वानस्पतिक नाम – Asparagus racemosus (ऐस्पेरेगस रेसिमोसस)
सामान्य नाम – शतावर
कुल – Lilliacaceae - (रसोन कुल)
स्वरूप – कण्टयुक्त, झाड़ीदार आरोहिणी लता
गुण-कर्म:-
गुण - गुरू, स्निग्ध
रस - मधुर, तिक्त
वीर्य - शीत
विपाक - मधुर
प्रभाव - वात, पित्त शामक
*रसायन *मेधावर्धक *अग्निदीपक *नेत्र के लिए हितकर *अतिसारहर
प्रयोज्य अंग – कन्द
मात्रा – स्वरस – 10-20 मिली०
चूर्ण – 3-5 ग्राम
प्रयोग –
शतावरी कल्क या क्वाथ को घी में पकाकर शर्करा मिलाकर लेने से व्यक्ति रोगों का शिकार नहीं होता है।
रक्तपित्त में शतावरी क्षीरपाक लाभप्रद है।
मूत्रकृच्छ्र् में शतावरी चूर्ण को शीतल जल के साथ सेवन करना चाहिए।
शतावरी चूर्ण दुग्ध से लेने पर दुग्ध वर्धक रसायन के रूप में पकाकर लेते हैं।
रतौंधी रोग में शतावरी की ताजी पत्तियाँ भात में पकाकर लेते हैं।
रक्तातिसार में शतावरी कल्क दुग्ध से लेना चाहिए व रोगी को केवल दुग्ध पथ्य में देना चाहिए।