Koi Deewana Kehta Hai
Kumar Vishwas
Poetry/Kavita Collection
Kumar Vishwas Kavita Sangrah
ोई दीवाना कहता है कुमार विश्वास कविता
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है !
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!
मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी कबिरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !!
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं !
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !!
बदलने को तो इन आंखों के मंजर कम नहीं बदले,
तुम्हारी याद के मौसम हमारे गम नहीं बदले
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी तब तो मानोगी,
जमाने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले
हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते
मगर रस्मे-वफ़ा ये है कि ये भी कह नहीं सकते
जरा कुछ देर तुम उन साहिलों कि चीख सुन भर लो
जो लहरों में तो डूबे हैं, मगर संग बह नहीं सकते
समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता !
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता !!
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता !!
मिले हर जख्म को मुस्कान को सीना नहीं आया
अमरता चाहते थे पर ज़हर पीना नहीं आया
तुम्हारी और मेरी दस्ता में फर्क इतना है
मुझे मरना नहीं आया तुम्हे जीना नहीं आया
पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या
जो दिल हारा हुआ हो उस पर फिर अधिकार करना क्या
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कश्मकश में है
हो गर मालूम गहराई तो दरिया पार करना क्या
जहाँ हर दिन सिसकना है जहाँ हर रात गाना है
हमारी ज़िन्दगी भी इक तवायफ़ का घराना है
बहुत मजबूर होकर गीत रोटी के लिखे हमने
तुम्हारी याद का क्या है उसे तो रोज़ आना है
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ
तुम्हे मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ
मैं जब भी तेज़ चलता हूँ नज़ारे छूट जाते हैं
कोई जब रूप गढ़ता हूँ तो साँचे टूट जाते हैं
मैं रोता हूँ तो आकर लोग कँधा थपथपाते हैं
मैं हँसता हूँ तो अक़्सर लोग मुझसे रूठ जाते हैं
सदा तो धूप के हाथों में ही परचम नहीं होता
खुशी के घर में भी बोलों कभी क्या गम नहीं होता
फ़क़त इक आदमी के वास्तें जग छोड़ने वालो
फ़क़त उस आदमी से ये ज़माना कम नहीं होता।
हमारे वास्ते कोई दुआ मांगे, असर तो हो
हकीकत में कहीं पर हो न हो आँखों में घर तो हो
तुम्हारे प्यार की बातें सुनाते हैं ज़माने को
तुम्हें खबरों में रखते हैं मगर तुमको खबर तो हो
बताऊँ क्या मुझे ऐसे सहारों ने सताया है,
नदी तो कुछ नहीं बोली किनारों ने सताया है
सदा ही शूल मेरी राह से खुद हट गये लेकिन,
मुझे तो हर घड़ी हर पल बहारों ने सताया है।
हर एक नदिया के होंठों पे समंदर का तराना है,
यहाँ फरहाद के आगे सदा कोई बहाना है !
वही बातें पुरानी थीं, वही किस्सा पुराना है,
तुम्हारे और मेरे बीच में फिर से जमाना है
मेरा प्रतिमान आंसू मे भिगो कर गढ़ लिया होता,
अकिंचन पाँव तब आगे तुम्हारा बढ़ लिया होता,
मेरी आँखों मे भी अंकित समर्पण की रिचाएँ थीं,
उन्हें कुछ अर्थ मिल जाता जो तुमने पढ़ लिया होता
कोई खामोश है इतना, बहाने भूल आया हूँ
किसी की इक तरनुम में, तराने भूल आया हूँ
मेरी अब राह मत तकना कभी ए आसमां वालो
मैं इक चिड़िया की आँखों में, उड़ाने भूल आया हूँ
हमें दो पल सुरूरे-इश्क़ में मदहोश रहने दो
ज़ेहन की सीढियाँ उतरो, अमां ये जोश रहने दो
तुम्ही कहते थे "ये मसले, नज़र सुलझी तो सुलझेंगे",
नज़र की बात है तो फिर ये लब खामोश रहने दो
मैं उसका हूँ वो इस अहसास से इनकार करता है
भरी महफ़िल में भी, रुसवा हर बार करता है
यकीं है सारी दुनिया को, खफा है मुझसे वो लेकिन
मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करता है
अभी चलता हूँ, रस्ते को मैं मंजिल मान लूँ कैसे
मसीहा दिल को अपनी जिद का कातिल मान लूँ कैसे
तुम्हारी याद के आदिम अंधेरे मुझ को घेरे हैं
तुम्हारे बिन जो बीते दिन उन्हें दिन मान लूँ कैसे
भ्रमर कोई कुमुदुनी पर मचल बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का!
