कुमार विश्वास कविता Kumar Vishwas Kavita Hindi
कुमार विश्वास कविता कविताएं Kumar Vishwas Kavitaen
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण हैकुमार विश्वास कविता
मन तुम्हारा हो गयाकुमार विश्वास कविता
मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक कुमार विश्वास कविता
प्यार नहीं दे पाऊँगा कुमार विश्वास कविता
तुम गए क्याकुमार विश्वास कविता
बेशक जमाना पास था कुमार विश्वास कविता
सफ़ाई मत देना कुमार विश्वास कविता
बादड़ियो गगरिया भर दे कुमार विश्वास कविता
धीरे-धीरे चल री पवन कुमार विश्वास कविता
क्या समर्पित करूँ कुमार विश्वास कविता
मेरे मन के गाँव में कुमार विश्वास कविता
चाँद ने कहा है कुमार विश्वास कविता
ये वही पुरानी राहें हैं कुमार विश्वास कविता
Hindi Ghazlein/Ghazals Kumar Vishwas
कुमार विश्वास कविता ग़ज़लें
Kumar Vishwas Ghazal/ghazlein
आबशारों की याद आती है कुमार विश्वास गजल
उनकी ख़ैरो-ख़बर नहीं मिलती कुमार विश्वास गजल
उसी की तरह मुझे सारा ज़माना चाहे कुमार विश्वास गजल
खुद से भी मिल न सको, इतने पास मत होना कुमार विश्वास गजल
तुम लाख चाहे मेरी आफ़त में जान रखना कुमार विश्वास गजल
तुम्हें जीने में आसानी बहुत है कुमार विश्वास गजल
दिल तो करता है ख़ैर करता है कुमार विश्वास गजल
फिर मेरी याद आ रही होगी कुमार विश्वास गजल
बात करनी है बात कौन करे कुमार विश्वास गजल
मैं जिसे मुद्दत में कहता था वो पल की बात थी कुमार विश्वास गजल
मैं तो झोंका हूँ हवाओं का उड़ा ले जाऊँगा कुमार विश्वास गजल
ये ख़यालों की बद-हवासी हैकुमार विश्वास गजल
रंग दुनिया ने दिखाया है निराला देखूँ कुमार विश्वास गजल
रात और दिन का फ़ासला हूँ मैं कुमार विश्वास गजल
रूह जिस्म का ठौर ठिकाना चलता रहता है कुमार विश्वास गजल
सब तमन्नाएँ हों पूरी कोई ख़्वाहिश भी रहे कुमार विश्वास गजल
हम कहाँ हैं ये पता लो तुम भी कुमार विश्वास गजल
हर सदा पैग़ाम देती फिर रही दर-दर कुमार विश्वास गजल
कुमार विश्वास कविता मुक्तक/शायरी
Kumar Vishwas Muktak/Shayari
अगर दिल ही मुअज्जन हो सदायें काम आती हैं
इस उड़ान पर अब शर्मिंदा, में भी हूँ और तू भी है
एक दो दिन में वो इकरार कहाँ आएगा
कहीं पर जग लिए तुम बिन, कहीं पर सो लिए तुम बिन
किसी के दिल की मायूसी जहाँ से होके गुजरी है
किसी पत्थर में मूरत है कोई पत्थर की मूरत है
खुद से भी न मिल सको इतने पास मत होना
खुशहाली में एक बदहाली, में भी हूँ और तू भी है
गिरेबां चाक करना क्या है, सीना और मुश्किल है
जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल एक ऐसा इकतारा है
जिस्म का आखिरी मेहमान बना बैठा हूँ
जो धरती से अम्बर जोड़े, उसका नाम मोहब्बत है
तुम्हारा ख़्वाब जैसे ग़म को अपनाने से डरता है
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ
तुम्हीं पे मरता है ये दिल अदावत क्यों नहीं करता
नज़र में शोखियाँ लब पर मुहब्बत का तराना है
ना पाने की खुशी है कुछ, ना खोने का ही कुछ गम है
पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या
पुकारे आँख में चढ़कर तो खू को खू समझता है
फ़लक पे भोर की दुल्हन यूँ सज के आई है
बताऊँ क्या मुझे ऐसे सहारों ने सताया है
बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन
बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेड़े सह नहीं पाया
बात ऊँची थी मगर बात जरा कम आंकी
भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
महफिल-महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है
मिल गया था जो मुक़द्दर वो खो के निकला हूँ
मिले हर जख्म को मुस्कान को सीना नहीं आया
मेरा अपना तजुर्बा है तुम्हें बतला रहा हूँ मैं
मेरे जीने मरने में, तुम्हारा नाम आएगा
मैं उसका हूँ वो इस एहसास से इनकार करती है
मैं तेरा ख्वाब जी लूँ पर लाचारी है
मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है
जो तुम समझो तो मोती है, जो ना समझो तो पानी है
ये दिल बर्बाद करके, इसमें क्यों आबाद रहते हो
ये वो ही इरादें हैं, ये वो ही तबस्सुम है
वो जिसका तीर चुपके से जिगर के पार होता है
वो जो खुद में से कम निकलतें हैं
सदा तो धूप के हाथों में ही परचम नहीं होता
सब अपने दिल के राजा है, सबकी कोई रानी है
समन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नहीं सकता
स्वयं से दूर हो तुम भी, स्वयं से दूर है हम भी
हमने दुःख के महासिंधु से सुख का मोती बीना है
हमारे शेर सुनकर भी जो खामोश इतना है
हमें बेहोश कर साकी, पिला भी कुछ नहीं हमको
हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते
हर इक खोने में हर इक पाने में तेरी याद आती है
हर एक नदिया के होंठों पे समंदर का तराना है
Vividh Kavitayen Kumar Vishwas
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कुछ छोटे सपनों के बदले कुमार विश्वास कविता
तुम्हारा फ़ोन आया है कुमार विश्वास कविता
दुःखी मत हो कुमार विश्वास कविता
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पवन ने कहा कुमार विश्वास कविता
अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे कुमार विश्वास कविता
मेरे सपनों के भाग में कुमार विश्वास कविता
मौसम के गाँव कुमार विश्वास कविता
ये इतने लोग कहाँ जाते हैं सुबह-सुबह कुमार विश्वास कविता
साल मुबारक कुमार विश्वास कविता
हो काल गति से परे चिरंतन कुमार विश्वास कविता