नाथ बोले अमृत बाणी
वरिषेगी कंबली भीजैगा पाणी ।
गाडी पडरवा बांधिले शूंटा, चले दमामा बाजिलै ऊंटा ।
कऊवा की डाली पीपल बासे, मूसा कै सबद बिलइया नासे ।
चलै बटावा थाकी बाट, सोवै डूकरिया ठोरे षाट ।
ढूकिले कूकर भूकिले चोर, काढै धणी पुकारे ढोर ।
उजड़ षेडा नगर मझारी, तलि गागर ऊपर पनिहारी ।
मगरी परि चूल्हा धून्धाई, पोवणहारा कों रोटी खाई ।
कामिनि जलै अंगीठी तापै, विच बैसंदर थरहर काँपे ।
एक जु रढीया रढ़ती आई, बहू बिवाई सासू जाई ।
नगरी को पाणी कूई आवै, उलटी चरचा गोरष गावै ।।
श्रेणी: कविता
रहता हमारै गुरु बोलेये, हम रहता का चेला ।
मन मानै तौ संगि फिरै, निंहतर फिरै अकेला ।।
अवधू ऐसा ग्यांन बिचारी तामैं झिलिमिलि जोति उजाली ।
जहाँ जोग तहाँ रोग न व्यापै, ऐसा परषि गुर करनां ।
तन मन सूं जे परचा नांही, तौ काहे को पचि मरनां ।।
काल न मिट्या जंजाल न छुट्या, तप करि हुवा न सूरा ।
कुल का नास करै मति कोई, जै गुर मिलै न पूरा ।।
सप्त धात्त का काया पींजरा, ता महिं जुगति बिन सूवा ।
सतगुर मिलै तो ऊबरै बाबू, नहीं तौ परलै हूवा ।
कंद्रप रूप काया का मंडण, अँबिरथा कांई उलींचौ ।
गोरष कहैं सुणौं रे भौंदू, अंरड अँमीं कत सींचौ ।
ना कोई बारू , ना कोई बँदर, चेत मछँदर,
आप तरावो आप समँदर, चेत मछँदर
निरखे तु वो तो है निँदर, चेत मछँदर चेत !
धूनी धाखे है अँदर, चेत मछँदर
कामरूपिणी देखे दुनिया देखे रूप अपारा
सुपना जग लागे अति प्यारा चेत मछँदर !
सूने शिखर के आगे आगे शिखर आपनो,
छोड छटकते काल कँदर , चेत मछँदर !
साँस अरु उसाँस चला कर देखो आगे,
अहालक आया जगँदर, चेत मछँदर !
देख दीखावा, सब है, धूर की ढेरी,
ढलता सूरज, ढलता चँदा, चेत मछँदर !
चढो चाखडी, पवन पाँवडी,जय गिरनारी,
क्या है मेरु, क्या है मँदर, चेत मछँदर !
गोरख आया !
आँगन आँगन अलख जगाया, गोरख आया!
जागो हे जननी के जाये, गोरख आया !
भीतर आके धूम मचाया, गोरख आया !
आदशबाद मृदँग बजाया, गोरख आया !
जटाजूट जागी झटकाया,गोरख आया !
नजर सधी अरु, बिखरी माया,गोरख आया !
नाभि कँवरकी खुली पाँखुरी, धीरे, धीरे,
भोर भई, भैरव सूर गाया, गोरख आया !
एक घरी मेँ रुकी साँस ते अटक्य चरखो,
करम धरमकी सिमटी काया,गोरख आया !
गगन घटामेँ एक कडाको,बिजुरी हुलसी,
घिर आयी गिरनारी छाया,गोरख आया !
लगी लै, लैलीन हुए, सब खो गई खलकत,
बिन माँगे मुक्ताफल पाया, गोरख आया !
बिनु गुरु पन्थ न पाईए भूलै से जो भेँट,
जोगी सिध्ध होइ तब, जब गोरख से हौँ भेँट!"
(-- पद्मावत )
ऊँ सबदहि ताला सबदहि कूची सबदहि सबद भया उजियाला।
काँटा सेती काँटा षूटै कूँची सेती ताला।
सिध मिलै तो साधिक निपजै, जब घटि होय उजाला॥
अलष पुरुष मेरी दिष्टि समाना, सोसा गया अपूठा।
जबलग पुरुषा तन मन नहीं निपजै, कथै बदै सब झूठा॥
सहज सुभाव मेरी तृष्ना फीटी, सींगी नाद संगि मेला।
यंम्रत पिया विषै रस टारया गुर गारडौं अकेला॥
सरप मरै बाँबी उठि नाचै, कर बिनु डैरूँ बाजै।
कहै 'नाथ जौ यहि बिधि जीतै, पिंड पडै तो सतगुर लाजै॥
गुर कीजै गरिला निगुरा न रहिला। गुर बिन ग्यांन न पायला रे भईया।। टेक।।
दूधैं धोया कोइला उजला न होइला। कागा कंठै पहुप माल हँसला न भैला।। 1।।
अभाजै सी रोटली कागा जाइला। पूछौ म्हारा गुरु नै कहाँ सिषाइला।। 2।।
उतर दिस आविला पछिम दिस जाइला। पूछौ म्हारा सतगुरु नै तिहां बैसी षाइला।। 3।।
चीटी केरा नेत्र मैं गज्येन्द्र समाइला। गावडी के मुष मैं बाघला बिवाइला।। 4।।
बाहें बरसें बांझे ब्याई हाथ पाव टूटा। बदत गोरखनाथ मछिंद्र ना पूता।। 5।।
श्रेणियाँ: पद भोजपुरी रचना
मारो मारो स्र्पनी निरमल जल पैठी ।