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!!
कभी कोई जो खुलकर हंस लिया दो पल तो हंगामा
कोई ख़्वाबों में आकर बस लिया दो पल तो हंगामा
मैं उससे दूर था तो शोर था साजिश है, साजिश है
उसे बाहों में खुलकर कस लिया दो पल तो हंगामा
जब आता है जीवन में खयालातों का हंगामा
ये जज्बातों, मुलाकातों हंसी रातों का हंगामा
जवानी के क़यामत दौर में यह सोचते हैं सब
ये हंगामे की रातें हैं या है रातों का हंगामा
कल्म को खून में खुद के डुबोता हूँ तो हंगामा
गिरेबां अपना आंसू में भिगोता हूँ तो हंगामा
नही मुझ पर भी जो खुद की खबर वो है जमाने पर
मैं हंसता हूँ तो हंगामा, मैं रोता हूँ तो हंगामा
इबारत से गुनाहों तक की मंजिल में है हंगामा
ज़रा-सी पी के आये बस तो महफ़िल में है हंगामा
कभी बचपन, जवानी और बुढापे में है हंगामा
जेहन में है कभी तो फिर कभी दिल में है हंगामा
हुए पैदा तो धरती पर हुआ आबाद हंगामा
जवानी को हमारी कर गया बर्बाद हंगामा
हमारे भाल पर तकदीर ने ये लिख दिया जैसे
हमारे सामने है और हमारे बाद हंगामा
ये उर्दू बज़्म है और मैं तो हिंदी माँ का जाया हूँ
ज़बानें मुल्क़ की बहनें हैं ये पैग़ाम लाया हूँ
मुझे दुगनी मुहब्बत से सुनो उर्दू ज़बाँ वालों
मैं हिंदी माँ का बेटा हूँ, मैं घर मौसी के आया हूँ
स्वयं से दूर हो तुम भी, स्वयं से दूर हैं हम भी
बहुत मशहुर हो तुम भी, बहुत मशहुर हैं हम भी
बड़े मगरूर हो तुम भी, बड़े मगरूर हैं हम भी
अत: मजबूर हो तुम भी, अत: मजबूर हैं हम भी
हरेक टूटन, उदासी, ऊब आवारा ही होती है,
इसी आवारगी में प्यार की शुरुआत होती है,
मेरे हँसने को उसने भी गुनाहों में गिना जिसके,
हरेक आँसू को मैंने यूँ संभाला जैसे मोती है
कहीं पर जग लिए तुम बिन, कहीं पर सो लिए तुम बिन
भरी महफिल में भी अक्सर, अकेले हो लिए तुम बिन
ये पिछले चंद वर्षों की कमाई साथ है अपने
कभी तो हंस लिए तुम बिन, कभी तो रो लिए तुम बिन
हमें दिल में बसाकर अपने घर जाएं तो अच्छा हो
हमारी बात सुनलें और ठहर जाएं तो अच्छा हो
ये सारी शाम जाब नज़रों ही नज़रो में बिता दी है
तो कुछ पल और आँखों में गुज़र जाएँ तो अच्छा हो
बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन,
मन हीरा बेमोल लुट गया रोता घिस घिस री तातन चन्दन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज गजब की हैं,
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन
तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
रात की उदासी को याद संग खेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
मन तुम्हारा !
