आम नारी
नारी है धूरी परिवार की,
पहले से सौ गुणा,
सक्रिय है नारी प्रत्येक क्षेत्र में,
पर फिर भी समाज में समझी जाती,
अर्थ और काम की देवी ये अनूठी नारी,
क्या कारण असमर्थ है, उचित अधिकार,
परिवार समाज में पाने को पवित्र नारी,
क्यों है वह कठपुतली पुरुष प्रधान समाज में,
यह प्रश्न सपंदन देता है, इस लोकतन्त्रीय राष्ट्र में,
कभी-कभी विडम्बना से खुद भी घिर जाती हैं,
देश की बन्दनीय नारी,
क्योकि वह भी यही समझती,
कि अर्थ काम की मूर्ति,
बनना फर्ज़ है उसका बहुत भारी,
मित्रों ! ऐतिहासिक देश है, भारत वर्ष अपना,
जहाँ पूँजी जाए गली-गली नारी,
समाज अवश्य भौतिक रूप से आधुनिक हो गया है,
पैसे की झूठी चमक-धमक से,
धिरती जा रही है अमीर नारी,
कुछ महिलाएँ भी अवश्य,
भौतिक सफलताओं की उच्चाईयाँ छू गयी है,
पर दशा के सन्दर्भ में जस से तस नहीं हुई आम नारी,
अभी भी भोग विलास की,
कमजोर वस्तु समझी जाती आम नारी,
तो कैसे रह सकती झूठी चमक -धमक से,
अछूत, हमारे देश की संवेदन शील आम नारी,
इसीलिए खो गई है इस चकां चौध चमक में,
क्रियाशील, कर्मशील और प्रतिभावान आम नारी,
डा0 सुकर्मा थरेजा
क्राइस्ट चर्च कालेज
कानपुर