माखन की चोरी के कारन, सोवत जाग उठे चल भोर।
ऍंधियारे भनुसार बडे खन, धँसत भुवन चितवत चहुँ ओर॥
परम प्रबीन चतुर अति ढोठा, लीने भाजन सबहिं ढंढोर।
कछु खायो कछु अजर गिरायो, माट दही के डारे फोर॥
मैं जान्यो दियो डार मँजारी, जब देख्यो मैं दिवला जोर।
'चतुर्भुज प्रभु गिरिधर पकरत ही, हा! हा! करन लागे कर जोर॥
रावल के कहे गोप आज व्रजधुनि ओप कान देदे सुनों बाजे गोकुल मंदिलरा।
जसोदा के पुत्र भयो वृषभानजूसो कह्यो गोपी ग्वाल ले ले धाये दूध दधि गगरा॥१॥
आगे गोपवृंद वर पाछे त्रिया मनोहर चलि न सकत कोऊ पावत न डगरा।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधर को जनम सुनि फूल्यो फूल्यो फिरत हे नादे जेसें भंवरा॥२॥
राग विभास
भोर भये जसोदा जू बोलैं जागो मेरे गिरिधर लाल।
रतन जटित सिंहासन बैठो, देखन कों आई ब्रजबाल॥१॥
नियरैं आय सुपेती खैंचत, बहुर्यो ढांपत हरि वदन रसाल।
दूध दही माखन बहु मेवा, भामिनी भरि भरि लाई थाल॥२॥
तब हरखित उठि गादी बैठे, करत कलेऊ, तिलक दे भाल।
दै बीरा आरती उतारत,’चत्रभुज’ गावें गीत रसाल॥३॥
जसोदा!कहा कहौं हौं बात?
तुम्हरे सूत के करतब मो पै कहत कहे नहिं जात.
भाजन फोरि,ढारि सब गोरस,लै माखन दधि खात.
जौ बरजौ तौ आँखि दिखावै,रंचहु नाहिं सकात.
और अटपटी कहँ लौ बरनौ,छुवत पानि सों गात.
दास चतुर्भुज गिरिधर गुन हौं कहति कहति सकुचात.
मैया मोहि माखन मिसरी भावे / चतुर्भुजदास
मैया मोहि माखन मिसरी भावे ।
मीठो दधि मिठाई मधुघृत, अपने कर सों क्यों न खवावे ॥१॥
कनक दोहनी दे कर मेरे, गो दोहन क्यों न सिखावे ।
ओट्यो दूध धेनु धोरी को, भर के कटोरा क्यों न पिवावे ॥२॥
अजहु ब्याह करत नही मेरो, तोहे नींद क्यों आवे ।
‘चतुर्भुज’ प्रभु गिरिधर की बतियाँ, सुन ले उछंग पय पान करावें ॥३॥
बैठे लाल फूलन की चौखंडी ।
चंपक बकुल गुलाब निवारो रायवेलि श्री खंडी ॥१॥
जाई जुई केवरो कुंजो कनक कणेर सुरंगी ।
चतुर्भुज प्रभु गिरिधर जु की बानिक दिन दिन नव नवरंगी ॥२॥
फूलन की मंडली मनोहर बैठे जहाँ रसिक पिय प्यारी ।
फूलन के बागे और भूषण फूलन की पाग संवारी ॥१॥
ढिंग फूली वृषभान नंदिनी तैसिये फूल रही उजियारी ।
फूलन के झूमका झरोखा बहु फूलन की रची अटारी ॥२॥
फूले सखा चकोर निहारत बीच चंद मिल किरण संवारी ।
चतुर्भुज दास मुदित सहचारी फूले लाल गोवर्धन धारी ॥३॥
Chaturbhujdas ji