५.३.१९८.९०,७.१.७(१७वें कल्प में पार्वती का नाम), लक्ष्मीनारायण १.१६५.३३(महिषासुर - पत्नी कुण्ढी द्वारा शाप के कारण कात्यायनी का अवतार), १.१६९, १.१७०.९१(शिवद्वारा सती को पत्नी रूप में अस्वीकार करनेv पर सती का योगनिद्रा बनकर विष्णु की आंखों में वास करना), १.४३४.४९(विष्णुमती द्वारा पादाङ्गुष्ठ से वह्नि का उत्पादनकर पति सहित भस्म होना ), २.३८, २.१०१, २.२६७, २.२७१.२७, ३.१३.३७, ३.४४, satee/sati

सत्कीर्ति पद्म ५.६७.३८(सुमद - पत्नी )

सत्त्व ब्रह्माण्ड १.२.३६.७१(महासत्त्व : प्रसूतगण के देवों में से एक), महाभारत शान्ति २५३+(योगी द्वारा प्राणियों के भीतर सत्त्व रूप के दर्शन तथा स्वयं के सत्त्व पर अधिकार का वर्णन - प्रतिरूपं यथैवाप्सु तावत्सूर्यस्य लक्ष्यते। सत्ववांस्तु तथा सत्वं प्रतिरूपं स पश्यति।।), योगवासिष्ठ ६.१.१०३.२३(समाधि में सत्त्वशेष जानने की विधि ), कथासरित् १२.११.९सत्त्ववर sattva

सत्त्व - रज - तम अग्नि ३८१.३६(सत्त्वात्सञ्जायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च । प्रमादमोहौ तमसो भवतो ज्ञानमेव च ।।), गरुड ३.१.४३(पुराणों का सत्त्व-रज-तम अनुसार विभाजन), ३.१०.१३(सत्त्व-रज-तम आवरणों का कथन - महत्तत्त्वानन्तरं च तमो ह्यावरणं स्मृतम् ॥ महत्तत्त्वात्पञ्चगुणैरधिकं परिकीर्तितम् ।).., गर्ग ५.१८.८(कृष्ण से वियोग पर सत्त्वादि वृत्तियों के उद्गार - पूर्वं कष्टगतं भक्तं ध्रुवं कायाधवं च वै । पश्चाद्‌ररक्ष कृपया न पूर्वं दीनवत्सलः ॥), देवीभागवत १.१.१४(वेदान्त के सात्त्विक, मीमांसा के राजस व न्याय के तामस होने का उल्लेख - सात्त्विकं तत्र वेदान्तं मीमांसा राजसं मतम् । तामसं न्यायशास्त्रं च हेतुवादाभियन्त्रितम् ॥), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.६(प्रकृति के तीन अक्षरों में सत्त्व, रज, तम का समावेश - गुणे प्रकृष्टसत्त्वे च प्रशब्दो वर्तते श्रुतौ ।। मध्यमे कृश्च रजसि तिशब्दस्तमसि स्मृतः ।। ), भविष्य ३.४.१८.२४(सत्त्वभूता भगिनी, रजोभूता पत्नी तथा तमोभूता कन्या होने का उल्लेख), ३.४.१८.२७(शिव द्वारा भगिनी को पत्नी? रूप में स्वीकार करने से श्रेष्ठता प्राप्ति का उल्लेख - स्वकीयां च सुतां ब्रह्मा विष्णुदेवः स्वमातरम् ।। भगिनीं भगवाञ्छंभुर्गृहीत्वा श्रेष्ठतामगात् ।।), भागवत ११.२२.१३(सत्त्वं ज्ञानं रजः कर्म तमोऽज्ञानमिहोच्यते), ११.२५.१९( सत्त्वाज्जागरणं विद्याद्रजसा स्वप्नमादिशेत्। प्रस्वापं तमसा जन्तोस्तुरीयं त्रिषु सन्ततम्॥), मार्कण्डेय १०२.७/९९.७(ऋचाओं के रजोगुणी, यजुओं के सतोगुणी आदि होने का कथन - ऋचो रजोगुणाः सत्त्वं यजुषां च गुणा मुने । तमोगुणानि सामानि तमःसत्त्वमथर्वसु ।।), महाभारत शान्ति ३०१.४(सत्त्व, रज व तम के गुणों की संख्या व नाम - सत्वं दशगुणं ज्ञात्वा रजो नवगुणं तथा। तमश्चाष्टगुणं ज्ञात्वा वृद्धिं सप्तगुणां तथा।।), ३१४.७( सत्त्व, रज, तम का व्यावहारिक पक्ष में निरूपण - अव्यक्तः सत्त्वसंयुक्तो देवलोकमवाप्नुयात्। रजःसत्त्वसमायुक्तो मनुष्येषूपपद्यते ॥..), आश्वमेधिक ३१.१(सत्त्व, रज, तम आदि के अनुसार गुणों के ९ भेद - हर्षः स्तंभोतिमानश्च त्रयस्ते सात्विका गुणाः।। शोकः क्रोधाभिसंरम्भो राजसास्ते गुणाः स्मृताः।.. ), लक्ष्मीनारायण २.२५५.३३(अत्र सत्त्वं दशभावं मे निबोध वदामि तान् ।। आनन्दः प्रीतिरुद्धर्षः प्रकाशः पुण्यकारिता ।).., संगीतरत्नाकर २.७२(सात्त्विक के ७, राजस के ६ व तामस के ३ प्रकारों के नाम), sattva - raja - tama


