आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
इस के बा'द आए जो अज़ाब आए
बाम-ए-मीना से माहताब उतरे
दस्त-ए-साक़ी में आफ़्ताब आए
हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो
सामने फिर वो बे-नक़ाब आए
उम्र के हर वरक़ पे दिल की नज़र
तेरी मेहर-ओ-वफ़ा के बाब आए
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए
न गई तेरे ग़म की सरदारी
दिल में यूँ रोज़ इंक़लाब आए
जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम
जब भी हम ख़ानुमाँ-ख़राब आए
इस तरह अपनी ख़ामुशी गूँजी
गोया हर सम्त से जवाब आए
'फ़ैज़' थी राह सर-ब-सर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए
''आप की याद आती रही रात भर''
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर
गाह जलती हुई गाह बुझती हुई
शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात भर
कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन
कोई तस्वीर गाती रही रात भर
फिर सबा साया-ए-शाख़-ए-गुल के तले
कोई क़िस्सा सुनाती रही रात भर
जो न आया उसे कोई ज़ंजीर-ए-दर
हर सदा पर बुलाती रही रात भर
एक उम्मीद से दिल बहलता रहा
इक तमन्ना सताती रही रात भर
बात बस से निकल चली है
दिल की हालत सँभल चली है
अब जुनूँ हद से बढ़ चला है
अब तबीअ'त बहल चली है
अश्क ख़ूनाब हो चले हैं
ग़म की रंगत बदल चली है
या यूँही बुझ रही हैं शमएँ
या शब-ए-हिज्र टल चली है
लाख पैग़ाम हो गए हैं
जब सबा एक पल चली है
जाओ अब सो रहो सितारो
दर्द की रात ढल चली है
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के
वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र उदास हैं
तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के
इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन
देखे हैं हम ने हौसले पर्वरदिगार के
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के
भूले से मुस्कुरा तो दिए थे वो आज 'फ़ैज़'
मत पूछ वलवले दिल-ए-ना-कर्दा-कार के
हम ने सब शेर में सँवारे थे
हम से जितने सुख़न तुम्हारे थे
रंग-ओ-ख़ुशबू के हुस्न-ओ-ख़ूबी के
तुम से थे जितने इस्तिआरे थे
तेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले
अपने कुछ और भी सहारे थे
जब वो लाल-ओ-गुहर हिसाब किए
जो तिरे ग़म ने दिल पे वारे थे
मेरे दामन में आ गिरे सारे
जितने तश्त-ए-फ़लक में तारे थे
उम्र-ए-जावेद की दुआ करते
'फ़ैज़' इतने वो कब हमारे थे
इश्क़ मिन्नत-कश-ए-क़रार नहीं
हुस्न मजबूर-ए-इंतिज़ार नहीं
तेरी रंजिश की इंतिहा मालूम
हसरतों का मिरी शुमार नहीं
अपनी नज़रें बिखेर दे साक़ी
मय ब-अंदाज़ा-ए-ख़ुमार नहीं
ज़ेर-ए-लब है अभी तबस्सुम-ए-दोस्त
मुंतशिर जल्वा-ए-बहार नहीं
अपनी तकमील कर रहा हूँ मैं
वर्ना तुझ से तो मुझ को प्यार नहीं
चारा-ए-इंतिज़ार कौन करे
तेरी नफ़रत भी उस्तुवार नहीं
'फ़ैज़' ज़िंदा रहें वो हैं तो सही
क्या हुआ गर वफ़ा-शिआर नहीं
कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे
कब तक चैन की मोहलत दोगे कब तक याद न आओगे
बीता दीद उम्मीद का मौसम ख़ाक उड़ती है आँखों में
कब भेजोगे दर्द का बादल कब बरखा बरसाओगे
अहद-ए-वफ़ा या तर्क-ए-मोहब्बत जो चाहो सो आप करो
अपने बस की बात ही क्या है हम से क्या मन्वाओगे
किस ने वस्ल का सूरज देखा किस पर हिज्र की रात ढली
गेसुओं वाले कौन थे क्या थे उन को क्या जतलाओगे
'फ़ैज़' दिलों के भाग में है घर भरना भी लुट जाना थी
तुम इस हुस्न के लुत्फ़-ओ-करम पर कितने दिन इतराओगे
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी
सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी
कब जान लहू होगी कब अश्क गुहर होगा
किस दिन तिरी शुनवाई ऐ दीदा-ए-तर होगी
कब महकेगी फ़स्ल-ए-गुल कब बहकेगा मय-ख़ाना
कब सुब्ह-ए-सुख़न होगी कब शाम-ए-नज़र होगी
वाइ'ज़ है न ज़ाहिद है नासेह है न क़ातिल है
अब शहर में यारों की किस तरह बसर होगी
कब तक अभी रह देखें ऐ क़ामत-ए-जानाना
कब हश्र मुअ'य्यन है तुझ को तो ख़बर होगी
