Baba Sheikh Farid Ji
बाबा शेख फ़रीद जी
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बाबा शेख फ़रीद जी Photo
फ़रीद-उद्-दीन मसूद गंजशकर (११७३–१२६६) को आम लोग बाबा शेख फ़रीद या बाबा फ़रीद के नाम के साथ याद करते हैं। वह बारहवीं सदी के चिशती सिलसिले के सूफ़ी संत और प्रचारक थे। उनका जन्म मुलतान (पाकिस्तान) से दस किलोमीटर दूर गाँव कोठीवाल में हुआ । उनके के पिता जी जमाल-उद्- दीन सुलेमान और माता जी मरियम बीबी (करसुम बीबी) थे। उन को पंजाबी बोली के आदि कवि के तौर पर जाना जाता है। उन की रचना श्री गुरु ग्रंथ साहिब में भी दर्ज है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में उन के चार शब्द और ११२ श्लोक हैं। उन की वाणी की ईश्वर मिलने की इच्छा, नम्रता, सादगी और मिठास, उन को सब लोगों में आदर योग्य और हरमन प्यारा बनाती है।
ੴ सतिगुर प्रसादिदिलहु मुहबति जिंन्ह सेई सचिआ ॥
जिन्ह मनि होरु मुखि होरु सि कांढे कचिआ ॥१॥
रते इसक खुदाइ रंगि दीदार के ॥
विसरिआ जिन्ह नामु ते भुइ भारु थीए ॥१॥ रहाउ ॥
आपि लीए लड़ि लाइ दरि दरवेस से ॥
तिन धंनु जणेदी माउ आए सफलु से ॥२॥
परवदगार अपार अगम बेअंत तू ॥
जिना पछाता सचु चुमा पैर मूं ॥३॥
तेरी पनह खुदाइ तू बखसंदगी ॥
सेख फरीदै खैरु दीजै बंदगी ॥४॥१॥488॥
इहु तनु होसी खाक निमाणी गोर घरे ॥१॥
आजु मिलावा सेख फरीद टाकिम कूंजड़ीआ मनहु मचिंदड़ीआ ॥१॥ रहाउ ॥
जे जाणा मरि जाईऐ घुमि न आईऐ ॥
झूठी दुनीआ लगि न आपु वञाईऐ ॥२॥
बोलीऐ सचु धरमु झूठु न बोलीऐ ॥
जो गुरु दसै वाट मुरीदा जोलीऐ ॥३॥
छैल लंघंदे पारि गोरी मनु धीरिआ ॥
कंचन वंने पासे कलवति चीरिआ ॥४॥
सेख हैयाती जगि न कोई थिरु रहिआ ॥
जिसु आसणि हम बैठे केते बैसि गइआ ॥५॥
कतिक कूंजां चेति डउ सावणि बिजुलीआं ॥
सीआले सोहंदीआं पिर गलि बाहड़ीआं ॥६॥
चले चलणहार विचारा लेइ मनो ॥
गंढेदिआं छिअ माह तुड़ंदिआ हिकु खिनो ॥७॥
जिमी पुछै असमान फरीदा खेवट किंनि गए ॥
जालण गोरां नालि उलामे जीअ सहे ॥८॥२॥488॥
रागु सूही बाणी सेख फरीद जी कीतपि तपि लुहि लुहि हाथ मरोरउ ॥
बावलि होई सो सहु लोरउ ॥
तै सहि मन महि कीआ रोसु ॥
मुझु अवगन सह नाही दोसु ॥१॥
तै साहिब की मै सार न जानी ॥
जोबनु खोइ पाछै पछुतानी ॥१॥ रहाउ ॥
काली कोइल तू कित गुन काली ॥
अपने प्रीतम के हउ बिरहै जाली ॥
पिरहि बिहून कतहि सुखु पाए ॥
जा होइ क्रिपालु ता प्रभू मिलाए ॥२॥
विधण खूही मुंध इकेली ॥
ना को साथी ना को बेली ॥
करि किरपा प्रभि साधसंगि मेली ॥
जा फिरि देखा ता मेरा अलहु बेली ॥३॥
वाट हमारी खरी उडीणी ॥
खंनिअहु तिखी बहुतु पिईणी ॥
उसु ऊपरि है मारगु मेरा ॥
सेख फरीदा पंथु सम्हारि सवेरा ॥४॥१॥794॥
भरि सरवरु जब ऊछलै तब तरणु दुहेला ॥१॥
हथु न लाइ कसु्मभड़ै जलि जासी ढोला ॥१॥ रहाउ ॥
इक आपीन्है पतली सह केरे बोला ॥
दुधा थणी न आवई फिरि होइ न मेला ॥२॥
कहै फरीदु सहेलीहो सहु अलाएसी ॥
हंसु चलसी डुमणा अहि तनु ढेरी थीसी ॥३॥२॥74॥
सलोक सेख फरीद के
ੴ सतिगुर प्रसादि
1जितु दिहाड़ै धन वरी साहे लए लिखाइ ॥
मलकु जि कंनी सुणीदा मुहु देखाले आइ ॥
जिंदु निमाणी कढीऐ हडा कू कड़काइ ॥
साहे लिखे न चलनी जिंदू कूं समझाइ ॥
जिंदु वहुटी मरणु वरु लै जासी परणाइ ॥
आपण हथी जोलि कै कै गलि लगै धाइ ॥
वालहु निकी पुरसलात कंनी न सुणी आइ ॥
फरीदा किड़ी पवंदीई खड़ा न आपु मुहाइ॥1॥
(जितु दिहाड़ै=जिस दिन, धन=स्त्री, वरी=व्याही
जायेगी, साहे=विवाह का नियत समय, मलकु=मौत
का फ़रिश्ता, कूं=को, न चलनी =नहीं टल सकते,
वरु=दूल्हा, परणाइ=विवाह कर, जोलि कै=भेज कर,
कै गलि=किस के गले में, धाइ=दौड़ कर, वालहु=
वाल से, पुरसलात =पुल-सिरात, कंनी=कानों से,
