माँ - पिता
जीवन रोशन कर खुशियों से हम सबका,
आशीर्वाद दे तुम दोनों,
चिर निद्रा में सो गये,
पर कैसे भुलाएं याद तुम दोनों की,
तुम तो कलेजे के टुकड़ों की तरह खो गये,
जिनकों कंधे पर तुमने घुमाया कभी
राम लीला का नाटक दिखाया कभी
आज तुम्हारी ना मौज़ूदगी में
खोये-खोये से नज़र आते हैं |
संयुक्त परिवार है, तुम्हारी फुलवारी हज़ूर
पर तुम कहाँ हो, यह प्रश्न सभी की ज़ुबा पर है|
अपने पराये मे अंतर नहीं, कहकर,
तुम सदा के लिए मुख मोड़ गयें ,
निडर होने का आशीष भी तुमने दिया,
जतन से शिक्षा का वैभव भी तुमने दिया
पढ़ा लिखाकर सयाना बनाया तुमनें,
पर सयानों को तुम्हारा साया तक नहीं,
ये कैसा गजब सा खेल तुम खेल गये,
अब क्या -क्या गिनाए हम उपकार आपकें,
शब्द शून्य-शून्य हो जाते हैं,
आंखो से पानी बहता है,
दोनों के सजीव चित्रों के भंवर में,
हम धीरे-धीरे वह जाते है |
डा० सुकर्मा थरेजा
क्राइस्ट चर्च कालेज
कानपुर