दहेज प्रथा

नारद जी ने प्रभु के आग्रह पर ,

किया पृथ्वी का भ्रमण ,

वह देख सभी कुछ चौंक उठे ,

कहीं भी उन्हें ना लगा अमन,

क्यों परिणय सूत्र का गठबंधन !

काली करतूतों से दागी है ,

ओछी बातों से लिप्त क्यों ,

इस यज्ञ की प्रत्येक आहुती है ।

दहेज मांगने को परिपाटी बन,

वर पक्ष क्यों मुँह खोल खड़ा ?

क्यों दरिन्दों जैसे काम करे ,

समझे अपने को सन्त भला ।

सगाई रस्म से ,

परिणय सूत्र के बंधन तक ,

क्यों वधू पक्ष का पल-पल ,

असमंजस में कटता है,

भौतिक वस्तुओं की अभिलाषा लिए,

वर पक्ष का दामन क्यों फैला रहता है ।

प्रभु इसी कारण से धरती ,

पर अवसाद बना रहता है ।

दहेज की धार्मिक प्रथा,

क्यों सौदा बनती जाती है ?

बहु के ससुराल पहुँचने पर,

क्यों गहरी राजनीति गरमाती है ।

जब अच्छा चंगा माल मिलता,

बहु को सोने से तोला जाता है,

सीमित दहेज जिसको मिलता ,

वह घरलू हिंसा पर उतर जाता है ।

बात-बात पर लेन -देन में,

तू-तू , मैं-मैं कोटिबार होती,

अनाप शनाप कमाए धन को,

विवाह अवसरो में प्रदर्शित किया जाता,

ताम-झाम विवाह में शोभित कर,

इस भ्रम को सत्य में,

प्रदर्शित किया जाता ।

पूरा जीवन ऐसे, शखस,

खोखले मूल्यों पर जीते है,

बहु का जीवन नष्ट करके,

वह तनिक भी दुखित नहीं होते है,

सच तो यह है मेरे प्रभु,

बहु की चिल्लाहटों के बीच,

वह दहेज की हवस मिटाते है,

वह क्या सीखेगे?

सुकर्मा की कविता से,

जो दहेज के लाखों,

बैठे बैठे डकार जाते हैं ।

नवरात्र के आते ही ,

कन्या पूजा, स्त्री सम्मान का ,

सुन्दर नाटक धरती पर रचा जाता है ।

प्रभु वास्तविकता मै देख आया,

सारा वृतान्त मैने आपको सुनाया ,

समस्या पृथ्वी पर भारी है,

वधू पक्ष के दुखो का निदान करे,

सुदर्शन चक्र चला कर के,

उनके जीवन में कुछ शान्ति भरोl

हे नारद हूँ, धन्यवादी मैं तुम्हारा,

जिसने चक्षु मेरे खोल दिये,

मै तृतीय चक्षु भी शीघ्र खोलू

ऐसा संकल्प मैं लिए हुए,

भ्रूण हत्या एवं दहेज प्रथा में,

उत्पीड़न जो भी देगा कभी,

समझो समन मेरा इशू हुआ तभी ,

घोर अमानवता के अभिशाप से;

वह वंचित होगा ना कभी ।

तथा अस्तु ! तथा अस्तु !

जयकारे से ,

प्रभु ओझिल हो गये तुरन्त तभी llllll2

Dr. Sukarma Thareja

Alumnus IITK

Ch. Ch. College

Kanpur