विद्या-मानव
सरस्वती माँ कहना एक कहानी,
दीदी कहे तू है, विद्या की देवी,
विद्या धन है सबसे ऊँचा,
सब ने सुना है, पर किसी न देखा,
खर्च करो दुगना बढ़ जाये,
हाँ माँ आज तू सुना विद्या धन की कहानी,
अरे तूने क्या समझ लिया !
मुझको अपनी भोली नानी,
क्या माँ यह सच है ?
त्याग सिखाती सच्ची विद्या,
निखरे त्याग से सुन्दर योग्यता,
हाँ बेटा यह ठीक सुना है,
फिर माँ आगे सुना विद्या की कहानी,
भोले मेरे बालक नटखट ।,
तू है एक नम्बर का हठधर,
बिना सुने ना हिले तू तिल भर,
हाँ माँ आगे कहो कहानी,
माँ धन अभाव में कोचिंग सेन्टर में,
कौन विद्या देता है सबको ?
बेटा विद्या अभाव में भाव भरती है,
जो महापुरुष लुटाते जीवन विद्या पर,
वो ना खरीदे जाते किसी मोल पर,
ऐसे सज्जन हो राष्ट्रीय निर्माता,
जो उतरे खरे अपने बोल पर,
हाँ माँ इतनी अच्छी कहानी,
माँ आगे बढ़ा कहानी,
विद्या तो है न्याय सिखाती,
अविद्या तो भौतिकता बढ़ाती,
अब तू बता किसका है पक्षधर,
माँ मैं तो हूँ छोटा सा बालक,
विद्या धन मुझको है भाता,
भौतिकता से नाता मुझे समझ न आता,
पर मेरे मित्र भौतिकता के पक्षधर,
हाँ बेटा विवेकानन्द ने भी,
माता से धन कभी ना माँगा,
वे भी थे विद्या-धन के पक्षधर,
हाँ माँ आज तुमने सुनायी,
विद्या और मानव की,
कितनी सुन्दर कहानी,
माँ मैं खुश हो गया,
यह सुनकर रूचि कर कहानी,
यह सुनकर रूचि कर कहानी ।
डा0 सुकर्मा थरेजा
क्राइस्ट चर्च कालेज
कानपुर