सुख का आधार

शिक्षक ने विद्यार्थी से कहा

घड़ी की सूई की तरह जो क्रिया शील रहो तुम

चेष्टा सुख प्रप्ति की किया करो तुम,

गुरु जी सुख क्या है यह जानना बहुत विकट है ?

आधार सुख का निर्भर किस पर,

यह जानना भी मुश्किल है, सर !

सुख सुविधा में तुमसे ज्यादा उत्तम नहीं,

कोई और मेरे शिष्य, !

आधार सुख का तुम्ही हो, मेरे मित्र !

गुरु जी सच्चा सुख कैसे प्राप्त हो, ?

निज विवेक से तुम काम करो,

क्षमता उपलब्धियों पर ध्यान धरो,

ऐसा कार्य करो; मेरे साथी,

सृष्टी और भी सुन्दर सम्पन्न बने,

कर्मठता से ऐसा सुन्दर स्वपन लिए,

अमृत्व का रसपान करो,

इस कर्म में सुयोग्य तुम बनो,

सुख प्राप्ति की सीढ़ी,

सेवा और साधना,

पर तेजी से चढ़ों,

निज गौरव पर भी ध्यान, धरो,

यह मानव जन्म सार्थक तुम करो,

समाज का ऋण चुकता तुम करो,

नहीं तो सुख का कोई,

मतलब नहीं, ऐसा ठीक से समझ लो,

माना त्याग, परोपकार,

लोक मंगल किया तुमने,

पर ना सोचो कुछ आलौकिक किया तुमने,

यह तो ऋण था; समाज का तुम पर,

जो चुकता किया तुमने,

एहसान नहीं किसी पर तुम्हारा मान्यवर,

यह फर्ज़ था, जो निभाया तुमने ।

डा0 सुकर्मा थरेजा

क्राइस्ट चर्च कालेज

कानपुर