वानस्पतिक नाम – Sapindus trifoliatus Linn. सैपिण्डस ट्राइफोलिएटस
सामान्य नाम – अरिष्टक, रक्तबीज, गर्भपातन, रीठा
कुल – अरिष्टक-कुल (Sapindaceae - सैपिण्डेसी)
स्वरूप – इसका वृक्ष 50 फुट तक ऊँचा, प्राय: 5 फीट परिधि का होता है। फल-माँसल, 2-3 खण्डीय, ½ - ¾ इन्च लम्बे, तरूणावस्था में रोमावृत, सूखने पर कृष्णाभ भूरे रंग के, सिकुड़नयुक्त होते हैं।
गुण-धर्म -
गुण - लघु, तीक्ष्ण
रस - तिक्त, कटु
वीर्य - उष्ण
विपाक - कटु
प्रभाव - वमन
प्रयोज्य अंग - फल
मात्रा- 3 – 6 ग्राम
प्रयोग-
दोषप्रयोग – यह त्रिदोषजन्य विकारों में प्रयुक्त होता है। विशेषत: कफ और वात के विकारों में देते हैं।
बाह्य संस्थानिक प्रयोग – शोथवेदनायुक्त विकारों में इसका लेप करते हैं। कुष्ठ, कण्डू, विस्फोट, गंडमाला आदि में तथा सर्प, बिच्छू आदि सविष प्राणियों के दंश में इसका लेप करते हैं। इसके विलयन या चूर्ण का नस्य अर्धावभेदक, मूर्च्छा, अपतंत्रक तथा श्वास में देते हैं। इसके पत्र तथा त्वचा का उपनाह सन्धिवात, आमवात, पक्षाघात आदि में देते हैं। दाह में इसके फेन का लेप करते हैं।
आभ्यन्तर पाचन संस्थान – यह उदरविकारों तथा कृमिरोग में प्रयुक्त होता है।
रक्तवहसंस्थान – रक्तविकारों में दिया जाता है।
श्वसनसंस्थान – कास, श्वास में उपयोगी है।
प्रजननसंस्थान – इसकी वर्ति बनाकर रजोरोध तथा कष्टप्रसव में योनि में रखते हैं।
त्वचा – कुष्ठ में इसका प्रयोग करते हैं।
सात्मीकरण – विषों में विशेषत: अहिफेन-विष में इसका प्रयोग होता है।
रीठा - वृक्ष
रीठा - फल व पत्ती