त्रिभुवन डसती गोरषनाथ दीठी ।।
मारो स्र्पनी जगाईल्यो भौरा,
जिनि मारी स्र्पनी ताको कहा करे जोंरा ।
स्र्पनी कहे मैं अबला बलिया,
ब्रह्म विष्ण महादेव छलिया ।
माती माती स्र्पनी दसों दिसि धावे,
गोरखनाथ गारडी पवन वेगि ल्यावे ।
आदिनाथ नाती मछिन्द्रनाथ पूता,
स्र्पनी मारिले गोरष अवधूता ।।
श्रेणी: कविता
बूझो पंडित ब्रह्म गियानम
गोरष बोलै जाण सुजानम ।
बीज बिन निसपती मूल बिन विरषा पान फूल बिन फलिया,
बाँझ केरा बालूड़ा प्यंगुला तरवरि चढ़िया ।
गगन बिन चन्द्र्म ब्रह्मांड बिन सूरं झूझ बिन रचिया धानम,
ए परमारथ जे नर जाणे ता घटि चरम गियानम ।
सुनि न अस्थूल ल्यंग नहीं पूजा धुनि बिन अनहद गाजै,
बाडी बिन पुहुप पुहुप बिन सामर पवन बिन भृंगा छाजै ।
राह बिनि गिलिया अगनि बिन जलिया अंबर बिन जलहर भरिया,
यहु परमारथ कहौ हो पंडित रुग जुग स्याम अथरबन पढिया ।
ससमवेद सोहं प्रकासं धरती गगन न आदं,
गंग जमुन विच षेले गोरष गुरु मछिन्द्र प्रसादं ।।
श्रेणी: कविता
कैसे बोलों पंडिता देव कौने ठाईं
निज तत निहारतां अम्हें तुम्हें नाहीं । (टेक )
पषाणची देवली पषाणचा देव,
पषाण पूजिला कैसे फीटीला सनेह ।
सरजीव तैडिला निरजीव पूजिला,
पापची करणी कैसे दूतर तिरिला ।
तीरथि तीरथि सनान करीला,
बाहर धोये कैसे भीतरि मेदीला ।
आदिनाथ नाती म्छीन्द्र्नाथ पूता ,
निज तत निहारे गोरष अवधूता ।।
श्रेणी: कविता
1.
कहणि सुहैली रहणि दुहैली
कहणि रहणि बिन थोथी ।
पठ्या गुण्या सूवा बिलाई षाया
पंडित के हाथ रह गई पोथी ।
2.
कहणि सुहैली रहणि दुहैली
बिन षाया गुड मीठा ।
खाई हींग कपूर बषानै
गोरष कहे सब झूठा ।।
श्रेणी: कविता
जहाँ गोरष तहाँ ग्यान गरीबी
दुँद बाद नहीं कोई ।
निस्प्रेही निरदावे षेले
गोरष कहीये सोई ।।
श्रेणी: कविता
कुम्हरा के घर हांडी आछे अहीरा के घरि सांडी ।
बह्मना के घरि रान्डी आछे रान्डी सांडी हांडी ।
राजा के घर सेल आछे जंगल मंधे बेल ।
तेली के घर तेल आछे तेल बेल सेल ।
अहीरा के घर महकी आछे देवल मध्ये ल्यंग ।
हाटी मध्ये हींग आछे हींग ल्यंग स्यंग ।
एक सुन्ने नाना वणयां बहु भांति दिखलावे ।
भणत गोरष त्रिगुंण माया सतगुर होइ लषावे ।
श्रेणी: कविता
आवो माई धरि धरि जावो
गोरष बाला भर भर षावो ।
झरै न पारा बाजे नाद
सति हर सूर न वाद विवाद ।
पवन गोटिका रहणी अकास
महियल अंतर गगन विलास ।
पयालनीं डीवीं सुनि चढाई
कथन्त गोरषनाथ मछीन्द्र बताई ।
श्रेणी: कविता
नाथ निरंजन आरती साजै ।
गुरु के सबदूं झालरि बाजे ।।
अनहद नाद गगन में गाजै, परम जोति तहाँ आप विराजै ।
दीपक जोति अषडत बाती, परम जोति जगै दिन राती ।
सकल भवन उजियारा होई, देव निरंजन और न कोई ।
अनत कला जाकै पार न पावै, संष मृदंग धुनि बैनि बजावै ।
स्वाति बूँद लै कलस बन्दाऊँ, निरति सुरति लै पहुप चढाऊँ ।
निज तत नांव अमूरति मूरति, सब देवां सिरि उद्बुदी सूरति ।
आदिनाथ नाती मछ्न्द्र ना पूता, आरती करै गोरष ओधूता ।
श्रेणी: कविता
चलि रे अबिला कोयल मौरी ,
धरती उलटि गगन कूँ दौरी ।
गईयां वपडी सिंघ नै घेरै
मृतक पसू सूद्र कूँ उचरै ।
काटे ससत्र पूजै देव
भूप करै करसा की सेव ।
तलि कर ढकण ऊपरि झाला
न छीजेगा महारस बंचैगा काला ।
दीपक बालि उजाला कीया
गोरष के सिरि परबत दीया ।
श्रेणी: कविता
नाथ कह्तां सब जग नाथ्या
गोरष कह्तां गोई ।
कलमा का गुर महंमद होता
पहलें मूवा सोई ।।
श्रेणी: कविता
हिन्दू ध्यावै देहुरा
मुसलमान मसीत ।
जोगी ध्यावै परम पद
जहाँ देहुरा न मसीत ।।
श्रेणी: कविता
मूरिष सभा न बैसिबा
अवधू पंडित सों न करीबा बादं ।
राजा संग्रामे झूझ न करबा
हेले न बोइबा नादं ।।
श्रेणी: कविता
Baba gorakhnath ji