वानस्पतिक नाम – Hemidesmus indicus R. Br. हेमिडेस्मस इण्डिकस
सामान्य नाम – सारिवा, गोपवल्ली, अनन्तमूल
कुल – अर्क-कुल (Asclepiadaceae - ऐस्क्लीपिएडेसी)
स्वरूप – इसकी पतली, क्षीरिणी, आवर्त्तनी लता 5-15 फुट लंबी होती है।
गुण्- धर्म -
गुण - गुरू, स्निगध
रस - मधुर, तिक्त
वीर्य - शीत
विपाक - मधुर
प्रभाव - त्रिदोषशामक
प्रयोज्य अंग - मूल
विशिष्ट योग - सारिवादि क्वाथ, सारिवादि वटी, सारिवाद्यवलेह, सारिवाद्यासव।
मात्रा – फाण्ट 50-100 मि.ली
कल्क – 5-10 ग्राम
प्रयोग-
बाह्य संस्थानिक प्रयोग - इसका रस नेत्राभिष्यन्द में डालते हैं। दाह तथा शोथ में लेप करते हैं।
आभ्यन्तर पाचन संस्थान - अरूचि, अग्निमांद्य, प्रवाहिका, ग्रहणी में लाभकर है।
रक्तवह संस्थान - रक्तविकार, वातरक्त, उपदंश, फिरंग, जीर्ण आमवात, श्लीपद तथा गण्डमाला में अतीव उपयोगी है।
श्वसन संस्थान - कासश्वास में देते हैं।
प्रजनन संस्थान - शुक्रदौर्बल्य, स्तन्यविकार, प्रदर तथा गर्भास्त्राव आदि योनिव्यापद् में प्रयुक्त होता है।
मूत्रवह संस्थान - मूत्रकृच्छ् तथा पैत्तिक प्रमेहों में लाभकर है।
त्वचा - कुष्ठ, विसर्प, विस्फोट आदि चर्मरोगों में देते हैं।
तापक्रम - ज्वर तथा दाह में प्रयुक्त होता है।