सत्त्वर कथासरित् ९.३.९०,

सत्वशील कथासरित् ७.१.३३, १२.१४.५,

सत्य नारद १.६६.९४(सत्य विष्णु की शक्ति भुक्ति का उल्लेख), पद्म १.५३(सत्य की प्रशंसा), २.१२(सत्य के रूप), २१३, २५६, ५.८४.५८(सत्य का पुष्प रूप),५.९९.१८(सत्य की कुण्डल से उपमा), ६.२७.१९(सत्य की महिमा), ६.१७१, ब्रह्मवैवर्त्त २.१, भागवत ११.१९.३७, १२.२.२४(सत्ययुग के आरम्भ में चन्द्रमा, सूर्य वबृहस्पति के योग का कथन), वराह १५५.२९, वायु ५९.४०(सत्य के लक्षणों का कथन), विष्णुधर्मोत्तर ३.२६५(सत्य की प्रशंसा), शिव ३.४, ५.१२.२३, स्कन्द१.२.१३.१३२(जल द्वारा सत्य परीक्षा विधि), ५.३.२८.१८, ५.३.५१.३६, ५.३.५६.९८, ५.३.१९८.८८, ६.२९, महाभारत वन ३१३.७०, शान्ति १०९, १६२, १९०,योगवासिष्ठ ३.१.१२(आत्मा के ऋत व परब्रह्म के सत्य होने का उल्लेख), ६.२.३२(सत्य का अवबोधन), ६.२.१७७, लक्ष्मीनारायण ३.३३, कृष्णोपनिषद १६(अक्रूरसत्य का रूप ), द्र. ब्रह्मसत्य, मन्वन्तर satya

Vedic view of Satya(by Dr. Tomar)

सत्यक ब्रह्मवैवर्त्त ४.६३, ४.६४(कंस - पुरोहित, दु:स्वप्न नाश के लिए कंस को यज्ञ का परामर्श), द्र. मन्वन्तर

सत्यकर्ण हरिवंश ३.१.५(चन्द्रापीड के १०० पुत्रों में से ज्येष्ठ, श्वेतकर्ण - पिता )

सत्यकेतु स्कन्द २.४.२टीका (अन्न दान की गङ्गा स्नान से श्रेष्ठता की कथा), द्र. मन्वन्तर

सत्यजित् ब्रह्माण्ड १.२.२३.२३(सत्यजित् गन्धर्व की सूर्य रथ में स्थिति का कथन), २.३.५.९३(मरुतों में से एक), भागवत ८.१, स्कन्द २.४.२टीका (सत्यजित्द्वारा अन्न दान की गङ्गा स्नान से श्रेष्ठता का कथन ), द्र. रथ सूर्य satyajit