हो गया
तो हो गया ....
एक तुम थे
जो सदा से अर्चना के गीत थे,
एक हम थे
जो सदा से धार के विपरीत थे
ग्राम्य-स्वर
कैसे कठिन आलाप नियमित साध पाता,
द्वार पर संकल्प के
लखकर पराजय कंपकंपाता
क्षीण सा स्वर
खो गया तो, खो गया
मन तुम्हारा !
हो गया
तो हो गया.........
लाख नाचे
मोर सा मन लाख तन का सीप तरसे,
कौन जाने
किस घड़ी तपती धरा पर मेघ बरसे,
अनसुने चाहे रहे
तन के सजग शहरी बुलावे,
प्राण में उतरे मगर
जब सृष्टि के आदिम छलावे
बीज बादल
बो गया तो, बो गया,
मन तुम्हारा!
हो गया
तो हो गया.......
मै तुम्हे ढूंढने
रोज आता रहा, रोज जाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
जिन्दगी के सभी रास्ते एक थे
सबकी मंजिल तुम्हारे चयन तक गई
अप्रकाशित रहे पीर के उपनिषद्
मन की गोपन कथाएँ नयन तक रहीं
प्राण के पृष्ठ पर गीत की अल्पना
तुम मिटाती रही मैं बनाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
एक खामोश हलचल बनी जिन्दगी
गहरा ठहरा जल बनी जिन्दगी
तुम बिना जैसे महलों में बीता हुआ
उर्मिला का कोई पल बनी जिन्दगी
दृष्टि आकाश में आस का एक दिया
तुम बुझती रही, मैं जलाता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
तुम चली गई तो मन अकेला हुआ
सारी यादों का पुरजोर मेला हुआ
कब भी लौटी नई खुशबुओं में सजी
मन भी बेला हुआ तन भी बेला हुआ
खुद के आघात पर व्यर्थ की बात पर
रूठती तुम रही मैं मानता रहा
तुम ग़ज़ल बन गई, गीत में ढल गई
मंच से में तुम्हें गुनगुनाता रहा
मैं तुम्हें ढूँढने स्वर्ग के द्वार तक
रोज आता रहा, रोज जाता रहा
ओ कल्पवृक्ष की सोनजुही,
ओ अमलताश की अमलकली,
धरती के आतप से जलते,
मन पर छाई निर्मल बदली,
मैं तुमको मधुसदगन्ध युक्त संसार नहीं दे पाऊँगा,
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा।
तुम कल्पव्रक्ष का फूल और,
मैं धरती का अदना गायक,
तुम जीवन के उपभोग योग्य,
मैं नहीं स्वयं अपने लायक,
तुम नहीं अधूरी गजल शुभे,
तुम शाम गान सी पावन हो,
हिम शिखरों पर सहसा कौंधी,
बिजुरी सी तुम मनभावन हो,
इसलिये व्यर्थ शब्दों वाला व्यापार नहीं दे पाऊँगा,
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा।
तुम जिस शय्या पर शयन करो,
वह क्षीर सिन्धु सी पावन हो,
जिस आँगन की हो मौलश्री,
वह आँगन क्या व्रन्दावन हो,
जिन अधरों का चुम्बन पाओ,
वे अधर नहीं गंगातट हों,
जिसकी छाया बन साथ रहो,
वह व्यक्ति नहीं वंशीवट हो,
पर मैं वट जैसा सघन छाँह विस्तार नहीं दे पाऊँगा,
