उत्तरायण में शरीर त्यागने से क्यों मिलता है मोक्ष

Dakshinayan and Uttarayan: भारतीय संस्कृति में एक वर्ष को दो भागों में किया गया है विभाजित। उत्तरायण व दक्षिणायन के नाम से प्रसिद्ध है ये काल। सूर्यदेव 06 महीने के लिए उत्तरायण रहते हैं और बाकी 06 महीनों के लिए दक्षिणायन। 21 दिसंबर से शुरू हो रहा है उत्तरायण काल

दक्षिणायन को याम्यायन व उत्तरायण को सौम्यायन कहा जाता है.

सायन सूर्य के मकर राशि में गोचर/Sun Transit in Capricorn करने से शुरू होता है उत्तरायण काल.

हिंदू संस्कृति में सूर्यदेव को माना गया है एक प्रत्यक्ष देवता।

इसीलिए सनातन संस्कृति में सूर्यदेव से जुड़े हुए कई व्रत-त्यौहार मनाने की है परंपरा।

उत्तरायण काल को माना जाता है बेहद पवित्र।

उत्तरायण काल को देवताओं का दिन कहा जाता है.

उत्तरायण काल के दौरान पवित्र नदियों में स्नान व दान करने का है बहुत अधिक महत्व।

उत्तरायण काल में किए गए दान व गंगा स्नान से मिलता है अनंत कोटि पुण्यफल।

उत्तरायण काल से शुरू हो जाते हैं शुभ व मांगलिक कार्य।

उत्तरायण काल में शरीर त्यागने से मिलता है मोक्ष।

इसलिए शर-शैय्या पर पड़े हुए भीष्म पितामह ने उत्तरायण काल में त्यागा था शरीर।

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Source: https://vinaybajrangidham.blogspot.com/2022/12/dakshinayan-and-uttarayan.html