जिगर मुरादाबादी
Jigar Moradabadi
दुनिया-ए-दिल तबाह किये जा रहा हूँ मैं
सर्फ़-ए-निगाह-ओ-आह किये जा रहा हूँ मैं
दिल में किसी के राह / जिगर मुरादाबादी
दिल में किसी के राह किये जा रहा हूँ मैं
कितना हसीं गुनाह किये जा रहा हूँ मैं
ऐसी भी इक निगाह किये जा रहा हूँ मैं
ज़र्रों को मेहर-ओ-माह किये जा रहा हूँ मैं
फ़र्द-ए-अमल सियाह किये जा रहा हूँ मैं
रहमत को बेपनाह किये जा रहा हूँ मैं
9 सितम्बर 1960 (उम्र 70)
गोंडा, उत्तर प्रदेश (यूपी)
मुझ से लगे हैं इश्क़ की अज़मत को चार चाँद
ख़ुद हुस्न को गवाह किये जा रहा हूँ मैं
मासूम-ए-जमाल को भी जिस पे रश्क हो
ऐसे भी कुछ गुनाह किये जा रहा हूँ मैं
आगे क़दम बढ़ायें जिन्हें सूझता नहीं
रौशन चिराग़-ए-राह किये जा रहा हूँ मैं
तनक़ीद-ए-हुस्न मस्लहत-ए-ख़ास-ए-इश्क़ है
ये जुर्म गाह-गाह किये जा रहा हूँ मैं
गुलशनपरस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अज़ीज़
काँटों से भी निभाह किये जा रहा हूँ मैं
यूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बग़ैर
जैसे कोई गुनाह किये जा रहा हूँ मैं
मुझ से अदा हुआ है 'जिगर' जुस्तजू का हक़
हर ज़र्रे को गवाह किये जा रहा हूँ मैं
निगाहों से छुप कर कहाँ जाइएगा / जिगर मुरादाबादी
निगाहों से छुप कर कहाँ जाइएगा
जहाँ जाइएगा, हमें पाइएगा
मिटा कर हमें आप पछताइएगा
कमी कोई महसूस फ़र्माइएगा
नहीं खेल नासेह[1]! जुनूँ की हक़ीक़त[2]
समझ लीजिए तो समझाइएगा
कहीं चुप रही है ज़बाने-महब्बत
न फ़र्माइएगा तो फ़र्माइएगा
शब्दार्थ
1 धर्मोपदेशक
2 उन्माद की वास्तविकता
दुनिया के सितम याद ना / जिगर मुरादाबादी
दुनिया के सितम याद ना अपनी हि वफ़ा याद
अब मुझ को नहीं कुछ भी मुहब्बत के सिवा याद
मैं शिक्वाबलब था मुझे ये भी न रहा याद
शायद के मेरे भूलनेवाले ने किया याद
जब कोई हसीं होता है सर्गर्म-ए-नवाज़िश
उस वक़्त वो कुछ और भी आते हैं सिवा याद
मुद्दत हुई इक हादसा-ए-इश्क़ को लेकिन
अब तक है तेरे दिल के धड़कने की सदा याद
हाँ हाँ तुझे क्या काम मेरे शिद्दत-ए-ग़म से
हाँ हाँ नहीं मुझ को तेरे दामन की हवा याद
मैं तर्क-ए-रह-ओ-रस्म-ए-जुनूँ कर ही चुका था
क्यूँ आ गई ऐसे में तेरी लगज़िश-ए-पा याद
क्या लुत्फ़ कि मैं अपना पता आप बताऊँ
कीजे कोई भूली हुई ख़ास अपनी अदा याद
हर दम दुआएँ देना / जिगर मुरादाबादी
हर दम दुआएँ देना हर लम्हा आहें भरना
इन का भी काम करना अपना भी काम करना
याँ किस को है मय्यसर ये काम कर गुज़रना
एक बाँकपन पे जीना एक बाँकपन पे मरना
