दशहरा
कभी आपने सोचा मित्रों,
दशहरे का यह पावन पर्व,
हर साल जब आता है,
अपनी छोटी सी जेब में,
क्या-क्या भर कर लाता है,
बुराई पर सच्चाई की विजय हो,
सीधा संदेश दे जाता है |
रावण था घमण्डी अभिमानी,
मन में उसके पाप भरा,
इसीलिए माया जाल फैलाकर,
हर लाया पवित्र सीता माता |
उसकी थी सोने की लंका,
पर कद्र उसने कब जानी ?
तम संकट से भरा उसका तन-मन,
व्याकुल-व्याकुल रहता था,
लाख समझाने पर मंदोदरी के,
वह घमण्डी अपनी-अपनी कहता था |
श्री राम ने वानर सेना लाकर,
करी चढ़ाई लंका पर,
धूं-धूं लंका राख हो गई,
लूट गया राजस्वी धन |
सब कुछ था पास लंकेश के,
पर न्यायिक विवेक से वंचित था,
इसीलिए राम ने सच्चाई तीरों से,
बींध दी उसकी काया,
कटे दस शीश, बीस भुजा,
उतर गया भार धरा का |
पटाके जलाकर जनता ने
सच्चाई की जीत का सम्मान किया,
एक लाख पुत्र, सवा लाख नाती
वाले लंकेश का आखरी समय
कोई बन्धु ना पास खड़ा |
रावण कोई ना ह़ो इस धरा पर,
मेल जोल खुशहाली हो,
काला राज निकट ना फटके
तमस संकट के बादल छटके
ऐसा हम प्रयास करें |
सत्य-विजय का स्वर्णिम सितारा,
टिमटिमाये गर्व से अम्बर में |
बुराई हटे,
सच्चाई भलाई, चलें साथ-साथ,
ऐसा हम संकल्प करें,
दशहरे की पावन बेला में |
आओ हम इसका स्वर्णिम स्वागत करें ||2
Dr Sukarma Rani Thareja
Associate Professor
Ch. Ch. College
Kanpur