स-सङ्गत

Puraanic contexts of words like Samjnaa/Sanjnaa/Sangya, Samvatsara/year, Samvarta, Sansaara/Samsaara, Samskaara/Sanskaara, Sagara, Samkarshana/Sankarshana, Samkraanti/Sankraanti etc. are given here.

स लक्ष्मीनारायण ३.१७४.८३

संज्ञा अग्नि २७३, पद्म १.८, ब्रह्म १.४, १.३०, ब्रह्मवैवर्त्त ४.६.१४५(संज्ञा का रत्नमाला रूप में अंशावतरण), ४.४५(शिव विवाह में संज्ञा द्वारा हास्य), भविष्य१.४७(रूपा उपनाम, संज्ञा - छाया - सूर्य आख्यान), ३.४.१८(विश्वकर्मा व चित्ता से संज्ञा की उत्पत्ति का प्रसंग, स्वयंवर में देवों व असुरों का आगमन, परस्पर युद्ध,विवस्वान् द्वारा संज्ञा की प्राप्ति), मत्स्य ११(त्वष्टा - पुत्री, सूर्य - पत्नी, अन्य सपत्नों के नाम, संज्ञा - छाया कथा), मार्कण्डेय ७७(संज्ञा - छाया - सूर्य आख्यान), १०६(संज्ञा - सूर्य - छाया आख्यान), वायु ८४.३२(संज्ञा - सूर्य - छाया कथा), विष्णुधर्मोत्तर १.१०६, शिव ५.३५(संज्ञा - सूर्य - छाया आख्यान, अश्विनौ का जन्म), स्कन्द५.१.५६.१४(संज्ञा का अनुसूर्या सावित्री नाम, छाया - सूर्य - संज्ञा की कथा), ७.१.११(संज्ञा के राज्ञी, द्यौ, त्वाष्टी, प्रभा, सुरेणु आदि अन्य नाम), हरिवंश १.९(सूर्य - भार्या, उपनाम सुरेणु), १.९(संज्ञा - छाया - सूर्य आख्यान ), लक्ष्मीनारायण १.६१, १.३१०, sanjnaa/samjnaa/ sangya

संन्यास लक्ष्मीनारायण २.७८.७९(श्वेताश्वतर ऋषि द्वारा शिष्य सुशील को कथित वैष्णव संन्यास विधि का वर्णन ), द्र. सन्न्यासsanyaasa/samnyaasa/ sanyasa

संयतक कथासरित् १७.३.९५,

संयद्वसु कूर्म १.४३.७(सूर्य रश्मि संयद्वसु द्वारा मङ्गल ग्रह का पोषण ) samyadvasu

संयम ब्रह्माण्ड ३.४.३.२४(तत्त्वों के कारण सहित संयम ) samyama/ sanyama

संयमन वराह ५, १५३, लक्ष्मीनारायण १.५२५,

संयमिनी भविष्य ३.३.६.७(जयचन्द व सुरभानवी - कन्या, स्वयंवर में पृथ्वीराज की मूर्ति का वरण), वराह २१२, विष्णु २.८.९,

संवत्सर अग्नि १३९(६० संवत्सरों में से प्रमुखों के नाम व गुण), २१८.३(राजा द्वारा संवत्सर रूप पुरोहित के वरण का निर्देश), गर्ग ७.३१.३५(केतुमाल के अधिपति व्यतिसंवत्सर द्वारा प्रद्युम्न को भेंट), ब्रह्माण्ड १.२.२३.१०४(संवत्सर के शिशुमार के शिश्न का रूप होने का उल्लेख), भागवत ४.२९.२१(चण्डवेग गन्धर्व का रूप),५.१८(संवत्सर प्रजापति द्वारा काम की उपासना), ११.१६.२७(विष्णु के अनिमिषों में संवत्सर होने का उल्लेख), योगवासिष्ठ ३.९१.४३(संवत्सर का संवित्सार सेतादात्म्य?), वराह ६७(संवत्सर के अवयव, आश्चर्य का वर्णन, संवत्सर के ६ शिर, द्विदेह आदि होने का कथन), वायु ३१.३०(संवत्सर के वत्सर आदि विभाग व वर्णन),५६.२०, विष्णु २.१२.३३, विष्णुधर्मोत्तर २.१६२, ३.१५३(संवत्सर पूजा), स्कन्द ५.२.५४.३९, लन २.१८.४०(संवत्सर पितर - कन्याओं द्वारा श्रीकृष्ण को पक्वान्नभेंट ), द्र. व्यति samvatsara

