सालङ्कायन-सिद्धसेन

Puraanic contexts of words like Saavarni, Saavitri, Simha / lion, Simhikaa, Siddha etc. are given here.

सालङ्कायन वराह १४४(सालङ्कायन ऋषि द्वारा तप, शिव को पुत्र रूप में प्राप्त करना, आमुष्यायण - गुरु), १४५(सालङ्कायन द्वारा शालग्राम में तप, शिव की पुत्र रूप में प्राप्ति), स्कन्द ७.१.२३.९८( चन्द्रमा के यज्ञ में शालङ्कायन के प्रस्थाता होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.३४०( ), १.५५९.८८(अयोध्यापति सालङ्कायन के राज्य में अनावृष्टि, ७ चाण्डालों का तप से वर्जन, यज्ञ आदि), शालङ्कायनजीवसूः, स्त्री, व्यासमाता । यथा, -- “व्यासस्याम्बा सत्यवती वासवी गन्धकालिका । योजनगन्धा दासेयी शालङ्कायनजीवसूः ॥” इति हेमचन्द्रः ॥ saalankaayana/ salankayana

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सालभञ्जिका कथासरित् १८.२.१४५, १८.४.१४०

सालमाल लक्ष्मीनारायण २.२५.७९

सालोक्य, सारूप्य भविष्य ३.४.७.२६(मोक्ष के ४ प्रकार, तप से सालोक्य, भक्ति से सामीप्य, ध्यान से सारूप्य और ज्ञान से सायुज्य), लक्ष्मीनारायण १.५४७.३९(सालोक्यआदि ४ प्रकार की मुक्तियों के अधिकारी जनों का कथन ), ३.१८.१९ saalokya/ salokya

साल्व विष्णुधर्मोत्तर १.३७(सिंहिका - पुत्र, परशुराम का साल्व के वधार्थ आगमन ), १.४३ saalva/ salva

सावन गरुड १.१२८.१५(यज्ञादि के लिए सावन मास का निर्देश), लक्ष्मीनारायण १.५२६.५३(सावन वर्ष का कथन ), ३.२८.८५ saavana/ savana


सावर्णि कूर्म १.२५.४१(सावर्णि द्वारा महादेव की आराधना से ग्रन्थकारत्व प्राप्ति का उल्लेख - इहाराध्य महादेवं सावर्णिस्तपतां वरः । लब्धवान् परमं योगं ग्रन्थकारत्वमुत्तमम् । ), गरुड १.८७.३१(सावर्णि मनु के पुत्रों के नाम), देवीभागवत ९.१५, १०.१०.३(सावर्णि मनु : पूर्व जन्म में सुरथ राजा - अष्टमो मनुराख्यातः सावर्णिः प्रथितः क्षितौ ।), १०.१३(करूष, पृषध्र, नाभाग, दिष्ट, शर्याति व त्रिशङ्कु का दक्ष सावर्णि, मेरु सावर्णि, सूर्य सावर्णि, इन्द्र सावर्णि, रुद्र सावर्णि, विष्णु सावर्णि मनु बनना), ब्रह्म १.४, ब्रह्मवैवर्त्त २.१३, ब्रह्माण्ड २.३.५९.४८(सूर्य व छाया - पुत्रद्वय श्रुतश्रवा - श्रुतकर्मा का सावर्णि मनु बनना - श्रुतश्रवा मनुस्ताभ्यां सावर्णिर्वै भविष्यति ॥ श्रुतकर्मा तु विज्ञेयो ग्रहो वै यः शनैश्चरः । मनुरेवाभवत्सोऽपि सावर्णिरिति चोच्यते ॥ ), ३.४.१.६५(सावर्णि मनु के पुत्रों के नाम), भविष्य १.१२५.२३(..तस्माच्च भवसावर्णिर्धर्मसावर्णिरित्युत ।। पञ्चमो दक्षसावर्णिः सावर्णिः पञ्च कीर्तिताः ।), मार्कण्डेय ७७, ८१, वायु ३४.६२(सावर्णि ऋषि द्वारा मेरु रूपी पद्म की कर्णिका को अष्टाश्रि मानना - अष्टाश्रिमेनं सावर्णिश्चतुरस्रन्तु भागुरिः ।।), ८३.५१(श्रुतश्रवा मनुः सोऽपि सावर्णिर्वै भविष्यति। श्रुतकर्म्मा तु विज्ञेयो ग्रहो वै यः शनैश्चरः ।। मनुरेवाभवत्सो वै सावर्ण्य इति बुध्यते।), १००.४२(सावर्णि मनु की दक्ष - कन्या सुव्रता से उत्पत्ति की कथा - दक्ष कन्या तवेयं वै जनयिष्यति सुव्रता। चतुरो वै मनून् पुत्रांश्चातुर्वर्ण्यकराञ्छुभान् ।।), १००.५३/२.३८.५३(४ सावर्णि मनुओं की ब्रह्मा, दक्ष, भव व धर्म से उत्पत्ति का वृत्तान्त - यस्मात् सवर्णास्तेषां वै ब्रह्मादीनां कुमारकाः ।। सवर्णा मनवस्तस्मात् सवर्णत्वं हि ते यतः।), स्कन्द ७.१.७४.७(सावर्णीश लिङ्ग : शाकल्येश्वर लिङ्ग का रूप - ततः सावर्णिमनुना सम्यगाराधितः प्रिये ॥ सावर्णिकेश्वरं नाम त्रेतायां तस्य संज्ञितम् ॥ ), लक्ष्मीनारायण ३.१५५.८८(योगनिद्रात्मिका चापि विष्णुक्षेत्रे प्रवर्तते । तपसा साध्यते माया मोक्षदात्री भवत्यपि ।।), द्र. दक्षसावर्णि, धर्मसावर्णि, नन्दसावर्णि, ब्रह्मसावर्णि, मेरुसावर्णि saavarni/ savarni


