Post date: Dec 03, 2019 3:6:40 AM
फिर आई फ़स्ले[1] गुल[2] फिर जख़्मदह[3] रह-रह के पकते हैं ।
मेरे दागे जिगर[4] पर सूरते लाला[5] लहकते हैं ।
नसीहत है अबस[6] नासेह[7] बयाँ नाहक ही बकते हैं ।
जो बहके दुख्तेरज[8] से हैं वह कब इनसे बहकते हैं ?
कोई जाकर कहो ये आख़िरी पैगाम[9] उस बुत से ।
अरे आ जा अभी दम तन में बाक़ी है सिसकते हैं ।
न बोसा लेने देते हैं न लगते हैं गले मेरे ।
अभी कम-उम्र हैं हर बात पर मुझ से झिझकते हैं ।
व गैरों को अदा से कत्ल जब बेबाक[10] करते हैं ।
तो उसकी तेग़ को हम आह किस हैरत[11] से तकते हैं ।
उड़ा लाए हो यह तर्जे सखुन[12] किस से बताओ तो ।
दमे तक़दीर[13] गोया बाग़ में बुलबुल चहकते हैं ।
'रसा' की है तलाशे यार में यह दश्त-पैमाई[14] ।
कि मिस्ले शीशा मेरे पाँव के छाले झलकते हैं ।
शब्दार्थ
1 ऋतु
2 फूल
3 घाव
4 हृदय
5 एक पुष्प
6 व्यर्थ
7 उपदेशक
8 मदिरा
9 संदेश
10 निडरतापूर्वक
11 आश्चर्य
12 कहने की शैली
13 बोलना
14 जंगल में भटकना