मानवता

ऊपर वाले ने मानव को क्या नहीं दिया,

आकाश दिया,

बादल दिया,

पर्वत, दिये,

नदियाँ दी,

जंगल दिये,

वादियाँ दी,

सागर दिया,

और बनाया सम्पन्न मानव को,

इन सभी प्राकृतिक सम्पदा से,

पर उसे चैन कहाँ ?

मानवता से उसे मतलब कहाँ ?

व्यक्ति विशेष तो

इस सम्पदा को मुठ्टी में चाहता है,

बाँहो में उसे भर लेना चाहता है,

स्वार्थ के लिए अपने,

पर्वतों पर गाड़े उसने झंडे,

नदियों पर बनाए बांध

गढ़ी सरहदें,

जंगलो में विछाये जाल,

प्राकृतिक सम्पदा उसकी अपनी हो जाए,

निर्माण करे उसने बम ! तोप,

बंदूके, डंडे और भाले,

पर यह कैसा अभिशाप ----

उसके हाथ ना लगा बादल, पर्वत और आकाश,

उसकी बांहों में न सिमटी नदियाँ वादियाँ,

वह तो लौटा खाली हाथ |

व्यक्ति विशेष नाटक से उसको ना हुआ कोई लाभ !

प्राकृतिक सम्पदा है, सबकी---

इसी से मानवता है पनपी,

इस पर सोचा- समझा वार,

मानव पर है वरबरता का व्यवहार,

प्राकृतिक सम्पदा वरदान ईश्वर का,

शुध्द - साफ संरक्षित रखना, फ़र्ज़ सभी का,

शुध्द ना हो वातावरण,

तो समझो मरण है, हम सब का,

तो समझो मरण है, मानवता का ||२

डा० सुकर्मा थरेजा

क्राइस्ट चर्च कालेज

कानपुर