वानस्पतिक नाम – Melia azedarach Linn. मेलिया एजेडरैक
सामान्य नाम – महानिम्ब, बकायन, रम्यक
कुल – निम्ब कुल
स्वरूप – यह मध्यम प्रमाण का वृक्ष नीम के सदृश, 30- 40 फुट ऊँचा होता है।
गुण-धर्म:-
गुण - लघु, रुक्ष
रस - कटु, तिक्त, कषाय
वीर्य - शीत
विपाक - कटु
प्रभाव - कफपित्त शामक, अर्शोघ्न
प्रयोज्य अंग - मूल, त्वक्, फलास्थि
विशिष्ट योग - अर्शोघ्नी वटी
मात्रा - क्वाथ - 50-100 मि.लि.
फलास्थि चूर्ण - 1-3 ग्राम
प्रयोग -
1. संस्थानिक प्रयोग – बाह्य – शिर:शूल में पत्तों और पुष्पों का लेप करते है। पुष्पों का लेप शिर में युका, लिक्षा आदि को मारने के लिए तथा फोड़े-फुन्सी में करते है।
2. व्रणों में पत्र का लेप एवं स्वरस का परिषेक करते हैं। कुष्ठ, अन्य चर्म रोग तथा गण्डमाला में पत्र एवं छाल का लेप करते हैं। संक्रामक रोगों से बचने के लिए इसके बीजों का धारण करते हैं।
3. आभ्यन्तर नाड़ीसंस्थान – गृध्रसीरोग में मूलत्वक् का प्रयोग लाभकर होता है।
4. पाचनसंस्थान – इसका प्रयोग अर्श एवं कृमिरोग में करते हैं। अर्श में गुठली का तथा कृमि में त्वक, का प्रयोग करते हैं। इसके प्रयोग के बाद रेचन अवश्य देना चाहिए। गडूपद कृमि में यह विशेष कार्य विशेष कार्यकारी है।
5. रक्तवह संस्थान – रक्तविकार में यह उपयोगी है।
6. श्वसन संस्थान – कास श्वास में उपयोगी है।
7. प्रजनन संस्थान – कष्टार्तव में उपयोगी है।
8. मूत्रवह संस्थान – प्रमेह में इसका प्रयोग करते हैं।
9. त्वचा – कुष्ठ आदि चर्मरोगों में लाभकर हैं।
10. तापक्रम – ज्वर, विशेषत: जीर्ण एवं चातुर्थिक ज्वरों में इसका प्रयोग होता है।
11. सात्मीकरण – यह सामान्य दौर्बल्य में तथा मूषकविष में प्रयुक्त होता है।