सावित्र पद्म १.४०(मरुतों में से एक का नाम), भागवत ३.१२.४२(ब्रह्मचारी की ४ वृत्तियों में से एक, द्र. टीका), मत्स्य १७१.५२, वायु २१.३१, विष्णुधर्मोत्तर ३.१८.१,हरिवंश ३.५३.६(मरुतों में पञ्चम, बाण से युद्ध), ३.५४, वा.रामायण ७.२७(अष्टम वसु, युद्ध में सुमाली राक्षस का वध ) saavitra/ savitra

सावित्री अग्नि १९४.४(ज्येष्ठ मास में सावित्री अमावास्या पूजा की विधि), गणेश १.७६.२(बुध - भार्या, वेश्यारत पति द्वारा हत्या, स्वर्ग प्राप्ति), २.३६.६(ब्रह्मा के यज्ञ में सावित्री को आहूत न करने पर सावित्री द्वारा देवों को जड होने का शाप), गरुड १.९४.११(प्रातःकाल गायत्री तथा सायंकाल सावित्री जप का निर्देश), १.९४.२४(सावित्री पतित की व्रात्य संज्ञा), ३.१६.८२(पुरुषसंज्ञक विरिञ्च-पत्नी), देवीभागवत ९.१.३८(५ प्रकृतियों में चतुर्थ सावित्री देवी का स्वरूप व महिमा), ९.२६(सावित्री पूजा व स्तुति विधान, पराशर द्वारा अश्वपति को कथन), ९.२७+ (सावित्री - सत्यवान् की कथा, यम से कर्म फल विषयक वार्तालाप), १२.६.१५०(गायत्री सहस्रनामों में से एक), नारद १.२७.४४(मध्याह्नसन्ध्या में शुक्लवसना सावित्री के आह्वान का निर्देश), १.८३.१०९(सावित्री की राधा से उत्पत्ति, स्वरूप व मन्त्र विधान ; १०८ नाम), १.८३.१२८(सावित्री पञ्जर स्तोत्र का कथन), पद्म १.१७(ब्रह्मा के यज्ञ में सावित्री द्वारा देवों को शाप का प्रसंग), १.१७.८१(ब्रह्मा के यज्ञ में विष्णु द्वारा सावित्री की स्तुति, तीर्थों में सावित्री के नाम), १.२२, १.३४.७५(सावित्री के ब्रह्मा के यज्ञ में आगमन का वृत्तान्त, गायत्री के ब्रह्मा के वामाङ्ग में तथा सावित्री के दक्षिणाङ्ग में स्थित होकर कार्य करने का उल्लेख), १.३४.७५(पुष्कर में गायत्री के ब्रह्म के वाम पार्श्व में तथा सावित्री? के दक्षिण पार्श्व में स्थित होने का उल्लेख), ३.२१, ६.१११(स्वरा नाम, ब्रह्मा के यज्ञ में शाप देने की कथा), ६.२२८(अष्ट दल कमल में कर्णिका का रूप), ब्रह्म २.३२(ब्रह्मा द्वारा स्वसुता का अनुगमन करने पर गायत्री, सावित्री आदि पांच सुताओं का नदीभूत होकर गङ्गा से सङ्गम), ब्रह्मवैवर्त्त १.४.२(कृष्ण की रसनाग्र से सावित्री की उत्पत्ति का कथन), १.८.१(सावित्री द्वारा ब्रह्मा के वीर्य को धारण कर शास्त्रों, रागों आदि को जन्म देने का कथन), २.७.१११ (सावित्री के विशिष्ट तपस्थान मलयपर्वत का उल्लेख), २.२३(सावित्री - सत्यवान् उपाख्यान), २.२५+ (सावित्री का यम से संवाद), ३.७.१०३(तेजोरूप कृष्ण की स्तुति में सावित्री के शब्द), ४.६.