संवरण भविष्य ३.१.२, ४.१४२(संवरण राजा द्वारा उत्पात शान्ति हेतु सनक से कोटि होम विधान का श्रवण), मत्स्य ५०, वराह ३६, वामन २१(ऋक्ष - पुत्र, तपती से विवाह), लक्ष्मीनारायण २.३०.६५, samvarana

संवर्त कूर्म २.११.१२६(संवर्त द्वारा सनत्कुमार से ज्ञान प्राप्ति), ब्रह्म २.१३, मत्स्य २(प्रलयकारक मेघ), वराह ४१(संवर्त - पुत्रों द्वारा मृग - हत्या, पुत्रों को मृग रूप धारणका आदेश), वायु ४७.७६(, स्कन्द १.२.१३(वाराणसी में संवर्त के परिज्ञान की विधि, संवर्त द्वारा नाडीजङ्घ आदि को महीसागर सङ्गम माहात्म्य का कथन),५.२.२८.४, ५.२.७४.२८, ६.९(संवर्त वायु द्वारा इन्द्र के आदेश से हाटक में नाग बिल भरण की चेष्टा, शिव द्वारा गन्धवाह होने का शाप), ६.२७१.४००( संवर्त का इन्द्रद्युम्न सहित दीर्घजीवियों से संवाद), ७.१.३६४(संवर्तेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य), वा.रामायण ७.१८(मरुत्त के यज्ञ के आचार्य, यज्ञ में रावण का आगमन),७.१०१.७(भरत द्वारा गन्धर्वों के विनाश के लिए प्रयुक्त अस्त्र ), लक्ष्मीनारायण ३.११३.१०५, samvarta

संवर्तक ब्रह्माण्ड १.२.१२.३५(संवर्तक अग्नि : मन्युमान् - पुत्र, वडवा रूप में समुद्र के जल का पान), मत्स्य ५१.३०(मन्युमान् अग्नि - पुत्र, वडवामुख द्वारा निरन्तरसमुद्र के जल का पान, सहरक्ष - पिता), १२१.७७(संवर्तक अग्नि के वास स्थान का कथन), विष्णु ६.३.३०(प्रलयकालिक संवर्तक मेघ के स्वरूप का कथन ), शिव ५.१,५.३.२८, हरिवंश २.१८, samvartaka

संविद नारद १.८८.१६८(संवित् : राधा की ११वीं कला, स्वरूप), लिङ्ग १.७०.२४(संविद की निरुक्ति), वायु ४.४०/१.४.३८(संविद शब्द की निरुक्ति ) samvida

संसार गरुड १.२१७(संसार चक्र का वर्णन), पद्म १.१९.२५१, २.२२(वन रूपी संसार), ५८७, भविष्य ४.४(संसार के दुःखों का वर्णन), भागवत १०.२.२७(संसार की वृक्षरूप से उपमा), ११.१२.२१(वृक्ष रूपी संसार), योगवासिष्ठ ३.४०.५१(संसार रूपी वन का वर्णन), ४.११, ४.५३(संसार नगर), ५.७१, ५.७६(संसार सागर), ६२३६,६.२.१५९(भ्रम संसार ), महाभारत शान्ति २५०, लक्ष्मीनारायण ३.१६६संसारविष, ३.१७५.२संसार सागर, samsaara/ sansar

संसृति योगवासिष्ठ ३.६६(परम योग संसृति), ६.१.६६(भिक्षु संसृति), ६.२.१८७(जीव संसृति ) samsriti

