भ्रष्टाचारी ने वैज्ञानिक से कहा,
आप किस युग में रह रहें हैं,
इस जन्म में क्या काम कर रहें हैं,
ना ऊपर की कमाई !
बस ! अन्दर की प्रबल इच्छा,
ईमानदारी - ईमानदारी, काम ही काम,
यह भी कैसा जनून है ?
अपनी जेब भरो,
कोइ काला धन्धा करो,
दान दक्षिणा देकर,
ऊपर की कमाई का जुगाड़ करो,
लोग मुझे तुम्हारा दोस्त कहें,
यह मुझे गंवारा नहीं,
तुम्हारी बदहाल जिन्दगी,
सभी की ज़ुबां पर है |
सच कहता हूँ मित्र, तुम्हें अपना मित्र कहने से,
मैं अब बहुत कतराता हूँ |
वैज्ञानिक ने भ्रष्टाचारी से कहा,
सच कहते हो दोस्त,
सभी मेरे अज़ीज़ यही बात दोहराते |
कहाँ काम करते हो ! भाई ?
ना जहाँ ऊपर की कमाई !
बस प्रयोगशाला में सारा दिन, परिक्षण...
विद्यार्थियों से करवाते हो,
अपना व्यर्थ समय गंवाते हो,
ईमानदारी की लुटिया डुबाते हो |
भ्रष्टाचारियों के दम दार तेवर,
और ठाट - बाठ देखकर, कभी - कभी,
मेरा दिल भी हिचकोले खाता है,
बीबी की जली - कटी,
मैं भी रोज़ सुनकर आता हूँ,
पर प्रयोग शाला में आते ही,
शान्त समुद्र सा हो जाता हूँ,
विद्यार्थियों की आँखों की चमक,
मेरी बदहाल जिन्दगी की ....
लाइफ लाइन है,
विद्यार्थियों से प्रयोगशाला में, अलौकिक रौनक है |
ईमानदारी की रोटी, भर पेट खाता हूँ |
अपना छोटी सी जादूई दुनिया में खो जाता हूँ |I 2
Dr.Sukarma Thareja
Alumuns IITK
1.9.2012