१४३(सावित्री का नाग्नजिती रूप में अवतरण), ४.४५( सावित्री द्वारा शिव विवाह में हास्य), ४.१०९(सावित्री द्वारा कृष्ण व रुक्मिणी विवाह में हास्य), भविष्य १४, ४.१०२(सावित्री व्रत व सावित्री - सत्यवान् की कथा), भागवत ६.१८.१(सविता व पृश्नि - पुत्री), मत्स्य ३.३०(सावित्री की ब्रह्मा से उत्पत्ति, शतरूपा आदि अन्य नाम, ब्रह्मा द्वारा सावित्री रूप के अवलोकनार्थ मुखों की सृष्टि, सरस्वती उपनाम), , २०८+ (सावित्री - सत्यवान् की कथा, यम से वार्तालाप, वर प्राप्ति), वराह २.६८(नारद द्वारा वेद रूपी शरीर धारी सावित्री के दर्शन), विष्णुधर्मोत्तर १.४१.९(ओंकार पुरुष, सावित्री प्रकृति), २.३६+ (सावित्री - सत्यवान् उपाख्यान), ३.६३, स्कन्द ३.१.४०.१(सरस्वती का सावित्री से तादात्म्य), ५.१.५६.१४(अनुसूर्या सावित्री : त्वष्टा - पुत्री, सूर्य - पत्नी संज्ञा का उपनाम, वडवा रूप में शिप्रा सङ्गम पर सूर्य से मिलन), ५.१.६६(सावित्री व्रत की महिमा), ५.२.५२.१०, ५.२.५८.१३(सावित्री कन्या के दर्शन से नारद द्वारा वेदों की विस्मृति का वृत्तान्त), ५.३.१३.४२(सावित्र – १४ कल्पों में से एक), ५.३.२८.१७(शिव के रथ में गायत्री व सावित्री द्वारा रश्मिबन्धन का कार्य करने का उल्लेख), ५.३.२००(त्रिकालसन्ध्या में गायत्री व सावित्री का स्वरूप, सावित्री तीर्थ का माहात्म्य), ६.१८१(ब्रह्मा के यज्ञ में सावित्री के न आने पर गोप कन्या रूपी गायत्री द्वारा यज्ञ का अनुष्ठान), ६.१८८, ६.१९१+ (सावित्री द्वारा ब्रह्मा के यज्ञ में आए देवों को शाप, गायत्री द्वारा उत्शाप), ६.१९२(सावित्री पूजा का माहात्म्य), ६.२५२.१०(चातुर्मास में तिलों में सावित्री की स्थिति का उल्लेख), ६.२७८, ७.१.१५१(सावित्री द्वारा भैरवेश्वर लिङ्ग की स्थापना), ७.१.१६५(ब्रह्मा के यज्ञ में गायत्री की प्रतिष्ठा पर सावित्री द्वारा देवों को शाप), ७.१.१६६(सावित्री व सत्यवान की कथा), लक्ष्मीनारायण १.२००, १.२६७, १.३०४, १.३१८.३५(सती व रुद्र की मानस पुत्री वम्री के वट सावित्री आदि बनने का कथन), १.३६४.३४, १.३६६, १.३८५.४७(सावित्री का कार्य : यज्ञोपवीत), १.४४१.८२(सावित्री का तिल गुल्म के रूप में अवतार), १.५०९.६९(सावित्री के गायत्री रूप में जन्म लेने का वृत्तान्त ), १.५१२, १.५२२, ४.६४, ४.७५, ४.१०१.९३, कथासरित् १४.१.२२(अङ्गिरा द्वारा अष्टावक्र – कन्या सावित्री को भार्या रूप में प्राप्त न कर पाने का कथन), वास्तुसूत्रोपनिषद ६.२१टीका(सावित्री मेधा रूपा, गायत्री ज्ञानरूपा, सरस्वती प्रज्ञारूपा), saavitree/ savitri