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा।
मै तुमको चाँद सितारों का,
सौंपू उपहार भला कैसे,
मैं यायावर बंजारा साँधू,
सुर श्रंगार भला कैसे,
मै जीवन के प्रश्नों से नाता तोड तुम्हारे साथ शुभे,
बारूद बिछी धरती पर कर लूँ,
दो पल प्यार भला कैसे,
इसलिये विवष हर आँसू को सत्कार नहीं दे पाऊँगा,
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा।
कल नुमाइश में फिर गीत मेरे बिके
और मैं क़ीमतें ले के घर आ गया,
कल सलीबों पे फिर प्रीत मेरी चढ़ी
मेरी आँखों पे स्वर्णिम धुआँ छा गया।
कल तुम्हारी सुधि में भरी गन्ध फिर
कल तुम्हारे लिए कुछ रचे छन्द फिर,
मेरी रोती सिसकती सी आवाज़ में
लोग पाते रहे मौन आनंद फिर,
कल तुम्हारे लिए आँख फिर नम हुई
कल अनजाने ही महफ़िल में मैं छा गया,
कल नुमाइश में फिर गीत मेरे बिके
और मैं क़ीमतें ले के घर आ गया।
कल सजा रात आँसू का बाज़ार फिर
कल ग़ज़ल-गीत बनकर ढला प्यार फिर,
कल सितारों-सी ऊँचाई पाकर भी मैं
ढूँढता ही रहा एक आधार फिर,
कल मैं दुनिया को पाकर भी रोता रहा
आज खो कर स्वयं को तुम्हें पा गया,
कल नुमाइश में फिर गीत मेरे बिके
और मैं क़ीमतें ले के घर आ गया।
तुम गए क्या, शहर सूना कर गये,
दर्द का आकार दूना कर गये।
जानता हूँ फिर सुनाओगे मुझे मौलिक कथाएँ,
शहर भर की सूचनाएँ, उम्र भर की व्यस्तताएँ;
पर जिन्हें अपना बनाकर, भूल जाते हो सदा तुम,
वे तुम्हारे बिन, तुम्हारी वेदना किसको सुनाएँ;
फिर मेरा जीवन, उदासी का नमूना कर गये,
तुम गए क्या, शहर सूना कर गये।
मैं तुम्हारी याद के मीठे तराने बुन रहा था,
वक्त खुद जिनको मगन हो, सांस थामे सुन रहा था;
तुम अगर कुछ देर रूकते तो तुम्हें मालूम होता,
किस तरह बिखरे पलों में मैं बहाने चुन रहा था;
रात भर हाँ-हाँ किया पर प्रात में ना कर गये,
तुम गए क्या, शहर सूना कर गये।
खुद से बहुत मैं दूर था, बेशक ज़माना पास था
जीवन में जब तुम थे नहीं, पल भर नहीं उल्लास था
खुद से बहुत मैं दूर था, बेशक ज़माना पास था
होठों पे मरुथल और दिल में एक मीठी झील थी
आँखों में आँसू से सजी, इक दर्द की कन्दील थी
लेकिन मिलोगे तुम मुझे
मुझको अटल विश्वास था
खुद से बहुत मैं दूर था, बेशक ज़माना पास था
तुम मिले जैसे कुँवारी कामना को वर मिला
चाँद की आवारगी को पूनमी-अम्बर मिला
तन की तपन में जल गया
जो दर्द का इतिहास था
खुद से बहुत मैं दूर था, बेशक ज़माना पास था।
एक शर्त पर मुझे निमन्त्रण है मधुरे स्वीकार
सफ़ाई मत देना!