संस्कार अग्नि ३२(निर्वाण आदि दीक्षाओं में ४८ संस्कारों के नाम), ८२.९(गर्भाधान, पुंसवन व सीमन्तोन्नयन आदि संस्कारों का दीक्षा में अर्थ), १२१.१०(पुंसवन,अन्नप्राशन हेतु नक्षत्र विचार), १५३(गर्भ हेतु संस्कार का वर्णन), १६६.९(ब्रह्मलोक प्राप्ति हेतु ४८ संस्कारों के नाम), देवीभागवत १.१८.२१(मनुष्य के ४८ संस्कारों काकथन), नारद १.२५(चतुर्वर्ण हेतु गर्भाधान, उपनयन आदि संस्कारों के काल), १.५६.३१८(गर्भाधान व परवर्ती संस्कारों हेतु ज्योतिष काल का विचार), ब्रह्मवैवर्त्त४.१३(कृष्ण का अन्नप्राशन संस्कार), ४.९९+ (कृष्ण  का उपनयन संस्कार), भविष्य १.२+ (जन्म संस्कार, ब्राह्मण संस्कार, संस्कारों के नाम), १.३(गर्भ संस्कार),१.४(उपनयन संस्कार), १.४२, १.१८२(गर्भ संस्कार, जातक संस्कार), ४.५२(मृत वत्सा से जीववत्सा बनने हेतु संस्कार), भागवत १०.४५.२६(कृष्ण व बलराम काद्विज संस्कार), विष्णु ३.१०(जातकर्म, नामकरण, विवाह आदि संस्कारों की विधि), विष्णुधर्मोत्तर २.५२(बालक के संस्कार), २.८५(बालक के संस्कार), ३.११९.४(सर्वसंस्कारों में दत्तात्रेय की पूजा), स्कन्द ५.३.२०.५०, लक्ष्मीनारायण १.३५,२.९+, २.२४(चौल संस्कार), २.२६(यज्ञोपवीत संस्कार), २.६५(यज्ञोपवीत संस्कार ),३.१२६.२४, samskaara/ sanskara

संस्था भागवत १२.७.१७(प्रलय के ४ भेदों नैमित्तिक आदि की संस्था संज्ञा )

संहार देवीभागवत ९.२२(शङ्खचूड - सेनानी, यम से युद्ध), पद्म २.२३, ब्रह्माण्ड ४.३.४, ३.४.२४.४०(संहारगुप्त : गृध्र, बलाहक असुर का वाहन), स्कन्द ५.३.१४+(कालरात्रि द्वारा संहार), ५.३.२०(संहार काल में चिह्न लक्षण ), महाभारत शान्ति ३१२, द्र. प्रलय samhaara/ sanhar

संह्राद पद्म ६.६.९१(जालन्धर - सेनानी, जयन्त से युद्ध ), भागवत ६.१८, शिव ५.३२.३८, वा.रामायण ७.५संह्रादि, samhraada

सकल अग्नि २१४.२९(देहस्थ अमृत के सकल और देहवर्जित के निष्कल होने का उल्लेख ), स्कन्द ५.१.६.६ sakala

सक्तु स्कन्द ७.३.३९(अचलेश्वर लिङ्ग को सक्तु का दान व भक्षण, सारमेय का सक्तु भक्षण से दमयन्ती - पिता भीम बनना ) saktu

