वानस्पतिक नाम – Cassia fistula Linn. कैसिया फिस्टूला
सामान्य नाम – राजवृक्ष, चतुरंगुल, अमलतास, सियरलाठी
कुल – शिम्बू-कुल (Leguminosae – लेग्युमिनोसी)
स्वरूप – यह वृक्ष मध्यम प्रमाण का 25-30 होता है। फली 1-2 फुट लंबी इन्च व्यास की कठिन नुकीली बेलनाकार कच्ची अवस्था में हरे रंग की और पकने पर कृष्णवर्ण होती है।
गुण - धर्म -
गुण - गुरू, मृदु, स्निग्ध
रस - मधुर
वीर्य - शीत
विपाक - मधुर
प्रभाव - वातपित्त शामक
प्रयोज्य अंग- फलमज्जा, मूलत्वक, पुष्प, पत्र
विशिष्ट योग - आरग्वधादि तैल, आरग्वधादि लेह, आरग्वधारिष्ट
मात्रा- फलमज्जा - 5-10 ग्राम
विरेचनार्थ - 10-20 ग्राम
मूलत्वक् क्वाथ - 50-100 मि.लि.
पुष्प - 5-10 ग्राम
पत्र का बाह्य प्रयोग होता है।
प्रयोग-
दोषप्रयोग - यह वातपैतिक विकारों में संशमनार्थ प्रयुक्त होता है तथा पित्त और कफ विकारों में संशोधन के लिए देते हैं।
संस्थानिक बाह्य प्रयोग - व्रणशोथ, ग्रन्थिशोथ, वातरक्त, आमवात, संधिवात आदि शोथवेदनायुक्त रोगों में फलमज्जा और पत्र का लेप करते हैं। मुख तथा गले के रोगों में इसके क्वाथ से कुल्ला कराते हैं। कुष्ठ एवं कण्डू में इसके पत्र का लेप एवं उद्वर्तन करते हैं।
आभ्यन्तर- नाड़ी संस्थान - वातव्याधि में इसका प्रयोग करते हैं।
रक्तवह संस्थान - हृद्रोग, रक्तपित्त, वातरक्त एवं शोथ में इसका प्रयोग करते हैं।
श्वसन संस्थान - शुष्ककास एवं श्वासकष्ट में इसके पुष्पों का अवलेह बना कर देते हैं। इससे कफ निकलता है और श्वासमार्ग का स्नेहन होता है।
मूत्रवह संस्थान- मूत्रकृच्छ् में इसका प्रयोग करते हैं। इससे मूत्र अधिक आता है और मूत्रमार्ग का स्नेहन होता है।
त्वचा- कुष्ठ एवं दाह में इसका सेवन कराते हैं।
तापक्रम - ज्वर में यह अतीव उपयोगी है। मूलत्वक् का भी प्रयोग ज्वर में करते हैं। ब्लैक वाटर फीवर में यह विशेष आधार माना गया है।
अमलतास - फल
अमलतास - पत्ती
अमलतास - फ़ूल