वानस्पतिक नाम – Emblica officinalis (एम्बिलका ऑफिसिनेलिस)
सामान्य नाम – आंवला
कुल - Euphorbiaceae (युफॉर्बिएसी) - एरण्ड कुल
स्वरूप – 20 - 25 फुट ऊँचा वृक्ष
गुण कर्म:-
गुण – रूक्ष, गुरू, शीत
रस – पंचरस (लवण रहित अम्ल प्रधान)
वीर्य – शीत
विपाक – मधुर
प्रभाव – त्रिदोषहर
*दीपक *पाचक *वातहर
प्रयोज्य अंग – फल
मात्रा – स्वरस – 10 - 20 मिली.
चूर्ण- 3 - 5 ग्राम
प्रयोग-
आमलकी के परिपक्व फल को चीरने से निकला रस वात, पित्त व कफ के द्वारा उत्पन्न नेत्र रोगों में लाभप्रद है।
आमलकी रस को घृत में भूनकर लेना ज्वरहर है।
रक्ताल्पता में आमलकी चूर्ण मधु से लेना लाभप्रद है।
कामला में द्राक्षा स्वरस तथा आमलकी रस का सेवन लाभप्रद है।
हरे चनों का हिम, आमलकी रस में मिश्रित कर ग्रहण करना वमननाशक है।
आमलकी, शतावरी व शर्करा का समभाग मिश्रण, समान भाग मधु मिलाकर दुग्ध से लेना अम्लपित्त हर है।
प्रदर रोग में आमलकी चूर्ण मधु से लेते हैं।
पालित्य रोग में आमलकी, मण्डूर व जपा पुष्प का लेप स्नान से पूर्व बालों में लगाने से पालित्य रोग नहीं होता।