सखा भागवत ११.२३.४५, महाभारत वन ३१३.७१, द्र. देवसखा, धर्मसख, शक्रसख, शुन:सख

सगर देवीभागवत ९.११, नारद १.८(बाहु - पुत्र, और्व मुनि द्वारा पालन, शत्रुओं का विनाश, केशिनी व सुमति पत्नियों से पुत्रों की प्राप्ति, पुत्रों के विनाश की कथा), पद्म १.८,६.२०(गर - पुत्र), ब्रह्म १.६(अश्वमेध यज्ञ में सगर के षष्टि सहस्र पुत्रों की कपिल के कोप से मृत्यु), २.८(सगर के अश्वमेध के अश्व का हरण, षष्टि सहस्र पुत्रों का कपिलद्वारा भस्म होना), ब्रह्मवैवर्त्त २.१०, ब्रह्माण्ड २.३.४७, २.३.४८+ (अन्तर्वत्नी व बाहु - पुत्र, अयोध्या से तालजङ्घ आदियों का निष्कासन, केशिनी से विवाह, पुत्र प्राप्तिहेतु और्व आश्रम में गमन, अश्वमेध का अनुष्ठान आदि), २.३.६३.१४७(सगर के षष्टि सहस्र पुत्रों का कपिल के तेज से भस्म होना, चार अवशिष्ट पुत्रों के नाम), भागवत९.८(सगर की बाहु से उत्पत्ति, अश्वमेध में कपिल द्वारा पुत्रों के भस्म होने का वृत्तान्त), वायु ८७.१५३, ८८.१३३(बाहु - पुत्र, और्व मुनि के आश्रय में पालन, कपिल द्वारा पुत्रोंको नष्ट करनेv की कथा), विष्णु ३.८.२०(सगर द्वारा और्व मुनि से विष्णु की आराधना विधि विषयक पृच्छा), ४.३.३६(सगर चरित्र : और्व आश्रम में जन्म, शत्रुओं कानिग्रह, अश्वमेध का अनुष्ठान), विष्णुधर्मोत्तर १.१८(सगर के अश्वमेध का प्रसंग), शिव ५.३८(सगर का जन्म व चरित्र), स्कन्द १.२.१३.१६८(शतरुद्रिय प्रसंग में सगरद्वारा वंशांकुर लिङ्ग की पूजा), ४.२.८३.६४(सगर तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य), ५.३.१७५, ७.१.१२८(मृत पुत्रों के कल्याणार्थ सगर द्वारा तप, सगर के पुत्रों से सागर कीउत्पत्ति, सागरादित्य की स्थापना), हरिवंश १.१४(बाहु - पुत्र, उत्पत्ति का प्रसंग, चरित्र), वा.रामायण १.३८(केशिनी व सुमति - पति, तप, भृगु से वर प्राप्ति, अश्वमेध केअनुष्ठान की कथा), २.११०.१८(असित व कालिन्दी - पुत्र, च्यवन की कृपा से जन्म), लक्ष्मीनारायण ४.२९.२(सगर जाति की विप्र कन्या कुथली का वृत्तान्त ) sagara

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सङ्का भागवत ६.६, कथासरित् १०.४.१६८

सङ्कर महाभारत शान्ति २१४.२४(शुक्र गति के भूतसंकरकारिका होने का उल्लेख )

सङ्कर्षण गर्ग ८.१०.१६(सङ्कर्षण मन्त्र पटल का कथन), देवीभागवत ८.८(इलावृत वर्ष में रुद्र द्वारा संकर्षण की आराधना), नारद १.६६.८९(सङ्कर्षण की शक्तिसरस्वती का उल्लेख), भविष्य ३.४.११.३, भागवत ५.१७(शङ्कर द्वारा चतुर्व्यूह के अङ्ग संकर्षण की स्तुति), ५.१७.१५(इलावृत वर्ष में भगवान् संकर्षण देव कीआराधना), ५.२५(सङ्कर्ष की निरुक्ति, पाताल के नीचे निवास, महिमा, नारद द्वारा स्तुति), ६.१६, १०.२(योगमाया द्वारा देवकी के गर्भ की रोहिणी के गर्भ में स्थापना),वराह १६४, विष्णु ४.१५.२९, विष्णुधर्मोत्तर १.२३७.४(सङ्कर्षण से श्रोत्र की रक्षा की प्रार्थना), ३.१०२.१३(सङ्कर्षण आवाहन मन्त्र), ३.११९.७(सङ्कर्षण की कृषि कर्मके आरम्भ में पूजा), स्कन्द ४.२.६१.२१८(सङ्कर्षण की मूर्ति के लक्षण), ५.३.१०१(सङ्कर्षण तीर्थ का माहात्म्य, बलभद्र द्वारा लिङ्ग की स्थापना), लक्ष्मीनारायण१.२६५.११(सङ्कर्षण की शक्ति सुनन्दा का उल्लेख ), २.२, २.५.७७(हिरण्यकूर्च असुर से संकर्षण का युद्ध, असुर की धातुओं से पूय, रक्त आदि की उत्पत्ति, संकर्षणद्वारा निवास स्थान प्रदान), २.१०७.६९(संकर्षण का कालप्रालेय दैत्य से युद्ध), २.२४१, २.२९३.१०५(सती विवाह में संकर्षण द्वारा मुकुट भेंट का उल्लेख),४.१०१.९४(विरजा व कृष्ण - पुत्र, अजेश्वरी - भ्राता), samkarshana /sankarshana


