वानस्पतिक नाम – Cymbopogon martini Roxb. Wats (साइम्बोपोगन मार्टिनि)
सामान्य नाम – रोहिष, रूसाघास, अगियाघास
कुल – यव कुल (Gramineae – ग्रामिनी)
स्वरूप – इसका सुगन्धित बहुवर्षायु क्षुप 5- 8 फुट ऊँचा होता है। कांड-चिकना, पत्रयुक्त, प्राय: पाण्डुवर्ण होता है। पत्तियों में गुलाब के समान सुगन्ध आती है।
गुण-कर्म:-
गुण - लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण
रस - कटु, तिक्त
वीर्य - उष्ण
विपाक - कटु
प्रभाव - कफवात शामक
प्रयोज्य अंग – कांड, पत्र, पुष्प, तैल
मात्रा- क्वाथ – 50 -100 मि.लि.
तैल – 1-3 बूंद
प्रयोग-
संस्थानिक प्रयोग - आमवात, चर्मरोग तथा खालित्य में इसका लेप करते हैं।
आभ्यन्तर-पाचनसंस्थान - अरूचि, अग्निमांद्य, अजीर्ण, विसूचिका, शूल तथा कृमि में यह प्रयुक्त होता है।
रक्तवहसंस्थान - हृद्दौर्बल्य तथा वातरक्त आदि रक्तविकारों में उपयोगी है।
श्वसनसंस्थान - कास, श्वास और प्रतिश्याय में देते हैं।
प्रजननसंस्थान - स्तन्यवृद्धयर्थ यह प्रयुक्त होता है।
मूत्रवहसंस्थान - मूत्राघात में देते हैं।
त्वचा - त्वग्दोषों में लाभकर है।
तापक्रम - ज्वर में प्रयोग करते हैं।