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साहस अग्नि २५८.२६(साहस अपराध पर दण्ड का विधान),

साहसिक गर्ग २.११.३४(बलि - पुत्र, कामासक्ति के कारण दुर्वासा के शाप से गर्दभासुर बनना), ब्रह्मवैवर्त्त ४.२३(बलि - पुत्र, तिलोत्तमा से संवाद, धेनुकासुर बनना ),कथासरित् ३.६.१९८, saahasika/ sahasika

सिंह अग्नि ७४.४५(शिव आसन के चार पादों में स्थित चार सिंहों का प्रतीक रूप), गणेश २.१.१७(कृतयुग में विनायक नामक गणेश का वाहन), २.१०.२९(रेणुका द्वारा महोत्कट गणेश को सिंह वाहन भेंट), गर्ग १०.२८.४५(बल्वल के मन्त्रियों में से एक), १०.३१.१(बल्वल - सेनानी, वृक से युद्ध), देवीभागवत ३.१४, पद्म १.४४.७९(वीरक को शाप के पश्चात् पार्वती के क्रोध से सिंह की उत्पत्ति, काली का वाहन बनना), ६.२०३(दिलीप द्वारा गौ सेवा के आख्यान में सिंह का गौ भक्षण को उद्धत होना, कुम्भोदर गण का रूप), ब्रह्मवैवर्त्त १.५, ब्रह्माण्ड २.३.७.४११(सिंह, व्याघ्र आदि की दंष्ट्रा से उत्पत्ति), भविष्य १.१३८.३९(दुर्गा की सिंह ध्वज का उल्लेख), २.२.२.३०(सिंह में दुर्गा के अवतरित होने का उल्लेख, व्याघ्र में त्रिपुरसुन्दरी व कालिका के), ४.१३८.८०(८ सिंहों की सन्निधि के कारण सिंहासन नाम), मत्स्य १४८.९५(सूर्य व चन्द्रमा के ध्वज पर हेमसिंह चिह्न का उल्लेख), १५७.४(पार्वती के क्रोध से सिंह की उत्पत्ति, काली का वाहन बनना), वामन ३६.२९(नृसिंह विष्णु की सिंहों में रति, शरभ रूप धारी शिव से युद्ध), वायु १०१.२९३/२.३९.२९३(सिंहों के महाभूत होने का उल्लेख), १०१.२९४/२.३९.२९४(देवी के क्रोध के सिंह बनने का कथन ; अग्निमय पाश द्वारा सिंह का बन्धन), १०१.३३३/२.३९.३३३(प्रलय काल में आदित्यों के सिंह व वैश्वानरों के व्याघ्र रूप भूत गण होने का कथन), विष्णुधर्मोत्तर ३.३८.१४(चन्द्रमा के सिंहध्वज होने का उल्लेख), शिव ७.१.२५(काली के वाहन सिंह को शिव भक्ति का वर), ७.१.२५.१०(अम्बिका की कृपा से बुभुक्षा से पीडित व्याघ्र की क्षुधा शान्त होना, व्याघ्र के देवी का भक्त बनने का कथन), ७.१.२६.२(गौरी द्वारा ब्रह्मा से स्वभक्त व्याघ्र के ऊपर कृपा करने का अनुरोध), ७.१.२७.२८(शिव द्वारा देवी के व्याघ्र को सोमनन्दी नामक गण बनाना), स्कन्द १.२.२९.३६(पार्वती के मुख से नि:सृत क्रोध का रूप, काली का वाहन बनना, पांचाल यक्ष का रूप), २.१.१३(कुबेर के मन्त्री का गौतम के शाप से सिंह बनना, ध्यानकाष्ठ मुनि से संवाद से मुक्ति), ३.१.४९.४३(क्रोध की सिंह रूप में कल्पना), ३.३.१७(पाञ्चालराज - पुत्र सिंहकेतु द्वारा शबर को लिङ्ग पूजा विधि का कथन, शबर की शिवभक्ति की पराकाष्ठा का वृत्तान्त), ४.१.४५.३४(सिंहमुखी : ६४ योगिनियों में से एक), ४.२.५७.९०(सिंह तुण्ड विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य – उपसर्ग गजों का हनन), ५.१.३७.