अभाव ग्रस्ति रिश्ते
आय से ज्यादा सम्पत्ति जमाकर
कुछ सज्जन क्षण भर भी नहीं सो पाते,
फिर भी कुछ लोग अच्छी बढ़िया नींद आने पर भी,
नींद ना आने का घोर बहाना कर,
अक्सर झूठ बोल दिया करते है ।
भारत देश में गरीबी की रेखा से नीचे महिलाएँ,
तन ढकने के लिए परेशान सी रहती है,
फिर भी कुछ महिलाए रोब जमाने के लिए,
गहनो कपड़ो का अधिक मूल्य बताकर,
अक्सर झूठ बोल दिया करती है ।
कुछ लोग भटके राहगीर को दिखाते सुपथ,
फिर भी कुछ राहगीर चौराहे पर खड़े होकर,
गुमराह करने को दूसरे राहगीर,
अक्सर झूठ बोल दिया करते है ।
स्वस्थ रहना बहुत बड़ीं नयामत है ---
फिर भी फीस में कंसैशन लेने को,
कक्षा में हाजारियो का प्रतिशत बढ़ाने को,
प्रायोगिक कापी जंचवाने को,
कुछ विद्यार्थी अस्वस्थ रहने का बहाना कर,
शिक्षक से अक्सर झूठ बोल दिया करते है,
प्रबन्धक तन्त्र का हिस्सा बनना,
प्रबन्धक तन्त्र में काम करना,
कर्मचारियों की जीवन पूँजी है
फिर भी कर्तव्य परायणता की दुहाई देकर,
कुछ प्रबन्धक अक्सर कर्मचारियों से,
झूठ बोल दिया करते हैं ।
राम-लक्ष्मण जैसे मधुर रिश्ते अमूल्य होते है,
पर, अपनी प्रमोशन पाने को सहकर्मी,
दूसरे सहकर्मी की झूठी शिकायत बाँस से किया करते है,
इन्हीं सब झूठे कर्मों से आज उथल-पुथल है समाज में
झूठ बोलने का कीड़ा घुस गया समाज की आत्मा में
इन सभी गड़बड़ियो से पनप रहा भ्रष्टाचार समाज में,
प्रश्न है महत्वपूर्ण विकट सामने समाज में,
भ्रष्टाचार की परम सीमा छू गई समाज में,
अब बड़ा निर्णय लेने का वक्त आ गया समाज में,
न्यौता भ्रष्टाचार का, क्या स्वीकारे समाज में,
क्या ठुकरा दे इस न्यौते को, ?
कुचले भ्रष्टाचार समाज में,
कैसे अभाव से ग्रस्ति रिश्तों को,
मधुर रिश्तों में परिवर्तित करे समाज में ।
डा0 सुकर्मा थरेजा
क्राइस्ट चर्च कालेज
कानपुर