किड़ी पवंदीई=आवाज़ आते, न मुहाइ=न लुटा)
2फरीदा दर दरवेसी गाखड़ी चलां दुनीआं भति ॥
बंन्हि उठाई पोटली किथै वंञा घति ॥2॥
(गाखड़ी=मुश्किल, दरवेसी=फ़कीरी, दर=परमात्मा
दे दर की, भति=की तरह, बंन्हि=बाँध कर, वंञा=जाऊं,
घति=फैंक कर, पोटली=छोटी सी गाँठ)
3किझु न बुझै किझु न सुझै दुनीआ गुझी भाहि ॥
सांईं मेरै चंगा कीता नाही त हं भी दझां आहि ॥3॥
(किझु=कुछ भी, बुझै=समझ आती, पता लगता,
गुझी=छुपी, भाहि=आग, सांईं मेरै=मेरे
सांईं ने, हं भी=मैं भी, दझां आहि=
सड़ जाता)
4फरीदा जे जाणा तिल थोड़ड़े समलि बुकु भरी ॥
जे जाणा सहु नंढड़ा तां थोड़ा माणु करी ॥4॥
(तिल=स्वास, थोड़ड़े=बहुत थोड़े, संमलि =संभल
के, सहु=खसम -प्रभु, नंढड़ा=छोटा सा लड़का)
5जे जाणा लड़ु छिजणा पीडी पाईं गंढि ॥
तै जेवडु मै नाहि को सभु जगु डिठा हंढि ॥5॥
(लड़ु=पल्ला, छिजणा=टूट जाना है, पीडी=पक्की, तै
जेवडु=तुम्हारे जितना, हंढि=फिर कर)
6फरीदा जे तू अकलि लतीफु काले लिखु न लेख ॥
आपनड़े गिरीवान महि सिरु नींवां करि देखु ॥6॥
(अकलि लतीफु=बारीक समझ वाला, काले लेखु =मन्दे
करम, गिरीवान=अंदर)
7फरीदा जो तै मारनि मुकीआं तिन्हा न मारे घुमि ॥
आपनड़ै घरि जाईऐ पैर तिन्हा दे चुमि ॥7॥
(तै=तुझे, तिन्हा=उन को, न मारे =न मार,
घुमि=लौट कर, आपनड़ै घरि=अपने घर में,
शांत अवस्था में, चुमि=चूम कर, जाईऐ=पहुँच जाते है)
8फरीदा जां तउ खटण वेल तां तू रता दुनी सिउ ॥
मरग सवाई नीहि जां भरिआ तां लदिआ ॥8॥
(तउ=तुम्हारा, खटण वेल=कमाने का समय, रता=
रंगा हुआ,मस्त, सिउ=के साथ, मरग=मौत,
सवाई=बढ़ती गई, जां=जब, भरिआ=स्वास
पूरे हो गए, नीहि=नींव)
9देखु फरीदा जु थीआ दाड़ी होई भूर ॥
अगहु नेड़ा आइआ पिछा रहिआ दूरि ॥9॥
(थीआ=हो गया है, जु=जो कुछ, भूर=सफ़ेद,
अगहु=अगला पासा, पिछा=पिछला पक्ष)
10देखु फरीदा जि थीआ सकर होई विसु ॥
सांई बाझहु आपणे वेदण कहीऐ किसु ॥10॥
(जि थीया =जो कुछ हुआ है, सकर=शक्कर,मीठे
पदारथ, विसु=ज़हर,दुखदायी, वेदण=दुख)
11फरीदा अखी देखि पतीणीआं सुणि सुणि रीणे कंन ॥
साख पकंदी आईआ होर करेंदी वंन ॥11॥
(पतीणीआं=पतली पड़ गई हैं, रीणे=खाली,बोले,
साख=टहनी,शरीर, पकंदी आईआ=पक्क
गयी है, वंन=रंग)
12फरीदा कालीं जिनी न राविआ धउली रावै कोइ ॥
करि सांई सिउ पिरहड़ी रंगु नवेला होइ ॥12॥
(कालीं=जब केस काले थे, राविआ=माना,
धउली=धउले आए हुए, कोइ=कोई विरला,
पिरहड़ी=प्यार, नवेला=नया, रंगु=प्यार)
13
म: 3फरीदा काली धउली साहिबु सदा है जे को चिति करे ॥
आपणा लाइआ पिरमु न लगई जे लोचै सभु कोइ ॥
एहु पिरमु पिआला खसम का जै भावै तै देइ ॥13॥
(चिति करे=चित्त में टिकाए, पिरमु=प्यार, सभु कोइ=
हरेक जीव, जै=जिस को, तै=उस को)
14फरीदा जिन्ह लोइण जगु मोहिआ से लोइण मै डिठु ॥
कजल रेख न सहदिआ से पंखी सूइ बहिठु ॥14॥
(लोइण=आँखें, सूइ=बच्चे, बहिठु=बैठने की जगह)
15फरीदा कूकेदिआ चांगेदिआ मती देदिआ नित ॥
जो सैतानि वंञाइआ से कित फेरहि चित ॥15॥
(सैतानि=शैतान ने,मन ने, कूकेदिआ
चांगेदिआ=पुकार पुकार के समझाने पर भी,
से=वह बंदे, वंञाइआ =बिगड़ा हुआ है)
16फरीदा थीउ पवाही दभु ॥
जे सांई लोड़हि सभु ॥
इकु छिजहि बिआ लताड़ीअहि ॥
तां साई दै दरि वाड़ीअहि ॥16॥
(थीउ=बन जा, पवाही=पहियों की,रस्ते की,
दभु=घास, जे लोड़हि=यदि तू ढूँढता है, सभु=
सब मे, इकु=किसी दूब के पौधे को,
छिजहि=तोड़ते हैं, बिआ=कई ओर,
लताड़ीअहि=लताड़े जाते हैं,
साई दै दरि=मालिक के दर पर,
वाड़ीअहि=तू ले जाया जाएगा)
17फरीदा खाकु न निंदीऐ खाकू जेडु न कोइ ॥
जीवदिआ पैरा तलै मुइआ उपरि होइ ॥17॥
(खाकु=मिट्टी, जेडु=जितना,जैसा)
18फरीदा जा लबु ता नेहु किआ लबु त कूड़ा नेहु ॥
