amir khusro poet
1253 - 1325 पटियाली, उत्तर प्रदेश
सूफ़ी संत, संगीतकार, इतिहासकार और भाषाविद। हज़रत निज़ामुद्दीन के शिष्य और खड़ी बोली हिंदी के पहले कवि। ‘हिंदवी’ शब्द के पुरस्कर्ता।
छाप-तिलक तज दीन्हीं रे तोसे नैना मिला के।
प्रेम बटी का मदवा पिला के,
मतवारी कर दीन्ही रे मों से नैना मिला के।
ख़ुसरो निज़ाम पै बलि-बलि जइए,
मोहे सुहागन कीन्हीं रे मोसे नैना मिला के॥
अमीर ख़ुसरो कहते हैं कि गुरु ने मुझसे नेत्र मिलाकर अर्थात प्रेमपूर्वक अपनाकर मेरे कोरे बाहरी दिखावे के आचरण को मिटा दिया है और मुझे बाह्याडंबर से मुक्त कर दिया है। उन्होंने प्रेम रूपी भट्टी से निर्मित ज्ञान रूपी शराब पिलाकर मुझे मदमस्त या आनंदमग्न कर दिया है। इस तरह उन्होंने मुझ पर अपना प्रेम-भाव व्यक्त किया है। इस कृपादृष्टि के लिए मैं अपने गुरु निज़ामुद्दीन औलिया पर स्वयं को न्यौछावर करता हूँ। गुरु ने ऐसा दिव्य-ज्ञान या आध्यात्मिक दृष्टि देकर मुझे सौभाग्यशाली बना दिया है, मुझे संसार के समस्त आडंबरों एवं अज्ञान से मुक्त कर दिया है। यह मेरा परम सौभाग्य है।
ज़े हाले मिसकीं मकुन तग़ाफ़ुल
दुराय नैना बनाय बतियाँ।
कि ताबे-हिजरा न दारम् ऐ जां
न लेहु काहे लगाय छतियाँ॥
शबाने-हिजराँ दराज़ चूं ज़ुल्फ़ो—
रोज़े वसलत चूं उम्र कोताह।
सखी पिया को जो मैं न देखूँ
तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ॥
यकायक अज़दिल दो चश्म जादू
बसद फ़रेबम बुबुर्द तसकी।
किसे पड़ी है जो जा सुनावे
पियारे पी को हमारी बतियाँ॥
चु शमअ सोज़ा चु ज़र्रा हैरां
ज़े मेहरे आंमह बगश्तम् आख़िर।
न नींद नैनां न अंग चैना
न आप आवें न भेजें पतियां॥
ब हक्क़े रोज़े-विसाले दिलवर
कि दाद मारा फ़रेब ख़ुसरो।
सो पीत मन की दुराय राखों
जो जान पाऊँ पिया की घतियां॥
मुझ ग़रीब मिस्कीन की हालत से यूँ बेख़बर मत बनो। आँखें मिलाते हो, आँखें चुराते हो और बातें बनाते हो। मेरी जान! जुदाई की ताब सहने का सामर्थ्य मुझमें नहीं है। मुझे अपने सीने से क्यों नहीं लगा लेते! जुदाई की रातें ज़ुल्फ़ की तरह लंबी हैं और मिलन के दिन ज़िदगी की तरह छोटे हैं। हे सखी! मैं यदि अपने पिया को न देखूँ तो डरावनी व अँधेरी रातें कैसे कटे! जादू भरी इन दोनों आँखों ने अचानक सैकड़ों बहानों से मेरा धैर्य छीन लिया है। किसके पास वक़्त है या किसे पड़ी है जो मेरे जी की बात सुने अर्थात मेरा दुःख सुने। मैं शमाँ की तरह जल रहा हूँ और ज़र्रे की तरह हैरान हूँ, आख़िरकार मैं उस बुत (कठोर दिल) की मोहब्बत में गिरफ़्तार हो गया हूँ। मेरी आँखों में ना नींद है और ना दिल को चैन है। और मेरा प्रिय इतना निष्ठुर है कि ना तो आप आता है और ना ही चिट्ठियाँ ही भेजता है। मिलन वाले दिनों की क़सम, मेरे महबूब ने मेरे साथ फ़रेब किया है। मैं अपनी प्रीत को अपने दिल में दबाकर रखती अगर मैं जानती कि मेरे महबूब से मुझे फ़रेब मिलेगा।