जो ज़ीस्त को न समझे जो मौत को न जाने
जीना उन्हीं का जीना मरना उन्हीं का मरना
हरियाली ज़िन्दगी पे सदक़े हज़ार जाने
मुझको नहीं गवारा साहिल की मौत मरना
रंगीनियाँ नहीं तो रानाइयाँ भी कैसी
शबनम सी नाज़नीं को आता नहीं सँवरना
तेरी इनायतों से मुझको भी आ चला है
तेरी हिमायतों में हर-हर क़दम गुज़रना
कुछ आ चली है आहट इस पायनाज़ की सी
तुझ पर ख़ुदा की रहमत ऐ दिल ज़रा ठहरना
ख़ून-ए-जिगर का हासिल इक शेर तक की सूरत
अपना ही अक्स जिस में अपना ही रंग भरना
हर सू दिखाई देते हैं वो जलवागर मुझे / जिगर मुरादाबादी
हर सू1 दिखाई देते हैं वो जलवागर2 मुझे
क्या-क्या फरेब3 देती है मेरी नज़र4 मुझे
डाला है बेखुदी5 ने अजब राह पर मुझे
आँखें हैं और कुछ नहीं आता नज़र मुझे
दिल ले के मेरा देते हो दाग़-ए-जिगर6 मुझे
ये बात भूलने की नहीं उम्र भर मुझे
आया ना रास नाला-ए-दिल7 का असर8 मुझे
अब तुम मिले तो कुछ नहीं अपनी ख़बर9 मुझे
1. हर सू : in every direction; 2. जलवागर : manifest, splendid; 3. फरेब : tricks; 4. नज़र : sight, vision; 5. बेखुदी : unconsciousness; 6. दाग़-ए-जिगर : burnt marks on the soul [actually liver, but that is so un-romantic!]; 7. नाला-ए-दिल : tears and lamentation of the heart; 8. असर : effect; 9. ख़बर : knowledge, information, gnosis
मुद्दत में वो फिर ताज़ा मुलाक़ात का आलम / जिगर मुरादाबादी
मुद्दत में वो फिर ताज़ा मुलाक़ात का आलम
ख़ामोश अदाओं में वो जज़्बात का आलम
अल्लाह रे वो शिद्दत-ए-जज़्बात का आलम
कुछ कह के वो भूली हुई हर बात का आलम
आरिज़ से ढलकते हुए शबनम के वो क़तरे
आँखों से झलकता हुआ बरसात का आलम
वो नज़रों ही नज़रों में सवालात की दुनिया
वो आँखों ही आँखों में जवाबात का आलम
दिल को जब दिल से राह होती है / जिगर मुरादाबादी
दिल को जब दिल से राह होती है
आह होती है वाह होती है
इक नज़र दिल की सिम्त देख तो लो
कैसे दुनिया तबाह होती है
हुस्न-ए-जानाँ की मन्ज़िलों को न पूछ
हर नफ़स एक राह होती है
क्या ख़बर थी कि इश्क़ के हाथों
ऐसी हालत तबाह होती है
साँस लेता हूँ दम उलझता है
बात करता हूँ आह होती है
जो उलट देती है सफ़ों के सफ़े
इक शिकस्ता-सी आह होती है
बुझी हुई शमा का धुआँ हूँ / जिगर मुरादाबादी
बुझी हुई शमा का धुआँ हूँ और अपने मर्कज़ को जा रहा हूँ
के दिल की हस्ती तो मिट चुकी है अब अपनी हस्ती मिटा रहा हूँ
मुहब्बत इन्सान की है फ़ित्रत कहा है इन्क़ा ने कर के उल्फ़त
वो और भी याद आ रहा है मैं उस को जितना भुला रहा हूँ