किचरु झति लघाईऐ छपरि तुटै मेहु ॥18॥
(नेहु किआ=किसका प्यार,असली प्यार नहीं, कूड़ा=झूठा,
किचरु =कितनी देर, झति=समय, छपरि तुटै=टूटे हुए छप्पर
पर, मेहु=बारिश)
19फरीदा जंगलु जंगलु किआ भवहि वणि कंडा मोड़ेहि ॥
वसी रबु हिआलीऐ जंगलु किआ ढूढेहि ॥19॥
(किआ भवहि=घूमने का क्या लाभ, वणि=जंगल में,
कंडा मोड़ेहि=क्यों लताड़ता है, वसी=बसता है, हिआलीऐ=
हृदय में, किआ ढूढेहि=तलाश का क्या लाभ)
20फरीदा इनी निकी जंघीऐ थल डूंगर भविओम्हि ॥
अजु फरीदै कूजड़ा सै कोहां थीओमि ॥20॥
(इनी जंघीऐ=इन टांगों के साथ, डूंगर=
पहाड़, भविओम्हि=मैंने घूमा है, अजु=
बुढ़ापे में, फरीदै= फ़रीद को, थीओमि=
हो गया है, कूजड़ा=एक छोटा सा कुल्हड़)
21फरीदा राती वडीआं धुखि धुखि उठनि पास ॥
धिगु तिन्हा दा जीविआ जिना विडाणी आस ॥21॥
(वडीआं=लम्बी, धुखि उठनि=सुलग उठते हैं, पास=
शरीर के अंग, विडाणी=बिगानी, धिगु=फटकार-योग्य)
22फरीदा जे मै होदा वारिआ मिता आइड़िआं ॥
हेड़ा जलै मजीठ जिउ उपरि अंगारा ॥22॥
(वारिआ होदा =लुकाआ होता, मिता आइड़िआं=
आए मित्रों से, हेड़ा=शरीर,दिल,मांस, मजीठ जिउ=
मजीठ की तरह, जलै=जलता है)
23फरीदा लोड़ै दाख बिजउरीआं किकरि बीजै जटु ॥
हंढै उंन कताइदा पैधा लोड़ै पटु ॥23॥
(बिजउरीआं=बिजौर के इलाके की, दाखु=
छोटा अंगूर, किकरि=कीकर का पेड़, हंढै=
पुराना, पैधा लोड़ै =पहनना चाहता है)
24फरीदा गलीए चिकड़ु दूरि घरु नालि पिआरे नेहु ॥
चला त भिजै क्मबली रहां त तुटै नेहु ॥24॥
(रहां=अगर मैं रह पड़ूँ, त=तो, तुटै=टूटता है)
25भिजउ सिजउ क्मबली अलह वरसउ मेहु ॥
जाइ मिला तिना सजणा तुटउ नाही नेहु ॥25॥
(अलह=ईश्वर के कारन, भिजउ=बेशक भीगे)
26फरीदा मै भोलावा पग दा मतु मैली होइ जाइ ॥
गहिला रूहु न जाणई सिरु भी मिटी खाइ ॥26॥
(मै=मुझे, भोलावा=भ्रम, मतु होइ जाइ=
मत हो जाए, गहिला=लापरवाह,गाफिल, जाणई=
जानता)
27फरीदा सकर खंडु निवात गुड़ु माखिओ मांझा दुधु ॥
सभे वसतू मिठीआं रब न पुजनि तुधु ॥27॥
(निवात=मिशरी, माखिओ=शहद, न पुजनि=नहीं
पहुंचते, तुधु=तुझे)
28फरीदा रोटी मेरी काठ की लावणु मेरी भुख ॥
जिना खाधी चोपड़ी घणे सहनिगे दुख ॥28॥
(रोटी मेरी काठ=काठ की तरह सूखी रोटी, लावणु=
भाजी,नमकीन, घणे=बड़े, चोपड़ी=स्वादिष्ट,
घी-भीगी)
29रुखी सुखी खाइ कै ठंढा पाणी पीउ ॥
फरीदा देखि पराई चोपड़ी ना तरसाए जीउ ॥29॥
(रुखी=बगैर दाल सब्ज़ी के, देखि=देख कर,
चोपड़ी=स्वादिष्ट,घी-भीगी)
30अजु न सुती कंत सिउ अंगु मुड़े मुड़ि जाइ ॥
जाइ पुछहु डोहागणी तुम किउ रैणि विहाइ ॥30॥
(सिउ=के साथ, अंगु=शरीर, मुड़े मुड़ि जाइ=टूट रहा है,
डोहागणी=विधवा,परित्यक्ता, रैणि=रात)
31साहुरै ढोई ना लहै पेईऐ नाही थाउ ॥
पिरु वातड़ी न पुछई धन सोहागणि नाउ ॥31॥
(साहुरै=ससुराल घर,परलोक में, ढोई=आसरा,
पेईऐ=मायके घर,इस लोक में, पिरु=खसम-प्रभु,
वातड़ी=थोड़ी सी बात, धन=स्त्री)
32
(म: 1)साहुरै पेईऐ कंत की कंतु अगमु अथाहु ॥
नानक सो सोहागणी जु भावै बेपरवाह ॥32॥
(अगमु =पहुँच से परे, अथाहु=
गहरा, भावै=प्यारी लगती है)
33नाती धोती स्मबही सुती आइ नचिंदु ॥
फरीदा रही सु बेड़ी हिंङु दी गई कथूरी गंधु ॥33॥
(सम्बही=सजी हुई, नचिन्दु=बे-फ़िक्र, बेड़ी=
लिबड़ी हुई, कथूरी=कस्तूरी, गंधु=खुशबू)
34जोबन जांदे ना डरां जे सह प्रीति न जाइ ॥
फरीदा कितीं जोबन प्रीति बिनु सुकि गए कुमलाइ ॥34॥
(सह प्रीति=खसम का प्यार, कितीं=कितने ही)
35फरीदा चिंत खटोला वाणु दुखु बिरहि विछावण लेफु ॥
एहु हमारा जीवणा तू साहिब सचे वेखु ॥35॥
(चिंत=चिंता, खटोला=छोटी खटिया, बिरहि=
विछोड़े में, विछावण=तलाई)
36बिरहा बिरहा आखीऐ बिरहा तू सुलतानु ॥