सत्यतपा पद्म ५.७२.१२(सत्यतपा मुनि का तप से कृष्ण - पत्नी भद्रा बनना), ५.७२.६६(व्यास, शुक - पिता), ६.१७८(इन्द्र - प्रेषित कन्या द्वय द्वारा सत्यतपा के तप मेंविघ्न, शाप से बदरी वृक्ष - द्वय बनना), ब्रह्म १.१२०(सत्यतपा ब्राह्मण का उर्वशी से संवाद, सत्यतपा द्वारा रूप तीर्थ में तप, जन्मान्तर में पुरूरवा बनकर उर्वशी का भोगकरना), वराह ३८+ (दुर्वासा द्वारा व्याध का सत्यतपा नामकरण, तिथि व्रत विधान का कथन), ५१, ९८(सत्यतपा व्याध द्वारा तप, कटी अङ्गुलि से भस्म बिखरना, शूकरकी व्याध से रक्षा करना), लक्ष्मीनारायण १.५४२, १.५६०.२(सत्यतपा की कटी अङ्गुलि से भस्म निकलने, इन्द्र व विष्णु द्वारा सत्यतपा के सत्य की परीक्षा लेने कावृत्तान्त ) satyatapaa

सत्यदत्त भविष्य ३.४.८.१००(सत्यदत्त राजा द्वारा दरिद्र पुरुष का क्रय करनेv से लक्ष्मी का निष्क्रमण, सत्य के ग्रहण से लक्ष्मी का अचल होना ) satyadatta

सत्यदेव भविष्य ३.४.८

सत्यधर कथासरित् १२.७.२५

सत्यधर्म पद्म ७.९(विजया - पति सत्यधर्म राजा द्वारा शरणागत दोष से भेकत्व प्राप्ति, गङ्गा नाम से मुक्ति),

सत्यधृति मत्स्य ५०.१०(शतानन्द - पुत्र, सरोवर में स्खलित वीर्य से कृप व कृपी का जन्म - स्कन्नं रेतः सत्यधृतेर्द्रृष्ट्वा चाप्सरसं जले। मिथुनं तत्र सम्भूतं तस्मिन् सरसि सम्भृतम्।।), हरिवंश १.३२.३२(तस्य सत्यधृते रेतो दृष्ट्वाप्सरसमग्रतः । अवस्कन्नं शरस्तम्बे मिथुनं समपद्यत ।)

उद्योग १७१.३८(पाण्डवपक्ष के महारथी योद्धा, जिन्हें भीष्मजी ने रथियों में श्रेष्ठ माना था।), आदि १८५.१०(ये द्रौपदी के स्वयंवर में पधारे थे), भीष्म ९३.१३(ये सुचित्त के पुत्र थे। इन्होंने युद्ध में हिडिम्बाकुमार घटोत्कच की सहायता की थी - तमन्वगात्सत्यधृतिः सौचित्तिर्युद्धदुर्मदः ।), द्रोण २३.३६-३९(इनके घोडों का रंग लाल था, परन्तु उनके पैर काले रंग के थे। ये सभी सुवर्णमय विचित्र कवचों से सुसज्जित थे। कुमार सत्यधृति अस्त्रों के ज्ञान, धनुर्वेद तथा ब्राह्मवेद में भी पारंगत थे - कुमारं शितिपादास्तु रुक्मचित्रैरुरश्छदैः। सौचित्तिमवहद्युद्धे यन्तुः प्रेष्यकरा हयाः।। ...... अस्त्राणां च धनुर्वेदे ब्राह्मे वेदे च पारगम्। तं सत्यधृतिमायान्तमरुणाः समुपावहन्।।), कर्ण ६.३४(द्रोणाचार्य द्वारा इनके मारे जाने की चर्चा - तथा सत्यधृतिर्वीरो मदिराश्वश्च वीर्यवान्। सूर्यदत्तश्च विक्रान्तो निहतो द्रोणसायकैः।।), द्रोण २३.५८(राजा क्षेम का पुत्र पाण्डवपक्ष का योद्धा, इसके घोडों का वर्णन - शबलास्तु बृहन्तोऽश्वा दान्ता जाम्बूनदस्रजः। युद्धे सत्यधृतिं क्षेमिमवहन्प्रांशवः शुभाः।।)।