ये वक़्त है मुझ पे बंदगी का जिसे कहो सज्दा कर लूँ वर्ना
अज़ल से ता बे-अफ़्रीनत मैं आप अपना ख़ुदा रहा हूँ
ज़बाँ पे लबैक हर नफ़स में ज़मीं पे सज्दे हैं हर क़दम पर
चला हूँ यूँ बुतकदे को नासेह, के जैसे काबे को जा रहा हूँ
बराबर से बचकर गुज़र जाने वाले / जिगर मुरादाबादी
बराबर से बचकर गुज़र जाने वाले
ये नाले नहीं बे-असर जाने वाले
मुहब्बत में हम तो जिये हैं जियेंगे
वो होंगे कोई और मर जाने वाले
मेरे दिल की बेताबियाँ भी लिये जा
दबे पाओं मूँह फेर के जाने वाले
नहीं जानते कुछ कि जाना कहाँ है
चले जा रहे हैं मगर जाने वाले
तेरे इक इशारे पे साकित खड़े हैं
नहीं कह के सब से गुज़र जाने वाले
ज़र्रों से बातें करते हैं दीवारोदर से हम / जिगर मुरादाबादी
ज़र्रों से बातें करते हैं दीवारोदर से हम।
मायूस किस क़दर है, तेरी रहगुज़र से हम॥
कोई हसीं हसीं ही ठहरता नहीं ‘जिगर’।
बाज़ आये इस बुलन्दिये-ज़ौक़े-नज़र से हम॥
इतनी-सी बात पर है बस इक जंगेज़रगरी।
पहले उधर से बढ़ते हैं वो या इधर से हम॥
दिल को सुकून रूह को आराम आ गया / जिगर मुरादाबादी
दिल को सुकून रूह को आराम आ गया
मौत आ गयी कि दोस्त का पैगाम आ गया
जब कोई ज़िक्रे-गर्दिशे-अय्याम आ गया
बेइख्तियार लब पे तिरा नाम आ गया
दीवानगी हो, अक्ल हो, उम्मीद हो कि यास
अपना वही है वक़्त पे जो काम आ गया
दिल के मुआमलात में नासेह ! शिकस्त क्या
सौ बार हुस्न पर भी ये इल्ज़ाम आ गया
सैयाद शादमां है मगर ये तो सोच ले
मै आ गया कि साया तहे - दाम आ गया
दिल को न पूछ मार्काए - हुस्नों - इश्क़ में
क्या जानिये गरीब कहां काम आ गया
ये क्या मुक़ामे-इश्क़ है ज़ालिम कि इन दिनों
अक्सर तिरे बगैर भी आराम आ गया
मोहब्बत में क्या-क्या मुक़ाम आ रहे हैं / जिगर मुरादाबादी
मोहब्बत में क्या-क्या मुक़ाम आ रहे हैं
कि मंज़िल पे हैं और चले जा रहे हैं
ये कह-कह के हम दिल को बहला रहे हैं
वो अब चल चुके हैं वो अब आ रहे हैं
वो अज़-ख़ुद[1]ही नादिम[2]हुए जा रहे हैं
ख़ुदा जाने क्या ख़याल आ रहे हैं
हमारे ही दिल से मज़े उनके पूछो
वो धोके जो दानिस्ता[3] हम खा रहे हैं
जफ़ा करने वालों को क्या हो गया है
वफ़ा करके हम भी तो शरमा रहे हैं
वो आलम है अब यारो-अग़ियार [4]कैसे
हमीं अपने दुश्मन हुए जा रहे हैं
मिज़ाजे-गिरामी [5]की हो ख़ैर यारब
कई दिन से अक्सर वो याद आ रहे हैं
शब्दार्थ
1 स्वयं ही
2शर्मिंदा
3 जान-बूझकर
4मित्र और शत्रु
5 उनके स्वास्थ्य
ये दिन बहार के अब के भी रास आ न सके / जिगर मुरादाबादी
