एक-एक खिलाड़ी खोज परख कर चुना तुमने,
हम क्रिकेट तो पौधे एवं पुष्प है, तुम्हारी बगिया के,
एक-एक खिलाड़ी अजूबा है, तुम्हारी टीम में,
तुम तो जादूगरनी ही नहीं, माँ हो सभी क्रिकेटरस की,
हम सबको क्या नहीं दिया, माँ तुमने,
क्रिकेटरस की अपनी पहचान बनी, बल तुम्हारे,
हमारा अपना वजूद है तुम ही से,
तुमने सब सुविधाए दिलवाई, प्रगति पथं पर लाने को हमें,
फिर क्यों अपने स्वार्थ के लिए
तुम्हारा सर नीचा कर रहें हम,
हमारी प्रतिष्ठा, सम्मान, एवं पैसा,
सभी कुछ है क्योंकि हम है तुम में,
हमारी खुशियों में सदा सुख ढूढ़ा तुमने,
कैसे-कैसे प्रगति के मौके दिलवाए तुमने,
पर हम खिलाड़ी तो अपनी राह चल पड़े,
और हमारी माँ क्रिकेट टीम की आत्मा,
दूर खड़ी मीठे आर्शीवाद देती रही अपने,
पल बीते, क्षण बीते,
पग-पग समय चलता रहा,
अपना हिसाब लिखता रहा,
धीरे-धीरे क्रिकेट टीम ज़िंदगी के,
उस मुकाम पर पहुंची आज,
जहाँ वह बेबस, परेशान heiranहेरान है,
उदास, हक्की वक्की है ।
बस कुछ अलबेली मनचली,
सुंदर कन्याओं के जाल में फंसकर,
कुछ क्रिकेटरस नीच काम रहे कर,
मैच फिक्सिंग को धंधा बना कर,
महज चन्द चांदी के टुकड़ों के लिए,
क्रिकेट प्रेमियों की अपेक्षाओं से, खिलवाड़ करें!
बेटा मेरा मन तो खिन है,
कुछ खिलाड़ी तो लिप्त है,
अनाप शनाप पैसा बनाने में, क्रिकेट से,
जिस्म मेरा छलनी कर रहे,
वजूद मेरा मिटाने पर तुले,
शक्ति हीन करने पर जुटे,
मै तो मन मसोस कर,
प्यार की झोली समेटकर,
चली जाऊंगी ----
पर भारत के क्रिकेट के उम्दा चहरों को,
क्रिकेट प्रेमी विश्व भर में तरसेंगे,
कुछ समझदार अनुभवी खिलाड़ी रह जाएंगे,
जो मेरी गोद में अपना बचपन ढूंढगे,
बोलो माँ, इन भारतीय क्रिकेटरों को,
इन विश्व चाँद सितारों को
इन राह-गिहरो को,
इन नदी के बहते धारों को
तुम क्या कह जाओगी,
किसे सौंप जाओगी
इन उदास रोते,
बिलखते, टूटे क्रिकेटरो को l
डाo सुकर्मा थरेजा
क्राइस्ट चर्च कालेज
कानपुर