अगर करो झूठा ही चाहे, करना दो पल प्यार
सफ़ाई मत देना
अगर दिलाऊँ याद पुरानी कोई मीठी बात
दोष मेरा होगा
अगर बताऊँ कैसे झेला प्राणों पर आघात
दोष मेरा होगा
मैं ख़ुद पर क़ाबू पाऊंगा, तुम करना अधिकार
सफ़ाई मत देना
है आवश्यक वस्तु स्वास्थ्य -यह भी मुझको स्वीकार
मगर मजबूरी है
प्रतिभा के यूँ क्षरण हेतु भी मैं ही ज़िम्मेदार
मगर मजबूरी है
तुम फिर कोई बहाना झूठा कर लेना तैयार
सफ़ाई मत देना
बादड़ियो गगरिया भर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
प्यासे तन-मन-जीवन को
इस बार तो तू तर कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
अंबर से अमृत बरसे
तू बैठ महल मे तरसे
प्यासा ही मर जाएगा
बाहर तो आजा घर से
इस बार समन्दर अपना
बूँदों के हवाले कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
सबकी अरदास पता है
रब को सब खास पता है
जो पानी में घुल जाए
बस उसको प्यास पता है
बूँदों की लड़ी बिखरा दे
आँगन मे उजाले कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
प्यासे तन-मन-जीवन को
इस बार तू तर कर दे
बादड़ियो गगरिया भर दे
धीरे-धीरे चल री पवन मन आज है अकेला रे
पलकों की नगरी में सुधियों का मेला रे
धीरे चलो री आज नाव ना किनारा है
नयनो के बरखा में याद का सहारा है
धीरे-धीरे निकल मगन-मन, छोड़ सब झमेला रे
पलकों की नगरी में सुधियों का मेला रे
होनी को रोके कौन, वक्त से बंधे हैं सब
राह में बिछुड़ जाए, कौन जाने कैसे कब
पीछे मींचे आँख, संजोये दुनिया का रेला रे
पलकों की नगरी में सुधियों का मेला रे
तेज जो चले हैं माना दुनिया से आगे हैं
किसको पता है किन्तु, कितने अभागे हैं
वो क्या जाने महका कैसे, आधी रात बेला रे
पलकों की नगरी में सुधियों का मेला रे
बाँध दूँ चाँद, आँचल के इक छोर में
माँग भर दूँ तुम्हारी सितारों से मैं
क्या समर्पित करूँ जन्मदिन पर तुम्हें
पूछता फिर रहा हूँ बहारों से मैं
गूँथ दूँ वेणी में पुष्प मधुमास के
और उनको ह्रदय की अमर गंध दूं,
स्याह भादों भरी, रात जैसी सजल
आँख को मैं अमावस का अनुबंध दूं
पतली भू-रेख की फिर करूँ अर्चना
प्रीति के मद भरे कुछ इशारों से मैं
बाँध दूं चाँद, आँचल के इक छोर में
मांग भर दूं तुम्हारी सितारों से मैं
पंखुरी-से अधर-द्वय तनिक चूमकर
रंग दे दूं उन्हें सांध्य आकाश का
फिर सजा दूं अधर के निकट एक तिल
माह ज्यों बर्ष के माश्या मधुमास का
चुम्बनों की प्रवाहित करूँ फिर नदी
करके विद्रोह मन के किनारों से मैं
बाँध दूं चाँद, आँचल के इक छोर में
मांग भर दूं तुम्हारी सितारों से मैं
जब भी मुँह ढक लेता हूँ,
तेरे जुल्फों के छाँव में,
कितने गीत उतर आते है,
मेरे मन के गाँव में
एक गीत पलकों पे लिखना,
एक गीत होंठो पे लिखना,
यानि सारी गीत ह्रदय की,
मीठी से चोटों पर लिखना,
जैसे चुभ जाता कोई काँटा नंगे पाँव में,
ऐसे गीत उतर आता, मेरे मन के गाँव में
पलकें बंद हुई तो जैसे,
धरती के उन्माद सो गये,
पलकें अगर उठी तो जैसे,
बिन बोले संवाद हो गये,
जैसे धुप, चुनरिया ओढ़े, आ बैठी हो छाँव में,
ऐसे गीत उतर आता, मेरे मन के गाँव में
मांग की सिंदूर रेखा
मांग की सिंदूर रेखा, तुमसे ये पूछेगी कल,
"यूँ मुझे सर पर सजाने का तुम्हें अधिकार क्या है ?"
