पर्व भैय्या दूज का आता,
लगता जैसे भाई बहन के,
मन का दीपक प्रकाशित हो जाता,
आसमान के सारे तारे
धरती पर आ जाते, ख़ुशी के मारे,
बहन भाई के अमर प्रेम में,
सब बच्चों का मन खिल जाता ।
बहन लाई रसगुल्ले पेड़े,
सभी भैय्या जी खाने को दौड़े,
बहन का टीका ललाट पर लगते,
सारे तिमिर- बंधन टूट जाते,
ख़ुशी मनाते मनाते-मनाते,
बहन-भाई एक हो जाते ।
सुदूर ससुराल में बैठी बहना,
रटती रहती भैय्या भैय्या,
आहट पाते उसके पॉंव की ।
खिलखिला उठती प्यारी बहना ।
कुछ बहने तो हफ्ता पहले,
बंद लिफ़ाफे में शुभ टीका,
डाक-राह भाई दिल पंहुचे,
याद बहुत आती है तेरी,
नटखट-छोटी-छोटी बातें,
हर दिन तू खुशहाल रहे,
सिर पर तेरे सफलता का ताज रहे
आशीष देती ना थकती बहना ।
भैय्या दूज तुम मनाओ
मर्यादा में रह कर सारे फर्ज निभाओ,
लिंग भेद ना हो समाज में,
यह वचन तुम सदा निभाओ,
मन में कोई बुराई,
बहन-भाई एक दूसरे के प्रति ना पाले,
और अंधियारी वाली चादर,
भाई-बहन के रिश्तों को ना छल-डाले,
संपूर्ण परिवार की नींव वही हो,
ऐसी सुन्दर सोच लिए तुम
इस कड़ी को सुद्रण बना डालो,
भैय्या-दूज की भावना से ओत-प्रोत तुम,
इस रिश्ते के जलते दीपक प्रकाश से,
तभ संकट अंधियारे भगा डालो,
आने वाली पीढ़ियों को,
भैय्या दूज के रंग में रंगकर
पूर्ण विश्वास परिवार में,
भैय्या-दूज का डंका बजा डालो ।।2
डा० सुकर्मा थरेजा
क्राइस्ट चर्च कालेज
कानपुर : 208001