कुछ पहले इन आँखों आगे क्या क्या न नज़ारा गुज़रे था
क्या रौशन हो जाती थी गली जब यार हमारा गुज़रे था
थे कितने अच्छे लोग कि जिन को अपने ग़म से फ़ुर्सत थी
सब पूछें थे अहवाल जो कोई दर्द का मारा गुज़रे था
अब के ख़िज़ाँ ऐसी ठहरी वो सारे ज़माने भूल गए
जब मौसम-ए-गुल हर फेरे में आ आ के दोबारा गुज़रे था
थी यारों की बोहतात तो हम अग़्यार से भी बेज़ार न थे
जब मिल बैठे तो दुश्मन का भी साथ गवारा गुज़रे था
अब तो हाथ सुझाई न देवे लेकिन अब से पहले तो
आँख उठते ही एक नज़र में आलम सारा गुज़रे था
नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं
क़रीब उन के आने के दिन आ रहे हैं
जो दिल से कहा है जो दिल से सुना है
सब उन को सुनाने के दिन आ रहे हैं
अभी से दिल ओ जाँ सर-ए-राह रख दो
कि लुटने लुटाने के दिन आ रहे हैं
टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती
निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं
सबा फिर हमें पूछती फिर रही है
चमन को सजाने के दिन आ रहे हैं
चलो 'फ़ैज़' फिर से कहीं दिल लगाएँ
सुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं
तेरी सूरत जो दिल-नशीं की है
आश्ना शक्ल हर हसीं की है
हुस्न से दिल लगा के हस्ती की
हर घड़ी हम ने आतिशीं की है
सुब्ह-ए-गुल हो कि शाम-ए-मय-ख़ाना
मद्ह उस रू-ए-नाज़नीं की है
शैख़ से बे-हिरास मिलते हैं
हम ने तौबा अभी नहीं की है
ज़िक्र-ए-दोज़ख़ बयान-ए-हूर ओ क़ुसूर
बात गोया यहीं कहीं की है
अश्क तो कुछ भी रंग ला न सके
ख़ूँ से तर आज आस्तीं की है
कैसे मानें हरम के सहल-पसंद
रस्म जो आशिक़ों के दीं की है
'फ़ैज़' औज-ए-ख़याल से हम ने
आसमाँ सिंध की ज़मीं की है
तिरी उमीद तिरा इंतिज़ार जब से है
न शब को दिन से शिकायत न दिन को शब से है
किसी का दर्द हो करते हैं तेरे नाम रक़म
गिला है जो भी किसी से तिरे सबब से है
हुआ है जब से दिल-ए-ना-सुबूर बे-क़ाबू
कलाम तुझ से नज़र को बड़े अदब से है
अगर शरर है तो भड़के जो फूल है तो खिले
तरह तरह की तलब तेरे रंग-ए-लब से है
कहाँ गए शब-ए-फ़ुर्क़त के जागने वाले
सितारा-ए-सहरी हम-कलाम कब से है
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
हदीस-ए-यार के उनवाँ निखरने लगते हैं
तो हर हरीम में गेसू सँवरने लगते हैं
हर अजनबी हमें महरम दिखाई देता है
जो अब भी तेरी गली से गुज़रने लगते हैं
सबा से करते हैं ग़ुर्बत-नसीब ज़िक्र-ए-वतन
तो चश्म-ए-सुब्ह में आँसू उभरने लगते हैं
वो जब भी करते हैं इस नुत्क़ ओ लब की बख़िया-गरी
फ़ज़ा में और भी नग़्मे बिखरने लगते हैं
दर-ए-क़फ़स पे अँधेरे की मोहर लगती है
तो 'फ़ैज़' दिल में सितारे उतरने लगते हैं
तुझे पुकारा है बे-इरादा
जो दिल दुखा है बहुत ज़ियादा
नदीम हो तेरा हर्फ़-ए-शीरीं
तो रंग पर आए रंग-ए-बादा
अता करो इक अदा-ए-दैरीं
तो अश्क से तर करें लिबादा
न जाने किस दिन से मुंतज़िर है
दिल-ए-सर-ए-रह-गुज़र फ़ितादा
कि एक दिन फिर नज़र में आए
वो बाम-ए-रौशन वो दर कुशादा
वो आए पुर्सिश को फिर सजाए
क़बा-ए-रंगीं अदा-ए-सादा
सुब्ह की आज जो रंगत है वो पहले तो न थी
क्या ख़बर आज ख़िरामाँ सर-ए-गुलज़ार है कौन
शाम गुलनार हुई जाती है देखो तो सही
ये जो निकला है लिए मिशअल-ए-रुख़्सार है कौन
रात महकी हुई आई है कहीं से पूछो
आज बिखराए हुए ज़ुल्फ़-ए-तरह-दार है कौन
फिर दर-ए-दिल पे कोई देने लगा है दस्तक
जानिए फिर दिल-ए-वहशी का तलबगार है कौन
सितम सिखलाएगा रस्म-ए-वफ़ा ऐसे नहीं होता
सनम दिखलाएँगे राह-ए-ख़ुदा ऐसे नहीं होता
गिनो सब हसरतें जो ख़ूँ हुई हैं तन के मक़्तल में
मिरे क़ातिल हिसाब-ए-ख़ूँ-बहा ऐसे नहीं होता
जहान-ए-दिल में काम आती हैं तदबीरें न ताज़ीरें
यहाँ पैमान-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा ऐसे नहीं होता
हर इक शब हर घड़ी गुज़रे क़यामत यूँ तो होता है
मगर हर सुब्ह हो रोज़-ए-जज़ा ऐसे नहीं होता
रवाँ है नब्ज़-ए-दौराँ गर्दिशों में आसमाँ सारे
जो तुम कहते हो सब कुछ हो चुका ऐसे नहीं होता