ये दिन बहार के अब के भी रास न आ सके
कि ग़ुंचे खिल तो सके खिल के मुस्कुरा न सके
मिरी तबाही ए दिल पर तो रहम खा न सके
जो रोशनी में रहे रोशनी को पा न सके
न जाने आह कि उन आँसूओं पे क्या गुज़री
जो दिल से आँख तक आये मिज़ा तक आ न सके
रह-ए-ख़ुलूस-ए-मुहब्बत के हादसात-ए-जहाँ
मुझे तो क्या मेरे नक़्श-ए-क़दम मिटा न सके
करेंगे मर के बक़ाए-दवाम क्या हासिल
जो ज़िंदा रह के मुक़ाम-ए-हयात पा न सके
नया ज़माना बनाने चले थे दीवाने
नई ज़मीं नया आसमाँ बना न सके
फ़ुर्सत कहाँ कि छेड़ करें आसमाँ से हम / जिगर मुरादाबादी
फ़ुर्सत कहाँ कि छेड़ करें आसमाँ से हम
लिपटे पड़े हैं लज़्ज़ते-दर्दे-निहाँ[1] से हम
इस दर्ज़ा बेक़रार थे दर्दे-निहाँ से हम
कुछ दूर आगे बढ़ गए उम्रे-रवाँ[2] से हम
ऐ चारासाज़[3] हालते दर्दे-निहाँ न पूछ
इक राज़ है जो कह नहीं सकते ज़बाँ से हम
बैठे ही बैठे आ गया क्या जाने क्या ख़याल
पहरों लिपट के रोए दिले-नातवाँ [4] से हम
शब्दार्थ
1 आन्तरिक वेदना के आनन्द
2 गतिशील आयु,जीवन
3उपचारक
4क्षीण, निर्बल हृदय
निगाहों का मर्कज़ बना जा रहा हूँ / जिगर मुरादाबादी
निगाहों का मर्कज़ [1]बना जा रहा हूँ
महब्बत के हाथों लुटा जा रहा हूँ
मैं क़तरा हूँ लेकिन ब-आग़ोशे-दरिया[2]
अज़ल[3] से अबद[4] तक बहा जा रहा हूँ
वही हुस्न जिसके हैं ये सब मज़ाहिर[5]
उसी हुस्न से हल हुआ जा रहा हूँ
न जाने कहाँ से न जाने किधर को
बस इक अपनी धुन में उड़ा जा रहा हूँ
न इदराके-हस्ती [6]न एहसासे-मस्ती[7]
जिधर चल पड़ा हूँ चला जा रहा हूँ
न सूरत[8] न मआनी [9]न पैदा[10], न पिन्हाँ[11]
ये किस हुस्न[12] में गुम हुआ जा रहा हूँ
शब्दार्थ
1 केन्द्र
2 समुद्र की गोद में
3 प्रारब्ध
4 अनन्त
5अभिव्यक्तियाँ
6 जीवन का विवेक
7मस्ती की अनुभूति
8 रूप
9 अर्थ
10प्रत्यक्ष
11छिपा हुआ
12 सौंदर्य
मुझे दे रहें हैं तसल्लियाँ वो हर एक ताज़ा / जिगर मुरादाबादी
मुझे दे रहे हैं तसल्लियाँ वो हर एक ताज़ा पयाम से
कभी आके मंज़र-ए-आम पर कभी हट के मंज़र-ए-आम से
न गरज़ किसी से न वास्ता, मुझे काम अपने ही काम से
तेरे ज़िक्र से, तेरी फ़िक्र से, तेरी याद से, तेरे नाम से
मेरे साक़िया, मेरे साक़िया, तुझे मरहबा, तुझे मरहबा
तू पिलाये जा, तू पिलाये जा, इसी चश्म-ए-जाम ब जाम से
तेरी सुबह-ओ-ऐश है क्या बला, तुझे अए फ़लक जो हो हौसला
कभी करले आके मुक़ाबिला, ग़म-ए-हिज्र-ए-यार की शाम से
कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे / जिगर मुरादाबादी
कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं[1] रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
ईमान-ओ-कुफ़्र[2] और न दुनिया-ओ- दीं [3] रहे
ऐ इश्क़ !शादबाश [4] कि तनहा हमीं रहे
या रब किसी के राज़-ए-मोहब्बत की ख़ैर हो
दस्त-ए-जुनूँ[5] रहे न रहे आस्तीं[6] रहे
जा और कोई ज़ब्त[7] की दुनिया तलाश कर
ऐ इश्क़ हम तो अब तेरे क़ाबिल नहीं रहे
मुझ को नहीं क़ुबूल दो आलम[8] की वुस'अतें[9]
क़िस्मत में कू-ए-यार [10] की दो ग़ज़ ज़मीं रहे
दर्द-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ [11] के ये सख़्त- मरहले[12]
हैरां[13] हूँ मैं कि फिर भी तुम इतने हसीं रहे
इस इश्क़ की तलाफ़ी-ए-माफ़ात[14] देखना
रोने की हसरतें हैं जब आँसू नहीं रहे
शब्दार्थ
1 पहलू में बैठे
2 धर्म-अधर्म
3दुनिया और धर्म
4प्रसन्न रहो
5उन्माद का हाथ
6आस्तीन
7सहनशीलता
8दोनों लोकों की
9विशालताएँ
10प्रेयसी की गली
11 विरह वेदना
12 समस्याएँ
13विस्मित
14 समय निकलने के बाद की क्षतिपूर्ति
हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं / जिगर मुरादाबादी
हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हमसे ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं
बेफ़ायदा अलम नहीं, बेकार ग़म नहीं
तौफ़ीक़ दे ख़ुदा तो ये ने'आमत भी कम नहीं
मेरी ज़ुबाँ पे शिकवा-ए-अह्ल-ए-सितम नहीं
मुझको जगा दिया यही एहसान कम नहीं
या रब! हुजूम-ए-दर्द को दे और वुस'अतें
दामन तो क्या अभी मेरी आँखें भी नम नहीं
ज़ाहिद कुछ और हो न हो मयख़ाने में मगर
क्या कम ये है कि शिकवा-ए-दैर-ओ-हरम नहीं
शिकवा तो एक छेड़ है लेकिन हक़ीक़तन
तेरा सितम भी तेरी इनायत से कम नहीं
मर्ग-ए-ज़िगर पे क्यों तेरी आँखें हैं अश्क-रेज़
इक सानिहा सही मगर इतनी अहम नहीं
मोहब्बत की मोहब्बत तक ही जो दुनिया समझते हैं / जिगर मुरादाबादी
मुमकिन[1] नहीं कि जज़्बा-ए-दिल[2] कारगर [3] न हो
ये और बात है तुम्हें अब तक ख़बर न हो
तौहीने-इश्क़ [4]देख न हो ऐ ‘ जिगर’ न हो
हो जाए दिल का ख़ून मगर आँख नम न हो
लाज़िम[5] ख़ुदी[6] का होश भी है बेख़ुदी[7] के साथ
किसकी उसे ख़बर जिसे अपनी ख़बर न हो
एहसाने-इश्क़ अस्ल में तौहीने-हुस्न[8] है
हाज़िर है दीनो-दिल
[9] भी ज़रूरत अगर न हो
या तालिबे-दुआ[10] था मैं इक- एक से ‘जिगर’
या ख़ुद ये चाहता हूँ दुआ में असर न हो
शब्दार्थ
1 संभव
2 मनो-भावना
3सफल
4 इश्क़ का अपमान
5आवश्यक
6आत्म-सम्मान का भाव
7आत्म-विसर्जन,आत्म-विस्मरण
8सौंदर्य का अपमान
9धर्म और दिल
10दुआ करने का इच्छुक