फरीदा जितु तनि बिरहु न ऊपजै सो तनु जाणु मसानु ॥36॥
(बिरहा=जुदाई, सुलतानु=राजा, जितु तनि=जिस तन में,
बिरहु=जुदाई, मसानु=मुर्दे जलाने की जगह)
37फरीदा ए विसु गंदला धरीआं खंडु लिवाड़ि ॥
इकि राहेदे रहि गए इकि राधी गए उजाड़ि ॥37॥
(ए=यह पदार्थ, विसु=ज़हर, खंडु लिवाड़ि=मीठे मे
लपेट कर, इकि=कई जीव, राहेदे=बीजते, रह गए=
थक गए,मर गए, राधी=बीजी हुई)
38फरीदा चारि गवाइआ हंढि कै चारि गवाइआ समि ॥
लेखा रबु मंगेसीआ तू आंहो केर्हे कमि ॥38॥
(हंढि कै=भटक कर,दौड़-भाग कर, समि=सो कर,
मंगेसीआ=मांगेगा, आंहो=आया था,
केर्हे कमि=किस काम)
39फरीदा दरि दरवाजै जाइ कै किउ डिठो घड़ीआलु ॥
एहु निदोसां मारीऐ हम दोसां दा किआ हालु ॥39॥
(दरि=दरवाज़े पर, किउ डिठो=क्या नहीं देखा,
निदोसां=बिना दोष, मारिऐ=मार खाता है)
40घड़ीए घड़ीए मारीऐ पहरी लहै सजाइ ॥
सो हेड़ा घड़ीआल जिउ डुखी रैणि विहाइ ॥40॥
(घड़ीए घड़ीए=घड़ी घड़ी के बाद, पहरी=हरेक
पहर बाद में, सजाइ=सजा, हेड़ा=शरीर, जिउ=जैसे,
डुखी=दुखी, रैणि=रात, विहाइ=बीतती है)
41बुढा होआ सेख फरीदु क्मबणि लगी देह ॥
जे सउ वर्हिआ जीवणा भी तनु होसी खेह ॥41॥
(देह=शरीर, खेह=राख,मिट्टी, होसी=हो जाएगा)
42फरीदा बारि पराइऐ बैसणा सांई मुझै न देहि ॥
जे तू एवै रखसी जीउ सरीरहु लेहि ॥42॥
(बारि पराइऐ=पराए दरवाज़े पर,
बैसणा=बैठना, एवै=इसी तरह, जीउ=जिंद,
सरीरहु=शरीर में से)
43कंधि कुहाड़ा सिरि घड़ा वणि कै सरु लोहारु ॥
फरीदा हउ लोड़ी सहु आपणा तू लोड़हि अंगिआर ॥43॥
(कंधि=कंधे पर, सिरि=सिर पर, वणि=जंगल में,
कै सरु =बादशाह, हउ=मैं, सहु=खसम, लोड़हि=
चाहता है, अंगिआर=अंगारे)
44फरीदा इकना आटा अगला इकना नाही लोणु ॥
अगै गए सिंञापसनि चोटां खासी कउणु ॥44॥
(अगला=बहुत, लोणु=नमक, अगै=परलोक में,
सिंञापसनि=पहचाने जाएंगे)
45पासि दमामे छतु सिरि भेरी सडो रड ॥
जाइ सुते जीराण महि थीए अतीमा गड ॥45॥
(पासि=पास, दमामे=धौंसे, छतु=छत्र, सिरि=
सिर पर, भेरी =तूतियां, सडो=बुला, रड=एक 'छंद'
का नाम है जो प्रशन्सा के लिए इस्तेमाल किया
जाता है, जीराण=मसाण, अतीमा=यतीम,बिन माँ
का बच्चा, गड थीए=रल गए)
46फरीदा कोठे मंडप माड़ीआ उसारेदे भी गए ॥
कूड़ा सउदा करि गए गोरी आइ पए ॥46॥
(मंडप=शामियाने, माड़ीआ=चुबारों वाले महल,
कूड़ा=झूठा, गोरी=गोरी,कब्रों में)
47फरीदा खिंथड़ि मेखा अगलीआ जिंदु न काई मेख ॥
वारी आपो आपणी चले मसाइक सेख ॥47॥
(खिंथड़ि=गोद, मेखा=टांके,मेखें,
अगलीआ=बहुत, मसाइक=शेख का बहु-वचन)
48फरीदा दुहु दीवी बलंदिआ मलकु बहिठा आइ ॥
गड़ु लीता घटु लुटिआ दीवड़े गइआ बुझाइ ॥48॥
(दुहु दीवी बलंदिआ=इन दोनों आंखों
के सामने ही, मलकु=मौत का फ़रिश्ता,
गड़ु=किला,शरीर, घटु=हृदय, लीता=कब्जा कर लिया)
49फरीदा वेखु कपाहै जि थीआ जि सिरि थीआ तिलाह ॥
कमादै अरु कागदै कुंने कोइलिआह ॥
मंदे अमल करेदिआ एह सजाइ तिनाह ॥49॥
(जि=जो कुछ, थीआ=हुआ, सिरि=सिर पर,
कुंने=मिट्टी की हाँडी, सजाइ=दंड,
तिनाह=उन को, अमल=काम,करतूत)
50फरीदा कंनि मुसला सूफु गलि दिलि काती गुड़ु वाति ॥
बाहरि दिसै चानणा दिलि अंधिआरी राति ॥50॥
(कंनि=कंधे पर, सूफु=काली ख़फनी, गलि=गले में,
दिलि=दिल में)
51फरीदा रती रतु न निकलै जे तनु चीरै कोइ ॥
जो तन रते रब सिउ तिन तनि रतु न होइ ॥51॥
(रति=थोड़ी जितनी भी, रतु=लहु, रते=रंगे हुए,
सिउ=के साथ, तिन तनि=उनके तन में)
52
म: 3इहु तनु सभो रतु है रतु बिनु तंनु न होइ ॥
जो सह रते आपणे तितु तनि लोभु रतु न होइ ॥
भै पइऐ तनु खीणु होइ लोभु रतु विचहु जाइ ॥
जिउ बैसंतरि धातु सुधु होइ तिउ हरि का भउ दुरमति मैलु गवाइ ॥