१६(सिंहेश्वर लिङ्ग की उत्पत्ति व माहात्म्य – शिव के सिंहनाद से असुरों का मूर्च्छित होना), ५.१.५३.५२(सिंह द्वारा पिशाच का भक्षण करके अस्थियां सुन्दरकुण्ड में डालने से पिशाच का उद्धार), ५.२.५५.११ (सिंहेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, शिव के सिंहनाद से उत्पत्ति, पार्वती के क्रोध से उत्पन्न सिंह द्वारा पूजा, पार्वती का वाहन बनना), ५.२.५५.२८(क्रोध से उत्पन्न सिंह के देवी का प्रिय वाहन बनने का वृत्तान्त, देवी द्वारा सिंहिका रूप धारण, सिंहेश्वर का माहात्म्य), ५.३.२४.३५, ६.१२१(विकृतानन सिंह की वाहन रूप में प्राप्ति के पश्चात् देवी का विन्ध्य पर तप आदि), ७.२.६.१२५(कामासक्त क्रौञ्ची के वध से व्याध के सिंह बनने का कथन), हरिवंश २.१२६.८६, महाभारत कर्ण ७२.३८(कर्ण की खड्गजिह्व, धनुषमुख, शरदंष्ट्र वाले पुरुषशार्दूल से उपमा), सौप्तिक १०.१५ (वही), योगवासिष्ठ ६.१.२९.७६(अज्ञान गज को सिंह का भक्ष्य बनाने का निर्देश), वा.रामायण ३.३१.४६(राम की सिंह से उपमा), ४.४२.१६ (हेमगिरि पर पक्षयुक्त सिंहों व उनके नीडों का कथन), लक्ष्मीनारायण १.१७०, १.४३०, १.५१३, १.५४२, २.३४.७६(कृष्ण द्वारा ऋषियों के सिंह चर्म से जीवित सिंह उत्पन्न करना ), २.६१, २.१२१.९८(, २.१६३, २.२६२.१३, ३.९४.४, ३.२०९, ४.७४, कथासरित् १.६.९९(सात यक्ष के सिंह बनने की कथा), २.२.४१(श्रीदत्त द्वारा सिंह को जीतकर मृगाङ्क खड्ग प्राप्त करना), ४.२.१२५(चित्राङ्गद विद्याधर के सिंह बनने की कथा), ४.३.३२(सिंहपराक्रम द्वारा पात्र के प्रभाव से स्व तथा स्वपत्नी के पूर्व जन्म को जानना), ७.८.४७(सिंह द्वारा नरवाहनदत्त के हय का वध), ८.५.२४(सूर्यप्रभ – श्रुतशर्मा युद्ध में सिंहनाद दैत्य के वरुणशर्मा से युद्ध का उल्लेख), ९.५.२०३(विद्याधर द्वारा राजा के भक्षण को उद्धत सिंह का वध), १०.४.१८(पिङ्गलक सिंह, दमनक व करटक शृगाल व सञ्जीवक वृषभ की कथा), १०.४.९२(शश द्वारा सिंह को कूप में डालने की युक्ति की कथा), १०.४.१४५(मदोत्कट सिंह द्वारा करभ भक्षण की कथा), १०.७.१२५(गोमायु सचिव वाले सिंह द्वारा खर को भक्ष बनाने की कथा) , १०.९.५७(पिता के शाप से सिंह बने वज्रवेग के कूप से उद्धार की कथा), १०.१०.२९(सिंहाक्ष नामक राजा की भार्या द्वारा कृपणों की सेवा व उनके साथ रमण करने का वृत्तान्त), १२.२.२३(सिंह रूपी वेताल का पुरुष में रूपान्तरित होकर मृगाङ्कदत्त की भावी भार्या की सूचना देना), १२.३.१००, १२.५.१२४(वराह द्वारा क्षुधाग्रस्त सिंह परिवार को स्वमांस प्रस्तुत करने की कथा), १२.२९.४०(चार भ्राताओं द्वारा अस्थियों से सिंह को पुनर्जीवित करने पर सिंह द्वारा भ्राताओं के भक्षण की कथा), १२.३१.२५सिंहपराक्रम, १५.१.१३०, १८.३.१२, द्र. क्षत्रसिंह, देवसिंह, नरसिंह, नारसिंही, नृसिंह, नेत्रसिंह, भिल्लसिंह, लल्लसिंह, वरसिंह, हरिसिंह simha/ sinha/ singh/lion