सत्यनारायण-व्रत भविष्य ३.२.२४(सत्यनारायण व्रत विधि), ३.२.२८(कलावती द्वारा स्व पति शंखपति की रक्षा आदि ), ३.२.२६.१४+(सत्यनारायण व्रत मण्डप निर्माण विधि), लक्ष्मीनारायण ३.३३.५१ satyanaaraayana/ satyanarayana

Vedic view of Satya Naaraayan story

Esoteric aspect of Satya Naaraayana story

सत्यनिधि भविष्य ३.४.१८(सधन के पूर्व जन्म का रूप),

सत्यनिष्ठ स्कन्द २.७.१४(दुर्वासा - शिष्य, सच्चरित्र, भक्ति में निष्ठा, तपोनिष्ठ का उद्धार करना )

सत्यनेत्र ब्रह्माण्ड १.२.११.२२(अत्रि व अनसूया - पुत्र), शिव ७.१.१७.३१,

सत्यपद स्कन्द २.३.७(बदरी क्षेत्र में स्थित सत्यपद तीर्थ में त्रिकोण की स्थिति )

सत्यप्रकाश भविष्य ३.२.११(धर्मवल्लभ का मन्त्री, लक्ष्मी - पति, पत्नी वरण में राजा की सहायता )

सत्यभामा पद्म १.२३.६७(वेदवती का अवतार ?), ६.८८, ६.८९(पूर्व जन्म में देवशर्मा - पुत्री गुणवती, कार्तिक सेवन से कृष्ण - पत्नी बनना), ६.११५, ६.२४९.१(पृथ्वीका अंश), ६.२४९(सत्यभामा के विवाह का वर्णन, स्यमन्तक मणि की कथा), ब्रह्म १.१४, १.९४, ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१४४(वसुन्धरा का अंशावतार), भागवत१०.५६(स्यमन्तक मणि की कथा, सत्यभामा का कृष्ण से विवाह), १०.८३(सत्यभामा द्वारा द्रौपदी से स्वविवाह के प्रकार का वर्णन), मत्स्य ४७.१७(सत्यभामा के पुत्रों केनाम), वायु ९६.५५(द्वारवती व भङ्गकार - पुत्री, गुणों के कारण कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करनेv का कथन), विष्णु ४.१३.६४, विष्णुधर्मोत्तर ३.८५.७४(सत्यभामा कीमूर्ति का रूप), स्कन्द २.४.१३(पूर्व जन्म में देवशर्मा - पुत्री, चन्द्र पत्नी), ५.३.९७.३३(वसु राजा की भार्या, मत्स्यगन्धा की उत्पत्ति की कथा), ७.१.१५७(सत्यभामेश्वरलिङ्ग का माहात्म्य), हरिवंश १.३९(सत्राजित् - पुत्री), २.६३, २.६५, २.६६+ (पारिजात पुष्प न मिलने पर सत्यभामा का कोप), २.१०३(सत्यभामा के पुत्रों के नाम), कृष्णोपनिषद १५(धरा का रूप ) satyabhaamaa/ satyabhamaa

सत्यमन्दिर स्कन्द ३.२.१२(सत्यमन्दिर पुर की स्थापना, गणेशादि की स्थापना, नगर शोभा),

सत्यरथ मत्स्य १२, शिव ३.३१, ५.३८.१९सत्यरथा, स्कन्द ३.३.६(विदर्भ के राजा सत्यरथ द्वारा शिव प्रदोष पूजा भङ्ग के कारण शाल्व नृप से युद्ध में मरण ), हरिवंश१.१३.२४, satyaratha

सत्यलोक लक्ष्मीनारायण ४.९३,