कृष्ण जन्माष्टमी
सुदामा ने पत्नी से कहा,
दोस्त सारे अपने-अपने रास्ते बदल गये,
कुछ पीछे रुक गये तो,
कुछ आगे निकल गये,
मैं आज गरीब हूँ,
बदहाल ज़िन्दगी जी रहा हूँ |
पर गर्व से प्रफुल्लित हूँ कि,
मेरा मित्र कन्हैया आज द्वारका का राजा है |
पत्नी ने सुदामा से कहा,
माना कि कृष्ण सुदामा में,
आर्थिक स्तर पर बहुत अन्तर है,
सुदामा ज़मीन पर,
कृष्ण फलक पर है |
दोस्ती तो दोस्ती होती है,
वह आर्थिक अनमेल-जाति, धर्म,
से कोसों दूर होती है,
दोस्ती तो साज़ सगींत होती है |
क्यों न तुम कन्हैया के पास जाओ,
उन्हें अपनी आर्थिक तंगी कि दास्तां सुनाओ,
कन्हैया के द्वार पर विश्वास से जाओ,
अपने बचपन के यार-श्याम के पास आशा लेकर जाओ |
मेरे सर पर ना तो स्वच्छ पगड़ी है,
ना तो तन पर साफ जामा है,
कैसे जाकर कहूँ मोहन से,
कि मिलने को आया मित्र सुदामा है |
सुदामा ने द्वारपाल से किया निवेदन,
कि जाकर कह दो श्याम से,
आया सुदामा तुम्हारा, मनमोहन,
वदनसीव बचपन सखा,
आशा अम्मीदो से आया,
तुमको मिलने,
सुनते समाचार दौड़े चले आये मनमोहन,
गले लगाया, तो अश्रु लगे गिरने,
रुकमणी हैरत से लगी निहारने,
ये कैसा मेहमान, केशव लगे रोने |
बराबर अपने कन्हैया ने,
सुदामा का आसन लगाया,
आंसू पोंछकर, पैर धोकर,
प्रीतिभोज करवाया |
ना सोचो तनिक भी मित्र सुदामा,
अब मैं हूँ तुम्हारा सखा तो क्यों घबराना ?
भाभी के भूने चावल,
सौगात में थे आये,
कन्हैया ने बड़ें चाव से खाये |
विदाई पश्चात सुदामा,
मन-मन में सोचे -----
यह भी क्या बात बनी,
ना कोई मदद, ना कोई आशवासन,
आदर्श राजा का, कैसा है शासन |
व्यथित, संकोचित, सुदामा घर आये,
झोंपड़ी न देख, बहुत घबराये;
पत्नी को महल में देख, हैरत में आये;
हरे कृष्ण, हरे कृष्ण जपे सुदामा,
कृष्ण बिन गरींबों का कहाँ ठिकाना ?
जब सब, सहजता और विश्वास का होता है संगम,
तो बनता है, अमर दोस्ती का पवित्र बंधन |
कृष्ण सुदामा की दोस्ती-पुरानी -सयानी -
इसीलिए दुनिया है, इसकी दीवानी |
प्रतिवर्ष जन्माष्टमी है आती,
कृष्ण भक्तों को यह अनूठी -दोस्ती-
प्ररेणा दे जाती |
सच्ची दोस्ती - अमर बंधन,
सहेजो मेरे देशवासियों,
यह संदेश केशव का,
जन्माष्टमी है लाती,
वफ़ा की सौगात,
हर दोस्त को मिले,
यह सच्चा आशीर्वाद
सबको दे जाती |
डा० सुकर्मा थरेजा
क्राइस्ट चर्च कालेज
कानपुर