नानक ते जन सोहणे जि रते हरि रंगु लाइ ॥52॥
(सभो=सारा ही, रतु बिनु=रक्त के बिना,
तनि=तन,शरीर, सह रते=खसम के साथ रंगे
हुए, तितु तनि=उस शरीर में, भै पइऐ=डर में
पड़ कर, खीणु=पतला,कमज़ोर, जाइ=दूर हो
जाती है, बैसंतरि =आग में, सुधु=साफ़, जि=
जो, रंगु=प्यार)
53फरीदा सोई सरवरु ढूढि लहु जिथहु लभी वथु ॥
छपड़ि ढूढै किआ होवै चिकड़ि डुबै हथु ॥53॥
(सरवरु=सुंदर तालाब, वथु=चीज़)
54फरीदा नंढी कंतु न राविओ वडी थी मुईआसु ॥
धन कूकेंदी गोर में तै सह ना मिलीआसु ॥54॥
(नंढी=जवान स्त्री ने, वडी थी=बुढ़िया हो कर, मुईआसु=
वह मर गई, धन=स्त्री, गोर में=कब्र में, तै=तुझे, सह=पति,
न मिलिआसु=नहीं मिली)
55फरीदा सिरु पलिआ दाड़ी पली मुछां भी पलीआं ॥
रे मन गहिले बावले माणहि किआ रलीआं ॥55॥
(पलिआ=सफ़ेद हो गया, रे गहले=हे गाफिल, बावले=
बेवकूफ, रलीआं=खुशियां)
56फरीदा कोठे धुकणु केतड़ा पिर नीदड़ी निवारि ॥
जो दिह लधे गाणवे गए विलाड़ि विलाड़ि ॥56॥
57फरीदा कोठे मंडप माड़ीआ एतु न लाए चितु ॥
मिटी पई अतोलवी कोइ न होसी मितु ॥57॥
58फरीदा मंडप मालु न लाइ मरग सताणी चिति धरि ॥
साई जाइ सम्हालि जिथै ही तउ वंञणा ॥58॥
59फरीदा जिन्ही कमी नाहि गुण ते कमड़े विसारि ॥
मतु सरमिंदा थीवही सांई दै दरबारि ॥59॥
60फरीदा साहिब दी करि चाकरी दिल दी लाहि भरांदि ॥
दरवेसां नो लोड़ीऐ रुखां दी जीरांदि ॥60॥
61फरीदा काले मैडे कपड़े काला मैडा वेसु ॥
गुनही भरिआ मै फिरा लोकु कहै दरवेसु ॥61॥
62तती तोइ न पलवै जे जलि टुबी देइ ॥
फरीदा जो डोहागणि रब दी झूरेदी झूरेइ ॥62॥
63जां कुआरी ता चाउ वीवाही तां मामले ॥
फरीदा एहो पछोताउ वति कुआरी न थीऐ ॥63॥
64कलर केरी छपड़ी आइ उलथे हंझ ॥
चिंजू बोड़न्हि ना पीवहि उडण संदी डंझ ॥64॥
65हंसु उडरि कोध्रै पइआ लोकु विडारणि जाइ ॥
गहिला लोकु न जाणदा हंसु न कोध्रा खाइ ॥65॥
66चलि चलि गईआं पंखीआं जिन्ही वसाए तल ॥
फरीदा सरु भरिआ भी चलसी थके कवल इकल ॥66॥
67फरीदा इट सिराणे भुइ सवणु कीड़ा लड़िओ मासि ॥
केतड़िआ जुग वापरे इकतु पइआ पासि ॥67॥
68फरीदा भंनी घड़ी सवंनवी टुटी नागर लजु ॥
अजराईलु फरेसता कै घरि नाठी अजु ॥68॥
69फरीदा भंनी घड़ी सवंनवी टूटी नागर लजु ॥
जो सजण भुइ भारु थे से किउ आवहि अजु ॥69॥
70फरीदा बे निवाजा कुतिआ एह न भली रीति ॥
कबही चलि न आइआ पंजे वखत मसीति ॥70॥
71उठु फरीदा उजू साजि सुबह निवाज गुजारि ॥
जो सिरु सांई ना निवै सो सिरु कपि उतारि ॥71॥
72जो सिरु साई ना निवै सो सिरु कीजै कांइ ॥
कुंने हेठि जलाईऐ बालण संदै थाइ ॥72॥
73फरीदा किथै तैडे मापिआ जिन्ही तू जणिओहि ॥
तै पासहु ओइ लदि गए तूं अजै न पतीणोहि ॥73॥
74फरीदा मनु मैदानु करि टोए टिबे लाहि ॥
अगै मूलि न आवसी दोजक संदी भाहि ॥74॥
75
महला 5फरीदा खालकु खलक महि खलक वसै रब माहि ॥
मंदा किस नो आखीऐ जां तिसु बिनु कोई नाहि ॥75॥
76फरीदा जि दिहि नाला कपिआ जे गलु कपहि चुख ॥
पवनि न इती मामले सहां न इती दुख ॥76॥
77चबण चलण रतंन से सुणीअर बहि गए ॥
हेड़े मुती धाह से जानी चलि गए ।77॥
78फरीदा बुरे दा भला करि गुसा मनि न हढाइ ॥
देही रोगु न लगई पलै सभु किछु पाइ ॥78॥
79फरीदा पंख पराहुणी दुनी सुहावा बागु ॥
नउबति वजी सुबह सिउ चलण का करि साजु ॥79।
80फरीदा राति कथूरी वंडीऐ सुतिआ मिलै न भाउ ॥
जिंन्हा नैण नींद्रावले तिंन्हा मिलणु कुआउ ॥80॥
81फरीदा मै जानिआ दुखु मुझ कू दुखु सबाइऐ जगि ॥
ऊचे चड़ि कै देखिआ तां घरि घरि एहा अगि ॥81॥
82
महला 5फरीदा भूमि रंगावली मंझि विसूला बाग ॥
जो जन पीरि निवाजिआ तिंन्हा अंच न लाग ॥82
83
महला 5फरीदा उमर सुहावड़ी संगि सुवंनड़ी देह ॥
विरले केई पाईअनि जिंन्हा पिआरे नेह ॥83॥
