एक निराला पन - बचपन

दादी, नानी देती सुनहरा बचपन,

मौसी, बुआ के आंख का तारा बचपन,

संयुक्त परिवार का खिलौना है बचपन,

एकल परिवार में कैसे सहेजे,

यह प्यारा सा बचपन |

काम काजी माँ के बच्चे - डे केयर से सेन्टर में जाते

कुछ भोजन खाते, कुछ छोड़ आते,

संयुक्त परिवार में बच्चे,

प्यार से खाते सभी भोजन |

एकल परिवार में मददगार ही नानी, मददगार ही दादी

आओं तुम्हें सुनाऊँ, अपने बचपन की कहानी

जहाँ खड़ी हैं बचपन की तस्वीरें

यह एक गुप्त सुरंग जो वर्तमान

से अतीत को जाती |

हम थे नानी, दादी के प्यारे बच्चे,

मस्तमौला जैसे गोल गप्पे,

हम हरफन मौला खिलाड़ी थे

दादी के मधुबन के |

माँ का गुस्से में बारबार,

दूध पीने को बुलाना,

दूध के कुल्ले कर उसका आंचल भिगोना,

यह था हम लोगों का फेवेरेट पास टाइम |

गृह कार्य पाठशाला में करके,

कबड्डी खेलना,

कुरता फट जाना,

पापा की डाँट से दिल दहल जाना,

ये था हमारा सुनहरा बचपन,

आजकल बच्चे परेशान

कोचिंग इंस्टीच्यूट ले रहे उनकी जान,

खेलने को तरसते बच्चे,

इंटरनेट सरफरिंग ले रहा बहुमूल्य बचपन,

हम लोग रिसेस में खेलने के लिए,

सबजेक्ट क्लास में भोजन थे करते,

आजकल मोबाइल फोन पर क्लास रूम

में पीछे बैठ बच्चे बातें हैं करते,

हम ५० रुपये की पॉकेट मनी से,

बर्फ के रगींन गोले खाते |

आजकल पाँच हजार भी कम पड़ जाते,

ब्रैन्डीड पौशाक का हमें नहीं था ज्ञान

होली - दिवाली पर नई पौशाक का इन्तजार

आजकल बच्चे ब्रैन्डीड ड्रस की चर्चा करते,

नानी - दादी के हाथ के बुने स्वेटर से परहेज करते

चाचा चौधरी, चम्पक, चन्दा मामा से थी

गहरी दोस्ती हमारी

छुट्टियों आते ही काँमिक पत्रिकाओं

का बाजार गर्म थे करते |

पब्लिक लाइब्रेरी से कहानी किताब

इशू कराते,

प्रतिस्पर्धा में जल्द किताब

ख़त्म कर और किताब पढ़ते,

यह सब भोली क्रियाँए हम बचपन में थे करते |

आजकल लाइब्रेरी है खाली - खाली,

रोती है पिछले दिन याद करके,

यूज़र को तरस्ती उसकी चौखट,

कोई तो आये !

धूल चाटती किताबें पढ़जाए,

क्या सम्भव है मित्रों ! कि बचपन लौट आये,

कोई तो हमें बचपन कि यादों का

चौराहा दिखाये,

कोई तो लौटा दे, मेरा प्यारा सा बचपन,

कोई तो लौटा दे, मेरा भोला सा बचपन |

डा० सुकर्मा थरेजा

क्राइस्ट चर्च कालेज

कानपुर -