कहानियों, उपन्यास कविताओं और साहित्य में,
झांकता है, जीवन |
उनके हर्फों में झांकती है ज़िन्दगी,
पल-पल, क्षण-क्षण भरता है जीवन,
उससे बनती ज़िन्दगी की छोटी-छोटी राहें |
काखां चलता, मैं ज़िन्दगी पर हँसती,
ज़िन्दगी मुझ पर हँसती,
मैं पढ़ना चाहती ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी मुझको पढ़ती,
ज़िन्दगी को चाहूँ मैं मोड़ना
ज़िन्दगी मुझको मोड़ती,
चोली दामन जैसा साथ हमारा
लगातार हम दोनों पत्र व्यवहार भी करते,
मैं ख़त में फूल भेजती वह मुझे कांटे भेजती,
मैं उसे कल कल नदी जैसा चलता देखती,
वह मुझे चट्टान जैसे पत्थर दिल समझती,
मैं उसे फलक जैसा ऊचाँ सम्मान देती,
वह मुझे जमीं पर पटकती,
पर अचानक ही कभी,
वह तितली जैसे उड़ती,
पर कभी भूले भटके,
मुझे खिलखिलाती धूप की तरह ख़त लिखती,
कभी गमी-खुशी के गीत लिखती,
हवा की तरह मुझसे बातें करती,
त्यौहार पर मुझे लोक geet लिखती,
रजनी गन्धा के फूलों की तरह
महक दे, खुशबू लिखती,
पर यह क्या ?
पत्र आया उसका मेरी चौखट पर,
-खाली बैरंग लिफाफा,
मैं लिफाफे में ज़िन्दगी टोहती,
वह हर राह पर मुझे टोहती |
मैं टटोलती ज़िन्दगी का प्रेम भरा ख़त,
ज़िन्दगी हर कदम मुझे कचोटती
कैसे वार्तालाप करूं ज़िन्दगी मैं तुझसे ?
तुम मेरी घनिष्ट मित्र हो या दुश्मन ?
यह पहेली बार-बार मैं,
कभी तुम से पूछती ?
कभी अपने से पूछती ||२
डा० सुकर्मा थरेजा
क्राइस्ट चर्च कालेज
कानपुर