सङ्कल्प भविष्य २.२.१७.४२(शुक्तिकांस्यादिहस्तैश्च ताम्ररौप्यादिभिस्तथा।। संकल्पो नैव कर्तव्यो मृन्मये च कदाचन ।। ), विष्णुधर्मोत्तर ३.२८६(सङ्कल्प का निर्वचन - संकल्पमूलः कामो वै ज्ञानं संकल्पबन्धनम् ।।संकल्पबन्धना वेदा धर्मः सङ्कल्पबन्धनः ।।), शिव २.१.१६.६ (ब्रह्मा द्वारा संकल्प से धर्म के सृजन का उल्लेख - संकल्पादसृजं धर्मं सर्वसाधनसाधनम् ।।), ५.३१.२३(संकल्पायास्तु सत्यात्मा जज्ञे संकल्प एव हि।। ), ६.६.१३(ब्रह्म  उद्यान का रूप - संकल्पवृक्षोद्यानं च गृहं मणिमयं ततः।। रक्तपीठं च संपूज्य पादेषु प्रागुपक्रमात् ।।), महाभारत शान्ति २३३.१५(प्रलयकाल में संकल्प द्वारा मन सहित चन्द्रमा को तथा संकल्प द्वारा चित्त को ग्रसने का उल्लेख - तं तु कालेन महता संकल्पं कुरुते वशे। चित्तं ग्रसति संकल्पस्तच्च ज्ञानमनुत्तमम्।।), योगवासिष्ठ ३.३.२०(ब्रह्मा संकल्पपुरुषः पृथ्व्यादिरहिताकृतिः । केवलं चित्तमात्रात्मा कारणं त्रिजगत्स्थितेः ।। ), ३.४५(ये सत्यकामाः सन्त्येवं संकल्पा ब्रह्मरूपिणः । त्वादृशाः सर्वमेवाशु तेषां सिद्ध्यत्यभीप्सितम् ।।), ३.११०.५४(यथा क्षिप्रं प्रति नरः स्वसंकल्पात्तथा मनः ।। संकल्पतः प्रम्रियते संकल्पाज्जायते पुनः ।), ३.११०.५६ (मनो मननसंमूढमूढवासनमाततम् । संकल्पाद्योनिमायाति सुखदुःखे भयाभये ।।)  ३.११४.२४(सङ्कल्प के परम बन्धु होने का उल्लेख - नाहं ब्रह्मेति संकल्पात्सुदृढाद्बध्यते मनः ।सर्वं ब्रह्मेति संकल्पात्सुदृढान्मुच्यते मनः ।। ), ४.५४(सङ्कल्प चिकित्सा - भावयन्ती चितिश्चेत्यं व्यतिरिक्तमिवात्मनः । संकल्पतामुपायाति बीजमङ्कुरतामिव ।।), ६.१.३३.२९(सङ्कल्प त्याग पर सङ्कल्प से उत्पन्न दुःखों के नाश का वर्णन - न करोमीति संकल्पात्पुरुषस्येव कर्तृता ।। द्वित्वसंकल्पतो द्वित्वमेकस्यैव प्रवर्तते ।), ६.१.८०.७५(आकाश वृक्षों के बीज सङ्कल्प का कथन - एषामेकोऽभिसंकल्पः परमाणुर्महीपते । बीजमाकाशवृक्षाणां सर्गाणां तेष्विमानि तु ।।),  ६.२.१२(सर्ग एक्य - ख एव व्योम संपन्नमिति संकल्पनं यथा । भ्रान्तिमात्रमसद्रूपं तथाहंभावभावनम् ।।), ६.२.५०.१६(संकल्प एव जाग्रत्त्वं येषां चिरतयांशतः । तत्रास्तमितचेष्टानां ते हि संकल्पजागराः ।।), ६.२.६८.१५(ब्राह्मं वपुर्हि भूतानामात्मीयं यत्पुरातनम् ।तदेवाद्य मनोराज्यं संकल्प इति कथ्यते ।। ),  लक्ष्मीनारायण  १.३२३.४९(काम का नाम? - कामः संकल्प इत्युक्तो धर्मपुण्यप्रभाववान् । संकल्पस्य सुतो जातो व्यवसायाऽभिधानकः ।।), ४.१०१.५(सङ्कल्प द्वारा सृष्टि का वर्णन ; सत्ययुग में सङ्कल्प द्वारा सृष्टि, सङ्कल्प द्वारा प्रस्तुत सृष्टि की श्रेष्ठता का वर्णन - सृष्टिः संकल्पजा श्रेष्ठा धामेश्वरादिलोकगा ।सृष्टिर्दर्शनजा चान्या देवपित्रादिलोकगा ।। ) samkalpa/ sankalpa

