वानस्पतिक नाम – Acacia arabica Willd. एकेशिया अरेबिका
सामान्य नाम – बब्बूल, युग्मकाण्ट, दृढारूह, मालाफल
कुल – शिम्बी-कुल (Leguminosae -लेग्युमिनोसी)
स्वरूप – इसका झाड़ीदार कंटकित, सदाहरित वृक्ष 25-30 फीट तक ऊँचा होता है। काण्डत्वक- गहरे भूरे या काले रंग की, अनुलंब विदारयुक्त होती है। फली 3-6 इन्च लंबी, ½ इन्च चौड़ी, चपटी श्वेताभ, रोमश, अस्फोटी होती है। इसके भीतर 8-12 बीज होते हैं। बीजों के बीच-बीच में फली अत्यधिक संकुचित होती है।
गुण- धर्म -
गुण - गुरू, रूक्ष
रस - कषाय
वीर्य - शीत
विपाक - कटु
प्रभाव - कफपित्त शामक
प्रयोज्य अंग- त्वक, फल, निर्यास
विशिष्ट योग - बब्बूलारिष्ट, लवंगादि वटी।
मात्रा – त्वक् क्वाथ - 50-100 मि.लि
फलचूर्ण - 3-6 ग्राम
निर्यास - 3-6 ग्राम
प्रयोग -
दोषप्रयोग - छाल और फली का प्रयोग कफपैत्तिक रोगों में तथा गोंद का वातपैतिक रोगों में होता है।
बाह्य संस्थानिक प्रयोग - रक्तस्त्राव, अग्निदग्ध और व्रणों में पत्तियों का चूर्ण छिड़कते हैं। प्रदर में छाल के क्वाथ की वस्ति देते हैं। गुदभ्रंश में छाल के क्वाथ से परिषेक करते हैं। मुख, दन्त एवं गले के रोगों में छाल के क्वाथ से गण्डुष करते हैं।
आभ्यन्तर पाचन संस्थान - अतिसार, प्रवाहिका, अर्श तथा कृमि में त्वक तथा फली का प्रयोग करते हैं। कोष्ठगत रौक्ष्य में गोंद लाभकर है।
रक्तवह संस्थान - रक्तपित्त में छाल और फली देते हैं।
श्वसनसंस्थान - कास में इसका प्रयोग करते हैं।
मूत्रवहसंस्थान - छाल का क्वाथ प्रमेह में तथा गोंद मूत्रकृच्छ् में देते हैं।
प्रजननसंस्थान - शुक्रदौर्बल्य में निर्यास देते हैं। कच्ची फली को सुखा कर उसका चूर्ण चीनी मिला कर शीघ्रपतन, स्वप्नदोष आदि में देते हैं। रक्त तथा श्वेत प्रदर में छाल तथा फली का प्रयोग करते हैं।
त्वचा - चर्मरोगों में यह लाभकर है।
तापक्रम - दाह तथा अन्य पैत्तिक विकारों में उपयोगी है।
सात्मीकरण - दौर्बल्य में गोंद का मोदक बनाकर तथा विषों में छाल का क्वाथ देते हैं।