तुम कहोगी "वो समर्पण, बचपना था" तो कहेगी,
"गर वो सब कुछ बचपना था, तो कहो फिर प्यार क्या है ?"
कल कोई अल्हड अयाना, बावरा झोंका पवन का,
जब तुम्हारे इंगितो पर, गंध भर देगा चमन में,
या कोई चंदा धरा का, रूप का मारा बेचारा,
कल्पना के तार से नक्षत्र जड़ देगा गगन पर,
तब किसी आशीष का आँचल मचल कर पूछ लेगा,
"यह नयन-विनिमय अगर है प्यार तो व्यापार क्या है ?"
कल तुम्हरे गंधवाही-केश, जब उड़ कर किसी की,
आखँ को उल्लास का आकाश कर देंगे कहीं पर,
और सांसों के मलयवाही-झकोरे मुझ सरीखे
नव-तरू को सावनी-वातास कर देगे वहीँ पर,
तब यही बिछुए, महावर, चूड़ियाँ, गजरे कहेंगे,
"इस अमर-सौभाग्य के श्रृंगार का आधार क्या है ?"
कल कोई दिनकर विजय का, सेहरा सर पर सजाये,
जब तुम्हारी सप्तवर्णी छाँह में सोने चलेगा,
या कोई हारा-थका व्याकुल सिपाही जब तुम्हारे,
वक्ष पर धर शीश लेकर हिचकियाँ रोने चलेगा,
तब किसी तन पर कसी दो बांह जुड़ कर पूछ लेगी,
"इस प्रणय जीवन समर में जीत क्या है हार क्या है ?"
मांग की सिंदूर रेखा, तुमसे ये पूछेगी कल,
"यूँ मुझे सर पर सजाने का तुम्हें अधिकार क्या है ?"
चाँद ने कहा है, एक बार फिर चकोर से,
'इस जनम में भी जलोगे तुम ही मेरी ओर से।'
हर जनम का अपना चाँद है, चकोर है अलग,
यूँ जनम-जनम का एक ही मछेरा है मगर,
हर जनम की मछलियाँ अलग हैं डोर है अलग,
डोर ने कहा है मछलियों की पोर-पोर से,
'इस जनम में भी बिंधोगी तुम ही मेरी ओर से,'
चाँद ने कहा है, एक बार फिर चकोर से।
'इस जनम में भी जलोगे तुम ही मेरी ओर से।'
है अनंत सर्ग यूँ और कथा ये विचित्र है,
पंक से जनम लिया पर कमल पवित्र है,
यूँ जनम-जनम का एक ही वो चित्रकार है,
हर जनम की तूलिका अलग, अलग ही चित्र है,
ये कहा है तूलिका ने, चित्र के चरित्र से,
'इस जनम में भी सजोगे तुम ही मेरी कोर से,'
चाँद ने कहा है, एक बार फिर चकोर से।
'इस जनम में भी जलोगे तुम ही मेरी ओर से।'
हर जनम के फूल हैं अलग, हैं तितलियाँ अलग,
हर जनम की शोखियाँ अलग, हैं सुर्खियाँ अलग,
ध्वँस और सृजन का एक राग है अमर, मगर
हर जनम का आशियाँ अलग, है बिजलियाँ अलग,
नीड़ से कहा है बिजलियों ने जोर-शोर से,
'इस जनम में भी मिटोगे तुम ही मेरी ओर से,'
चाँद ने कहा है, एक बार फिर चकोर से,
'इस जनम में भी जलोगे तुम ही मेरी ओर से।'
क्या अजब रात थी, क्या गज़ब रात थी
दंश सहते रहे, मुस्कुराते रहे
देह की उर्मियाँ बन गयी भागवत
हम समर्पण भरे अर्थ पाते रहे
मन मे अपराध की, एक शंका लिए
कुछ क्रियाये हमें जब हवन सी लगीं
एक दूजे की साँसों मैं घुलती हुई
बोलियाँ भी हमें, जब भजन सी लगीं
कोई भी बात हमने न की रात-भर