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सङ्कील ब्रह्माण्ड १.२.३२.१२१(३ वैश्य मन्त्रकर्ताओं में से एक )

सङ्केत वराह १६०.४५(मथुरा में सङ्केतकेश्वरी देवी के माहात्म्य का कथन ) samketa/ sanketa

सङ्क्रन्दन मार्कण्डेय १३२

सङ्क्रम वामन ५७,

सङ्क्रान्ति अग्नि १२१.६६(वार अनुसार सङ्क्रान्ति के ७ भेद, करण अनुसार शुभाशुभ फल- ध्वाङ्क्षी महोदरी घोरा मन्दा मन्दाकिनी द्विजाः । राक्षसी च क्रमेणार्कात्सङ्क्रान्तिर्नामभिः स्मृता ॥..), १९९.६(सङ्क्रान्ति को जागरण का संक्षिप्त महत्त्व - सङ्क्रान्तौ स्वर्गलोकी स्याद्रात्रिजागरणान्नरः ॥अमावास्यां तु सङ्क्रान्तौ शिवार्कयजनात्तथा । ), २०९.४(सूर्य सङ्क्रान्ति में दान की पूर्त संज्ञा-ग्रहोपरागे यद्दानं सूर्यसङ्क्रमणेषु च ।द्वादश्यादौ च यद्दानं पूर्तं तदपि नाकदं ॥), २१४.१८(योग में सङ्क्रान्ति के अर्थ का कथन-सङ्क्रान्तिः पुनरस्यैव स्वस्थानात्स्थानयोगतः ।), देवीभागवत ९.३८.८५(आषाढ सङ्क्रान्ति को मनसा देवी की पूजा का निर्देश- तथा चाषाढसङ्‌क्रान्त्यां मनसां सर्वसिद्धिदाम् ॥), नारद १.२९.१९(सङ्क्रान्ति में पुण्य काल का निर्णय-पूर्वतो घटिकास्त्रिंशत्पुण्यकालं विदुर्बुधाः ।।वृषभे वृश्चिके चैव सिंहे कुम्भे तथैव च ।।), १.५६.२५०(वार अनुसार सङ्क्रान्तियों के नाम व फल, दिवस काल अनुसार फल, करण अनुसार सूर्य के वाहन व हविष्य - घोराष्टाक्षीमहोदर्यो मन्दा मंदाकिनी तथा ।मिश्रा राक्षसिका सूर्यवारादिषु यथाक्रमम्।), २.६३.७(मकर सङ्क्रान्ति - पृथिव्यां यानि तीर्थानि पुर्यः पुण्यास्तथा सति ।। स्नातुमायांति ता वेण्यां माघे मकरभास्करे ।। ), पद्म १.७७.४३(सङ्क्रान्तियों के भेद, नाम, माहात्म्य - धनुर्मिथुनमीनेषु कन्यायां षडशीतयः। वृषवृश्चिककुंभेषु सिंहे विष्णुपदी स्मृता।..), ब्रह्मवैवर्त्त ४.७६.३५(उत्तरायण सङ्क्रान्ति में प्रयाग में स्नान का निर्देश - उत्तरायणसंक्रान्त्यां प्रयागे स्नानमाचरेत् ।संपूज्य नत्वा मामेव करोति जन्मखण्डनम् ।।), भविष्य ४.