Post date: Dec 01, 2019 3:29:50 PM
छबि आवन मोहनलाल की।
काछनि काछे कलित मुरलि कर पीत पिछौरी साल की॥
बंक तिलक केसर को कीने दुति मानो बिधु बाल की।
बिसरत नाहिं सखी मो मन ते चितवनि नयन विसाल की॥
नीकी हँसनि अधर सुधरन की छबि छीनी सुमन गुलाल की।
जल सों डारि दियो पुरैन पर डोलनि मुकता माल की॥
आप मोल बिन मोलनि डोलनि बोलनि मदनगोपाल की।
यह सरूप निरखै सोइ जानै इस ’रहीम’ के हाल की॥