प्यार की धुन कोई गुनगुनाते रहे
देह की उर्मियाँ बन गयी भागवत
हम समर्पण भरे अर्थ पाते रहे
पूर्णिमा की अनघ चांदनी सा बदन
मेरे आगोश मे यूं पिघलता रहा
चूड़ियों से भरे हाथ लिपटे रहे
सुर्ख होठों से झरना सा झरता रहा
इक नशा सा अजब छा गया था की हम
खुद को खोते रहे तुमको पाते रहे
देह की उर्मियाँ बन गयी भागवत
हम समर्पण भरे अर्थ पाते रहे
आहटों से बहुत दूर पीपल तले
वेग के व्याकरण पायलों ने गढ़े
साम-गीतों की आरोह – अवरोह में
मौन के चुम्बनी- सूक्त हमने पढ़े
सौंपकर उन अंधेरों को सब प्रश्न हम
इक अनोखी दीवाली मनाते रहे
देह की उर्मियाँ बन गयी भागवत
हम समर्पण भरे अर्थ पाते रहे
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों में सपन सुहाने हैं
ये वही पुरानी राहें हैं, ये दिन भी वही पुराने हैं
कुछ तुम भूली कुछ मैं भूला मंज़िल फिर से आसान हुई
हम मिले अचानक जैसे फिर पहली पहली पहचान हुई
आँखों ने पुनः पढी आँखें, न शिकवे हैं न ताने हैं
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों में सपन सुहाने हैं
तुमने शाने पर सिर रखकर, जब देखा फिर से एक बार
जुड़ गया पुरानी वीणा का, जो टूट गया था एक तार
फिर वही साज़ धडकन वाला फिर वही मिलन के गाने हैं
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं
आओ हम दोनों की सांसों का एक वही आधार रहे
सपने, उम्मीदें, प्यास मिटे, बस प्यार रहे बस प्यार रहे
बस प्यार अमर है दुनिया मे सब रिश्ते आने-जाने हैं
चेहरे पर चँचल लट उलझी, आँखों मे सपन सुहाने हैं
पल भर में जीवन महकायें
पल भर में संसार जलायें
कभी धूप हैं, कभी छाँव हैं
बर्फ कभी अँगार
लड़कियाँ जैसे पहला प्यार.....
बचपन के जाते ही इनकी
गँध बसे तन-मन में
एक कहानी लिख जाती हैं
ये सबके जीवन में
बचपन की ये विदा-निशानी
यौवन का उपहार
लड़कियाँ जैसे पहला प्यार.....
इनके निर्णय बड़े अजब हैं
बड़ी अजब हैं बातें
दिन की कीमत पर,
गिरवी रख लेती हैं ये रातें
हँसते-गाते कर जाती हैं
आँसू का व्यापार
लड़कियाँ जैसे पहला प्यार.....
जाने कैसे, कब कर बैठें
जान-बूझकर भूलें
किसे प्यास से व्याकुल कर दें
किसे अधर से छू लें
किसका जीवन मरूथल कर दें
किसका मस्त बहार
लड़कियाँ जैसे पहला प्यार.....
इसकी खातिर भूखी-प्यासी
देहें रात भर जागें
उसकी पूजा को ठुकरायें
छाया से भी भागें
इसके सम्मुख छुई-मुई हैं
उसको हैं तलवार
लड़कियाँ जैसे पहला प्यार.....
राजा के सपने मन में हैं
और फकीरें संग हैं
जीवन औरों के हाथों में
खिंची लकीरों संग हैं
सपनों-सी जगमग-जगमग हैं
किस्मत-सी लाचार
लड़कियाँ जैसे पहला प्यार.....