जब यार देखा नैन भर, दिल की गई चिंता उतर,
ऐसा नहीं कोई अजब राखे उसे समझाय कर।
जब आँख से ओझल भया, तड़पन लगा मेरा जिया,
हक़्क़ा इलाही क्या किया, आँसू चले भर लाय कर।
तूँ तो हमारा यार है, तुझ पर हमारा प्यार है,
तुझ दोस्ती बिसियार है, एक शब मिलो तुम आय कर।
जाना तलब तेरी करूँ, दीगर तलब किसकी करूँ,
तेरी जो चिंता दिल धरूँ, एक दिन मिलो तुम आय कर।
मेरो जो मन तुम ने लिया, तुम उठा ग़म को दिया,
तुमने मुझे ऐसा किया, जैसा पतंगा आग पर।
ख़ुसरो कहै बातों ग़ज़ब, दिल में न लावे कुछ अजब,
क़ुदरत ख़ुदा की है अजब, जब जिव दिया गुल लाय कर।
अमीर ख़ुसरो कहते हैं कि जब प्रेमी को आँखें भर कर अर्थात अच्छी तरह देखा, तो हृदय की चिंता समाप्त हो गई। हर संसार में ऐसा कोई परिचित-अनजान नहीं है जो उसे समझाकर रखे। मेरा प्रेमी जब आँखों से ओझल या अदृश्य हो गया, तो चिंता के कारण मेरा हृदय तड़पने लगा। हे ख़ुदा, तुमने ये क्या किया! ऐसी आह निकलने के साथ ही आँखों से आँसू गिरने लगे। कवि कहता है कि हे प्रिय, तू तो हमारा परम प्रेमी है और तुझ पर मेरा पूरा प्रेम-भाव है। तुम्हारे साथ मेरी मित्रता विशिष्ट या शाश्वत है; तुम मुझे एक रात्रि में आकर मिलने का सुख दो। तुम मेरे प्राण हो, मैं तुम्हें सदा अपने पास देखना चाहता हूँ। तुम्हारे सिवा मैं किसकी अभिलाषा करूँ? मैं रात-दिन तेरी ही चिंता अपने हृदय में करता रहता हूँ। इसलिए हे प्रिय, एक दिन आकर तुम मुझसे मिलो और मुझे तसल्ली दो। मैंने अपना हृदय तुम्हें समर्पित कर दिया है, परंतु तुमने इस समर्पण के बदले मुझे वेदना-व्यथा दी है। तुमने ऐसा कठोर व्यवहार किया, जैसे पतंगा आग पर प्रेमातिरेक से गिरता है, परंतु आग उसे जलाकर नष्ट कर देती है। कवि ख़ुसरो कहते हैं कि प्रेम-व्यवहार की ये बातें बड़ी सुंदर एवं भावपूर्ण हैं, इसके लिए हृदय में कोई ग़लत बात या विपरीत बात नहीं लाई जावे। इस संसार में ईश्वर की लीला विचित्र है, ख़ुदा की सृष्टि अनोखी है। जब उस ईश्वर ने जीवन व प्राण दिये हैं तो वह हार्दिक प्रेम-भावना भी प्रदान करे और प्रेमी से मिलन भी करा दे। कवि का आशय परमात्मा प्रियतम से मिलन एवं साक्षात्कार की कामना-पूर्ति है। इससे ईश्वर को ही ऐसा प्रेमी बताया गया है, जिससे सनातन काल से जीव प्रेम-भाव रखता रहा और उसी से समागम भी चाहता है।
बेटी तेरा बावा बूढ़ा री—के सावन आया।
अम्मा मेरे भाई को भेजो जी—के सावन आया।
बेटी तेरा भाई तो बालारी—के सावन आया।
अम्मा मेरे मामूं को भेजो जी—के सावन आया।
बेटी तेरा मामूं बांका री—के सावन आया॥