हम सत्त नाम के बैपारी।
कोइ-कोइ लादै काँसा पीतल, कोइ-कोइ लौंग सुपारी॥
हम तो लाद्यो नाम धनी को, पूरन खेप हमारी॥
पूँजी न टूटै नफा चौगुना, बनिज किया हम भारी॥
हाट जगाती रोक न सकिहै, निर्भय गैल हमारी॥
मोती बूँद घटहिं में उपजै, सुकिरत भरत कोठारी॥
नाम पदारथ लाद चला है, 'धरमदास बैपारी॥
खन गरजै, खन बिजरी चमकै, लहर उठै सोभा बरनि न जाय॥
सुन्न महल से अमरित बरसै, प्रेम अनंद होइ साध नहाय॥
खुली किवरिया मिटी अंधियरिया, धन सतगुरु जिन दिया है लखाय॥
'धरमदास बिनवै कर जोरी, सतगुरु चरन मैं रहत समाय॥
राँध परोसिन भेंटहूँ न पायों डोलिया फँदाये लिये जात हो ।। 1।।
डोलिया से उतरो उत्तर दिसि धनि नैहर लागल आग हो
सब्दै छावल साहेब नगरिया जहवाँ लिआये लिये जात हो ।। 2।।
भादो नदिया अगम बहै सजनी सूझै वार न पार हो
अबकी बेर साहेब पार उतारो फिर न आइब संसार हो ।। 3।।
डोलिया से उतरो साहेब घर सजनी बैठो घूंघट टार हो
कहैं कबीर सुनो धर्म दासा पाये पुरुष पुरान हो ।। 4।।
सतगुरु दिहलै जगाई पाचौं सुख सागर हौ।। 1।।
जब रहली जननी के ओदर, परन सम्हारल हो
जब लौ तन में प्रान, न तोहि बिसराइब हो ।। 2।।
एक बुन्द से साहेब मन्दिल, बनावल हो
बिना नेंव के मन्दिल, बहु कल लागल हो ।। 3।।
इहवाँ गाँव न ठाँव नहीं पुर पाटन हो
नाहिन बाट बटोही नहीं हित आपन हो ।। 4।।
साहब तेरी देखौं सेजरिया हो॥
लाल महल कै लाल कंगूरा, लालिनि लाग किवरिया हो।
लाल पलँग कै लाल बिछौना, लालिनि लागि झलरिया हो॥
लाल साहेब की ललिनि मूरत, लालि लालि अनुहरिया हो।
'धरमदास बिनवै कर जोरी, गुरु के चरन बलहरिया हो॥
झरिलागै महलिया, गगन घहराय।
खेलत रहलों बाबा चौवरिया आइ गये अनहार हो
सूतल मैं रहलौं सखियाँ विष कर आगर हो
नाम क रंग मंजीठ, लगै छूटै नहिं भाई।
लचपच रहो समाय, सार तामैं अधिकाई।
केती बार धुलाइये, दे दे करडा धोय।
ज्यों-ज्यों भट्ठी पर दिए, त्यों-त्यों उज्ज्वल होय॥
रैदास के दोहे / रैदास पद रविदास/पदावली
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