84कंधी वहण न ढाहि तउ भी लेखा देवणा ॥
जिधरि रब रजाइ वहणु तिदाऊ गंउ करे ॥84॥
85फरीदा डुखा सेती दिहु गइआ सूलां सेती राति ॥
खड़ा पुकारे पातणी बेड़ा कपर वाति ॥85॥
86लमी लमी नदी वहै कंधी केरै हेति ॥
बेड़े नो कपरु किआ करे जे पातण रहै सुचेति ॥86॥
87फरीदा गलीं सु सजण वीह इकु ढूंढेदी न लहां ॥
धुखां जिउ मांलीह कारणि तिंन्हा मा पिरी ॥87॥
88फरीदा इहु तनु भउकणा नित नित दुखीऐ कउणु ॥
कंनी बुजे दे रहां किती वगै पउणु ॥88॥
89फरीदा रब खजूरी पकीआं माखिअ नई वहंन्हि ॥
जो जो वंञैं डीहड़ा सो उमर हथ पवंनि ॥89॥
90फरीदा तनु सुका पिंजरु थीआ तलीआं खूंडहि काग ॥
अजै सु रबु न बाहुड़िओ देखु बंदे के भाग ॥90॥
91कागा करंग ढंढोलिआ सगला खाइआ मासु ॥
ए दुइ नैना मति छुहउ पिर देखन की आस ॥91॥
92कागा चूंडि न पिंजरा बसै त उडरि जाहि ॥
जितु पिंजरै मेरा सहु वसै मासु न तिदू खाहि ॥92॥
93फरीदा गोर निमाणी सडु करे निघरिआ घरि आउ ॥
सरपर मैथै आवणा मरणहु ना डरिआहु ॥93॥
94एनी लोइणी देखदिआ केती चलि गई ॥
फरीदा लोकां आपो आपणी मै आपणी पई ॥94॥
95आपु सवारहि मै मिलहि मै मिलिआ सुखु होइ ॥
फरीदा जे तू मेरा होइ रहहि सभु जगु तेरा होइ ॥95॥
96कंधी उतै रुखड़ा किचरकु बंनै धीरु ॥
फरीदा कचै भांडै रखीऐ किचरु ताई नीरु ॥96॥
97फरीदा महल निसखण रहि गए वासा आइआ तलि ॥
गोरां से निमाणीआ बहसनि रूहां मलि ॥
आखीं सेखा बंदगी चलणु अजु कि कलि ॥97॥
98फरीदा मउतै दा बंना एवै दिसै जिउ दरीआवै ढाहा ॥
अगै दोजकु तपिआ सुणीऐ हूल पवै काहाहा ॥
इकना नो सभ सोझी आई इकि फिरदे वेपरवाहा ॥
अमल जि कीतिआ दुनी विचि से दरगह ओगाहा ॥98॥
99फरीदा दरीआवै कंन्है बगुला बैठा केल करे ॥
केल करेदे हंझ नो अचिंते बाज पए ॥
बाज पए तिसु रब दे केलां विसरीआं ॥
जो मनि चिति न चेते सनि सो गाली रब कीआं ॥99॥
100साढे त्रै मण देहुरी चलै पाणी अंनि ॥
आइओ बंदा दुनी विचि वति आसूणी बंन्हि ॥
मलकल मउत जां आवसी सभ दरवाजे भंनि ॥
तिन्हा पिआरिआ भाईआं अगै दिता बंन्हि ॥
वेखहु बंदा चलिआ चहु जणिआ दै कंन्हि ॥
फरीदा अमल जि कीते दुनी विचि दरगह आए कमि ॥100॥
101फरीदा हउ बलिहारी तिन्ह पंखीआ जंगलि जिंन्हा वासु ॥
ककरु चुगनि थलि वसनि रब न छोडनि पासु ॥101॥
102फरीदा रुति फिरी वणु क्मबिआ पत झड़े झड़ि पाहि ॥
चारे कुंडा ढूंढीआं रहणु किथाऊ नाहि ॥102॥
103फरीदा पाड़ि पटोला धज करी क्मबलड़ी पहिरेउ ॥
जिन्ही वेसी सहु मिलै सेई वेस करेउ ॥103॥
104
मः 3काइ पटोला पाड़ती क्मबलड़ी पहिरेइ ॥
नानक घर ही बैठिआ सहु मिलै जे नीअति रासि करेइ ॥104॥
105
मः 5फरीदा गरबु जिन्हा वडिआईआ धनि जोबनि आगाह ॥
खाली चले धणी सिउ टिबे जिउ मीहाहु ॥105॥
106फरीदा तिना मुख डरावणे जिना विसारिओनु नाउ ॥
ऐथै दुख घणेरिआ अगै ठउर न ठाउ ॥106॥
107फरीदा पिछल राति न जागिओहि जीवदड़ो मुइओहि ॥
जे तै रबु विसारिआ त रबि न विसरिओहि ॥107॥
108
मः5फरीदा कंतु रंगावला वडा वेमुहताजु ॥
अलह सेती रतिआ एहु सचावां साजु ॥108॥
109
मः5फरीदा दुखु सुखु इकु करि दिल ते लाहि विकारु ॥
अलह भावै सो भला तां लभी दरबारु ॥109॥
110
मः5फरीदा दुनी वजाई वजदी तूं भी वजहि नालि ॥
सोई जीउ न वजदा जिसु अलहु करदा सार ॥110॥
111
मः5फरीदा दिलु रता इसु दुनी सिउ दुनी न कितै कमि ॥
मिसल फकीरां गाखड़ी सु पाईऐ पूर करमि ॥111॥
112पहिलै पहरै फुलड़ा फलु भी पछा राति ॥
जो जागंन्हि लहंनि से साई कंनो दाति ॥112॥
113दाती साहिब संदीआ किआ चलै तिसु नालि ॥
इकि जागंदे ना लहन्हि इकन्हा सुतिआ देइ उठालि ॥113॥
114ढूढेदीए सुहाग कू तउ तनि काई कोर ॥
जिन्हा नाउ सुहागणी तिन्हा झाक न होर ॥114॥
115सबर मंझ कमाण ए सबरु का नीहणो ॥
सबर संदा बाणु खालकु खता न करी ॥115॥
