वानस्पतिक नाम – Nerium indicum Mill. - नेरियम इण्डिकम्
सामान्य नाम – करवीर, अश्वमारक, कनेर, कनैल
कुल – कुटज-कुल (Apocynaceae – एपोसाइनेसी)
स्वरूप – इसका क्षीरी, सदाहरित गुल्म 10 फुट तक ऊँचा होता है। पुष्प- सुगंधित, श्वेत या रक्त, 1- 1½ इन्च व्यास के, अन्त्य मंजरियों में होते हैं। फली-5-7 इन्च लम्बी चपटी होती है।
गुण- धर्म -
गुण - लघु, तीक्ष्ण, रूक्ष
रस - कटु, तिक्त
वीर्य - उष्ण
विपाक - कटु
प्रभाव - कफवातशामक
प्रयोज्य अंग - मूल, मूलत्वक
विशिष्ट योग - करवीराद्य तैल, करवीरयोग।
मात्रा – चूर्ण - 30-125 मि.ग्रा.।
प्रयोग –
सांस्थानिक प्रयोग बाह्य - कुष्ठ व्रण तथा शोथ में मूल को पीस कर लेप करते हैं। विशेषत: उपदंश और फिरंग के व्रणों पर इसका लेप करते हैं। पत्रस्वरस नेत्ररोगों में आँखों में देते हैं।
आभ्यन्तर पाचन संस्थान - अग्निमान्द्य, उदररोग तथा विबन्ध में देते हैं।
रक्तवह संस्थान - हृद्रोग तथा रक्तविकारों में प्रयुक्त होता है। जब हृदय दुर्बल होकर अकार्यक्षम हो जाता है और उसके कारण जब श्वासकष्ट, शोथ, दौर्बल्य आदि लक्षण प्रकट होते हैं, तब करवीर का प्रयोग करते हैं।
श्वसन संस्थान - श्वासरोग में करवीरपत्र की भस्म का प्रयोग करते हैं। विशेषत: यह हृद् विकारजन्य श्वासकष्ट में लाभकर है।
मूत्रवह संस्थान - मूत्रकृच्छ् और अश्मरी में प्रयुक्त होता है।
त्वचा - कुष्ठ में देते हैं।
तापक्रम - विषमज्वर में ज्वर उतरने पर 60 मि. ग्रा. की मात्रा में इसका घनसत्त्व देने से पुन: ज्वर का वेग रूकता है। यह औषध खाली पेट नहीं देनी चाहिए।
Yellow Kaner
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Red Kaner
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