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सिंहदंष्ट} कथासरित् ८.७.३६, ९.६.२२,

सिंहबल कथासरित् ८.५.१११, १०.२.१०८,

सिंहल गरुड १.६९.२३(शुक्ति आकर स्थान), गर्ग १०.१७, १०.१८, वामन ९०.३४(सिंहल द्वीप में विष्णु का उपेन्द्र नाम), स्कन्द १.१.७.३३(सिंहल में सिंहनाथ, विरूपाक्षआदि लिङ्गों की स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण २.२३२, कथासरित् ९.६.६२, ११.१.५१, १२.५.३१९, १२.१४.३२, १८.१.८७, simhala/sinhala/ singhala

सिंहविक्रम कथासरित् १०.३.११७, १२.५.३१९,

सिंहस्थ वराह ७१.४७(गुरु के सिंहस्थ होने पर गोदावरी में स्नान )

सिंहासन भविष्य ४.१३८.८४(सिंहासन मन्त्र), लक्ष्मीनारायण १.११८(हरि सिंहासन , २.१०.५८,

सिंहिका गरुड १.६.४८(विप्रचित्ति - भार्या, पुत्रों के नाम), पद्म १.७, ब्रह्माण्ड २.६, ३.६, भविष्य ३.४.२३.१११(आभीरी - तनया, सिंह मांसाशना, राहु - माता), भागवत६.१८(हिरण्यकशिपु व कयाधु - पुत्री, विप्रचित्ति - भार्या, राहु - माता), मत्स्य ६.२६(हिरण्यकशिपु- भगिनी, विप्रचित्ति - भार्या, पुत्रों के नाम), १७१, वायु ६८.१७(सिंहिका - पुत्रों के नाम), विष्णु १.१५.१४०, १.२१.१०(सिंहिका - पुत्रों के नाम), विष्णुधर्मोत्तर १.१२८, स्कन्द ५.२.५५(स्व - पुत्र रूपी सिंह दर्शन के लिए पार्वती द्वारा धारित रूप),५.३.१९८.८२, हरिवंश १.३.९८(विप्रचित्ति - भार्या, पुत्रों के नाम), वा.रामायण ५.१.१९०(छाया ग्राही जीव, समुद्र लङ्घन के समय हनुमान की छाया पकडना, हनुमानद्वारा वध ), लक्ष्मीनारायण २.१०, द्र. वंश दिति simhikaa/ sinhikaa

सिंहिनी भविष्य ३.३.७,

सिकता स्कन्द ५.२.४१, ६.१७७.५२(५ बालुका पिण्डों से गौरी पूजा का वृत्तान्त ), कथासरित् ७.६.१३, sikataa

सित अग्नि ११५.५७(प्रेतों में सित के जनक, रक्त के पितामह तथा कृष्ण के प्रपितामह होने का उल्लेख), नारद २.४४.२६(विशाल राजा के पिता सित, असित आदि की गयामें पिण्ड दान से मुक्ति), मत्स्य १३.९(सित द्वारा मेना व हिमवान - पुत्री एकपर्णा की पत्नी रूप में प्राप्ति का उल्लेख), वराह ७(विशाल राजा का पिता, पिण्डदान द्वारा नरकसे मुक्ति), वायु २३.२२(सित कल्प का वर्णन ) sita

सिता नारद १.६६.१३१(प्रमोद गणेश की शक्ति सिता का उल्लेख), लक्ष्मीनारायण २.२६२.७०(सीता का सिता नाम से उल्लेख ) sitaa