116सबर अंदरि साबरी तनु एवै जालेन्हि ॥
होनि नजीकि खुदाइ दै भेतु न किसै देनि ॥116॥
117सबरु एहु सुआउ जे तूं बंदा दिड़ु करहि ॥
वधि थीवहि दरीआउ टुटि न थीवहि वाहड़ा ॥117॥
118फरीदा दरवेसी गाखड़ी चोपड़ी परीति ॥
इकनि किनै चालीऐ दरवेसावी रीति ॥118॥
119तनु तपै तनूर जिउ बालणु हड बलंन्हि ॥
पैरी थकां सिरि जुलां जे मूं पिरी मिलंन्हि ॥119॥
120
(मः 1)तनु न तपाइ तनूर जिउ बालणु हड न बालि ॥
सिरि पैरी किआ फेड़िआ अंदरि पिरी निहालि ॥120।
121
(मः 4)हउ ढूढेदी सजणा सजणु मैडे नालि ॥
नानक अलखु न लखीऐ गुरमुखि देइ दिखालि ॥121॥
122
(मः3)हंसा देखि तरंदिआ बगा आइआ चाउ ॥
डुबि मुए बग बपुड़े सिरु तलि उपरि पाउ ॥122॥
123
(मः3)मै जाणिआ वड हंसु है तां मै कीता संगु ॥
जे जाणा बगु बपुड़ा जनमि न भेड़ी अंगु ॥123॥
124
(मः1)किआ हंसु किआ बगुला जा कउ नदरि धरे ॥
जे तिसु भावै नानका कागहु हंसु करे ॥124॥
125सरवर पंखी हेकड़ो फाहीवाल पचास ॥
इहु तनु लहरी गडु थिआ सचे तेरी आस ॥125॥
126कवणु सु अखरु कवणु गुणु कवणु सु मणीआ मंतु ॥
कवणु सु वेसो हउ करी जितु वसि आवै कंतु ॥126॥
127निवणु सु अखरु खवणु गुणु जिहबा मणीआ मंतु ॥
ए त्रै भैणे वेस करि तां वसि आवी कंतु ॥127॥
128मति होदी होइ इआणा ॥
ताण होदे होइ निताणा ॥
अणहोदे आपु वंडाए ॥
को ऐसा भगतु सदाए ॥128॥
129इकु फिका न गालाइ सभना मै सचा धणी ॥
हिआउ न कैही ठाहि माणक सभ अमोलवे ॥129॥
130सभना मन माणिक ठाहणु मूलि मचांगवा ॥
जे तउ पिरीआ दी सिक हिआउ न ठाहे कही दा ॥130॥
नोट= श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज 130 सलोकों में से 18
सलोक सिक्ख गुरू साहिबान के हैं। इनमें से 4(32,113,
120,124) गुरू नानक देव जी के, 5(13,52,104,122,
123) गुरू अमर दास जी के, 1(121) गुरू राम दास जी का,
8(75,82,83,105,108 से 111) गुरू अर्जुन देव जी के हैं।
वाह फ़रीदा वाहु जिन लाए प्रेम कली
सुनत फरज़ तबाबिया रोजे रखन तीह
जूसफ खूह वगायआ, खूबी जिस इकीह
ढूंढे विच बाजार दे ना दस लए न वीह
इबराहीम खलील नूं आतश भट्ठ मलीह
इसमाईल कुहायआ दे के सार दपीह
साबर कीड़े घड्या, है सी वडा वलीह
ज़करिया चीर्या दरखत विच कीता डली डली
तखतहु सुट्या सुलेमान ढोवे पया मलीह ॥
सिर पर चादे काबियां न तिस लज न लीह
हजरत दा दामाद सी चड़्हआ उठ मली
उटहु सुटी बारे विच करदे ज़िकर जली
लेखा तिनां भी देवणा, सिका जान कली
बेड़ा डुब्बा नुह दा, नउ नेजे नीर चड़्ही
मूसा नठा मौत ते, ढूंडे काय गली
चारे कूंंडां ढूंढियां अगे मउत खली
रोवे बीबी फातमा बेटे दोए नही
मैं की फेड़्या रब्ब दा मेरी जोड़ी ख़ाक रली
महजाभि मानी कुहायआ होसी वडा वली
पीर पैकम्बर अउलीए, मरना तिन्नां भली
बिने चेते किछ न मिलै पहरा करन कली
ऊठ कतारां वेदियां हज़रत पकड़ खली
कुदरत के कुरबान हउ आगे होरि चली
फ़रीदा इह वेहानी तिना सिर, साडी क्या चली ॥
……
आवो सखी सहेलीयो मिल मसलत गोईए
आपो आपनी गल नूं भर हंझू रोईए
खेडे लालच लग्यां मैं उमर गवाई
कदे न पूनी हत्थ लै इक तन्दड़ी पाई
चरखा मेरा रंगला बह घाड़ु घड़ायआ
इवें पुराना हो गया विच कुछे धर्या
कतन वल न आइयो न चघन(कढन) कसीदा
कदे न बैठी निठ के करि नीवा दीदा
नाल कुचज्जिया बैठ के कोयी चज न लीता
उमर गवायी खेड विच कोयी कंम न कीता
करां कपाहों वटियां ते कणकों बूरा
लाडां विच न होया कोयी कंमड़ा पूरा
कतन वेल न आया न चकी चुला
विच गरूरी डुब के मैं सभ किछ भुला
कोयी कंम न सिख्या जे सह नूं भावां
वेला हथ न आंवदा, हुन पछोतावां
है नी अम्बड़ी मेरीए मैं रोयी हावे
उह सहु मेरा सोहणा, मैनूं नज़र न आवे
मैं भरवासा आद दा नित ड्रदी आही
