संसद

यहाँ सभी सभासद जनता से चुनकर आते हैं,

सब की अलग-अलग वेश -भूषा जरुर है

पर ढेंरो बचन एवं अपेक्षांए,

वह जनता की संसद में लेकर आते हैं ।

कलियों जैसी अनूठी महिला सांसद भी इनमें शामिल है,

प्रत्येक वर्ग, उम्र, जाति के सांसद,

भारत के कोने-कोने से आते हैं ।

सांसद संसद के बाग के पौधे एवं पुष्प हैं,

कुछ तो स्वस्थ मानसिकता रखते है,

पर कुछ तो इसे क्रीड़ा स्थल समझकर

चहल कदमी करने आते है,

आज देश का संसद तो,

परिमल-हीन संसद सा लगता है,

यह देश का सर्वोच संसद,

कभी कुरुक्षेत्र सा लगता है,

ओ प्रिय सांसदो,

आज संसद शोक ग्रस्ति क्यों लगता है

स्कैम घोटालों, आतंकवाद, घुसपैठ से,

आज देश ग्रस्त क्यों लगता है ।

कुछ सांसद तो दुख की आहें भरते हैं,

पर कुछ सांसद तो निजी स्वार्थ में,

अपनी-अपनी सोचा करते हैं,

आलोक्तान्त्रिक विचारो के सांसद,

संसद चर्चा को मामूली विषय समझते है ।

आतंकवाद का स्वाद चख चुका यह मेरा चोटिल संसद,

घोटालों की मार झेल रहा यह मेरा बोझिल संसद ,

माना यह उपहार मिले, इस पवित्र संसद मन्दिर को,

पर क्यों शहीदों के सम्मान में कमी है,बतलाओ सम्मानित सांसद ।

संसद की आशा का भरा हृदय अब छिन हो गया लगता है

अपने कुछ सांसदों की काली करतूतों से संसद खिन हुआ लगता है ।

तड़प-तड़प कर खम्बे संसद के कुछ गहरी गाथा कहते हैं,

और बाग के शुष्क पुष्प की तरह बेबस से लगते है ।

ये संसद नहीं कभी तो सांसदों का शोक स्थान लगता है,

इन सब पर भी,पता नहीं संसद में शोर कहाँ से लगता हैं;

बहुत हो चुका ये अलबेला नृत्य सांसदों,

अब तो होश में आ जाओ,

निस्वार्थ सेवा कर जनता की,

संसद में अपनी अपस्तिथि दर्ज करा जाओ,

संसद कुरुक्षेत्र में कर्मयोग से,

अपना योगदान कर जाओ,

पता नहीं इस संसद में कौन कृष्ण बन आएगा,

किस अर्जुन को महाभारत संदेश पढ़ाएगा,

और लोकतन्त्र प्रजातन्त्र को फिर जीवित कर जाएगा,

कब सुकर्मा का ख्वाब हकीकत बनकर,

दुनिया के सामने आयेगा ।

डाo सुकर्मा थरेजा

क्राइस्ट चर्च कालेज

कानपुर