सिद्ध अग्नि १४४.१०(१६ सिद्धों के नाम), नारद १.६६.१११(पञ्चान्तक की शक्ति सिद्धगौरी का उल्लेख), २.५२.१५(सिद्धों में कपिल की श्रेष्ठता का उल्लेख), २.६९.(सिद्धनाथ : मत्स्येन्द्रनाथ का उपनाम, चरित्र का वर्णन), पद्म २.२१.३५(सिद्धेश्वर का माहात्म्य), ६.१५९(सिद्धेश्वर का माहात्म्य, कोटराक्षी देवी की स्थिति), ६.१८६.४०(सिद्धसमाधि ब्राह्मण द्वारा गीता के १२वें अध्याय के प्रभाव से राजा बृहद्रथ को जीवित करना, चोरी गए यज्ञीय अश्व को प्राप्त करना), ६.१९६.२८(सिद्ध द्वारा आत्मदेव को पुत्र प्राप्ति हेतु फल प्रदान की कथा), ब्रह्म २.७३(सिद्धतीर्थ वर्णन, रावण द्वारा मन्त्र प्रभाव से सिद्धि प्राप्ति), ब्रह्माण्ड १.२.१७.३५(नील पर्वत पर सिद्धों - ब्रह्मर्षियों के वास का उल्लेख), भागवत ७.८.४५(सिद्धों द्वारा नृसिंह की स्तुति), मार्कण्डेय ७४.३८(सिद्धवीर्य के पुत्र लोल का प्रसंग), स्कन्द १.२.३२?, १.२.३६.१९(पाताल गङ्गा से निर्मित सिद्ध कूप, प्रलम्ब वध की कथा), १.२.५९(चण्डिल द्वारा सिद्धमाता के प्रसाद से सिद्धि प्राप्ति), ४.२.५७.६६(सिद्ध विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.७०.५६(सिद्ध लक्ष्मी देवी का संक्षिप्त माहात्म्य), ४.२.९७.१६३(सिद्ध कूप का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.२.५९(५९वें सिद्धेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, अश्वशिरा द्वारा जैगीषव्य व कपिल मुनियों की सिद्धियों का दर्शन, सिद्धेश्वर लिङ्ग की पूजा), ५.३.१३५(सिद्धेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१४७(सिद्धेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१६५(सिद्धेश्वर तीर्थ का माहात्म्य), ५.३.१९८.८३(सिद्धवट में देवी के लक्ष्मी नाम का उल्लेख), ५.३.२३१.१२(७ सिद्धेश्वर होने का उल्लेख), ६.२९(सिद्धेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, वत्स ऋषि को सर्प द्वारा बोध की कथा), ६.३०(सिद्धेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, सिद्धाधिप हंस को पुत्र प्राप्ति), ६.२५२.२२(चातुर्मास में सिद्धों की कङ्कोल वृक्ष में स्थिति का उल्लेख), ६.२६७(सिद्धेश्वर का माहात्म्य, तुलापुरुष दान का माहात्म्य), ७.१.५२(सिद्धेश्वर का माहात्म्य), ७.१.१३२.२(पीठाधिदेवता सिद्धलक्ष्मी का उल्लेख), ७.१.१७६(सिद्धेश्वर का माहात्म्य), ७.१.२६०(सिद्ध सुरों द्वारा स्थापित सिद्धेश्वर का माहात्म्य), ७.१.३०१(सिद्धेश्वर का माहात्म्य), ७.१.३४४(सिद्ध उदक तीर्थ, जरद्गवेश्वर तीर्थ का कृतयुग में नाम), ७.३.१४(सिद्धेश्वर का माहात्म्य, विश्वावसु द्वारा स्थापना), ७.३.४३(सिद्धेश्वर का माहात्म्य), ७.४.१५(सिद्धेश्वर का माहात्म्य), योगवासिष्ठ ५.८सिद्धगीता, लक्ष्मीनारायण २.१७६.३८(ज्योतिष में योग ), कथासरित् ७.२.११४सिद्धवास, siddha

सिद्धसेन स्कन्द १.२.६३(सुह्रदय का उपनाम), १.२.६४(सिद्धसेन का भीम से युद्ध, शान्ति, चण्डिल नाम प्राप्ति), ६.२०९+ (आनर्त अधिपति, कुष्ठ प्राप्ति पर राज्य सेच्युति, नारद द्वारा शङ्ख तीर्थ के माहात्म्य का कथन, ताम्बूल भक्षण से लक्ष्मी का नष्ट होना ) siddhasena