झाती इक न पाईआ मैं भठ व्याही
आपने मन्दे हाल नूं न मिले, सहु देइ न ढोई
जांञी माञी बैठ के रल मसलत चाई
झबदे कढो डोलड़ी, हुन ढिल ना काई
पल दी ढिल न लांवदे उह खरे स्याणे
हुन की होंदा आख्या, रो पछोताने ॥
इक वल रोवे अम्बड़ी ते बाबल मेरा
अचणचेते आया सानूं जंगल डेरा
चीक चेहाड़ा पै ग्या विच रंग महली
रोवन जारी हो रेहा हुन सभनी वली
रल मिल आप सहेलियां मैनूं पकड़ चलायआ
जोड़ा पकड़ सहानड़ा मेरे गल पायआ
डोली मेरी रंगली लै आगे आए
बाहों पकड़ चलायआ लै बाहर धाए
कढ लै चले डोलड़ी, किस करे पुकारा
होइ निमानी मैं चली कोयी वस न चारा
अम्बड़ बाबल त्रै भैने ते सभे सहियां
इक इकली छड के मुड़ घर नूं गईआं
हुन क्युं के बैठ्यो गल पी प्यारे
उह गुणवंता बहुत है असीं औगुणहारे
ना कुछ दाज ना रूप है ना गुन है पले
आपने सिर पर आ बणी, असीं इक इकल्ले
जिनी गुनी सहु रावीए, मैनूं सो गुन नाहीं
रो वे जिया मेर्या कर खलियां बाहीं
ना हथ बधा गानना ना वटना लायआ
जेवर पैरीं पाय के मैं ठमक न चली
कूड़ी गलीं लग के मैं, साह थो भुली
ना नक बेसर पाईआ ना कन्नी झमके
ना सिर मांग भराईआ ना मथे दमके
ना गल हार हमेल हेठ ना मुन्दरी छल्ला
आहर तती दा हो रेहा कोयी ढंग अवल्ला
बाजूबन्द ना बंध्या नहीं कंगन पाए
वखत वेहाना की करां नी मेरीए माए
1साहब स्युं मान किवेहां माए कीजै नी
क्या कुझ भेट साहब कउ माए दीजै नी
क्या कुझ भेट साहब कउ दीजै, पलै मेरे नाहीं
जे शहु हेरे नदर ना फेरे ता धन रावे ताहीं
सो वखरु मेरे पलू नाहीं जित साहब का मन रीझै
साहब स्युं मान किवेहां माए कीजै ॥१॥
2बिन अमलां दोहागनि माए होवां नी
कै पह दुख इकेली, माए रोवां नी
कै पह दुख इकेली रोवां, आइ बनी सिर मेरे
जा का कान तान सभ रसिया, अवगन कई घनेरे
सहु पड़ने सी पकड़ चलेसी, हथ बन्द अगै खलोवां
बिन अमलां दोहागनि माए होवां ॥२॥
3ना रस जीभ ना रूप ना, करी किवैहा माना नी
ना गुन मंत ना कामन माए जाना नी
ना गुन मंत ना कामन जाणा, क्युं कर सहु नूं भावां
सहु बहुतियां नारी बहु गुण्यारी, कित बिध दरशन पावां
ना जाना सहु किसे रावेसी, मेरा जीउ निमाणा
ना रस जीभ ना रूप ना, करी किवैहा माना ॥३॥
4बिन गुर निस दिन फिरां नी माए, पिर के हावै
अउगण्यारी नूं क्युं कर कंत वसावै
अउगण्यारी नूं क्युं कंत वसावै मैं गुन कोयी नाही
सहुरे जासां तां पछुतासां, जाणसां माए तांही
मेरा साहब चंगा गुनी देहन्दा, कहे फ़रीदे सुनावे
बिन गुर निस दिन फिरां नी माए, पिर के हावे ॥४॥
नसीहत नामा
5सुन्नति फरज़ भरेद्यां, रोज़े रखे त्रीह
यूसफ खूह वहायआ, खूबियां जिस इकीह
ढूंडे विच बाज़ार दे, न दह लहै न वीह
इब्राहीम खलील नो, आतश भछि मिलीह
बेड़ा डुब्बा नुह दा, नउ नेजे नीर चड़्ही
ज़करिया चीर्यो दरखत विच, कीतो डली डली
साबर कीड़स भछ्या, हैसी वड्डा वली
मूसा नट्ठा मउत ते, ढूंडह काय गली
चारे कुंडां ढूंडियां, आगे मउत खली
रोवह बीबी फातमा, मेरे बेटे दोवें नही
मैं की फेड़्या रब्ब दा, मेरी जोड़ी ख़ाक रली
पीर पैगम्बर अउलीए, मरना तिन्हां भली
बिने चेते किछ न मिलह पहरा करन कली
ऊठ कतारां वेदियां हज़रति पकड़ खली
उपरि ऊठ चड़्हायआ,अंडे देखि हली
फोड़्या अंडा इक डिन रोशन जग चली
अगे देखे कुदरती, शहर बाज़ार गली
बाग शहर सभ देश डहं, राहु मुकामु भली
तयब कहर खेडदे, देखि रसूल चली
आपे बोलह देखह आउ
एक राति तिसके रहे, क्या प्रती तत भली
हज़रत भरम चुकाया, खोइ ईमान चली
फिरके आया तित राहु, जिथे गया जुली
पूछह ऊठ कतार ने कदिके राह चली ?
सभ्भ जुग चलते वापरे, ओड़क नाह अली
सौ सौ ऊठ कतार है आगा पाछा नहीं
कुदरत के कुरबान हउं आगे होर चली
फ़रीदा इह वेहानी तिन्हा सिरि, आसाडी क्या चली ॥