११६(सङ्क्रान्ति का उद्यापन - विषुवे अयने वापि संक्रातिव्रतमारभेत् ।। पूर्वेद्युरेकभक्तेन दंतधावनपूर्वकम् ।।..), मत्स्य ९८(सङ्क्रान्ति उद्यापन विधि, अष्टदल कमल पर आदित्य पूजा - रविसंक्रमणे भूमौ चन्दनेनाष्टपत्रकम्। पद्मं सकर्णिकं कुर्यात् तस्मिन्नावाहयेद्रविम्।। ), विष्णुधर्मोत्तर ३.१९९(देव पूजा- मेषसंक्रमणे भानोः सोपवासो नरोत्तमः ।। पूजयेद्भार्गवं रामं देवं शक्त्या यथाविधि ।।.. ), ३.३१९.(सङ्क्रान्ति को दान- मेषसंक्रमणे भानोर्मेषदानं महाफलम् ।। वृषसंक्रमणे दानं गवां प्रोक्तं तथैव च।।..), स्कन्द १.२.७.४८( चापल्याद्वालभावाच्चापहृत्य निहितं मया॥ घृतस्य कुंभे संक्रांतौ मकरस्योत्तरायणे॥), १.२.७.५८(अद्यप्रभृति संक्रांतौ मकरस्यापरोपि यः॥ घृतेन पूजां कर्तासौ भावी मम गणः स्फुटम्॥), २.२.३६(कर्क सङ्क्रान्ति, दक्षिणायन में करणीय कृत्य - आषाढीमवधिं कृत्वा हरेः स्वापस्तु कर्कटे ।।), २.२.४२(मकर सङ्क्रान्ति, उत्तरायण उत्सव - मृगराशिं संक्रमति यदा भास्वान्द्विजोत्तमाः ।। उत्तराशां जिगमिषुस्तदा स्यादुत्तरायणम् ।।), ४.१.२१.३९(सङ्क्रान्ति की पर्वों में श्रेष्ठता का उल्लेख - पुष्योसि नक्षत्रगणे संक्रमः सर्वपर्वसु ।।), ५.३.१५३.८(सङ्क्रान्ति को दान का आपेक्षिक फल), ६.२७१.६५(मकर सङ्क्रान्ति को बक के शिव गण बनने की कथा - संप्राप्यातीव चापल्याल्लिंगं जागेश्वरं मया॥ घृतकुम्भे परिक्षिप्तं पूजितं जनकेन यत्॥..), योगवासिष्ठ ६.१.८१.११८(शरीर में सूर्य - सोम - अग्नि की सङ्क्रान्ति जानने का निर्देश - संक्रान्तिमुत्तरमथायनमङ्ग सम्यक्कालं तथा विषुवतौ यदि देहवातैः । अन्तर्बहिष्ठमिव वेत्सि यथानुभूतं तच्छोभसेऽत्र न पुनः परमभ्युपेतः ।।) samkraanti/ sankranti

ज्योतिषे संक्रान्तिः


Datewise description of malamaasa according to Lakshminarayana Samhita

पुरुषोत्तम मास का तिथि अनुसार वर्णन

सङ्ख्यामान ब्रह्माण्ड ४.२.९१, वायु १०१.९३, महाभारत विराट १०.११(गायों की संख्या में सहदेव/तन्तिपाल की विशेषता ) samkhyaa/ sankhyaa

सङ्गत कथासरित् २.२.२