भीतरी होली के रंग

प्रत्येक महिला के भीतर होता है,

एक कम्पयूटर जिसमें,

वह झांकती अपने फुरसत के रंग |

उसकी एक्सल शीट पर बीते पलों का हिसाब है |

उसके स्क्रीन पर, रंग हीन कृतियाँ, बदरंगी तस्वीरें हैं |

जिस पर अज़ीज़ों ने, सहयोगियों ने,

साथियों ने, और बच्चों ने,

बेसब्र, पिचकारियों से डाले है,

इन्द्रधनुषीय होली के रंग |

गुलाल के है यही रंग,

उसके खुशहाली के ढंग |

सहेजे हैं, इसी कम्पयूटर पर,

कुछ होली के, अनमोल पल, अनमोल रंग |

जो खिलखिलाते हैं, सुबह की कमल की तरह,

आवाज आती है, भीतर से एक;

यदि होली को, सच्चे अर्थों में रखना है ज़िंदा;

तुम कभी नहीं होना, होली - मिलन से शर्मिन्दा ||२

डा० सुकर्मा थरेजा

क्राइस्ट चर्च कालेज

कानपुर