आज होलिका के अवसर पर जागे भाग गुलाल के
जिसने मृदु चुम्बन ले डाले हर गोरी के गाल के
आज रंगो तन-मन अन्तर-पट, आज रंगो धरती सारी
सागर का जल लेकर रंग दो, काश्मीर केसर-क्यारी
आज न हों मजहब के झगडे, हों न विवादित गुरुवाणी
आज वही स्वर गूँजे, जिसमें रंग भरा हो रसखानी
रंग नही उपहार जानिये, ऋतुपति की ससुराल के
जिसने मृदु चुम्बन ले डाले हर गोरी के गाल के
आज स्वर्ग से इंद्रदेव ने रंग बिखेरा है इतना
गीता में श्रद्धा जितनी और प्यार तिरंगे से जितना
इसी रंग को मन में धारे फाँसी चढ कोई बोला
“देश-धर्म पर मर मिटने को रंगो बसन्ती फिर चोला”
आशा का स्वर्णिम रंग डालो, काले तन पर काल के
जिसने मृदु चुम्बन ले डाले हर गोरी के गाल के
कृष्ण मिले राधा से ज्यों ही रंग उडाती अलियों में
समय स्वयं भी ठहर गया तब गोकुल वाली गलियों में
वस्त्रों की सीमायें टूटीं, हाथों को आकाश मिला
गोरे तन को श्यामल तन से इक मादक विश्वास मिला
हर गंगा-यमुना से लिपटे लम्बे वृक्ष तमाल के
जिसने मृदु चुम्बन ले डाले हर गोरी के गाल के
ओ प्रीत भरे संगीत भरे!
ओ मेरे पहले प्यार!
मुझे तू याद न आया कर
ओ शक्ति भरे अनुरक्ति भरे!
नस-नस के पहले ज्वार!
मुझे तू याद न आया कर।
पावस की प्रथम फुहारों से
जिसने मुझको कुछ बोल दिये
मेरे आँसु मुस्कानों की
कीमत पर जिसने तोल दिये
जिसने अहसास दिया मुझको
मै अम्बर तक उठ सकता हूं
जिसने खुद को बाँधा लेकिन
मेरे सब बंधन खोल दिये
ओ अनजाने आकर्षण से!
ओ पावन मधुर समर्पण से!
मेरे गीतों के सार
मुझे तू याद न आया कर।
मूझको ये पता चला मधुरे
तू भी पागल बन रोती है,
जो पीर मेरे अंतर में है
तेरे मन में भी होती है
लेकिन इन बातों से किंचिंत भी
अपना धैर्य नहीं खोना
मेरे मन की सीपी में अब तक
तेरे मन का मोती है,
ओ सहज सरल पलकों वाले!
ओ कुंचित घन अलकों वाले!
हँसते-गाते स्वीकार
मुझे तू याद न आया कर।
ओ मेरे पहले प्यार !
मुझे तू याद न आया कर
कुछ पल बाद बिछुड़ जाओगे मीत मेरे
किन्तु तुम्हारे साथ रहेंगे गीत मेरे
तुम परिभाषाओं से आगे का, आधार बनाते चलना
तुम साहस से सपनो का, सुंदर संसार बनाते चलना
जीवन की सारी कटुता को, केवल प्यार बनाते चलना
तुम जीवन को, गंगा जल की पावन-धार बनाते चलना
स्वयं उदाहरण बन जाना मनमीत मेरे
किन्तु तुम्हारे साथ रहेंगे गीत मेरे
वो जो पल, संग-संग गुजरे थे, वो सब पल, मधुमास हो गए
हँसने, खेलने, मिलने के सब, घटनाक्रम इतिहास हो गए
जीवन भर सालेगी अब जो, ऐसी मीठी-प्यास हो गए
तुम बिन सपने हैं सारे भयभीत मेरे
किन्तु तुम्हारे साथ रहेंगे गीत मेरे