Post date: Nov 23, 2019 5:55:36 AM
कोई पार नदी के गाता!
भंग निशा की नीरवता कर,
इस देहाती गाने का स्वर,
ककड़ी के खेतों से उठकर, आता जमुना पर लहराता!
कोई पार नदी के गाता!
होंगे भाई-बंधु निकट ही,
कभी सोचते होंगे यह भी,
इस तट पर भी बैठा कोई, उसकी तानों से सुख पाता!
कोई पार नदी के गाता!
आज न जाने क्यों होता मन,
सुन कर यह एकाकी गायन,
सदा इसे मैं सुनता रहता, सदा इसे यह गाता जाता!
कोई पार नदी के गाता!
मेरा संबल / हरिवंशराय बच्चन
मैं जीवन की हर हल चल में
कुछ पल सुखमय,
अमरण अक्षय,
चुन लेता हूँ।
मैं जग के हर कोलाहल में
कुछ स्वर मधुमय,
उन्मुक्त अभय,
सुन लेता हूँ।
हर काल कठिन के बन्धन से
ले तार तरल
कुछ मुद मंगल
मैं सुधि पट पर
बुन लेता हूँ।
मुझसे चांद कहा करता है / हरिवंशराय बच्चन
मुझ से चाँद कहा करता है--
चोट कड़ी है काल प्रबल की,
उसकी मुस्कानों से हल्की,
राजमहल कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है|
मुझ से चाँद कहा करता है--
तू तो है लघु मानव केवल,
पृथ्वी-तल का वासी निर्बल,
तारों का असमर्थ अश्रु भी नभ से नित्य बहा करता है।
मुझ से चाँद कहा करता है--
तू अपने दुख में चिल्लाता,
आँखो देखी बात बताता,
तेरे दुख से कहीं कठिन दुख यह जग मौन सहा करता है।
मुझ से चाँद कहा करता है--